लहर /दर्पण/ वनस्पति /अंधकार/ प्रकाश/ दिन-रात/ नया / नयी-दुल्हन/ त्यौहार
माँ का आँचल / जीवन की धूप में / शीतल छाँव /
हिस्से लायेंगे / जीवन के दुष्कृत्य / नर्क की आग !
- साधना वैद
नभ में खेले
संग किरणों के
सूर्य अकेले - ललित मिश्रा
थक के चूर
रजनी चली सोने
उगे भास्कर
ददम त्रिपाठी
स्वर्णिम आभा
प्रकाशमान नभ
रवि मुस्काये - गिरिजालय जोशी
चिंता की अग्नि
जला देगी तुझको
बिन मौत ही rajiv goel
ईर्ष्यागन में
तिल तिल जलता
मानव मन lalit mishra
धन के लोभी
दुल्हन ही दहेज़
इसे सहेज - गिरिजालय जोशी
जीवन- पथ
कर्म -चक्र चालित
सौभाग्य- रथ - महिमा वर्मा
आज का हाइकू (१७.२.२०१५
चाँद निकला
निशा मन मुदित
सूरज ढला - ब्राह्मणी वीणा
आज का हाइकू (१६.२.२०१५)
सूर्य सौंपते
निशा को सत्ता सारी
शाम को रोज - मुकेश भद्रावले
आज का हाइकू (१५.२.२०१५)
हाथ जो फेरा
मिटी रेखा चिंता की
जब भी माँ ने - योगेन्द्र वर्मा
आज का हाइकू (१४.०२.२०१५)
क्रोध का सूर्य
अपनी ही ज्वाला में
चिता सा जला, - दिनेश चाँद पाण्डेय
आज का हाइकू (१२.०२.२०१५)
लक्ष्य दुरूह
आत्मविश्वास अस्त्र
जय मुट्ठी में - निशा मित्तल
आज का हाइकू (११.२.२०१५)
पेट की आग
ठंडी अंगीठी पर
पकाती भूख - राजीव गोयल
आज का हाइकू (१०. २. २०१५)
सत्य चिंगारी
असत्य राख तले
नहीं दबा है
- शत्रुघ्न पाठक
9.2.2015
बत्ती की सख्ती
अमा हेकड़ी भूली
अंधेर मिटा - विभा श्रीवास्तव
आज का हाइकू (८.२.२०१५)
महक उठा
घर चहक उठा
आई दूल्हन
- एस० डी० तिवारी
(यह हाइकू कुछ सदस्यों द्वारा सुझाया गया है)
.. यह कोमल संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने वाला मनोहर हाइकु है। घर में नव वधू का आगमन साथ में उल्लास,हर्ष और नवीन सपनों को जगाने वाला होता है। उस समय घर के प्रत्येक सदस्य के मन में अभिनव भावों का संचार होता है। वधू के आते ही चारों ओर नवीन चेतना का संचार होता है। बस्तुतः हमारे देश में विवाह समझौता मात्र न होकर एक पवित्र /धार्मिक संस्कार है अतःदुल्हन का आगमन एक अलग प्रकार के आनन्द की सृष्टि करता है। घर का महकना और चहकना जहाँ एक ओर आलंकारिकता की सृष्टि कर रहा है वहीँ पवित्र भावों का भी व्यंजक है।
- शिवजी श्रीवास्तव
आज का हाइकू (७.२.२०१५)
तेरा विश्वास
जीत पाया जो मै तो
जीवन धन्य - ललित मिश्रा
आज का हाइकू (६.२.२०१५)
लम्बा था कश
मस्ती में धुआँ पूछे
जलाया किसे - अरुण सिंह रुहेला
आज का हाइकू (५.२.२०१५)
टूटा विश्वास
ज्यो काँच के टुकडे
कभी ना जुडे। - प्रिन्स वर्मा
आज का हाइकू (३.२.२०१५)बिन मौत ही rajiv goel
ईर्ष्यागन में
तिल तिल जलता
मानव मन lalit mishra
धन के लोभी
दुल्हन ही दहेज़
इसे सहेज - गिरिजालय जोशी
जीवन- पथ
कर्म -चक्र चालित
सौभाग्य- रथ - महिमा वर्मा
आज का हाइकू (१७.२.२०१५
चाँद निकला
निशा मन मुदित
सूरज ढला - ब्राह्मणी वीणा
सूर्य सौंपते
निशा को सत्ता सारी
शाम को रोज - मुकेश भद्रावले
हाथ जो फेरा
