Tuesday, 18 November 2014

Hindi haiku (Pyar ka rang) Bolate moti



मन बहके 

गिरती नीचे
सावन में फुहार
रह रह के

क्यारियों में 
बिछा हरा बिछौना 
पौधे लहकें 

बागों में खिले 
फैले रंग बिरंगे 
फूल महके 

पेड़ों की डाली 
बैठे झूमते गाते 
पक्षी चहकें 

अंगारे जैसे 
पलास के पल्लव 
निस दहकें 

जो भी विलोके 
बसंती मोहक छटा 
मन बहके 

ऋतु बसंत 
प्रिय प्रियतम के 
संग रह के 


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बातें चाँद की 

तारे करते 
टिमटिमा करके 
बातें चाँद की 

धरा कराती 
चांदनी में नहा के 
बातें चाँद की 

श्रृंगार किये 
जगी रात को भाये 
बातें चाँद की 

महकने दो 
फूलों से क्यों करते 
बातें चाँद की 

उठा क्या ज्वार 
सागर भी करता 
बातें चाँद की 

दिल में उठा 
तूफान तो मैंने की 
बातें चाँद की 

जुगनुओं की 
करती रही टोली 
बातें चाँद की 


ckrsa pkan dh

rkjs djrs
fVefVek djds
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ckrsa pkan dh 





