Wednesday, 10 December 2014

Hindi haiku - Ramayan




मात्र दर्शन
सरयू का करता
पावन मन

ह्रदय मम
होकर के प्रसन्न
बसें श्रीराम

होते उनके
सफल मनोरथ
भजें श्रीराम

मन विकार
कलुषित विचार
हरें श्रीराम

पाप ले हर
मधुर मनोहर
नाम श्रीराम

लेते शरण
करते जो स्मरण
नाम श्रीराम




पाता मनुष्य 
कर के सदगति 
राम भजन  

धो देता पाप
करे नष्ट संताप
राम भजन


भवसागर 
पार लगाती नाव   
राम भजन


किया जो पाया 
प्रभु राम शरण 
राम भजन 

नारद गाते 
नित अयोध्या  के 
राम भजन 



************

तर्क से परे
अगणित अपार
श्रीराम कथा

कष्ट निवार
करे भव से पार
श्रीराम कथा

मिलती मुक्ति
सुन भर लेने से
श्रीराम कथा 

जीवन मन्त्र
बाधा मुक्तक यंत्र
श्रीराम कथा

मन भावन
करती है पावन
श्रीराम कथा

अपनी बात 
श्रीराम की कथा से तो सभी परिचित हैं। बाल्मीकि कृत 'रामायण' अथवा तुलसी दास रचित 'रामचरित मानस' दोनों ही ग्रंथों का पाठ कितनी ही बार करें, कम है।  श्रीराम चरित्र को बार बार कर भी मन को पूर्ण संतुष्टि नहीं मिल पाती, क्योंकि राम का चरित्र एक अथाह सागर है। रामायण का अर्थ है 'राम की यात्रा' और रामचरित मानस का 'राम के चरित्र का सरोवर' जो मानव जाति के लिए कल्याणकारी, चरित्र निर्माणकारी, दुष्ट दलनकारी, कष्ट निवारक, आनंददायक, मोक्ष प्रदायक है। रामायण के विभिन्न चरित्र आदर्श पुत्र, माता, भ्राता, भक्त, पत्नी, पति, वीर, राजा, कृपालु, दयालु, भक्तवत्सल आदि होने का सन्देश के साथ तेजस्वी, विद्वान, बुद्धिमान, धैर्यवान, जितेन्द्रिय, पराक्रमी, संस्कारी, दुष्टों का दमन करने वाला, बुराईयों के विरुद्ध लड़ने वाला, नीतिकुशल, धर्मात्मा, भक्तवत्सल, दयालु, शरणागत को शरण देने वाला, शास्त्रों के ज्ञाता, भक्त, आज्ञाकारी आदि होने की शिक्षा देता है।

मैंने हाइकु के द्वारा रामायण का संक्षिप्त दर्शन कराने का प्रयत्न किया है। हाइकु एक जापानी विधा की कविता होती है जो मात्र १७ वर्णों में लिखी जाती है और तीन पंक्तियों में विभाजित होती है। इसका लयवद्ध होना आवश्यक नहीं होता। आजकल के व्यस्त जीवन में समयाभाव के कारण महर्षि बाल्मीकि रचित 'रामायण' व तुलसीदास कृत 'रामचरित मानस' का सम्पूर्ण पाठ बार बार संभव नहीं हो पाता। इन छोटे छोटे हाइकु के द्वारा जिन्हें कुछ मिनटों में ही पढ़ा जा सकता है, श्रीराम के सम्पूर्ण चरित्र का संक्षिप्त अवलोकन सरलता से किया जा सकता है। यह मात्र एक सांकेतिक रचना है। श्रीराम चरित्र मन को आनंद से भर देने वाला तथा भव से पार लगाने वाला है। श्रीराम के सम्पूर्ण  चरित्र का विस्तार पूर्वक आनंद उक्त कृतियों के द्वारा ही  लिया जा सकता है। यह रचना प्रभु श्रीराम के स्मरण और उनका संक्षिप्त दर्शन कराने के ध्येय से की गयी है। इस पुस्तक में सभी काण्ड और भजन आदि मिलाकर, परम पावन शब्द 'राम' का बार बार प्रयोग किया गया है जिससे कि यह पुस्तक पढ़ने से राम नाम जपने का भी लाभ मिले। जिन्हें भगवान श्रीराम के चरित्र का ज्ञान है वे इस संक्षिप्त पुस्तक को पढ़कर, उनकी पूरी जीवन कथा का स्मरण कर पाएंगे और जिन्हें उनकी कथा का ज्ञान नहीं है, उन्हें यह पुस्तक, उसे जानने के लिए जिज्ञासा उत्पन्न करेगी और श्रीराम का चरित्र विस्तार से जानने हेतु प्रेरित करेगी, ऐसा मुझे विस्वास है। 

