Thursday, 4 December 2014

Hindi haiku - akash

मन उड़ता
आकाश से भी परे
न जाने कहाँ

उड़ना चाहे
उन्मुक्त गगन में
दिल नादान

पंख होते तो
हम भी उड़ लेते
खगों के साथ

पक्षियों पर
इन्शाँ को ना दे पंख
प्रभु की कृपा

रहते होंगे
नभ में कहीं छुपे
सभी बिछुड़े

रहता है तू
आकाश में ही कहीं
ढूँढू कहाँ मैं!

पसरे सारे
नभ में चाँद सूर्य
और सितारे

ऊँचा अम्बर
विशाल समुन्दर
तैरते मेघ

नभ से जाती
बिना पद चिन्ह के
स्वर्ग की राह

आसमान में
चल नहीं सकते
पंछी भी पैरों

उड़ने वाला
जहाज का बनाना
बच्चों का खेल

बन जाता है
बेघर का छाजन
सारा आकाश

व्योम है बस
सिर के ही ऊपर
मैं यूँ ही छू लूँ

पारदर्शी है
सम्पूर्ण आसमान
तू ना दिखता

लगा ना पाया
युगों बाद भी नर
नभ की थाह

नन्हा हो जाता
नभ में उड़ कर
बड़ा जहाज

पांव रखूं मैं
सदा धरती पर
नभ में सिर

सृष्टि के सारे
रंग धर कर भी
नभ है नीला

छोटा कोहरा
ढक लेता नभ को
डाल के पर्दा

मेरे उनके
रचे स्वयम्बर का
साक्षी अम्बर

नभ चूमता
झुक कर धरा को
दूर क्षितिज

बना दूँ मैं भी
वायुयान का मार्ग
नभ तो मिले


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