धड़ लिए चलता हूँ
धड़ लिए चलता हूँ।
चेतन की अब क्या बात करूँ!
जड़ लिए चलता हूँ।
ना झुकता, ना मुड़ता हूँ मैं,
काठ के उल्लू सा रहता हूँ मैं,
आसमान में दृष्टि रखता;
अकड़ लिए चलता हूँ।
कैसे काला ना होऊं, बताओ!
मैं मतवाला न होऊं, बताओ!
खान में कोयले की चट्टानों से,
रगड़ लिए चलता हूँ।
राहों में यूँ गिरते फिसलते,
गोता लगाते, कभी सम्हलते,
मिले न सहारा तो कीचड़ की;
पकड़ लिए चलता हूँ।
श्रमिक
पत्थर तोड़कर भी,
नाम मिला ना दाम मिला।
बस छोटा सा काम मिला।
सर्दी व बारिश गहरी में,
गर्मी की दोपहरी में,
कभी सड़क बनी, कभी महल बना,
तनिक नहीं आराम मिला। बस छोटा सा ...
इतना सारा परिश्रम कर,
कमा पाता बस पेट भर,
झोपड़ों में करता है बसर,
उसको न अपना धाम मिला। बस छोटा सा ...
बीमारी उसकी हवा हो जाती,
पसीने से ही दवा हो जाती,
श्रम के धन पर इतराता;
खाना नहीं हराम मिला। बस छोटा सा ...
हाथ का लिए भरोसा भागे,
फैलाता ना किसी के आगे,
संतुष्टि उसके मन से झांके,
पर झंझट और झाम मिला। बस छोटा सा ...
बरस भी जा
घन देख मगन मन।
उठा नाच झनन झन।
ओ रे कारे बदरवा,
अब तो बरस भी जा।
प्यासी है धरनी।
प्यासी निर्झरनी।
प्यासे वन उपवन।
प्यासे कबसे नयन।
ओ रे कारे बदरवा,
अब तो बरस भी जा।
ऊपर देख गगन।
घेरे तुझको सघन।
बैठा लगा के लगन।
तुझमें सारा भुवन।
ओ रे कारे बदरवा,
अब तो बरस भी जा।
रुक रुक डोले पवन।
सावन में करके जतन।
सुन रे मेघ सजन।
जल बिन जलता बदन।
ओ रे कारे बदरवा,
अब तो बरस भी जा।
पंछी रोता रहा
पंछी, रोता रहा दिन रात।
जाकर, किससे कहे विषाद।
तेज आंधी ने उड़ाई नीड़।
बेचारा कैसे सहे वो पीड़।
मैना ने दिलाया धीर,
बना ले एक नया आवास। पंछी ...
कौवा उसका अंडा उड़ाया।
चीं चीं की पर ना लौटाया।
तोते ने उसको समझाया,
लाना फिर से तुम नवजात। पंछी ...
एक दिन ऐसा संकट आया।
पेड़ काट कोई नीचे गिराया।
जाना पड़ा तज देश सभी को,
तोता, मैना, बुलबुल, काग। पंछी ...
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