एस० डी० तिवारी 


********

बाल कांड 

सरयू तट
रमणीय नगरी
अयोध्या पुरी

सुन्दर तट 
अत्यंत मनोहर 
सरयू जल 

बढ़ाते शोभा 
वन उपवन की 

पशु खग 

संतति हीन
भूपति दशरथ
ग्लानि से ग्रस्त

वसिष्ठ लाये
महर्षि श्रृंगी आये
कराने यज्ञ

विधि निभाए
दशरथ कराये
पुत्रेष्ठि यज्ञ

यज्ञ प्रसाद
पाईं तीनों रानियां
यज्ञ पश्चात

यज्ञ पश्चात
दशरथ को प्राप्त
सुपुत्र चार

राम लक्ष्मण
भरत व शत्रुघ्न
गुणों के धाम


चैत्र नवमी
अयोध्या हुई मग्न
राम का जन्म

बजा बधावा
प्रकट भगवान
हुए श्रीराम

गुंजा दी पूरी
राम की किलकारी
अयोध्या पुरी

धन्य हो गयी
महतारी कौशिल्या
गोद में राम

खिलखिलाते 
राम दौड़ लगाते 
माँ को रिझाते 

धावत राम 
बाजत पैजनिया 
घर अंगना 

बालक बन
भर दिया आनंद
घर में राम

माँ ने चढ़ाया
जो पूजा में सामग्री
खा गए राम

देख चकित
हुयी माता कौशिल्या
दिव्य श्रीराम

गया था भर
दशरथ का घर
राम राम से

भोर से शाम
दशरथ कौशिल्या
पुकारें राम

शिक्षार्थ गए
विश्वामित्र के संग
लक्ष्मण राम

विश्वामित्र से
लिये ज्ञान श्रीराम
गुणों के धाम

प्रतिभावान
राम हुए विद्वान
गुरु का ज्ञान

छूकर बनी
अहिल्या एक नारी
राम के पांव

शिला से पुनः
अहिल्या हुई नारी
राम ने तारी

गुरु रक्षार्थ
किये ताड़का वध
शिष्य श्रीराम

निर्भय ऋषि
किये खर दूषण
मार के राम

जनकपुर
विश्वामित्र के साथ
चले श्रीराम

श्रीराम पर
पड़े सीता के दृग
रूप पे मुग्ध

जनकपुरी
विलोक मनोहर
मोहित राम

नेह से नेह
मिले सिया राम के
पुष्प वाटिका 

सीता  के चित्त
रामचन्द्र का चित्र
छपा किंचित

सीता लीं मांग
मन मूरत राम
गौरी आशीष

सीता के मन
श्रीराम की सूरत
करीं वरण

विवाह हेतु
जानकी के जनक
रखे थे शर्त

कसे प्रत्यंचा
शिव धनुष पर
वो सीता वर

हिला न सके  
नृप निराश हुए  
शिव धनुष 

पाया न हिल  
रावण भी विफल
शिव धनुष

गुरु की आज्ञा 
सिय स्वयंवर को 
चले श्रीराम 

अभेद्य लक्ष्य
तोड़े शिव धनुष
सहज राम

गूंजा ब्रह्माण्ड
मंगल गान और
जय श्रीराम

टूटा पिनाका
सुन किये बवाल
परशुराम

हो गये शांत
देख परशुराम
दिव्य श्रीराम 

सीता ने डाला
मन की वरमाला
गले श्रीराम

सीता का मन
हर लिए थे राम
वर हो चले

सन्देश पाये
दशरथ भी आये
साथ बारात

अति प्रसन्न
जनक जी का मन
राम दामाद

जुटे जनक
स्वागत बारात में
दूल्हा श्रीराम

लाल सिंदूर
भर दिये  श्रीराम
सीता की मांग

गाली भी खाई
बने जो दशरथ
समधी भाई

प्रत्यक्षदर्शी
बने सब देवता
राम का व्याह

अश्रु बहाई
जनक सुनयना
सिय विदाई

सीता के पांव
पड़े कौशिल्या ठाँव
हर्ष मनाई

दुंदुभि बजी
सीता के आने पर
अयोध्या सजी

मंगलगीत
अयोध्या प्रतीत
स्वर्ग नगरी

कौशिल्या ने की
आरती परछन
आई दुल्हन

देख उत्साह
सुन्दर ससुराल
सीता मगन

५७
**********



अयोध्या कांड

शोभायमान
सिय राम दम्पति
सृष्टि की श्रेष्ठ

नित मंगल
अयोध्या में घटित
सिय का पैर

अयोध्या वासी
हो रहे अभिलाषी
