Thursday, 13 November 2014

Hindi haiku (bachpan)

बँटी हुई है
अमीरी गरीबी में
बच्चों की शिक्षा

बिना दाम के
वे सजीव खिलौने
नन्हे से पिल्लै

माँगा खिलौना
रोता सहला रहा
अपना गाल

पीठ पे बस्ता
रोटी संग अचार
और लताड़

कुछ का भाग्य
घर गाड़ी व स्कूल
सभी लक्ज़री

करों में जुड़ा
शिक्षा का अधिभार
तो भी व्यापार


छोटे बड़े में
बंटा हुआ संसार
बच्चे अन्जान

संविधान में
शिक्षा का अधिकार
शिक्षा व्यापार !

कल तक तो
कोई बालक ही था
आज का युवा

स्वस्थ बच्चा
व चरित्र निर्माण
राष्ट्र उत्थान


बच्चों की अच्छी
पोषण और शिक्षा
समृद्ध राष्ट्र

रोटी दाल में
जकड़े रह जाते
निर्धन बच्चे

कम ही अच्छे
पाल पाये माँ पृथ्वी
जितने बच्चे

लिए मुस्कान
मिटा देता थकान
बच्चे का मुख

अब कहानी
कार्टून में आ गयी
कहाँ है नानी

लिये जा रही
बचपन की भेंट
आधुनिकता

माँ व बाप के
रूतबे का प्रभाव
बिगड़े बच्चे

कब रूकेगा
'छोटू चाय दे के आ'
यह कहना

ठिठुरी मारे
दीवार के सहारे
धूप में बैठा

बन्दर आया
संग में पीछे हो ली
बच्चों की टोली

दिल चाहता
तू चोर मैं सिपाही
फिर से खेलें

बच्चे को दूध
कैसे पिला पायेगी
वो दूध पीती

हिला दिया था
ताल में ढेला फ़ेंक
पूरे नभ को

हो गए सुन
डमरू की आवाज
बच्चे एकत्र

गुल्ली उछली
बह रहा चाचा के
सिर से खून

क्रिकेट खेला
पड़ोस वाली औंटी
मेरे घर में

सोनू का छक्का
सलीम की खिड़की
बिना कांच की

सँभालते थे
जीते हुए कंचो को
हीरे के जैसे

उठा लिया था
सिर पे आसमान
मेला जाने को 

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