Thursday, 29 January 2015

Haiku Hindi - dulhan bahu beti


चली मुनिया
घर बार छोड़ के
नयी दुनिया

डाले लहंगा
उम्मीद से महंगा
नयी दुल्हन

गले क्या पड़ा
हुई दिल की हार
फूलों का हार

नई दुल्हन
हाथ में जयमाला
ताके गर्दन

हुई बिदाई
रो रहे माता पिता
चाचा व भाई

चहक उठा
पूरा घर आँगन
नई दुल्हन

घर आँगन
हो रही रुनझुन
नई दुल्हन

सजी दुल्हन
हाथ में जयमाला
लक्ष्य गर्दन

छोटी बहन
आई सुन्दर भाभी
ख़ुशी की चाभी

नयी नवेली
मेहदी की लाली में
पिया की हो ली

नए हो गए
घर दरोदीवार
नयी दुल्हन

महक उठा
घर चहक उठा
आई दुल्हन

बदली फ़िज़ा
आते ही घर पर
नयी दुल्हन

बहियों भरी
आई नई नवेली
चूड़ियाँ हरी

आते ही जन्मे  
घर में नए रिश्ते
नई दुल्हन

रही होती तो
आज दुल्हन होती
गिरवा दिया

पचास लोग
होंगे बिन दुल्हन
हज़ार में से

बसंत ऋतु
धरती बन जाती
एक दुल्हन

नयी दुल्हन
चाची भाभी ननद
नए संबंध

दुल्हन आई
द्वार खड़ी ननद
द्वार छेकायी

आने ना देगी
बहन बिना नेग
नई दुल्हन

चली अकेली
दुल्हन पीछे छोड़
सखी सहेली

कैसा चलन
हो ना पाये दुल्हन
विधवा मन

बच्चे को दूध
कैसे पिला पायेगी
वो दूध पीती  

बेटी का होता
मायका ससुराल
दोनों का ख्याल

बड़ी हो जाती
ससुराल आकर
दुनिया और

बंध गये हैं
आने पर दुल्हन
बिट्टू के पांव

पिया का संग
ग्यारह बन जाती
एक को पाके

शुरू हो गयी
तीन टांग की दौड़
आई दुल्हन

जहाँ पा गयी
पाके पिया का संग
हुई दबंग

गुण मिलाते
पर गुण न गाते
दुल्हन लाके

चारदीवारी
तोड़ हुई बाहर
नई दुल्हन


रात हो गयी
जाग उठे नींद से
चाँद सितारे

हो गयी रात
किससे कह डालूँ
मन की बात

रात हो गयी
उनकी यादों में ही
नींद खो गयी

हुआ सपना
घूंघट का उठाना
पल्लू गायब

लाड़ छोड़ के
मैके से चली लाडो
राज करने

रचाये बिना
रचता स्वयम्बर
फेस बुक पे


*******
स्वर्ग से आई
घर में ख़ुशी छाई
नन्हीं सी परी

अंगना सुन  
बेटी की रुनझुन
खिल उठता

कोई न और
समझा कमजोर
बेटी को कुल

हो गयी बड़ी
बेटी होगी परायी
सोच के रोये

नहीं है कम
रखती पूरा दम
बेटे से बेटी

दो घर बार
थाम के पतवार
खेती है बेटी

होतीं बेटियां
बलात की शिकार
हमें धिक्कार

गालों की राह
टपक रहे मोती
बेटी को डांट

बच्चे को दूध
कैसे पिला पायेगी
वो दूध पीती

बेटी का होता
मायका ससुराल
दोनों का ख्याल

बड़ा हो जाता
ससुराल आकर
बेटी का लोक

चली मुनिया
घर बार छोड़ के
नयी दुनिया

हुए बेहाल
विदा हो ससुराल
गयी ज्यों बेटी  

गयी बहार
अपने ससुराल
गयी जो बेटी

बेटी से होती
आंगन की खुशबू
अद्भुत फूल

बेटी चाहती
बस पिता का प्यार  
धन से तोबा  

******

बाप की इच्छा
बेटी दिखे हंसती
ससुराल जा

चहक उठा
पूरा घर आँगन
नई दुल्हन

आते ही जन्मे  
नए नए सम्बन्ध
नयी दुल्हन

दुल्हन आई
द्वार खड़ी ननद
द्वार छेकायी

चली अकेली
दुल्हन पीछे छोड़
सखी सहेली

गुण मिलाते
पर गुण न गाते
बहू को लाके

पाये व्यव्हार
बहू भी बेटी जैसा
देगी दुलार

मैके देवकी
ससुराल यशोदा
बेटी की दो माँ

पायेगी बहू
देगी घर संवार
बेटी सा प्यार

बहू हो जाती
घर की पतवार
पाकर प्यार

हो जाती खुश
पुकारें बेटी कह
सास ससुर

घर की कश्ती
बहू सवारी नहीं
नाविक होती  

कैसा हिसाब
बेटे को पूरी छूट
बहू को खूंट  

Wednesday, 28 January 2015

Dhanrog



लोभ रोग से तड़पता है मन
दवा इसकी आसान नहीं है।
निरंतर पीड़ित और और से
विज्ञानं में कोई निदान नहीं है।