राम हों राजा

कुचक्र देव
ना सकते थे देख
सुखी अयोध्या

कर दी बुद्धि
मंथरा की भ्रमित
कुचक्र चला

सुनी मंथरा
राम अभिषेक की
राज्य में चर्चा

लगाई दासी
जा कैकेयी के पास
हुई उदास

दासी की सीख 
कैकेयी मन भाई  
सुत को राज 

नीच कुबड़ी
कैकेयी को सिखाई
घर की फोड़ी

मंथरा ताई
उसी थाल की छेद
जिसमें खाई

घर में दासी
रही बिना लगाम
आग लगाई

दासी की सुन
कैकेयी ली मन में
पाप को गुन 

कैकेयी को दो -
दशरथ का प्रण
देना था वर

गयी कैकेयी
मन की मनवाने
कोपभवन

रूठी कैकेयी 
मांगी सुत को राज 
राम को वन 

सुत को राज
राम को वनवास
कैकेयी स्वार्थ

विवेक शून्य
दशरथ थे सुन
सूझे न राह

लाख मनाये
कैकेयी को न भाये
नृप की बात

सिर को धुन
दशरथ ने दिया
राम को वन

शोक से ग्रस्त
भई अयोध्या सुन
राम को वन

मांगी कैकेयी
मांग राम को वन
पति के प्राण

पाकर थाह
पितृ आज्ञा की राम
वन की राह

राम ने माँगा 
कौशिल्या से आशीष  
नैनों में बाढ़

आज्ञा पालन 
तात का सर्वोपरि 
राम के मन    

किये प्रस्थान
धर वन को राम
मुनि का वेश

पिता की आज्ञा
राम छोड़े अयोध्या
चौदह वर्ष

सीता का हठ
सह लेगी संकट
जाएँगी साथ

वन को चली
संग राम के सीता
कोमल कली

राम के सीता
बन जीवन साथी
वन को चलीं

चलेंगे साथ
लक्ष्मण का आग्रह
वन की गली

राम शरण
वन के सीता सह
दुःख रह ली 

अश्रु में डूबी
श्रीराम चले वन
अयोध्या पूरी

आग पठाई
मंथरा की लगाई
राम को वन

लेकर गया
गंगा के तट तक
तीनों को रथ

समझा बुझा
सुमन्त्र को लौटाए
घर श्रीराम

मिटी थकान
किये गंगा में स्नान
प्रभु श्रीराम

लगा युगत
किया आव भगत
निषादराज

राम ने माँगा
जाने को गंगा पार
केवट से नाव

बिठाने नाव
केवट ने पखारा
राम के पांव

राम दर्शन
केवट बोला यही
मेरा वेतन

सबको तारें
केवट ने उतारा
राम को पार

जुटा प्रयाग
कैसे भी मिल जाय
राम दर्शन

जहाँ पड़ते
हो जाता तीर्थ स्थल
राम चरण 

पहुंचे राम
बाल्मीकि के आश्रम
किये विश्राम

राम पधारे
चित्रकूट हो गया
संत सुखारे

अयोध्या आ के
सुमन्त्र ने रोकर
बताया हाल

हुए मूर्छित
दशरथ चिंतित
राम की याद

राम वियोग
सहे न दशरथ
बिछुड़े प्राण

पापिन हुई
कैकेयी स्वार्थ वश
पति को खोई

अवध लौटे
भरत व शत्रुघ्न
शोक में डूबे

क्रोध में भरे
मारे लात शत्रुघ्न
कुबड़ी रोइ

पिता स्वर्ग में
भ्राता गये वन में
दुखी भरत

दुष्ट पुकारा
कैकेयी को धिक्कारा
सुत भरत

सुत के हित 
समझाई कैकेयी 
रचा प्रपंच 

माँ का गलत
ठुकराये भरत
राज तिलक

वसिष्ठ बोले 
भरत से निबाहो
तात की आज्ञा  

मना के लाएं
श्रीराम को अयोध्या
सोचे भरत

मनाने राम
संग प्रजा लेकर
चले भरत

शत्रु सा जान
लक्ष्मण ताने बाण
लक्ष्य भरत

जैसे ही आये
भरत को श्रीराम
गले लगाये

राम से किया 
भरत ने प्रार्थना
चलें अयोध्या  

राम न माने
भरत की प्रार्थना
बोले अधर्म

सर्वश्रेष्ठ है
पितृ आज्ञा पालन
पुत्र का धर्म

राम की आज्ञा
घूम लें चित्रकूट
