Sunday, 30 November 2014

hindi haiku - rang

सूर्य ने छोड़ा
सात रंग का घोडा
हुए हज़ार

बना देता है
तीन रंगों का मेल
हजारों रंग

युदा होकर
बदरंग हो जाते
वृक्ष से पत्ते

बदलते रंग
गिरगिटों के संग
मौकापरस्त

कौन चुराया
फूल या तितली ने
दूजे का रंग

तितली फूल
या फूल तितली से
चुराते रंग

दिखा देती है
सात रंगों की ज्योति
सहस्रों रंग

बिना रंग के
धरनी भी दृष्टव्य
एक चन्द्रमा

रंग में रंगी
दहकते आग सी
वाह नारंगी

संजो के रखे
कजरारे नयन
रंगीन स्वप्न

बैठे देखती
तट पे प्रेमियों को
सिन्दूरी शाम

गोरी का गाल
होली पे सतरंगी
मला गुलाल

बच्चों के हाथ
रंगों की पिचकारी
होली का पर्व

रंगों में डूबा
होली का त्यौहार
तन व मन

अलगा देता
मानव से मानव
रंग का भेद

काली से पथ्य
बस गोरी बसती
सभी के हृद

बिना रंग के
धरनी भी दृष्टव्य
एक चन्द्रमा

नयी दुल्हन
लाल रंग चुनरी
ओढ़ी घूंघट

नयी नवेली
मेहदी के रंग में
पिया के संग

ढकी हुई है
श्वेत वस्त्रों के पीछे
गहरी पीड़ा

वस्त्र ही नहीं
जीवन भी बेरंग
विधवा नारी

बाग़ बगीचे
रंगों में सराबोर
बसंत ऋतु

टाली घर की
इस बार पुताई
ये महगाई

अपने रंग
रंग दी मेरा मन
रंगरेजन ने

पहली बार
नाखून पर स्याही
किशोर व्यष्क  

ठण्ड में घाटी
ओढ़ कर के सोती
श्वेत चादर

श्वेत मुर्गा भी
पहन इतराता
लाल मुकुट

पेड़ पे तोता
दृष्टिगत न होता
हरे पत्तों में

पीली तितली
सरसों के खेतों में
उड़ते फूल

डंसने आई
शाम की अरुणाई
याद सताई

मन के संग
रंगीनियों में डूबा
सायं क्षितिज

रात ने ओढ़ी
चाँद सितारा जड़ी
काली ओढनी

श्वेत बादल
चार चाँद लगाते
श्वेत बकुल

संवर जाता
लगा का काला जूड़ा
श्वेत गजरा

बसंत ऋतु
सरसों ओढ़ लेती
पीली चुनरी

काला अक्षर
अनपढ़ समझे
भैंस सदृश


रंगो में डूब
जग होता रंगीन
और हसीन
रंगीनियों में डूबे
लोग स्वयं भी डूबे

होठो पे लाली
नयनों में काजल
माथे पे बिंदी
कानो सज के मोती
रंग सवारे रूप

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