राजनीति की गजब लड़ाई
राजनीति की गजब लड़ाई।
सम्मति अपनी, जीत परायी।
जी करता लड़ लेते किसी में।
जिसकी चलती हवा उसी में।
सत्ता की जिसकी राह सरल,
कुछ भी कर घुस लेते उसी में।
पार्टी पृथक में सहोदर भाई।
आते समाजसेवी कहलाकर।
गिरगिट, राजनीति में आकर।
चुनाव जीतकर रंग बदलते;
विशिष्ट व्यक्ति, सत्ता को पाकर।
नियत डोली देख मलाई।
सचमुच ही या अभिनय करते।
टी. वी. पर जम गालियां बकते।
गलत नीतियां उखाड़ फेंक कर,
दोषी को करेंगे दण्डित, लगते।
जनता को रखते भड़काकर,
सरकारी माल बाँट मिल खाते।
राजनीति की गजब लड़ाई।
सम्मति अपनी, जीत परायी।
जी करता लड़ लेते किसी में।
जिसकी चलती हवा उसी में।
सत्ता की जिसकी राह सरल,
कुछ भी कर घुस लेते उसी में।
पार्टी पृथक में सहोदर भाई।
आते समाजसेवी कहलाकर।
गिरगिट, राजनीति में आकर।
चुनाव जीतकर रंग बदलते;
विशिष्ट व्यक्ति, सत्ता को पाकर।
नियत डोली देख मलाई।
सचमुच ही या अभिनय करते।
टी. वी. पर जम गालियां बकते।
गलत नीतियां उखाड़ फेंक कर,
नेता कि अभिनेता रे भाई।
लोक मंच पर लड़ झगड़ जाते।
एक मेज पर दावत उड़ाते।जनता को रखते भड़काकर,
सरकारी माल बाँट मिल खाते।
मुख पे प्रसंशा, पीछे बुराई।
राजनीति में फरेब का खेल।
कल तक दुश्मन, आज है मेल।
अवसर अनुसार पैंतरा होता,
उनकी चली प्रशंसा की रेल;
होती रही जिनकी बुराई।
चुनाव जीत कर ठाट का ध्यान।
नियमों में समुचित प्रावधान।
राजनीतिज्ञों की सुविधानुसार,
परिवर्तित हो जाता विधान;
शब्दों में कर के चतुराई।
जाति धर्म का लगाकर लफड़ा।
करवा देते आपस में झगड़ा।
सेंकते हैं राजनीति की रोटी,
दिखाने को सुलझाते पचड़ा।
नेतागिरी का धर्म निभाई।
देश की भूमि पर धाक जमाते।
सुध नहीं होती आम जन की।
विधि, संविधान जेब में उनकी।
देने लग जाते हैं, फंसने पर,
पूरी न होती जब बात मन की;
संविधान की उसी दुहाई।
रैली निकालते भाड़े के टट्टू।
एकत्र हो जाते सभी निखट्टू।
जुटती जाने कहाँ से भीड़?
जनता दिखती ज्यों हो लट्टू?
झूठे वादों की झड़ी लगायी।
भ्रष्टाचार से धन कमाकर।
सत्ता से शक्ति हथियाकर।
लोकतंत्र को ताक पर रख,
बिठाते गद्दी सुत को लाकर।
जनतंत्र में वंशवाद भिड़ाई।
जनता का हक छीन वे लेते,
राजनीति में फरेब का खेल।
कल तक दुश्मन, आज है मेल।
अवसर अनुसार पैंतरा होता,
उनकी चली प्रशंसा की रेल;
होती रही जिनकी बुराई।
चुनाव जीत कर ठाट का ध्यान।
नियमों में समुचित प्रावधान।
राजनीतिज्ञों की सुविधानुसार,
परिवर्तित हो जाता विधान;
शब्दों में कर के चतुराई।
जाति धर्म का लगाकर लफड़ा।
करवा देते आपस में झगड़ा।
सेंकते हैं राजनीति की रोटी,
दिखाने को सुलझाते पचड़ा।
नेतागिरी का धर्म निभाई।
देश की भूमि पर धाक जमाते।
स्वयं, विधान से ऊपर हो जाते।
जल, खनिज, जंगल और पर्वत,
जल, खनिज, जंगल और पर्वत,
माफिया से व्यापार चलवाते।
प्राकृतिक सम्पदा ले हथियाई।सुध नहीं होती आम जन की।
विधि, संविधान जेब में उनकी।
देने लग जाते हैं, फंसने पर,
पूरी न होती जब बात मन की;
संविधान की उसी दुहाई।
रैली निकालते भाड़े के टट्टू।
एकत्र हो जाते सभी निखट्टू।
जुटती जाने कहाँ से भीड़?
जनता दिखती ज्यों हो लट्टू?
झूठे वादों की झड़ी लगायी।
भ्रष्टाचार से धन कमाकर।
सत्ता से शक्ति हथियाकर।
लोकतंत्र को ताक पर रख,
बिठाते गद्दी सुत को लाकर।
जनतंत्र में वंशवाद भिड़ाई।
जनता का हक छीन वे लेते,
बांटते फिर खैरात वे कह के।
उद्देश्य तो होता सत्ता पाना,
दिखावे के मसीहा निर्धन के।
नियति में होती खोट समायी।
लगे न इनकी सत्ता में सेंध।
लगाते साम, दाम, दंड, भेद।
अत्याचार, अनाचार का भी,
होता नहीं है तनिक भी खेद।
चाहे भ्रष्ट निति अपनायी।
करते बड़े घोटाले जमकर।
गलत काम से लगता ना डर।
समाचारों में आ जाने पर,
सांठ गांठ कर, करते आडम्बर;
दिखावे की जाँच बिठाई।
अपराधों को हटाने आते।
अपराधी पहले हो जाते।
अपनी शक्ति बढ़ाने खातिर,
अपराधियों से हाथ मिलाते;
काटों की जो करते सफाई।
नेता से ज्यादा चेले चपाटे।
सरकारी धन से चाँदी काटें।
लूट खसोट में बढ़ चढ़ के,
मित्रों, नातेदारों में बाँटें।
लूट से होती मोटी कमाई।
राजनीति की गजब लड़ाई
उद्देश्य तो होता सत्ता पाना,
दिखावे के मसीहा निर्धन के।
नियति में होती खोट समायी।
लगे न इनकी सत्ता में सेंध।
लगाते साम, दाम, दंड, भेद।
अत्याचार, अनाचार का भी,
होता नहीं है तनिक भी खेद।
चाहे भ्रष्ट निति अपनायी।
करते बड़े घोटाले जमकर।
गलत काम से लगता ना डर।
समाचारों में आ जाने पर,
सांठ गांठ कर, करते आडम्बर;
दिखावे की जाँच बिठाई।
अपराधों को हटाने आते।
अपराधी पहले हो जाते।
अपनी शक्ति बढ़ाने खातिर,
अपराधियों से हाथ मिलाते;
काटों की जो करते सफाई।
नेता से ज्यादा चेले चपाटे।
सरकारी धन से चाँदी काटें।
लूट खसोट में बढ़ चढ़ के,
मित्रों, नातेदारों में बाँटें।
लूट से होती मोटी कमाई।
राजनीति की गजब लड़ाई
एस. डी. तिवारी
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