Saturday, 15 November 2014

Hindi haiku (ritu)



सूरज जब
पलकें झपकाता
कांपते हम

आँख दिखाए
सूरज ऊपर से
छूटे पसीना

ऑंखें कहतीं
संकेतों की भाषा में
मन की बात

आया बसंत
श्रृंगार किये बैठीं
फूलों की डाली

प्रातः की सैर
ठण्ड में धुल जाते
घासों में पैर

कांपता पिल्ला
ढेरी में ढूंढ रहा
सूखा पुआल

ऊँचे पर्वत
सिर पर ढो रहे
पानी की टंकी

ठण्ड में हुआ
गरम कपड़ों का
संदूक ख़ाली

लगा कतार
चीनी मिल पे गन्ना
ट्रॉली सवार

खून खौलता
ठण्डक में गन्ने का
गुड़ के लिए

घास का गिला
प्यास बुझाने आती
ठण्ड में ओस

ऊँचे पर्वत
सिर पर ढो रहे
पानी की टंकी

आज का दिन
हिलाने वाली ठण्ड
स्नान की टाल

सर्दी की रात
निर्धन ठिठुरन
घर में साथ

धरा आकाश
कोहरे ने ओढ़ाया
चादर साथ

मन की चाह
कड़कती ठण्ड में
कड़क चाय

सर्दी के दिन
बुजुर्गों के बाहर
धूप सेंकते

लगी रहती
ठण्ड के मौसम में
चाय की चाह

चले जाने से
नभ आंसू बहाता
सूर्य के दूर

माघ महीना
है किसके बस की
रोज नहाना

पूरे गावं में
अकेला मेरा घर
घना कोहरा

ठण्ड की भोर
बीड़ी भी नहीं पिया
मुह से धुआं

कल बिछुड़े
प्रातः फिर से मिले
सर्दी की धूप

हुआ जुकाम
रुमाल में लिपटी
रहती नाक

बहती नाक
जुकाम में पिघली
चोटी की बर्फ

कहाँ छिनकेँ
यदि ध्यान रहे तो
स्वच्छ भारत

वृद्धा सिलती
रजाई का लिहाफ
पुरानी साड़ी

भर न पाई
एवरेस्ट की रजाई
रुई के फोहे

छुपा के चली
फिरन में कांगड़ी
कश्मीरी कली

सर्दी में होता
हिमालय का कद
और भी ऊँचा

खोल दी अब
रजाई ने भी तह
जाड़े  की रात

कन्धों पे तना
पांव पसारे कोट
सर्दी के दिन 

सिकुड़ गए
पक्षियों के पंख भी
छाया कोहरा

दुर्घटनाएं
पहले से अधिक
छाया कोहरा

घास नहाई
ओस के फव्वारे में
ठण्ड की रात

ठण्ड की रात
आँखे ढूंढती रही
चाँद खो गया

पारा क्या गिरा
छिटकी पड़ी बूँदें
फूल पौधों पे

दौरे का दौर
रजाई में अकेली
ठण्ड की रात

गिरता पारा
कपकपी



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