Saturday, 21 July 2018

Paap ke baadal

घिर घिर आये, पाप के बादल।
भीग मतवाला, मन ये पागल।

बचपन में आ बैठा सिर पर।
बढ़ता गया, बड़ा होने पर।
खुद से बड़ा, रहा इसका हाथ।
चलता रहा जीवन के साथ।
जवानी में हुए और भी कायल।
घिर घिर आये, पाप के बादल।

छोटे से बड़ा ज्यूँ होते गये।
पापों का बोझ ढोते गये।
दशा देख के समझ में आयी। 
ढूंढते पाप में सभी मलाई।
उसको भी किसी बच्चे सा छल।
घिर घिर आये, पाप के बादल।

आगे बढ़े बुढ़ापे की ओर।
छूटता गया पापों का छोर।
समा गए जमीन के अंदर।
पापों को छोड़, हवा में ऊपर।
भीग सके अन्य कोई आँचल।
घिर घिर आये, पाप के बादल।

संग मेरे ये अंधेर हुई।
समझने में बड़ी देर हुई। 
ऊंचाई पर बसता है पाप।
जीवन दबकर, करता प्रलाप। 
मिथ्या, लोभ का बन घन श्यामल।
घिर घिर आये, पाप के बादल।

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