Friday, 2 January 2015

Hindi haiku - paani


चिर तालाब
मेढक की छपाक
उछला पानी

धरा ने दिया
तीन भाग पानी को
एक हमको

बरसा पानी
शहर की हो गयी
मुफ्त धुलाई

पानी बरसा
झूमे ताल तलैया
नदी छमकी

स्वास्थवर्धक
नारियल का पानी
स्वाद के साथ

और मांगती
गोलगप्पे का पानी
जीभ चटोरी

बहा ले गयी
साथ में मन्दाकिनी
कई हजार

वर्षा की रात
खिसकती खटिया
चूता छप्पर

यजमानी व
बेईमानी का धन
पानी का धन

गावं में बाढ़
सरकार बहाती
पानी सा पैसा

गली मोहल्ले
तैरते खाट डब्बे
गावं में बाढ़

पहले मेरा
नहर के पानी पे
लाठी का जोर

ना आती छम्मो
ना रहा पनघट
कुआँ उदास

एक बोतल
संभाल कर रखा
गंगा का जल

नदियों का भी
हो जाता बटवारा
पाने को पानी

अंगूर देख
ललचाई लोमड़ी
मुह में पानी

कैसे निबटे
जग्गू मग्गू का भेद
नाली का पानी

व्यर्थ का श्रम
पौधों को नहलाना
जड़ में पानी

बहता जाता
समय सरिता में
जीवन पानी

नहीं करना
कुछ ऐसा की होवो
शर्म से पानी

सागर प्यासा
धरे अथाह जल
नदी नीर का

डाल देता है
क्रोध खौलता पानी
मन में छाले


प्यासे भी मरे
चुल्लू भर पानी में
डूबे तो मरे


जल के बिना
धरती हो जयेगी
मरू की भूमि

मेघा रे मेघा
पानी दे तू पानी दे
जिंदगानी दे

 मेरे गांव में
द्वार आये को पानी
गुड़ के साथ


जल जीवन
जल का संरक्षण
मानव धर्म

 जल का मोल
कितना अनमोल
प्यासा ही जाने

डूबा देता है
विशाल जहाज भी
पेंदी  में छेद

मन प्रसन्न
देख जल की क्रीड़ा
ऊँचे फव्वारे  


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