छुपा न पाती
चमेली के फूल को
काली रजनी
चांदनी देख
चमेली की मुस्कान
चरम पर
कर लेते हैं
साधना में. व्यतीत
संत जीवन
हुआ जुकाम
पर्वत शिखर से
झरे झरना
छिनक दिया
बाहर उड़ चली
श्वेत चिड़िया
विशिष्ट व्यक्ति
संग सैन्य टुकड़ी
सेनापति सा
नगर दृश्य
रात के अँधेरे में
अधिक स्पष्ट
बढ़ती जाती
लेखनी की गति भी
रात ढलते
अकेलापन
थोड़ा कम हो जाता
तारों के साथ
कम लगती
सितारों की चमक
यादों के आगे
पढ़ा देती है
शिक्षक से अधिक
पति को पत्नी
धुआं क्यों नहीं
देखें उस घर में
फांका तो नहीं
दबी रहती
अमीर की जिंदगी
साधनों में ही
गरीब जीता
खुशियों में जीवन
साधना में ही
गले क्या पड़ा
हुई दिल की हार
फूलों का हार
फूलों के आगे
भौरा भुनभुनाता
अपनी व्यथा
शरमा जाते
गुड़हल के फूल
चाँद को देख
पुष्प पंखुड़ी
उसकी पुस्तक में
अभी भी पड़ी
आँधी क्या जाने
सुमन की सुगंध
गर्व में डूबी
पुष्प न होते
कैसे प्रसन्न होते
देवी देवता
फूल न होते
चमन में बहारे
कहाँ से होती
महक उठी
हाइकू फुलवारी
शब्दों के फूल
खिड़की पर
पड़े आंसू को ओस
जाना बेदर्दी
ठहर जाती
फूलों के पास हवा
गंध चुराने
हाइकू युगल
कागज खेत
कलम से जुताई
शब्द बुआई
सोच की खाद
की स्याही की सिंचाई
काव्य उगाई
इतनी बात
यूँ ही ना कर डाली
है कुछ बात
कुर्सी हमारी
हम सरकार हैं
बाकी तुम्हारी
चमेली के फूल को
काली रजनी
चांदनी देख
चमेली की मुस्कान
चरम पर
कर लेते हैं
साधना में. व्यतीत
संत जीवन
हुआ जुकाम
पर्वत शिखर से
झरे झरना
छिनक दिया
बाहर उड़ चली
श्वेत चिड़िया
विशिष्ट व्यक्ति
संग सैन्य टुकड़ी
सेनापति सा
नगर दृश्य
रात के अँधेरे में
अधिक स्पष्ट
बढ़ती जाती
लेखनी की गति भी
रात ढलते
अकेलापन
थोड़ा कम हो जाता
तारों के साथ
कम लगती
सितारों की चमक
यादों के आगे
पढ़ा देती है
शिक्षक से अधिक
पति को पत्नी
धुआं क्यों नहीं
देखें उस घर में
फांका तो नहीं
दबी रहती
अमीर की जिंदगी
साधनों में ही
गरीब जीता
खुशियों में जीवन
साधना में ही
गले क्या पड़ा
हुई दिल की हार
फूलों का हार
फूलों के आगे
भौरा भुनभुनाता
अपनी व्यथा
शरमा जाते
गुड़हल के फूल
चाँद को देख
पुष्प पंखुड़ी
उसकी पुस्तक में
अभी भी पड़ी
आँधी क्या जाने
सुमन की सुगंध
गर्व में डूबी
पुष्प न होते
कैसे प्रसन्न होते
देवी देवता
फूल न होते
चमन में बहारे
कहाँ से होती
महक उठी
हाइकू फुलवारी
शब्दों के फूल
खिड़की पर
पड़े आंसू को ओस
जाना बेदर्दी
ठहर जाती
फूलों के पास हवा
गंध चुराने
हाइकू युगल
कागज खेत
कलम से जुताई
शब्द बुआई
सोच की खाद
की स्याही की सिंचाई
काव्य उगाई
यूँ ही ना कर डाली
है कुछ बात
कुर्सी हमारी
हम सरकार हैं
बाकी तुम्हारी
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