नहा धोकर
बरसात में हुए
वृक्ष सुन्दर
दिखाते हैं जो प्रेम
होता फरेब
प्रसन्न होगा
भर देगा वो घर
चिंता न कर
कभी न सोता
किसी पल पुकारो
सुन वो लेता
कहीं तो होगा
एक दिन हमारी
वो सुन लेगा
गमों को हम कैसे भुलाते,
जगी यादें कैसे सुलाते!
दी होती न वो साथ मेरा।
क्या सखे साजन ? नहिं सखे मदिरा।
बड़े बड़ों का भूत उतारा,
पड़ा रहता कोने बेचारा।
इसके बिना न उड़ता झंडा।
क्या सखि साजन ? नहिं सखि डंडा।
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