सब वैभव रहकर भी लालसा
और मिले अभी और मिले।
दुनिया की सब दौलत मिल जाय
साक्षात स्वयं कुबेर मिले।
अंतहीन इच्छा है मन में
मिलता कोई समाधान नहीं है।

जमा कर लिया है इतना सब
अभी और हड़पने की है होड़।
राज कर सकेंगी कई पीढ़ियां
भर लें घर में जोड़ जोड़।
यह तो मन का मात्र मिथक है
ईश्वर का वरदान नहीं है। 

पैसा ही क्या सब कुछ चलाता
हवा भी क्या पैसे से ही पाओगे?
नरम बिस्तर तो ले आओगे
पैसे से क्या नींद भी लाओगे ?
पैसा देता खतरे को आमंत्रण
निर्भय जो बेईमान नहीं है।

इच्छाएं कभी मरती नहीं
हाँ शांति को अवश्य मारती।
लोभ, मित्रों को दूर भागकर
उसके प्यार को नकारती।
वही तो सबका प्रियवर होता
जिसे धन का अभिमान नहीं है।

लोभ तो भय को देता जन्म
ईर्ष्यालु भी करता है उत्पन्न।
अभाव से आती है विनम्रता
प्रेरित करता करने को श्रम।
विवेक उसका नष्ट हो जाता
जिसको इसका ज्ञान नहीं है।

प्रभु ने दिया अब तक जितना
नाम लो उसका उतनी बार।
थक जाओगे शीघ्र ही उससे
दर्शाओगे कि  हो लाचार।
पैसे से सुखी होता नहीं नर
जिसका प्रभु में ध्यान नहीं है।



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Tuesday, 27 January 2015

Hindi haiku 27 Jan 2015

मैं हूँ अज्ञानी
तू पथ प्रकाशिनि
प्रबुद्ध कर

वीणावादिनी
बनके कृपा झर
मूढ़ता हर

तेरे सिंधु का
मैं भी हूँ एक बूँद
ऑंखें न मूँद

विद्यादायिनी
सुन मेरी वंदना
विद्वान बना

मैं हूँ याचक
तू दया की सागर
भर गागर


शाम होते ही
दीपक जग जाते
तारे देखने

रात ओढ़ती
झलमल चुनरी
सितारे जड़ी

आंसू बहाती
निर्धन को तड़पा
ठण्ड की रात

प्रभावहीन
कांटा और कटाक्ष
गैंडे की खाल

लोभ का जाल
डुबोये ही ले जाता
गहरे ताल

तन व मन
रहता स्वस्थ जब
पूर्ण श्रृंगार

बैठे दो व्यक्ति
चुपचाप घर में
अभी निबटे

ढूंढ के लाती
सही उज्जवल राह
नेकनीयती

दस फ़ीसदी
जनसँख्या में वृद्धि
खुदा का लक्ष्य

सत्रह वर्ण
करें कविता पूर्ण
मन में बैठ

हाइकू लुत्ती
मस्तिष्क में घुस के
जलाती बत्ती

बिखरे पड़े
मानो नभ पे तारे
बेला के फूल

बसंत आते
झूम झूम के पत्ते
ताली बजाते

हाइकू लुत्ती
मस्तिष्क में घुस के 
जलाती बत्ती 

कैसे सम्भालूँ
तुम्हारे छोड़े तीर
बड़े गंभीर  

मनाओ नहीं
बीती बातों का शोक
आगे की सोच

ऐसे हों कार्य
खींच कर ले जाये
मुकाम तक

प्रसन्न चित्त
कला व प्रकृति में
जो जाये बीत

नियति यदि
सपने ही देखना
वृहत देखो

साथ पकड़ो
जो आगे बढ़ रहे
रुके का नहीं

हाथ पकड़ो
निर्बल लाचार का 
बढ़ लें वे भी 

डरो ना करो
पीछे ना देखो आगे
होगे सफल

सफलता है
उनकी सरलता
महान लोग

कम ही बोलो
तोलकर के बोलो
बोली हो मीठी

कभी ना भूलो
क्षमा व कृतज्ञता
किसी का किया

अच्छी सेहत
ज्यादा खाने में नहीं
धरे व्यायाम

लक्ष्य ना बने
पैसा रहे साधन
सुख का मंत्र

आत्मविश्वास
ले आता देशाटन
मन प्रसन्न

आग पाकर
मनु ने खाना सीखा
धो पकाकर

धधका देता
पवन का चुम्बन
ज्वाला को और

अकेले रहने
साथी ढूंढ लो


अपना काम
कला समझो 

Sunday, 25 January 2015

Nagar Banaras



uxj cukjl esa

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cukjlh iku cuk igpku uxj cukjl esaA