बहती नदी 

चली उछल
पर्वतों से निकल 
बहती नदी 

पूरक बनी 
प्रकृति सौंदर्य की 
बहती नदी 

अपना माग 
बनाती बेझिझक 
बहती नदी 

कोई भी बाधा 
रोक न पाती राह 
बहती नदी 

दोनों किनारे 
रहते मुस्कराते 
बहती नदी 

प्यास बुझाती 
महासागर का भी 
बहती नदी 

नियत बनी 
अनवरत बहना 
बहती नदी 

कहती नदी 
रुक जाना न कहीं 
बहती नदी 

cgrh unh 

pyh mNy
ioZrksa ls fudy
cgrh unh

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cgrh unh

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cgrh unh

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cgrh unh

dgrh unh
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cgrh unh


ऊपर वाला

मैं रहूँ मौन 
फिर भी सुन लेता
ऊपर वाला

भाग्य का ताला
चाहे तो खुल जाय
ऊपर वाला

प्रातः की रश्मि
देता तभी मिलती
ऊपर वाला

हवा व पानी 
देता अन्न का दाना
ऊपर वाला

रहती साँस
जब तक चाहता 
ऊपर वाला





बहती नदी


रुकना नहीं
हमसे ये कहती
बहती नदी

सिंधु का प्यार
उसी में डूब जाती
पाकर नदी

बहती पर
शोर नहीं करती
गहरी नदी

रात या दिन
चलते रहो नित
कहती नदी

जीव अनेक 
रहते जो अंदर
पालती नदी

गुजारी सारी
सागर की खोज में
जीवन नदी

प्यासा सागर 
जाती पानी लेकर 
पीने को नदी


तट खोकर  
बारिश में ओझल 
हो गयी नदी

मिलती नहीं
इस जग को गति
होती न नदी

करके मैला
मत करो विषैला
तुम्हारी नदी






सिंधु तरंग

जगा देता है
पवन का चुम्बन
सिंधु तरंग

बुझा न पाती 
आँखों की बड़ी प्यास
सिंधु तरंग

मन उमंग
उठ जगा देती हैं
सिंधु तरंग

देख सतत
थकता नहीं मन
सिंधु तरंग 

अनोखे रंग
दूर क्षितिज संग
सिंधु तरंग

हवा के संग
करें अठखेलियां
सिंधु तरंग

खींच ले जाती
सागर तट पर
सिंधु तरंग




रात की लोरी
प्रातः ही भुला देता 
पक्षी का गान 

सुनने आतीं  
पक्षियों की किरणें  
प्रभात गान 

पंछी झरने 
वर्षा वायु सुनाते  
प्रकृति राग 

सुन के बांस 
झूम कर नाचता  
वायु का गान 

नागिन सुन
कमर लचकाती
बीन की धुन

खोखला बांस
घुस कर के हवा
बजाती बंशी

सुन के पत्ते
बजाते करतल
वायु का गान

बजाते जब
झींगुर जी सारंगी
नींद ना आती

खिल उठतीं
सुनकर कलियाँ
भौरों के गान

मिट्ठू की मीठी 
सुग्गी संग सुनते
हम भी तान

कोयल गाती 
बहारें रुक जातीं 
सुनने  गान 

खून का प्यासा
रणभेरी बजाता
आता मच्छर

अंगुली नाचे
जब तबला बाजे
अपनी तान


हुआ सवेरा
नींद मग्न सूरज
धुंध ने घेरा

जाड़े की यात्रा 
गाड़ी की गति धीमी   
धुंध ने घेरा


माँ वसुंधरा


अपनी अदा
घूम घूम सूर्य को
दिखाती धरा


पाले सबको
अंत में समा भी ले
गोद में धरा


जल से फल
सब कुछ ही देती
माँ वसुंधरा

वैभव सारा
जो कुछ है हमारा
दे रखी धरा


अरबों लाल
पालती है अकेले 
माँ वसुंधरा


देश दुनिया
पनपे परंपरा 
सुन्दर धरा









पुत्र मोह में
हो चुके धृतराष्ट्र
आज के मंत्री

बढ़ चढ़ के
नेता के चट्टे बट्टे
देश को लूटे


रखना डंडा
उड़ न जाये झंडा
हाथ में कस

ले के अनेकों 
फहराया तिरंगा
प्राणों की बलि

रखना ध्यान 
मलिन ना हो कभी
देश की छवि

देखी दुनिया
है सबसे बढ़िया
भारत वर्ष

पावन भूमि
राम और कृष्ण की
भारत वर्ष

वेद पुराण
रखे अथाह ज्ञान
भारत वर्ष

अशोक चक्र
कहता इतिहास
महा देश का

दिये शहीद
अनेकों बलिदान
रक्षित हम 



गांव की भोर

खूंटे से खोल
बछड़ा करे शोर
होते ही भोर

ले के गिलास
मुन्नी गाय के पास
गांव की भोर


हाथ में लोटा
चले खेत की ओर
गांव की भोर

मुर्गे की बांग
उठो लगाता हांक
हो गयी भोर 


गांव की भोर
चिड़ियों की चहक
मुर्गों का शोर




भोर

शहर की भोर
स्टार्ट होती गाड़ियां
हॉर्न का शोर

बूढ़ों की भोर
जल्दी खुलती नींद 
खांसी का जोर

बच्चों की भोर
पीठ पे लदा बस्ता
स्कूल की ओर

पत्नी की भोर
रसोई में करते
बर्तन शोर

पति की भोर
चाय बन गयी क्या
मचाते शोर

स्वप्न के संग
नींद भी पुरजोर
युवा की भोर






आया सावन                   


दादुर मोर                                           
मन मचावें शोर               
आया सावन                   
                                    