जा के भरत

लेकर साथ
श्रीराम की पादुका
लौटे भरत

राम पादुका
विराज सिंहासन
मग्न भरत 

पर्ण कुटी में
रहने को भरत
छोड़े सदन

अगाध प्रेम
भरत का जीवन
राम भजन

६८ 
******************


अरण्य काण्ड


दुःख विषाद
वन के सह साथ 
राम के सीता 

राम ने गूंथा
फूलों के आभूषण
पहनीं सीता

मारा जयंत
कौआ बनके चोंच
घायल सीता 

राम ने छोड़ा
सरकंडे का बाण
भागा वो कौआ

देख संकट
हुआ शरणागत
राम के कौवा 

दया की भीख
दिये कृपालु राम
मांगा वो कौवा 

स्तुति में लीन
मुनि अत्रि आश्रम
पहुंचे राम

सीता ने सीखा 
अनसुइया ने दी
नीतोपदेश 

संकट काल
धैर्य धर्म मित्र स्त्री
परखे जात

वहां से चले
देख हड्डी का ढेर
व्यथित राम



खा गये मार
मुनियों को राक्षस
समझे राम

करेंगे पृथ्वी
राक्षसों से रहित
ठाने श्रीराम 

पाये दर्शन
अगस्त्य के आश्रम
पहुंचे राम

मुनि ने कहा
निवास को उत्तम
है पंचवटी

बनी तो हुई
पावन पंचवटी 
राम की कुटी 

वन में राम
सिय के रहे सदा
मन में राम 

खाकर जिये
कंद व फल फूल 
वन में राम

सुन्दर रूप 
सूर्पणखा ने धरा 
रखा प्रस्ताव -

कर लेते हैं 
सूर्पणखा ने कहा
राम से व्याह  

की दुराग्रह
सूर्पणखा राम से
नाक कटाई

बनी नकटी
सूर्पणखा राम को
आँख दिखाई

गयी नकटी
खर दूषण पास
बताई हाल

सेना लेकर
चले खर दूषण
गंवाए प्राण

कर विलाप
पहुंची सूर्पणखा
रावण पास 

देख के हाल
बहन का रावण
हुआ बेहाल

रावण गया 
कहा देने को साथ 
मारीच पास  


मारीच ने दी
कपट की स्वीकृति
वध से डरा 

स्थिति समझ
सीता रहो अग्नि में
राम ने कहा

करनी अभी
मुझे मानव लीला
राम ने कहा

सीता समायीं
रख अपनी छाया  
अग्नि की ज्वाला

मृग कपटी
बन चला मारीच
मोक्ष को चाहा

मुग्ध हो माँगा
देख स्वर्णिम मृग
सीता ने छाला 

उठाये राम 
धनुष और बाण 
मारीच भागा  

तीर चलाये
राम मारीच पर
स्वर्ग सिधारा

लक्ष्मण! कह
मारीच ने पुकारा
धोखे में डाला

खींच लक्ष्मण
चले सीता रक्षा को
लक्ष्मण रेखा

सीता को छला
साधु बन रावण
स्त्री के कारण

सीता हरने 
धर साधु का वेश
गया रावण

धैर्य को छोड़ा
लक्ष्मण रेखा तोड़ा
सीता हरण 

कपटी बन
किया धूर्त रावण
सीता हरण

काल को न्योता
कर सीता हरण
दिया रावण

सुन विलाप
मदद हेतु आया 
गिद्ध जटायु


प्राण दे दिया
करने में जटायु
सीता की रक्षा

मोक्ष की गति
राम के चरणों में
पाया जटायु

सीता की खोज
लक्ष्मण को साथ ले
चले श्रीराम  

कहाँ है सीता
खग मृग वृक्ष से
पूछते राम

प्रेम में मग्न
सबरी के आश्रम
पधारे राम 

सबरी मन
और न दूजा काम
बसे श्रीराम

भक्ति का श्रेय
भक्त का जूठा बेर
खाये श्रीराम

पहुचें राम
सबरी ने सुझाया
सुग्रीव धाम

कपि सुग्रीव
सीता को ढूंढने में
आएंगे काम

किष्किन्धा पर
है पम्पा सरोवर
सुग्रीव वास

सुन्दर अति
सरोवर की छवि
मोहित राम

५३
*******************


किष्किन्धा कांड


राम का हुआ
किष्किन्धा आगमन
श्रेष्ठ कानन

किष्किन्धा के
रमणीय कानन