नगर बनारस मेरे प्राण बls है साजन] नगर बनारस में। 
काशी oklh] शिव अविनाशी] रमे बनारस में।  
गंगा नहान] आत्मा की शुद्धि] 
मिल जाती पापों से मुक्ति]
वेदों का है ज्ञान भरा] नगर बनारस में।
तीर्थों में तीर्थ कkशी घाट]
धूल जाते हैं अनेकों पाप]
विश्व्वनाथ के दर्शन पाएं] नगर बनारस में।    
प्राचीन सभ्यता और संस्कृति] 
रचना यहाँ अमर ग्रंथों की]
तुलसी] कबीर की कलम उठी] नगर बनारस में।     
वास यहाँ पावनता लाती]
अंतिम यात्रा मोक्ष दिलाती]   
बैकुंठ द्वार का धाम बना] नगर बनारस में। 
साधु संतों की आत्मा रमती]
संगीत कला भी संग में बसती] 
परम ज्ञान के चक्षु खुल जाते] नगर बनारस में।  
बुद्ध के ज्ञानोपदेश का उद्गम]
सदियों पुराने मंदिर, आश्रम]
इतिहास भी लघु सा लगता] नगर बनारस में।  
भोर भये ही मंत्र गूंजते]
मंदिर घंट] घड़ियाल बजते]
सोहर] ठुमरी] बिरहा] कजरी] नगर बनारस में।  

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Saturday, 24 January 2015

Dil ho ya sheesha - ghazal दिल हो या शीशा

दिल और शीशा


कौन नासमझ! दिल को कहता है शीशा। 
अरे दिल तो है दिल औ शीशा है शीशा। 

खा खाकर  के चोट, खंड होता है दिल, 
पड़े चोट एक, टूट  जाता है शीशा। 

सिसकता किये बिन आवाज टूटा दिल,  
गिरता जब चीख मार रोता है शीशा। 

तड़पता दिल टूट कर अपने ही दर पर,
चटक करके दूर तक, छिटकता है शीशा। 

सह लेता टूटा दिल, चुपके ही पीर को,
दर्द औरों को चुभ के देता है शीशा। 

भटकता है टूटा दिल, मिल जाय राह उसे, 
राह से हटाते जब, टूटता है शीशा

होता 'देव' टूटा दिलटूट के तार तार,
आंच पर पिघल फिर से, जुड़ता है शीशा। 

****

एस. डी. तिवारी 

Thursday, 22 January 2015

Hindi haiku - mera bharat

फहराएगा
मंगल पे तिरंगा
मेरा भारत 

इस शदी का
बनेगा महाशक्ति
मेरा भारत

हर क्षेत्र में
होगा सबसे आगे
मेरा भारत

थोड़े से हैं
जो मलिन करते
मेरा भारत

सोने का खग
पर जकड़े पर
मेरा भारत


चल पड़ा है
प्रगति पथ पर
मेरा भारत 

भंडार सदा 
अध्यात्मिक ज्ञान का
मेरा भारत

धरोहर है
सभ्यता संस्कृति का
मेरा भारत

राम कृष्ण की
पावन जन्म भूमि
मेरा भारत 

महाभारत
जैसा संताप सहा
मेरा भारत

क ख कठिन
ए बी सी डी आसान
मेरा भारत

लक्ष्य अपना
है गांधी का सपना
मेरा भारत

अतिथि होता
अपने से पहले
मेरा भारत

परम धर्म
शांति और अहिंसा
मेरा भारत

गऊ व गंगा
दोनों अपनी माता
मेरा भारत

विश्व नायक
बन कर रहेगा
मेरा भारत

सोने के पंख
क्यों रंग डाला काला
मेरा भारत

बुद्ध की बुद्धि
पाई ज्ञान समृद्धि
मेरा भारत

डेढ़ सौ कोटि
प्यारे पूत पलते
मेरा भारत

Wednesday, 21 January 2015

Admin swagat

सुप्रभात,,,,सभी मित्रगण,,
मधुशाला में आज नए एडमिन SD तिवारी जी का स्वागत है एक हाइकु प्रस्तुत है,,,
सुस्वागतम्
श्रेष्ठ हाइकुकार
अभिनंदन //


सूर्य किरन
नई खुशयों संग
लाई उमंग //
Unlike ·