सूर्य ने छोड़ा
सात रंग का घोडा
हुए हज़ार
बना देता है
तीन रंगों का मेल
हजारों रंग
युदा होकर
बदरंग हो जाते
वृक्ष से पत्ते
बदलते रंग
गिरगिटों के संग
मौकापरस्त
कौन चुराया
फूल या तितली ने
दूजे का रंग
तितली फूल
या फूल तितली से
चुराते रंग
दिखा देती है
सात रंगों की ज्योति
सहस्रों रंग
बिना रंग के
धरनी भी दृष्टव्य
एक चन्द्रमा
रंग में रंगी
दहकते आग सी
वाह नारंगी
संजो के रखे
कजरारे नयन
रंगीन स्वप्न
बैठे देखती
तट पे प्रेमियों को
सिन्दूरी शाम
गोरी का गाल
होली पे सतरंगी
मला गुलाल
बच्चों के हाथ
रंगों की पिचकारी
होली का पर्व
रंगों में डूबा
होली का त्यौहार
तन व मन
अलगा देता
मानव से मानव
रंग का भेद
काली से पथ्य
बस गोरी बसती
सभी के हृद
बिना रंग के
धरनी भी दृष्टव्य
एक चन्द्रमा
नयी दुल्हन
लाल रंग चुनरी
ओढ़ी घूंघट
नयी नवेली
मेहदी के रंग में
पिया के संग
ढकी हुई है
श्वेत वस्त्रों के पीछे
गहरी पीड़ा
वस्त्र ही नहीं
जीवन भी बेरंग
विधवा नारी
बाग़ बगीचे
रंगों में सराबोर
बसंत ऋतु
टाली घर की
इस बार पुताई
ये महगाई
अपने रंग
रंग दी मेरा मन
रंगरेजन ने
पहली बार
नाखून पर स्याही
किशोर व्यष्क
ठण्ड में घाटी
ओढ़ कर के सोती
श्वेत चादर
श्वेत मुर्गा भी
पहन इतराता
लाल मुकुट
पेड़ पे तोता
दृष्टिगत न होता
हरे पत्तों में
पीली तितली
सरसों के खेतों में
उड़ते फूल
डंसने आई
शाम की अरुणाई
याद सताई
मन के संग
रंगीनियों में डूबा
सायं क्षितिज
रात ने ओढ़ी
चाँद सितारा जड़ी
काली ओढनी
श्वेत बादल
चार चाँद लगाते
श्वेत बकुल
संवर जाता
लगा का काला जूड़ा
श्वेत गजरा
बसंत ऋतु
सरसों ओढ़ लेती
पीली चुनरी
काला अक्षर
अनपढ़ समझे
भैंस सदृश
रंगो में डूब
जग होता रंगीन
और हसीन
रंगीनियों में डूबे
लोग स्वयं भी डूबे
होठो पे लाली
नयनों में काजल
माथे पे बिंदी
कानो सज के मोती
रंग सवारे रूप
सात रंग का घोडा
हुए हज़ार
बना देता है
तीन रंगों का मेल
हजारों रंग
युदा होकर
बदरंग हो जाते
वृक्ष से पत्ते
बदलते रंग
गिरगिटों के संग
मौकापरस्त
कौन चुराया
फूल या तितली ने
दूजे का रंग
तितली फूल
या फूल तितली से
चुराते रंग
दिखा देती है
सात रंगों की ज्योति
सहस्रों रंग
बिना रंग के
धरनी भी दृष्टव्य
एक चन्द्रमा
रंग में रंगी
दहकते आग सी
वाह नारंगी
संजो के रखे
कजरारे नयन
रंगीन स्वप्न
बैठे देखती
तट पे प्रेमियों को
सिन्दूरी शाम
गोरी का गाल
होली पे सतरंगी
मला गुलाल
बच्चों के हाथ
रंगों की पिचकारी
होली का पर्व
रंगों में डूबा
होली का त्यौहार
तन व मन
अलगा देता
मानव से मानव
रंग का भेद
काली से पथ्य
बस गोरी बसती
सभी के हृद
बिना रंग के
धरनी भी दृष्टव्य
एक चन्द्रमा
नयी दुल्हन
लाल रंग चुनरी
ओढ़ी घूंघट
नयी नवेली
मेहदी के रंग में
पिया के संग
ढकी हुई है
श्वेत वस्त्रों के पीछे
गहरी पीड़ा
वस्त्र ही नहीं
जीवन भी बेरंग
विधवा नारी
बाग़ बगीचे
रंगों में सराबोर
बसंत ऋतु
टाली घर की
इस बार पुताई
ये महगाई
अपने रंग
रंग दी मेरा मन
रंगरेजन ने
पहली बार
नाखून पर स्याही
किशोर व्यष्क
ठण्ड में घाटी
ओढ़ कर के सोती
श्वेत चादर
श्वेत मुर्गा भी
पहन इतराता
लाल मुकुट
पेड़ पे तोता
दृष्टिगत न होता
हरे पत्तों में
पीली तितली
सरसों के खेतों में
उड़ते फूल
डंसने आई
शाम की अरुणाई
याद सताई
मन के संग
रंगीनियों में डूबा
सायं क्षितिज
रात ने ओढ़ी
चाँद सितारा जड़ी
काली ओढनी
श्वेत बादल
चार चाँद लगाते
श्वेत बकुल
संवर जाता
लगा का काला जूड़ा
श्वेत गजरा
बसंत ऋतु
सरसों ओढ़ लेती
पीली चुनरी
काला अक्षर
अनपढ़ समझे
भैंस सदृश
जग होता रंगीन
और हसीन
रंगीनियों में डूबे
लोग स्वयं भी डूबे
होठो पे लाली
नयनों में काजल
माथे पे बिंदी
कानो सज के मोती
रंग सवारे रूप
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