Thursday, 11 December 2014

Chaya ki chuski


चाय ही जिंदगी है, चाय ही बंदगी है
चाय मन की चाहत, चाय ही ताजगी है।
सो रही रैन को, चाहे दिनकर जी जगाएं,
मन की नींद तो, चाय से ही जागती है।

प्रातः राम का नाम बाद में आता, 
जिह्वा पर पहले, चाय ही आती है।
अन्य देशों के बारे में तो पता नहीं;
भारत को चाय की चुस्की जगाती है।

सर्दी के मौसम में कड़कती ठण्ड हो,
कड़क चाय से कुछ गर्माहट आती।
कितनी भी सुस्ती हो, चाय की चुस्की,
ताजगी भर कर, कुछ राहत लाती।

भोर होते, ननुआ की भट्टी जल जाती है,
उजाला होते ही भीड़ जुट जाती है।
अख़बार की सुर्खियां बीच आ जाती हैं,
देश के दशा पर, बहस छिड़ जाती है।

देश की राजनीति यहीं से शुरू होती है, 
पक्ष - विपक्ष, अपनी अपनी रखते हैं।
सरकारी नीतियों के तर्क वितर्क में,
पार्टियों के समर्थक पीछे नहीं हटते हैं।

कभी बढ़ चुके गर्माहट के माहौल में, 
ननुआ की परेशानी बढ़ जाती है।
उस पर, सदन के सभापति की तरह,
मौन रखने की नीति, गढ़ जाती है।

ग्राम सभा, विधान सभा, लोक सभा;
हर सभा की कार्यवाही को देती ब्रेक।
सरकारी दफ्तर के नुक्कड़ पर बैठ,
रुके काम की गति, कर देती तेज।

सम्मलेन, कीर्तन, भजन में रंग जमाती;
चाय की चुस्की यात्रा सुगम बनाती है।
आम आदमी के मुंह लगी, मुंह बोली है,
बात बात पर उसके मुंह लग जाती है।

चाय की चुस्की, कभी समय बिताती,
कभी अतिथि स्वागत में जुट जाती है।
कभी डील, कभी रिश्तो को फील कराती,
कभी यादों में डूबी, कभी बिसराती है।


(C ) एस० डी० तिवारी


चाय ने रोका
बहुतों को जाने से
मदिरालय



चाय की चुस्की

चाय ही जिंदगी है, चाय ही बंदगी है।
चाय मन की चाहत, चाय ही ताजगी है।
सो रही रैन को, चाहे दिनकर जगाएं, 
सोये मन को जगाती, चाय की चुस्की ।

प्रातः उठते ही जिह्वा पर चाय का नाम।
बाद में ही हो पाता अपनों से राम राम।
और देशों के बारे में तो नहीं कह सकता
भारत भाल को जगाती, चाय की चुस्की।

सर्दी के मौसम में ये बड़ी राहत देती।
कड़क चाय की प्याली, कुछ गर्माहट देती।
घर के भीतर हों चाहे कहीं हों बाहर,
घेरे सुस्ती को भगाती, चाय की चुस्की। 

भोर होते, ननुआ की भट्टी जल जाती है,
उजाला होते ही भीड़ जुट जाती है।
देश के हालात पर बहस छिड़ जाती है।
प्रातः अख़बार पढ़ाती, चाय की चुस्की।

यहीं से शुरू होती, देश की राजनीति।
पक्ष, विपक्ष, बताते अपनी अपनी नीति।
तर्क वितर्क करते, पार्टियों के समर्थक,
गरमागरम बहस चलाती, चाय की चुस्की।

कभी कभी गर्माहट, बहुत बढ़ जाती।
ननुआ के सिर पर, चिंता चढ़ जाती।
सदन के सभापति सा मौन हो जाता;
बीच बीच में और! पुछवाती, चाय की चुस्की?

हर सभा की कार्यवाही को देती ब्रेक।
सरकारी काम की गति कर देती तेज।
ग्राम सभा, विधान सभा, लोक सभा;
हर सभा पूरी करवाती, चाय की चुस्की।

कभी डील, कभी रिश्तो को फील कराती।
कभी अतिथि के स्वागत में जुट जाती।
कभी यादों में डूबी, तो कभी बिसराती;
रिक्त समय में साथ निभाती, चाय की चुस्की।

आम आदमी के मुंह लगी, मुंह बोली है।
भजन, कीर्तन, यात्रा में हमजोली है।
लगता है कि कितनी बड़ी निधि खोयी है, 
किसी दिन नहीं मिल पाती, चाय की चुस्की।

- एस० डी० तिवारी

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