Friday, 19 December 2014

Hindi Haiku 20 Dec / chaand

खिले वे पुष्प
राह चलते लगे
कोई स्मारक

सर्द हवाएँ
भेड़ियों का आतंक
छुपे हिरण

जमी सतह
मछलियों की छत
झील का जल

भेदें न लक्ष्य
बिन साधे निकले
शर व शब्द

सरसों फूले
गोरी करे श्रृंगार
है कोई बात !

काली रातों में
तुझे भाये पी संग
मुझे भाये पी

बालम बहे
मुझे छोड़ उस पर
मै इस पार

प्रेम की नदी
जो भी अंदर डूबा
वही है पार

देखते रहे
कभी वो कभी चाँद
एक दूजे को

बच्चे ने देखा
ताल में ढेला फ़ेंक
चाँद का नृत्य

रोज चाहती
छत पर ही सोना
चांदनी रात

चांदनी रात
सितारे जमी पर
फूल चमेली

उड़ता कौवा
आँख चाँद के बीच
चन्द्र ग्रहण

चन्द्र खिलौना
बालक की थाली में
माँ का करिश्मा

रात कटती
जब वो नहीं होते
चाँद को देख

बोल देता हूँ
चाँद से भी सुघर
खुश हो जाय

चाँद ताल में
अपना मुख देखे
गुड़िया चाँद

पूर्णेन्दु रात
खीर के कटोरे में
उतरा चाँद

सजा अम्बर
माथे पे लगाकर
चाँद की बिंदी 

No comments:

Post a Comment