वर्षा बहार
मन गावे मल्हार
आया सावन

सूरज घटा 
लुका छिपी की छटा 
आया सावन

गाते कजरी
मिल बात बदरी
आया सावन

नदी बौराई
बहती अकुलाई
आया सावन

मिटी उदासी
मही अब न प्यासी
आया सावन

आ जा ले छुट्टी 
भरी या खाली मुट्ठी
आया सावन 





पक्का बनाती 
विश्वास की ही रोड़ी  
प्रेम की राह


अधिक स्पष्ट
शहर की तस्वीर
रात्रि प्रहर

लम्बी हो जाती
स्वयं की परछाईं
रात्रि से पूर्व 

बढ़ती जाती
लेखनी की गति भी
रात्रि प्रहर

मिल के लिखे
स्याही दीप व दिल   
प्यार का खत 

रही जलती 
परीक्षार्थी की बत्ती
सुबह तक    









तीज त्यौहार
सावन की बहार
मन की पेंग

हाथों में सजी
झूल रही मेहंदी
तीज का झूला

हरी चूड़ियाँ
हरियाला सावन
मन भावन


देख सौंदर्य
सावन इतराता
नहाई धरा

पहनी पृथ्वी
नहा के सावन में 
हरे वसन

वसुंधरा का 
खिल जाता यौवन
नहा सावन


चींटी 
हारती नहीं
गिर कर भी चींटी
लक्ष्य पे दृष्टि

बना लेती है
चाशनी में ही कब्र
खाने में चींटी

राह सरल
एक जुट होकर
करतीं चींटी

कभी न देखा
अवकाश मनाते
कर्मठ चींटी

नन्ही अवश्य
हो जाती हाथी हेतु
चुनौती चींटी

मुश्किलों में भी
परिश्रम के बल
सफल चींटी

गति से ज्यादा
लक्ष्य महत्वपूर्ण
सिखाती चींटी

मरा पतंगा
हो गयीं एकत्रित
गली की चींटी

कीट का शव
अंतिम संस्कार को
ले चलीं चींटी


चींटी की जान
फिर भी मुहब्बत
रखतीं चींटी 






सुर बेसुर 
दिल के संगीत में 
हंसी बताती

हंसी दर्शाती 
उत्तम तार बांधी 
दिल की वीणा

सुनते हम
जब रोता इंसान
दिल की तान

हंसना रोना 
कहे कित्ती सुरीली 
दिल की तान

कित्त्ता भी जाओ
रहोगे दिल में ही 
दूर मुझसे

बसाया तुझे
बीमारी बस गयी
दिल में कैसे

आवश्यक है
प्यार करने वाला
दिल भी रखे 

जरूरी नहीं
जिससे प्यार करें
दिल भी रखे 



करे सुदृढ़
राखी का कच्चा धागा
रिश्ते की गांठ

होता प्रगाढ़
भाई दीदी का प्यार
राखी का पर्व

प्यार समेट
दी भाई की कलाई
सूत्र लपेट

प्यार समेटी
भाई की कलाई में
सूत्र लपेटी


कसमें सात 
बांधें जीवन साथ 
अटूट गाँठ



नेता रखते
रेतने को समाज
शब्दों के चाकू

आते सेवा को
मेवा में ढक जाते
आज के नेता


किसने गढ़ी
ममता की मूरत
नानी से जाना

 
कहा से लाई
जाना ननिहाल जा
माँ ने ममता

उगाया वृक्ष
सघन ममता का 
नानी ने सींच

माँ एक झील
ममता का सागर
नानी का घर











ग्राम्य जीवन


सीधा सादा सा
भरा है भोलापन
ग्राम्य जीवन

थोड़ा घर में
थोड़ा चाहे मन में
ग्राम्य जीवन

जीता जीवन
प्रकृति की गोद में
ग्राम्य जीवन

बातें करता 
मद मस्त पवन
ग्राम्य जीवन

चाँद सितारे
करे नित दर्शन
ग्राम्य जीवन





हैप्पी आवर्स
कर न दें उदास
पूरी जिंदगी 

उठाया था जो
बीड़ी का वह टूक
पिता ने फेंका

पी गयी सब
तन मन व धन 
घूँटों में भर 

बोतल भर
खरीद कर लाया
कलह घर

पूरी बोतल
अकेले ही समेटा
नाली में लेटा

बाप ने डाला
गुल्लक पर डाका
नशे की लत

बेटे ने डाला
गुल्लक पर ताला
बाप नसेड़ी

समझता था
वह उसे पी रहा
वो पीती रही

पूरी बोतल
अकेले ही गटका
पाया झटका





गर्मी में गांव
बिछ जाती खटिया 
पेड़ की छाँव 




