मग्न हो जाता
घुनघुना ही सुन
नन्हा सा शिशु
मन इंजन
मष्तिष्क है गाडी का
हैंडल ब्रेक
गोरी बहियाँ
हरी हरी चूड़ियाँ
मग्न सईयां
लाल मेहदी
हरी हरी चूड़ियाँ
सजी दुल्हन
आधी रात को
चूड़ियों की खनक
चोर चोरनी
आधी रात को
खनकती चूड़ियाँ
चुगलखोर
बच्चों का घर
खींची रेखा चित्रों से
सजी दीवारें
बच्चों का घर
फैले हुए दिखते
खेल खिलोने
घर का चूल्हा
नहीं जलाया आज
शोक में डूबे
युवा दिखते
दादा दादी दोनों ही
पुरानी फोटो
बच्चों का घर
बाल्कनी में सूखते
नन्हे कपडे
जुटी मंडली
दिन दोपहर में
नीम की छाँव
पूंछ में आग
कपि हनुमान के
लंका दहकी
पगडंडियां
भाग्य के चलने की
हथेली पर
भाव कल्पना
निरंतर बहती
हृद सरिता
भोपाल झील
आतुर आँखे चाहें
पूरा पी जाएँ
झील का तट
बैठे संत बगुल
ध्यान में डूबे
रूकती नहीं
चाहे चट्टान आये
नदी की राह
बुझा देती है
सागर की पिपासा
नदी की धारा
नदी नहीं तो
इन्शाँ की गति नहीं
मर कर भी
महानगर
जमीन की न्यूनता
नभ में घर
हवा पी रही
मदिरा की बोतल
खुला ढक्कन
अन्य लोग भी
बीच में जग जाते
बूढ़ों की खांसी
पढ़ लेता हूँ
उनके हाइकू में
मेरे विचार
छोटा जीवन
सपने बड़े बड़े
दबी जिंदगी
छोटे सपने
जीवन का आयाम
बड़ा दिखता
धुआं पीकर
कर देते हैं लोग
जिंदगी धुआं
लील जायेगा
समुद्र का तूफान
भय में तट
काली सी भैंस
कोहरे में हो जाती
गोरे रंग की
अँधेरी रात
उल्लू को दिख जाते
कीट पतंगे
लगता ओढ़े
मखमली ओढ़ना
जाड़े की धूप
सुबह शाम
अलाव के सामने
गावं की सर्दी
आ जाती नदी
पाइप से होकर
मेरे भी घर
सरिता चली
शहर विचरने
पीपे के मार्ग
पहुंची नदी
पाइप में बहती
मध्य शहर
नदी की धारा
सिखलाती चलना
अनवरत
नदी सूखे तो
सूख जाता है संग
धरा का कंठ
हम न डूबें
बहा ले जाती दूर
वर्षा को नदी
दिल दुखता
इन्शाँ का रक्त देख
माँ धरती का
तन ढकती
पृथ्वी हरियाली से
हरो न चीर
जीवन देती
पृथ्वी पुनः वापस
समा भी लेती
तुम्हारे लिए
भू सर्वस्व लुटाती
तुम सो जाते
खिली कलियाँ
भंवरों की गुंजन
आया बसंत
बच्चों का घर
खाने कि मेज पर
कापी किताबें
खेल खिलौने
बिखरे चारों ओर
बच्चों का घर
ऊपर रखी
टूटने वाली चीजें
बच्चों का घर
सुनायी देती
रात होते ही लोरी
बच्चों का घर
बच्चों का घर
मचता हल्ला गुल्ला
नींद ख़राब
बच्चों का घर
बिस्तर पर पड़े
गुड्डे व गुड्डी
न्यायाधीश माँ
झगड़े निबटाती
बच्चों का घर
बिस्तर पर
तकिया बीच पड़ा
बच्चों का घर
धमा चौकड़ी
बाहर से भीतर
बच्चों का घर
बच्चों का घर
खूँटी पर टंगा हुआ
स्कूल का बस्ता
******** चाय की चुस्की *************
सर्द मौसम
दिन में कई बार
चाय की चुस्की
कुछ उनकी
कुछ अपनी बीती
चाय की चुस्की
खिसके छात्र
कॉलेज की कैंटीन
चाय की चुस्की
नुक्कड़ पर
लोगों का जमघट
चाय की चुस्की
भेद खोलती
पड़ोसन आकर
चाय कि चुस्की
साथ का सुख
रिश्तों में प्रगाढ़ता
चाय की चुस्की
प्याली के आगे