छा गए मन

दिव्य कानन
किष्किन्धा में खोया
राम का मन

दो अनचिन्ह
ऋष्यमूक निकट  
देखे सुग्रीव

देखें वे कौन
हनुमान को सौंपे
कार्य सुग्रीव

राम को जान
ले आये हनुमान
पास सुग्रीव  

राम लक्ष्मण
हनुमान के कंधे
किष्किंधा चले

राम लक्ष्मण
लगाये सुग्रीव को
पहुँच गले

राम सुग्रीव
मिलाये हनुमान
मित्र महान

जा रहीं सीता
सुग्रीव ने बताया
रटते राम 

लिये जा रहा
विमान में रावण
सीता को लंका

अपना चिन्ह
विमान से जा रहीं
गिरा दीं सीता

सुग्रीव लाये
दिखलाये जो पाये
राम को वस्त्र

कथा सुनायी
सुग्रीव ने राम को
बालि से त्रस्त

बोले सुग्रीव 
भाई बालि ने हरा
पत्नी उनकी

राम ने लिया
सात वृक्ष की ओट
बालि को बेधा

चलाके बाण
हर लिये श्रीराम
बालि के प्राण

बना कारण
पर स्त्री का हरण
बालि का वध

सुग्रीव को था
बालि का अति भय
हुए निर्भय

सौंपे सुग्रीव
हनुमान को काम
सीता को खोजो

संग में चले
अंगद जामवंत
कपि सहस्रों

पहुंचे सब
स्वयंप्रभा की गुफा
बुझाई प्यास

गुफा के पार
वानरों के समक्ष
सिंधु विशाल

बातें करते
सम्पाती सब सुना
उन्हें बताया -

समुद्र पार
है अशोक वाटिका
विराजीं सीता

गिद्ध सम्पाती
सूर्य छूने चले थे
जले थे पंख

कौन लाँघेगा
सौ योजन समुद्र
सोच में सब

लगाने लगे
पार जाने की सभी
कई युगत

लूंगा मैं लाँघ
कहा हनुमान ने
हर्षित सब

२९
*************


सुन्दर काण्ड


जाओ ले आओ
जांबवान ने कहा
सीता का पता

उछले तीव्र
तत्पर हनुमान
जाने को लंका

सीता ढूंढने
उड़ते हनुमान
मेघ सा चले

मार्ग में आये
ऊपर पर्वतों के
उड़ते गये

रोक न पाई
हनुमान की राह
खड़ी सुरसा

घुस के आये
सुरसा के मुंह से
कपि हो छोटा

मार छुड़ाया
हनुमान की छाया
ग्रही सिंहिका

प्राण गंवायी  
हनुमान की राह
रोक सिंहिका

पवनसुत
बाधायें पार कर 
लांघे सागर

उड़ के गये
पहुंचे हनुमान 
लंका नगर

समुद्र लाँघ
हनुमान लंका में
डरी लंकिनीं

मच्छर रूप
धर घुसे पुरी में
देखी लंकिनी

मनाई सुख
हनुमत दर्शन
पा के लंकिनी

मुक्का प्रहार
हनुमान का खा के
गिरी लंकिनी

लगे देखने
पर्वत से कपीश
कहाँ हैं सीता

हुये चकित
देख के हनुमान
सुन्दर लंका

दिखा रावण
सोता हुआ कक्ष में
नहीं जानकी

चकित सुन
विभीषण  का जप
जय राम की

सीता का पता 
पूछ  के हनुमान
गए वाटिका

शोक संतप्त
अशोक वाटिका में
वास सीता का

लोभ दे रहा -
अविचलित सीता
रावण दिखा

त्रास में बैठी
राक्षसियों से घिरीं
व्यथित सीता

जा के वाटिका
गिराये हनुमान
राम मुद्रिका

सिय दुखान्त
शीघ्र आएंगे राम
ढांढस बंधा

भूखे कपीश
खाने लगे बाग के
रसीले फल

आकर टोका
हनुमान का रोका
खाना अक्षय

अक्षय खाया
हनुमान का मुक्का
अँधेरा छाया

धरने कपि
सुन इंद्रजीत भी
वाटिका चला 

रावणसुत  
हनुमान को बांधा 
ब्रह्मास्त्र चला 

जैसे मदारी
कपि को मेघनाद
बांध ले चला

चले कपीश -
पीछे राक्षस बच्चे
रस्सी से बंधे

महल जा के
बताये हनुमान
रामदूत वे

लौटा दो सीता