मिटी रेखा चिंता की
जब भी माँ ने - योगेन्द्र वर्मा
आज का हाइकू (१४.०२.२०१५)
क्रोध का सूर्य
अपनी ही ज्वाला में
चिता सा जला, - दिनेश चाँद पाण्डेय
आज का हाइकू (१३.२.२०१५)
टूट ही गया
तिलिस्म कोहरे का
बिखरी धूप। - शिवजी श्रीवास्तव
तिलिस्म कोहरे का
बिखरी धूप। - शिवजी श्रीवास्तव
लक्ष्य दुरूह
आत्मविश्वास अस्त्र
जय मुट्ठी में - निशा मित्तल
आज का हाइकू (११.२.२०१५)
पेट की आग
ठंडी अंगीठी पर
पकाती भूख - राजीव गोयल
आज का हाइकू (१०. २. २०१५)
सत्य चिंगारी
असत्य राख तले
नहीं दबा है
- शत्रुघ्न पाठक
बत्ती की सख्ती
अमा हेकड़ी भूली
अंधेर मिटा - विभा श्रीवास्तव
आज का हाइकू (८.२.२०१५)
महक उठा
घर चहक उठा
आई दूल्हन
- एस० डी० तिवारी
(यह हाइकू कुछ सदस्यों द्वारा सुझाया गया है)
.. यह कोमल संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने वाला मनोहर हाइकु है। घर में नव वधू का आगमन साथ में उल्लास,हर्ष और नवीन सपनों को जगाने वाला होता है। उस समय घर के प्रत्येक सदस्य के मन में अभिनव भावों का संचार होता है। वधू के आते ही चारों ओर नवीन चेतना का संचार होता है। बस्तुतः हमारे देश में विवाह समझौता मात्र न होकर एक पवित्र /धार्मिक संस्कार है अतःदुल्हन का आगमन एक अलग प्रकार के आनन्द की सृष्टि करता है। घर का महकना और चहकना जहाँ एक ओर आलंकारिकता की सृष्टि कर रहा है वहीँ पवित्र भावों का भी व्यंजक है।
- शिवजी श्रीवास्तव
तेरा विश्वास
जीत पाया जो मै तो
जीवन धन्य - ललित मिश्रा
लम्बा था कश
मस्ती में धुआँ पूछे
जलाया किसे - अरुण सिंह रुहेला
टूटा विश्वास
ज्यो काँच के टुकडे
कभी ना जुडे। - प्रिन्स वर्मा
4.2.2015
नन्ही बिटिया
बनकर दुल्हन
हुयी सयानी - अमित अग्रवाल
नन्ही बिटिया
बनकर दुल्हन
हुयी सयानी - अमित अग्रवाल
दीवार झांके
खिड़की से बाहर
है चाँद कहाँ - राजीव गोयल
जैसा कि मैंने पहले भी कहा है हाइकू लिखने कि साथ पढ़ना भी एक कला होती है. हाइकू पढ़कर अपनी सूझ का प्रयोग कर समझना होता है. उपरोक्त हाइकू में प्रथम पंक्ति 'दीवार झांके' खिड़की से बाहर तो अटपटा लगेगा अगर इसे ऐसे पढ़ें 'दीवार, झांके खिड़की से बाहर' यानी कोई और है जिसे दीवार के कारण बाहर नहीं दिख रहा, वह खिड़की से झांक रहा है. चूकि हाइकू में विराम आदि का प्रयोग नहीं होता अतः पाठक को समझने के लिए अपने विवेक का प्रयोग करना होता है. - एस० डी० तिवारी
आज का हाइकू (२.२.२०१५)
सँस्कार छोड़
पशुवत हो जाते,
अज्ञानी जन - महिमा वर्मा
भीतर झाँको
बंद नयन कर
सुहानी झाँकी - शांति पुरोहित
फटा बिछौना
खुरदुरी खटिया
सख्त जीवन - साधना वैद
दीये कम थे
रोती रही देहरी
ज्यादा गम थे - योगेन्द्र वर्मा
आज का हाइकू (२९.१.२०१५)
खुश किसान
धारे पीत वसन
धरा चहकी - डी डी एम त्रिपाठी
आज का हाइकू (२८.१.२०१५)
सच को सच
मत कहना यारो
पिट जाओगे -महेंद्र वर्मा "धीर"
आज का हाइकू (२७.१.२०१५)
फटा कंबल
हाड़ कँपाती ठंड
