Sunday, 7 December 2014

Hindi haiku 8 dec



मग्न हो जाता
घुनघुना ही सुन
नन्हा सा शिशु

मन इंजन
मष्तिष्क है गाडी का
हैंडल ब्रेक

गोरी बहियाँ
हरी हरी चूड़ियाँ
मग्न सईयां

लाल मेहदी
हरी हरी चूड़ियाँ
सजी दुल्हन

आधी रात को
चूड़ियों की खनक
चोर चोरनी

आधी रात को
खनकती चूड़ियाँ
चुगलखोर

बच्चों का घर
खींची रेखा चित्रों से
सजी दीवारें

बच्चों का घर
फैले हुए दिखते
खेल खिलोने

घर का चूल्हा
नहीं जलाया आज
शोक में डूबे

युवा दिखते
दादा दादी दोनों ही
पुरानी फोटो

बच्चों का घर
बाल्कनी में सूखते
नन्हे कपडे


जुटी मंडली
दिन दोपहर में
नीम की छाँव

पूंछ में आग
कपि हनुमान के
लंका दहकी

पगडंडियां
भाग्य के चलने की
हथेली पर

भाव कल्पना
निरंतर बहती
हृद सरिता

भोपाल झील
आतुर आँखे चाहें
पूरा पी जाएँ

झील का तट
बैठे संत बगुल
ध्यान में डूबे

रूकती नहीं
चाहे चट्टान आये
नदी की राह

बुझा देती है
सागर की पिपासा
नदी की धारा

नदी नहीं तो
इन्शाँ की गति नहीं
मर कर भी

महानगर
जमीन की न्यूनता
नभ में घर

हवा पी रही
मदिरा की बोतल
खुला ढक्कन

अन्य लोग भी
बीच में जग जाते
बूढ़ों की खांसी

पढ़ लेता हूँ
उनके हाइकू में
मेरे विचार

छोटा जीवन
सपने बड़े बड़े
दबी जिंदगी

छोटे सपने
जीवन का आयाम
बड़ा दिखता

धुआं पीकर
कर देते हैं लोग
जिंदगी धुआं

लील जायेगा
समुद्र का तूफान
भय में तट

काली सी भैंस
कोहरे में हो जाती
गोरे रंग की

अँधेरी रात
उल्लू को दिख जाते
कीट पतंगे

लगता ओढ़े
मखमली ओढ़ना
जाड़े की धूप

सुबह शाम
अलाव के सामने
गावं की सर्दी

आ जाती नदी
पाइप से होकर
मेरे भी घर

सरिता चली
शहर विचरने
पीपे के मार्ग

पहुंची नदी
पाइप में बहती
मध्य शहर

नदी की धारा
सिखलाती चलना
अनवरत

नदी सूखे तो
सूख जाता है संग
धरा का कंठ

हम न डूबें
बहा ले जाती दूर
वर्षा को नदी

दिल दुखता
इन्शाँ का रक्त देख
माँ धरती का

तन ढकती
पृथ्वी हरियाली से
हरो न चीर

जीवन देती
पृथ्वी पुनः वापस 
समा भी लेती

तुम्हारे लिए 
भू सर्वस्व लुटाती
तुम सो जाते

खिली कलियाँ 
भंवरों की गुंजन
आया बसंत 

बच्चों का घर
खाने कि मेज पर
कापी किताबें

खेल खिलौने
बिखरे चारों ओर
बच्चों का घर

ऊपर रखी
टूटने वाली चीजें
बच्चों का घर

सुनायी देती
रात होते ही लोरी
बच्चों का घर

बच्चों का घर
मचता हल्ला गुल्ला
नींद ख़राब

बच्चों का घर
बिस्तर पर पड़े
गुड्डे व गुड्डी

न्यायाधीश माँ
झगड़े निबटाती
बच्चों का घर

बिस्तर पर
तकिया बीच पड़ा
बच्चों का घर

धमा चौकड़ी
बाहर से भीतर
बच्चों का घर

बच्चों का घर
खूँटी पर टंगा हुआ
स्कूल का बस्ता



********  चाय की चुस्की  *************


सर्द मौसम
दिन में कई बार
चाय की चुस्की

कुछ उनकी
कुछ अपनी बीती
चाय की चुस्की

खिसके छात्र
कॉलेज की कैंटीन
चाय की चुस्की

नुक्कड़ पर
लोगों का  जमघट
चाय की चुस्की

भेद खोलती
पड़ोसन आकर
चाय कि चुस्की

साथ का सुख
रिश्तों में प्रगाढ़ता
चाय की चुस्की

प्याली के आगे
मधुशाला भी झूठा
चाय कि चुस्की

रहे अधूरी
सभा कोई भी बिन
चाय कि चुस्की

चाय की चुस्की
गपसप का दौर
संग ताजगी


जिसका न हो
तरसते दम्पति
बच्चों का घर   

झील बुझाती
जान पशु पक्षी व
मत्स्य की प्यास
धरा व वनस्पति
को भी रहती आस 

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