बोले - बच जाओगे
राम कोप से

ठाना वध की
कपि हनुमान की
क्रुद्ध लंकेश

उचित नहीं
विभीषण ने कहा
दूत की हत्या

आग लगा दी
कपीश की पूंछ में
रावण आज्ञा

पूंछ जलाया
कपीश की लंकेश
शोलों में लंका

किये प्रस्थान
सिंधु को हनुमान
पूँछ बुझाने

चिन्ह ले लिया
सीता का चूड़ामणि
लाये सम्हाल

लंका से आये
हनुमान बताये
सीता का हाल

हर्षित राम
पाये कुशल क्षेम
प्रिय सीता का

सीता की खोज
हनुमान की हुई
घोर प्रशंसा

सुग्रीव करो
लंका पे आक्रमण
राम की आज्ञा

राम के हित
हनुमान बटोरे
वानरी सेना

लंका को कूच
ले के किये कपीश
वानरी सेना

लंका में भय
सागर तट पर
राम की सेना

संधि की राय
विभीषण का दिया
हुई अमान्य

दर्प का मारा
रावण को सलाह
अंधे को राह

खाया था लात
रावण को सलाह 
दे विभीषण   

छोड़ के लंका
पहुंचा विभीषण
राम शरण

प्रभु श्रीराम
शरणागत हेतु
कृपावत्सल

राम शिविर
लंका के भेजे दूत
गये पकड़

दे के लौटाए
रावण को सन्देश
कृपालु राम

किये विनती
समुद्र से श्रीराम
देने को मार्ग

दिया न ध्यान
राम विनय पर
मौज में सिंधु

उठाये बाण
सुखाने को समुद्र
हुआ व्याकुल

सिंधु बताया
पार जाने का मार्ग
राम का भय

डूबती नहीं
नल नील शिला को
कर दें स्पर्श

बना लें सेतु 
समुद्र की मर्यादा  
नहीं हों नष्ट 

६० 
************************


लंका काण्ड

लगाते पार
जीवन सागर का
सेतु श्रीराम

राम ने कहा
कर लेने को शीघ्र
सेतु निर्माण

जामवंत ने
बुलाया नल नील
सेतु बनाने

वानर भालू
नल नील को देते
शिलाएं ला के

तैरती शिला
नल नील स्पर्श से
अचम्भा भारी

पत्थर छू के
नल नील दो भाई
सेतु बनाई

राम ने किया
शिव की उपासना
कर स्थापना

विधिपूर्वक
शिवलिंग स्थापित
राम पूजित

परखे राम
सुदृढ़ है या नहीं
सेतु पे चल

समुद्री जीव
चले आये ऊपर
राम दर्शन

चली लंका को
हनुमान की सेना
विजय यात्रा

सेना के साथ
कृपालु रघुनाथ
हो गये पार

समुद्र पार
पड़ा राम का डेरा
व्याकुल लंका

मंदोदरी की
रावण नहीं सुना
काल को चुना

राम कृपालु
कर देते हैं क्षमा
लौटा दें सीता

जला दिया था -
जानें उनका बल
लंका वानर

संधि कर लें
सीता को लौटाकर
मिलेगा यश

कोई सम्मति
रावण को न भाई
काल के वश

राम ने भेजा
अंगद को देकर
मैत्री सन्देश

अंगद गये 
दरबार लंकेश  
दिया सन्देश 

मान लो बात 
सीता को लौटाकर 
मांग लो क्षमा 

मैत्री सन्देश
ठुकराया लंकेश
मृत्यु को चुना

रावण बोला
साहस है किसमें
लड़े मुझसे 

बड़े नादान
बीस नेत्र व कान 
तुम हो रखे

लंका में कौन
मेरे पांव उठा दे
अंगद बोले

अनेकों योद्धा
असफल प्रयोग
करके लौटे

हिला न पाया 
मेघनाद भी पैर
बैठा लज्जित


रावण झुका
मगर नहीं उठा
अंगद पद

अंगद बोले
मेरे नहीं, राम के
पांव पकड़

समझा नहीं
रावण नीतिगत
भरा कुबुद्धि

मंदोदरी की
कर दी अनसुनी
अपनी बुनी

एक न मानी 
किसी की दशानन  
युद्ध की ठानी

दुष्ट रावण
प्रभु पद विमुख
काल के वश

चार दल में 