बोझिल रात - पियूष द्विवेदी
हाड़ कँपाती ठंड
बोझिल रात - पियूष द्विवेदी
आज का हाइकू (२६. १ २०१५)
सीख दे गयी
जीवन में ठोकर
जब भी मिली - परवीन मालिक
आज का हाइकू (२५. १ .२०१५ )
तुम पतंग
मैं डोर बन पाता
चाँद छू आते। - शिवजी श्रीवास्तव
आज का हाइकू (२४.१.२०१५)
निर्मल मन
खुशहाल जीवन
सत्य की राह - गिरिजालय जोशी
आज का हाइकू (२३.१.२०१५)
मोह-लालसा,
स्वर्ण मृग की खोज,
छलावा हाथ.- - दिनेश चंद पाण्डेय
आज का हाइकू (२२.१.२०१५)
बेटी व बेटा
जब होते समान
क्यों कन्यादान - शशि त्यागी
आज का हाइकू (२१.१.२०१५)
जीवन ताप
साथ तुम्हारा जैसे
घना बादल - रमेश उपाध्याय
आज का हाइकू (२०.१.२०१५)
मूक लाचार
पशु चाहता प्यार
जीव निस्वार्थ - वीणा
आज का हाइकू (१८.१.२०१५)
न्याय की देवी
अन्याय की सहेली
आँखों पे पट्टी, -संदीप कुमार
आज का हाइकू (१७.१.२०१५)
रश्मि अमृत
रवि -घट छलकी
धरा जीवंत - महिमा वर्मा
यहाँ प्रकृति का चित्रण, रूपक अलंकार का सुन्दर प्रयोग करते हुए, किया गया है. सूर्य को घड़ा व उसकी किरणों को अमृत की उपमा दी गयी है और सूर्य के किरणों को पाकर धरा प्रकाशित यानी जीवंत हो उठती है. जीव जंतु चहक उठते हैं व अपनी क्रिया में लग जाते हैं, पेड़ पौधे खिल उठते हैं जो धरा के जीवंत होने का परिचायक है.
-एस० डी० तिवारी
आज का हाइकू (१६.१.२०१५)
कठघरे में
हँसता मुस्कुराता
कातिल खड़ा
- अब्दुल समाद राही
आज का हाइकू (१३.१.२०१५)
पतंग प्रिया
राह ताकें ऊँचे से
बहुरो पिया -शिवमूर्ति तिवारी
आज का हाइकू (१४.१.२०१५)
सागर प्यासा
धरे जल अथाह
नदी नीर का - एस० डी० तिवारी
आज का हाइकू (१५.१.२०१५)
मन छलका
बहती है कविता
न बाँध बना -saतीश चंद गुप्ता
आज का हाइकू (१२.१.२०१५)
सखियाँ मिली
खूब पकी खिचड़ी
रोटियाँ जली
- अभषेक जैन
खूब पकी खिचड़ी
रोटियाँ जली
- अभषेक जैन
आज का हाइकू (१०.१.२०१५)
सूनी बगिया
उड़ गए पखेरू
फिर ना लौटे - आशा लता सक्सेना
ओ मछुआरे
ढला उम्र का सूर्य
जाल समेटो - शिवजी श्रीवास्तव
उक्त हाइकू में कवि मानव जीवन को मछुआरे की उपमा दे रहा है. जिस प्रकार शाम होने पर मछुआरे को जल समेटना होता है और घर जाने की तैयारी करनी होती है उसी प्रकार मनुष्य को बुढ़ापा आने पर घर जाने, यानी ईश्वर के पास जाने की तैयारी में सांसारिक जाल समेत कर स्वयं को उस योग्य बनाने का सन्देश देता है. इस हाइकू जो दो बिम्ब हैं एक अमुक समय हो गया और दूसरा उस समय पर किसको क्या करना है. यहाँ प्रथम व अंतिम पंक्ति दोनों ही विस्मयकारी पंक्ति (अहा के क्षण) हो सकती हैं 'ओ मछुआरे ढला उम्र का सूर्य', यहाँ पाठक के मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है ढला सूर्य, तो क्या? अंतिम पंक्ति इस रहस्य को खोल देती है. इसी प्रकार पहली पंक्ति भी विस्मयकारी पंक्ति (अहा के क्षण) हो सकती है 'ढला उम्र का सूर्य, जाल समेटो' यहाँ यह जिज्ञासा उठती की यह सन्देश किसके लिए है. जो पहले ही बता दिया गया.
