Sunday, 15 July 2018

Peer badi gazal


पीर बड़ी दिल में तुम्हें दिखलाऊँ कैसे।
उलझन में पड़ी जिंदगी सुलझाऊँ कैसे।
उन बातों ने हालात बनाये कुछ ऐसे,
दिल पागल सा फिरता है समझाऊँ कैसे।
फूलों के साथ झड़ चुके हैं, पत्ते भी अब,
पतझड़ में बगिया अपनी महकाऊँ कैसे।
कौन भर दिया है, रिश्तों में खटास इतना,
फट चुका दूध तो दही अब जमाऊँ कैसे।
जिंदगी को तुमने मरुस्थल कर के छोड़ा,
बोये उन काटों में फूल खिलाऊँ कैसे।
कबसे जल रहा हूँ, कोई तो पानी डालो,
विरह की उठी इस आग को बुझाऊँ कैसे।
जिन गलियों से सालों का वास्ता एसडी,
उनको यूँ ही छोड़ कर चला जाऊं कैसे। 

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