विभाजित वानर
युद्ध आरम्भ

पिशाचिनियां
करतीं मारो काटो
उछल कूद

ले के वानर
राक्षसों को मारते
पर्वत टूक

वानर योद्धा
उखाड़ वृक्ष बड़े
मारते दे के

किये विदीर्ण
राक्षसों को वानर
राम का बल

सह ना पाये
जोरों का आक्रमण
राक्षस  भागे

विदीर्ण तन
देख व्याकुल मन
हुआ दैत्यों का

युद्ध को चला
इंद्रजीत सेना ले
वानर डरे 

चलाया मेघ
वीरघातिनी शक्ति 
शेष अचेत

लंका से लाये
जाकर हनुमान
वैद्य सुषेन

दिव्य औषधि
भेजे हनुमान को
लाने सुषेन

रोध के लिए
कालनेमि ने रची
मार्ग में माया

काम न आया
कालनेमि का छद्म
काल को पाया

संजीवनी का
हनुमान को भ्रम
लाये पर्वत  

उड़ते चले
लगा हनुमान को
भरत बाण

गिरे वे लेते
अयोध्या में तत्पल
राम का नाम

भरत हुए -
उनकी ही करनी
अति उदास

फिर से उड़े
पहुंचे हनुमान
गंतव्य स्थान

देकर बूटी
लक्ष्मण के सुषेन 
बचाया प्राण

भेजा रावण
भ्राता कुम्भकर्ण को
जगा नींद से

बिता लेता था
राक्षस कुम्भकर्ण
छः माह सोते

महीनों जाते
बिन नहाये धोये
कुम्भकर्ण के

डरे वानर   
चला जो कुम्भकर्ण 
पर्वताकार

लिया राम का -
कुम्भकर्ण के प्राण
एक ही बाण

फिर से आया
इंद्रजीत लड़ने
वीर शेष से

प्राण छीन ली
वीरता लक्ष्मण की
इंद्रजीत के

पा गये गति
हनुमान के हाथों
दैत्य अनेक

गति को प्राप्त
एक एक करके
योद्धा हरेक

लड़ने बड़ा
बचा न कोई वीर
रावण चला

होते ही गूंजा
राम रावण युद्ध
आकाश धरा

काट गिराये
फिर से उग आते
अंग रावण

हो जाते व्यर्थ 
राम के छोड़े बाण
रावण पर

नाभि अमृत
बताये विभीषण
धरे रावण

चढ़ा प्रत्यंचा
राम ने छोड़े संग
बाण इक्तिस

बीस भुजाएं
दस से काटे शीश
एक अमृत

अँधेरा छाया
जैसे प्रलय आया
लंकेश मृत

खाकर साथ
रावण छोड़ा प्राण
बाण इक्तीस

दबे वानर
गिरने से रावण
हिली धरती

ढा दिया लंका
हताश विभीषण
घर का भेदी

पाप की चाह
ले गई रावण को
काल की राह

स्वयं कारण
करवाया रावण
कुटुंब स्वाह

धर्म विरुद्ध
रावण की करनी
पड़ी भरनी

विधिनुकूल
विभीषण ने किया
अंतिम क्रिया

राम की भक्ति
विभीषण को दे दी
लंका की गद्दी

राजतिलक
हो गया विभीषण
लंका का पति 

राम विजय 
गूंजे धरा गगन  
राम की जय 

प्रसन्न देव
राम का गुणगान
लगे करने

फूलों की वर्षा
किया देवताओं ने
भरे हर्ष में 

हर्ष विशेष
सीता पाईं सन्देश
विजयी राम

पहुंची सीता
पालकी में विराज
राम के पास

राम में मन
दे के पुष्टि की सीता
अग्नि परीक्षा 

अग्नि देव ने
सकुशल लौटाया
राम को सीता

चले अयोध्या
राम हो विराजमान
दिव्य विमान

विमान से की
वस्त्राभूषण वर्षा
राम की आज्ञा

रुकते गए
प्रभु राम मार्ग में 
प्रमुख स्थान


८८ 
**********************

उत्तर काण्ड


दिवस एक
रहता अब शेष
आएंगे राम

शुभ शकुन
भरत थे आतुर
मिलेंगे राम

लिए सन्देश
आ गए हनुमान
आ रहे राम

सजी अयोध्या
फूल और तोरण
लगाये द्वार

हर्ष में डूबी
पूरी अयोध्या पुरी
बहुरे राम

दीपक जले
सिय संग पधारे
लक्ष्मण राम

