Sunday, 7 December 2014

Hindi haiku - ped


मरे लकड़ी
जीते जी फल फूल
देता है पेड़

नहीं रहेंगी
साँसे अपने साथ
वृक्ष बगैर

खड़े तो छाँव
वृक्ष पड़े तो ठाँव
अपना गावँ

फल न भी दे
छावं तो देता ही है
वृद्ध विटप

मुंह ताकता
प्यास लगे वृक्षों का
जलधर भी

ऊपर से ही
कौवा भी उड़ जाता
ठूंठ पेड़ के

नग्न हो रही
अपनो के कारण
माँ वसुंधरा

तुम्हारे लिए
भू सर्वस्व लुटाती
तुम सो जाते

विहंग रोते
किसने सूखा दिया
मेघों के आंसू

चली सरिता
लिए विष की धारा
सिंधु की ओर

नदी या मीरा ?
पीकर भी जीवित
विष का प्याला

खड़े तो छाँव
पड़े वृक्ष तो ठाँव
अपना गांव

महत्वपूर्ण
छाया नही दे तो भी
वृक्ष खजूर

पशु पक्षी के
जीवन का सहारा
जंगल न्यारा

होते बेघर
एक वृक्ष कटे तो
अनेकों खग

थका पथिक
आश्रय की आस में
तरु के तले

पंछी ढूंढते
अपने खोये नीड़  
वृक्ष की हत्या

पूजा की थाली
आम्र पल्लव बिन
जैसे हो खाली


बाग बगीचे :: विहँगों का बसेरा

हरित बन :: स्वच्छ वातावरण

हमारे लिए
नदियों से धरती
नीर चुराती
उन्ही सरिताओं में
हम जहर घोलते

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