दिखला देता 
भले बुरे का भेद
मन दर्पण

चंचल मन
ढक देता जीवन
स्वार्थीपन

चंचल हो के 
करे आकृष्ट मन
दुराचरण 

खुल्ला जो छोड़ा
बिन लगाम घोडा
हो जाता मन

चंचल मन
ढक लेता जीवन
बादल बन

बना देता है
असंतुष्ट जीवन
स्वार्थीपन

उन्मुक्त मन
कर आता भ्रमण
धरा गगन



सिंच न पाये
फूलों ने छोड़ दिया
महकना भी
मुरझाये पड़े हैं
निर्जल तेरे बिना

उस उद्यान
जब भी जाता हूँ
देखता खाली
बेंच पे एक पक्षी
अकेला तेरे बिना

सूना रहता
पक्षियों के बिना वो
पार्क का पेड़
लुप्त हुई उनकी
चहक तेरे बिना

ठण्ड की रात
फूल और पत्तों पे
गिरते आंसू
अम्बर रोया होगा
उदास तेरे बिना

पूरी न होती
होंठों को छुए बिना
कोई भी मेरी
आँखों में बसे बिना
कविता तेरे बिना



दो अर्थ लिए हाइकू

लेवा न सिला
कागज नहीं बना 
लुगदी न थी

वो आया नहीं
पाजामा मिला नहीं
सिला नहीं था 

मेघ से झाँका
घूंघट में से ताका
मेरे दो चाँद

चूल्हा न जला
इंजन नहीं चला
ईंधन न था

थाल गन्दा था 
पतंग उडी नहीं
मंजा नहीं था

गाड़ी हिली ना
सामान गया नहीं
ठेला नहीं था

सिर में तेल
नहीं हो सका खेल
बिना बाल के

हाथ सूना था
नट कस ना पाया 
चूड़ी गायब

रूठ के गयी
मानो ले के जाएगी
वो मेरी जान

रह ना पाया
दवाई नहीं खाया
बच्चा कल से


चिलगोजा की
तोड़ने में छटकी 
पृथ्वी पे गिरी

रस्सी टूटी क्यों
हाथी हार क्यों गया
बल कम था

मन की मन
रजाई हुई मैली 
पाई ना खोल

बाढ़ समाप्त
बिना चमक मोती 
उतरा पानी 

पड़ी दुलत्ती
चल गयी बन्दूक
छेड़ा जो घोडा

नारी की लम्बी
पर्वत की है ऊँची
सुन्दर चोटी

जले तो, ज्योति
देवता हों प्रसन्न
अगर-बत्ती

जाना था घर
बस हुई पंचर
फंसा चक्कर

घेर के आई
सूरज का प्रकाश
दिन में घटा

जैसे ही मेघ
चांदनी ने बिखेरा
नभ में छटा 

बंधा ना घड़ा
हिम ना बना पानी
गला नहीं था

दर्द से चीखा
पांव में हुआ जब
फोड़ा वो फोड़ा

उसकी बुद्धि 
तीव्रता में उदंड
हो गयी हवा

किया उसने
उत्सव  के रंग में
पीकर, भंग

वो नशे में क्यों
पार्टी शीघ्र ख़त्म क्यों
पड़ा था भंग 

माँ प्रसन्न क्यों
सांड भड़का था क्यों 
लाल को देखा

गद्दा दबा क्यों
कलाई खाली थी क्यों
कड़ा नहीं था

जूता तंग क्यों
सांभर बचा था क्यों
बड़ा नहीं था 

छटा जो मेघ
चांदनी ने बिखेरी 
नभ में छटा 

घटा जो घेरी 
सूरज का प्रकाश
दिन में घटा

फेंका जूठन
पार्टी के बाद पार्टी 
कुत्तों कौवों की

टूटा खिलौना
देख नन्हें मुन्ने का
मन भी टूटा

कटी फसल 
किसान लाता घर 
चूहा बिल में 

वट का वृक्ष 
होता अति विशाल   
नन्हा सा गोदा


वृक्ष की डाली
पसरी बन बाहें
झूलते पत्ते

जग के सूर्य
जग में बिखराता
नित किरणें

झांकता वक्ष
पड़ा है कमीज का
टूटा बटन





कभी हो जाता
आसमान सा नीला
प्यार का रंग

होता रंगीला
फूलों की पंखुड़ी सा
प्यार का रंग

रात में काला
दिन में है उजला
प्यार का रंग

पानी के जैसा
होता रंग विहीन
प्यार का रंग

जिस में मिले
रंगे उसी के रंग
प्यार का रंग

महकता भी
चमकने के संग
प्यार का रंग

चढ़ जाये तो
उतरना मुश्किल
प्यार का रंग

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