Friday, 9 January 2015

Hindi ghazal - kiraye ka jindagi किराये का घर

किराये की जिंदगी

खुदा! तूने पटका, जहाँ पे जमीं पर।
अस्पताल का था, किराये का बिस्तर।

आँचल का माँ के, जो पाया था साया,
लगा प्यार में होगा यहाँ यूँ ही बसर।

होने पर बड़ा छिन गया था वो साया,
बदले जिंदगी के हालात इस कदर।

दो वक्त की रोटी, जुटाने की खातिर,
यूँ भटकते रहे इस शहर उस शहर।

बदलना पड़ा खुद के रहने की खातिर,
ले सस्ता या मंहगा, किराये का घर।

सुन आवाज दिल की, की दिल की तलाश,
निकल महफिलों में, फिर फिरे दर बदर।

मिला दिल, लगा पर, किराये का वो भी,
बटुए पे ही रखता, वो कम्बख्त नज़र।

मौत आई तो समझे, मिली अब निजात,
देना होगा किराया, खुदा के ना घर।

रुके आराम को, जब रस्ते में 'देव', 
दिया किराया दो गज का, खुदी तब कबर।

No comments:

Post a Comment