मधुशाला भी झूठा
चाय कि चुस्की
रहे अधूरी
सभा कोई भी बिन
चाय कि चुस्की
चाय की चुस्की
गपसप का दौर
संग ताजगी
जिसका न हो
तरसते दम्पति
बच्चों का घर
झील बुझाती
जान पशु पक्षी व
मत्स्य की प्यास
धरा व वनस्पति
को भी रहती आस
दिन दोपहर में
नीम की छाँव
पूंछ में आग
कपि हनुमान के
लंका दहकी
पगडंडियां
भाग्य के चलने की
हथेली पर
भाव कल्पना
निरंतर बहती
हृद सरिता
भोपाल झील
आतुर आँखे चाहें
पूरा पी जाएँ
झील का तट
बैठे संत बगुल
ध्यान में डूबे
रूकती नहीं
चाहे चट्टान आये
नदी की राह
बुझा देती है
सागर की पिपासा
नदी की धारा
नदी नहीं तो
इन्शाँ की गति नहीं
मर कर भी
महानगर
जमीन की न्यूनता
नभ में घर
हवा पी रही
मदिरा की बोतल
खुला ढक्कन
अन्य लोग भी
बीच में जग जाते
बूढ़ों की खांसी
पढ़ लेता हूँ
उनके हाइकू में
मेरे विचार
छोटा जीवन
सपने बड़े बड़े
दबी जिंदगी
छोटे सपने
जीवन का आयाम
बड़ा दिखता
धुआं पीकर
कर देते हैं लोग
जिंदगी धुआं
लील जायेगा
समुद्र का तूफान
भय में तट
काली सी भैंस
कोहरे में हो जाती
गोरे रंग की
अँधेरी रात
उल्लू को दिख जाते
कीट पतंगे
लगता ओढ़े
मखमली ओढ़ना
जाड़े की धूप
सुबह शाम
अलाव के सामने
गावं की सर्दी
आ जाती नदी
पाइप से होकर
मेरे भी घर
सरिता चली
शहर विचरने
पीपे के मार्ग
पहुंची नदी
पाइप में बहती
मध्य शहर
नदी की धारा
सिखलाती चलना
अनवरत
नदी सूखे तो
सूख जाता है संग
धरा का कंठ
हम न डूबें
बहा ले जाती दूर
वर्षा को नदी
दिल दुखता
इन्शाँ का रक्त देख
माँ धरती का
तन ढकती
पृथ्वी हरियाली से
हरो न चीर
जीवन देती
पृथ्वी पुनः वापस
समा भी लेती
तुम्हारे लिए
भू सर्वस्व लुटाती
तुम सो जाते
खिली कलियाँ
भंवरों की गुंजन
आया बसंत
बच्चों का घर
खाने कि मेज पर
कापी किताबें
खेल खिलौने
बिखरे चारों ओर
बच्चों का घर
ऊपर रखी
टूटने वाली चीजें
बच्चों का घर
सुनायी देती
रात होते ही लोरी
बच्चों का घर
बच्चों का घर
मचता हल्ला गुल्ला
नींद ख़राब
बच्चों का घर
बिस्तर पर पड़े
गुड्डे व गुड्डी
न्यायाधीश माँ
झगड़े निबटाती
बच्चों का घर
बिस्तर पर
तकिया बीच पड़ा
बच्चों का घर
धमा चौकड़ी
बाहर से भीतर
बच्चों का घर
बच्चों का घर
खूँटी पर टंगा हुआ
स्कूल का बस्ता
******** चाय की चुस्की *************
सर्द मौसम
दिन में कई बार
चाय की चुस्की
कुछ उनकी
कुछ अपनी बीती
चाय की चुस्की
खिसके छात्र
कॉलेज की कैंटीन
चाय की चुस्की
नुक्कड़ पर
लोगों का जमघट
चाय की चुस्की
भेद खोलती
पड़ोसन आकर
चाय कि चुस्की
रिश्तों में प्रगाढ़ता
चाय की चुस्की
प्याली के आगे
मधुशाला भी झूठा
चाय कि चुस्की
रहे अधूरी
सभा कोई भी बिन
चाय कि चुस्की
चाय की चुस्की
गपसप का दौर
संग ताजगी
जिसका न हो
तरसते दम्पति
बच्चों का घर
जान पशु पक्षी व
मत्स्य की प्यास
धरा व वनस्पति
को भी रहती आस
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