बस जाता मै
किन्ही प्यारी आँखों में
चाह थी मेरी
आँख आँख में
आँखे ताकती रही
मिली न ऑंखें
गुजरी जब
आँखों के सामने से
समा ही गयी
ढूंढने लगीं
दिन रात ये आँखे
वो नीली ऑंखें
भटक चुकी
मृग तृष्णा में ऑंखें
समझा बातें
तरसी ऑंखें
उनके दरश को
बरसी ऑंखें
बढ़ायी चाह
पहुंचे वो दिल में
आँखों की राह
जिंदगी जी ली
दिल में बसाकर
हरषी ऑंखें
किन्ही प्यारी आँखों में
चाह थी मेरी
आँख आँख में
आँखे ताकती रही
मिली न ऑंखें
गुजरी जब
आँखों के सामने से
समा ही गयी
ढूंढने लगीं
दिन रात ये आँखे
वो नीली ऑंखें
भटक चुकी
मृग तृष्णा में ऑंखें
समझा बातें
तरसी ऑंखें
उनके दरश को
बरसी ऑंखें
बढ़ायी चाह
पहुंचे वो दिल में
आँखों की राह
जिंदगी जी ली
दिल में बसाकर
हरषी ऑंखें
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