आते ही गले
श्रद्धालु भरत से
मिले श्रीराम

राम लखन
सिय संग आरती
माता उतारीं

विजयोत्सव
दीपमाला से सजी
अयोध्या सारी

माँ कैकेयी को
समझाए श्रीराम
बिसारो बीती

विरह अस्त
उर्मिला मन में ना
फूले समाती

सिद्धि को बनी
उर्मिला तपस्विनी
पति का तप

उर्मिला श्रेष्ठा
जली अग्नि विरह
चौदह वर्ष

काटी उर्मिला
मन लिये अँधेरा
चौदह वर्ष

राम विराजे
अयोध्या सिंहासन
कृपानिधान 

राम को राज
देने को आशीर्वाद
पधारे देव

हर्षित सुन
पार्वती राम गुण
शिव संवाद

राम राज्य में
कतहुँ कहीं व्याप्त
कोई विषाद

१८
**********


भजन 

सुन्दर तट 
अत्यंत मनोहर 
सरयू जल 

बढ़ाते शोभा 
वन उपवन की 
पशु व खग 

नारद गाते 
नित अयोध्या आ के 
राम भजन 

पाता मनुष्य 
जग में सदगति 
राम को भज  

धो देता पाप
नष्ट करे संताप
राम भजन


*************


बिगड़े काम 
बनायें बस राम
भज ले प्यारे  

राम का नाम
मिटाये सब पाप
भज ले प्यारे

राम का नाम
हरे कष्ट संताप 
भज ले प्यारे 

राम भजन 
करे पावन मन
भज ले प्यारे  

राम का नाम 
करता बेडा पार
भज ले प्यारे




काफी है नाम
बनाने को बिगड़ी 
जय श्रीराम 

लेते जो नाम
पूरे हो जाते काम  
जय श्रीराम  

सुख के धाम
बस तेरे चरण
जय श्रीराम

आकर थाम
भंवर में नइया
जय श्रीराम

भज ले प्यारे 
कौड़ी लगे न दाम
जय श्रीराम





रामायण रत्नावली

धर्म रक्षार्थ
लगा दिए सर्वस्व 
प्रभु श्रीराम

आज्ञा पालन
पिता का सर्वोपरि
राम का धर्म

गुरु सत्कार
देता उत्तम ज्ञान
उच्च विचार

शिव स्थापना
करके उपासना
किये श्रीराम

नीति कुशल
दुष्ट दलनकारी
राम की जय

वीरता धैर्य 
विवेक और धर्म  
दिलाता जय 

सीता चरित्र
समर्पण व सेवा
पति के प्रति

हेतु कौशिल्या
राम सम भरत
माता आदर्श

राम की सेवा
भरत व लक्ष्मण
भ्राता का त्याग

आदर्श भक्त
राम को समर्पित
अंजना सुत

संकट काल
सेवक मित्र नारी
परखे जात

कुबड़ी दासी
ज्यादा मुंह लग के
आग लगा दी

सूर्पणखा  ने
दुराग्रह करके
नाक कटाई

पति की बात
सीता ने नहीं मानी
हर ली गयीं

पत्नी की बात
रावण ठुकराया
काल बुलाया

लंका का किया
यतन से पतन
राम का धैर्य

छल प्रपंच
दानवों के समझ
लड़े  श्रीराम

दर्प दुष्टता
रावण को ले गयी
विनाश काल

स्त्री का हरण
रावण के नाश का
बना कारण

बुरे का साथ
देने वाला भी पाता
वही आचार

एक रावण
लाखों उस कारण
काल के ग्रास

राम सुग्रीव
मिलाये हनुमान
मित्र महान

पाकर राम
सुग्रीव की मित्रता
रावण-जेता

क्षमा का दान
शक्ति परिचायक
कार्य महान

लंका का भंडा
विभीषण ने फोड़ा
घर का भेदी

किये श्रीराम
रावण का संहार
पत्नी रक्षार्थ

राजा हो राम
रखे प्रजा का ध्यान
कृपानिधान

राजा का काम
तज दम्भ व स्वार्थ
प्रजा का ध्यान

राम निमित्त
सेवक हनुमान
सेवा में प्राण

सबरी ने  दी
राम को जूठे बेर
भक्त वत्सल

लेते शरण
जो भी करे स्मरण
कृपालु राम

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