मैं हूँ अज्ञानी
तू पथ प्रकाशिनि
प्रबुद्ध कर
वीणावादिनी
बनके कृपा झर
मूढ़ता हर
तेरे सिंधु का
मैं भी हूँ एक बूँद
ऑंखें न मूँद
विद्यादायिनी
सुन मेरी वंदना
विद्वान बना
मैं हूँ याचक
तू दया की सागर
भर गागर
शाम होते ही
दीपक जग जाते
तारे देखने
रात ओढ़ती
झलमल चुनरी
सितारे जड़ी
आंसू बहाती
निर्धन को तड़पा
ठण्ड की रात
प्रभावहीन
कांटा और कटाक्ष
गैंडे की खाल
लोभ का जाल
डुबोये ही ले जाता
गहरे ताल
तन व मन
रहता स्वस्थ जब
पूर्ण श्रृंगार
बैठे दो व्यक्ति
चुपचाप घर में
अभी निबटे
ढूंढ के लाती
सही उज्जवल राह
नेकनीयती
दस फ़ीसदी
जनसँख्या में वृद्धि
खुदा का लक्ष्य
सत्रह वर्ण
करें कविता पूर्ण
मन में बैठ
हाइकू लुत्ती
मस्तिष्क में घुस के
जलाती बत्ती
बिखरे पड़े
मानो नभ पे तारे
बेला के फूल
बसंत आते
झूम झूम के पत्ते
ताली बजाते
मनाओ नहीं
बीती बातों का शोक
आगे की सोच
ऐसे हों कार्य
खींच कर ले जाये
मुकाम तक
प्रसन्न चित्त
कला व प्रकृति में
जो जाये बीत
नियति यदि
सपने ही देखना
वृहत देखो
साथ पकड़ो
जो आगे बढ़ रहे
रुके का नहीं
हाथ पकड़ो
निर्बल लाचार का
बढ़ लें वे भी
डरो ना करो
पीछे ना देखो आगे
होगे सफल
सफलता है
उनकी सरलता
महान लोग
कम ही बोलो
तोलकर के बोलो
बोली हो मीठी
कभी ना भूलो
क्षमा व कृतज्ञता
किसी का किया
अच्छी सेहत
ज्यादा खाने में नहीं
धरे व्यायाम
लक्ष्य ना बने
पैसा रहे साधन
सुख का मंत्र
आत्मविश्वास
ले आता देशाटन
मन प्रसन्न
आग पाकर
मनु ने खाना सीखा
धो पकाकर
धधका देता
पवन का चुम्बन
ज्वाला को और
अकेले रहने
साथी ढूंढ लो
अपना काम
कला समझो
तू पथ प्रकाशिनि
प्रबुद्ध कर
वीणावादिनी
बनके कृपा झर
मूढ़ता हर
तेरे सिंधु का
मैं भी हूँ एक बूँद
ऑंखें न मूँद
विद्यादायिनी
सुन मेरी वंदना
विद्वान बना
मैं हूँ याचक
तू दया की सागर
भर गागर
शाम होते ही
दीपक जग जाते
तारे देखने
रात ओढ़ती
झलमल चुनरी
सितारे जड़ी
आंसू बहाती
निर्धन को तड़पा
ठण्ड की रात
प्रभावहीन
कांटा और कटाक्ष
गैंडे की खाल
लोभ का जाल
डुबोये ही ले जाता
गहरे ताल
तन व मन
रहता स्वस्थ जब
पूर्ण श्रृंगार
बैठे दो व्यक्ति
चुपचाप घर में
अभी निबटे
ढूंढ के लाती
सही उज्जवल राह
नेकनीयती
दस फ़ीसदी
जनसँख्या में वृद्धि
खुदा का लक्ष्य
सत्रह वर्ण
करें कविता पूर्ण
मन में बैठ
हाइकू लुत्ती
मस्तिष्क में घुस के
जलाती बत्ती
बिखरे पड़े
मानो नभ पे तारे
बेला के फूल
बसंत आते
झूम झूम के पत्ते
ताली बजाते
हाइकू लुत्ती
मस्तिष्क में घुस के
जलाती बत्ती
कैसे सम्भालूँ
तुम्हारे छोड़े तीर
बड़े गंभीर
तुम्हारे छोड़े तीर
बड़े गंभीर
मनाओ नहीं
बीती बातों का शोक
आगे की सोच
ऐसे हों कार्य
खींच कर ले जाये
मुकाम तक
प्रसन्न चित्त
कला व प्रकृति में
जो जाये बीत
नियति यदि
सपने ही देखना
वृहत देखो
साथ पकड़ो
जो आगे बढ़ रहे
रुके का नहीं
हाथ पकड़ो
निर्बल लाचार का
बढ़ लें वे भी
डरो ना करो
पीछे ना देखो आगे
होगे सफल
सफलता है
उनकी सरलता
महान लोग
कम ही बोलो
तोलकर के बोलो
बोली हो मीठी
कभी ना भूलो
क्षमा व कृतज्ञता
किसी का किया
अच्छी सेहत
ज्यादा खाने में नहीं
धरे व्यायाम
लक्ष्य ना बने
पैसा रहे साधन
सुख का मंत्र
आत्मविश्वास
ले आता देशाटन
मन प्रसन्न
आग पाकर
मनु ने खाना सीखा
धो पकाकर
धधका देता
पवन का चुम्बन
ज्वाला को और
साथी ढूंढ लो
अपना काम
कला समझो
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