Friday, 7 November 2014

Haiku 7 nov

चिड़िया रानी
छोड़ गयी दुनिया
मिला न पानी

गौरैया रानी
तुम्हारे बिन सूनी
भोर सुहानी

अब कहानी
कार्टूंन में आ गयी
कहाँ है नानी

पति पत्नी ने
एक दूजे की मानी
दोनों ही ज्ञानी

रात की रानी
चांदनी में नहाके
लगे सुहानी

एक ने कही
दूसरे ने ना मानी
यहीं से ठानी


धर ले चैन
भटक ना रे मन
लोभ कारण

नियंत्रित हो
रोज की अनबन
शांत जीवन



घाव करता
दिल भीतर तक
व्यंग का बाण

कर्ण प्रिय हो
काव्य मस्तिष्क खोले  
या दिल टो ले

चिड़िया रानी
तूने की बेईमानी
गांव छोड़के

नन्हे से पिल्ले
सजीव खिलौने
बिना चाभी के

प्यार छुप के
व झगड़े खुल के
विचित्र प्रथा

उद्देश्यहीन
कविता या हाइकू
व्यर्थ सर्वथा

फूलों की माला
झुक जाते हैं सिर
बड़े बड़ों के

बुझे दीये को
अँधेरे में ढूंढता
जलता दीया

चलने वाले
बंद घडी को देख
रुके रहते

मैंने उठाया
कीड़ा चख रहा था
वो अमरूद

सुन्दर वही
जो अंधकार में भी
सुन्दर लगे

खड़ी रहती
थाने में जब्त गाड़ी
बिना पहिया

सिपाही बिना
शहर का चौराहा
चींटी की चाल

छिल रही थी
झटक कर फेंकी
फली में कीड़ा

गरीब बच्चा
देता है लड़कर
ठण्ड को मात

छुप जाते हैं
मौसम से डरके
अमीर लोग

कवि बना दे
कितने भी बिखरे
शब्दों की माला

भिन्डी क्या काटा
कीड़ा आँख गिरोड़ा
छटकी छुरी

उलझा दिया
पंडित का पंचांग
वो मेरे नहीं !

पीठ पे थैला
ढूंढता फिर रहा
कूड़े में मोती!

ठण्ड आते ही
संदूक से बाहर
गर्म कपड़े

करते लोग
भांति भांति के खेल
कराता पेट

नियत खोटी
पाप राह ले जाती
नहीं क़ि रोटी 

दूर
कैसी नादानी


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