एस० डी० तिवारी
आज का हाइकू (८.१.२०१५)
शिशु किलका
देख नभ में चाँद
रोटी का भान। - Ddm Tripath
आज का हाइकू (७.१.२०१५)
उड़ा के आँधी
गरीब की झोंपड़ी
रोई बहुत
. - Rajeev Goel गरीब की झोंपड़ी
रोई बहुत
आज का हाइकू (६.१.२०१५)
मित्र का फ़र्ज़
सुख दु:ख का साथी
वक्त बेवक्त
सुख दु:ख का साथी
वक्त बेवक्त
-पंकज जोशी
हल्कू झबरू,
एक दूजे का साथ,
पूस की रात। - संदीप कुमार
टूटती रही
विश्वास की पत्तियाँ
झूठ का पेड़ - pushpa tripathi
आज का हाइकू (३.१. २०१५)
आज का हाइकू (२.१.२०१५)
भोर का तारा
भयभीत सा भागा
सूरज जागा -शांति पुरोहित
नूतन वर्ष
सर्वोत्तम दिन हो
प्रत्येक दिन - एस डी तिवारी
भू के गहने
पर्वत पशु नदी
वृक्ष झरने
- गिरिजालय जोशी
आज का हाइकू (२८.१२.२०१४)
करता छल
जाड़े में तरसाता
आम का फल - महेंद्र वर्मा
आज का हाइकू (२६.१२.२०१४)
चढ़ गया मैं
झुके कंधे पिता के
बढ़ गया मैं - शिवजी श्रीवास्तव
आज का हाइकू (२७.१२.२०१४)
गुम हो गयी
पाक साफ़ जिंदगी
मैं के मेले मे -कन्हैया प्रसाद तिवारी
आज का हाइकू (२५.१२.२०१४)
घमंडी सूर्य
मेघों के चंगुल मे
भूला गुरूर - योगेन्द्र वर्मा
ग़ज़ल के सबसे अच्छे शेर को शाहे वैत कहा जाता है। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को दीवान कहते हैं जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो। उर्दू का पहला दीवान शायर कुली कुतुबशाह है।
ग़ज़ल के प्रकार
तुकांतता के आधार पर ग़ज़लें दो प्रकार की होती हैं-
मुअद्दस ग़जलें- जिन ग़ज़ल के अश'आरों में रदीफ़ और काफ़िया दोनों का ध्यान रखा जाता है।
मुकफ़्फ़ा ग़ज़लें- जिन ग़ज़ल के अश'आरों में केवल काफ़िया का ध्यान रखा जाता है।
भाव के आधार पर भी गज़लें दो प्रकार की होती हैं-
--
मुसल्सल गज़लें-
जिनमें शेर का भावार्थ एक दूसरे से आद्यन्त जुड़ा रहता है।
ग़ैर मुसल्सल गज़लें-
जिनमें हरेक शेर का भाव स्वतन्त्र होता है।
ग़ज़लों का आरम्भ अरबी साहित्य की काव्य विधा के रूप में हुआ। अरबी भाषा में कही गयी ग़ज़लें वास्तव में नाम के ही अनुरूप थी अर्थात उसमें औरतों से बातें या उसके बारे में बातें होती थी।
यमाताराजभानसलगा
''Wake up, my heart ! This world is no place to sleep
Among these ruins, it's not proper to sit
safe and secure.
Why ask the drowsy sleepers what it's like,
that sweet sleep for which there is no answer?
In the grave,no friend feigns faithfulness.
only in the ruins beneath the dust
can the weary dwell content.
Since the drunk do not know time's tyrannies,
nothing's better for the sober than wine
and a simple meal.
It's wrong to ask life's savour from heaven,
or piddling cup that holds no proper hope.
Saqui , send round to Khusrau, a drop
from the goblet of love,
for there is no headier wine than that.''
Khusrau
2)
Ghazal 1148
'' Stealthly he came through my door last night,
hair like a thief's lasso strung over his shoulders.
I stumbled to my feet, lost my footing,
and fell faint when he sat down.
Gazing on his beauty, I was stunned
and laid waste, swooning and drunk.
His bewitching , half-intoxicated eyes:
gazelle fawn in a rabbit sleep.
Whosoever sees you for just one day
forgets the Kingdom of this world and the next,
without you, nectar turns to nettles,
and nettles turn to nectar in your hand.
Put a ring in Khusrau's ear,
He is your slave and heeds your call.''
अमर्यादित वाणी
तोल के बोल
सिमटे वृक्ष
मिजाज हवाओं के
गए बदल
- गिरिजालय जोशी
वर्षा की बूँदें / सुवासित कर दें / शुष्क धरा को ! के स्थान पर
शुष्क धरती
सुवासित हो जाती
वर्षा कि बूंदे
सुझाव
असंख्य तारे
बिखरे अम्बर में
अकेला चाँद
आपके आदेशानुसार अपने चंद हाईकू आपके पास भेज रही हूँ !
भस्म हुई मैं / जग ज्योतित कर / दीपशिखा सी /
भस्म हो गयी
जग ज्योतित कर
दीपशिखा भी
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