Sunday, 8 July 2018

Jel ki roti

रोटी के लिए

आँखों में पानी भरा था।
सामने, वर्ष बाद खड़ा था।
सिर से पांव तक दृष्टि दौड़ाती।
कभी माथा चूमती, कभी गले लगाती।
एक वर्ष पर घर आया है,
तेरे लिये खीर बनाया है। 
कहते पानी छलक पड़ा,
गालों से  होकर ढलक पड़ा।
क्या खाता था? क्या पीता था?
घर छोड़ कर वहाँ कैसे जीता था?
पूरे एक साल, कैसे रहा लाल!
मैं तो पड़ी हुई थी बेहाल।
फिर से निहारी, संतोष की सांस ली। 
सेहत पहले से ठीक थी, भांप ली।

उसके मुख पर कोई भाव नहीं था।
पहले से अलग बर्ताव नहीं था।
माँ से मिलने की ख़ुशी मन में।
चुस्ती और तंदुरुस्ती बदन में।
फिर वो आप बीती बताने लगा।
वहां मजे में था, जताने लगा।

माँ, वहां सब ठीक है, चिंता न कर।
एक साल और है, काट लूंगा कैसे भी कर।
खाने को भर पेट मिल जाता है।
भूख का दर्द नहीं सताता है।
कभी कच्ची, कभी अधजली चपाती है।
मगर रोज दोनों जून मिल जाती है।
पानी सी दाल होती है, पर सब्जी साथ होती है।
हाँ, जमीन पर सोता हूँ, जब रात होती है।
तू कहाँ रोज चूल्हा जला पाती।
कई बार तो कहीं से मांग के लाती।
वहां कोई कष्ट नहीं है।
बस यही दुःख है, तू वहां पर नहीं है।
साथ खेलने वाला कोई नहीं होता।
हाँ, इस छोटी के लिए, दिल अवश्य रोता। 
वहां छत टपकती नहीं है।
गली की नालियां महकती नहीं हैं। 

याद है मुझे, दो दिन से तू भूखी थी।
देखा था, तेरी ऑंखें भूख से सूखी थीं।
सोचा था चौराहे पर जाऊंगा।
कोई तो कुछ देगा, मांग कर लाऊंगा।
अवसर पाकर, बस में पांच सौ उड़ा लिया।
उसने एक हजार लिखवा दिया।
हमारी परेशानी बस पुलिस तक होती है।
पैसे वालों को पुलिस कुछ नहीं कहती है।
अंदर सब एक से हो जाते हैं।
हाँ, उन्हें अंदर जाने में समय लगता है,
हम फ़ौरन पहुँच जाते हैं।
मगर, वो आधा पेट और हम भर पेट खाते हैं।

संतों के दर्शन के लिए,
यहाँ कितनी लम्बी पंक्ति लगाते हैं।
तुझे पता है! वहां, दर्शन यूँ ही मिल जाते हैं।
मुझे तो बहुत अच्छा लगता है,
वे भी हमारे साथ, वही रोटी खाते हैं।
वहां बड़े बड़े लोग आते हैं,
उनके घर से कभी बढ़िया चीज आती है।
कभी कभी वे खुश होते हैं तो,
हमें भी मिल जाती है।
यहाँ, किसी नेता के यहाँ जाओ,
संतरी गेट पर रोक लेता है।
वहां बड़े से बड़ा नेता भी,
हमसे दोस्ती कर लेता है।
ये देख! एक बड़े नेता ने मुझे,
अपना नंबर दिया है।
वो तो बेल पर चला गया,
छूटने पर मिलने का निमंत्रण दिया है।
बस एक साल की बात है,
वो हमारा भाग्य जगा देगा।
तेरा दुःख दूर हो जायेगा,
किसी बड़े धंधे में लगा देगा।

ना तो वह पिछड़ा था, न दलित था,
बस निर्धनता का पीड़ित था।
पिता भूख लिए जग से मुंह मोड़ गया।
विरासत में भूख ही छोड़ गया।
हालात ने उसे अपराधी बनाया था।
जेल से पांच दिन के परोल पर आया था।

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