पल्ले में दबी
छिपकली भाग ली
छोड़ के पूँछ
गिड़गिड़ाता
मकड़ी के जाल में
फंसा मच्छर
चिड़िया चुगी
मेहनत से दाना
गिरा चोंच से
लगी भर है
खिड़की की चौखट
दीमक चाटी
किया मैंने भी
मच्छरों के नाक में
धुएं से दम
चींटा खे रहा
कागज की बनाई
मुन्ने की नाव
गुर्रा उठता
शिशु खींचता जब
पिल्लै की पूंछ
पत्नी ने छेड़ा
रासायनिक युद्ध
तिलचट्टे से
गीत सुना के
हरते झींगुर जी
रात की नींद
भार हो जाता
लम्बी बीमारी हो तो
स्वयं का भार
चाट रही वो
खाके अपने होंठ
स्वादिष्ट चाट
जाल बिछा के
सो रहा है मकड़ा
फंसा मच्छर
धुलती दाल
पतीले में प्रलय
बेचारे घुन
झूमे मच्छर
शराबी का पीकर
रात में रक्त
भरे कप में
बना मक्खी का काल
चाय का पीना
झाड़ू लगाई
बिन बुलाये आई
चीटों की मौत
एक मच्छर
घुसा मच्छरदानी
साथ के लिए
बनना होता
सिपाही को भी चोर
बच्चों का खेल
लल्लू के लाल
चले पाठशाला खा
रोटी अचार
पहले चांटा
जिद्द करने पर
पा गया बाटा
हुई पिटाई
बिना गृह कार्य के
स्कूल जो आई
कहाँ खेलेंगे
गुल्ली डंडा का खेल
आज के बच्चे
मेरे लिए थे
हीरे से भी कीमती
जीते वो कंचे
हत्या कर दी
कातिल क्रिकेट ने
गुल्ली डंडा की
टाई न बूट
बड़े विद्वान गढ़े
गांव के स्कूल
ध्रुव प्रह्लाद
आदर्श से हो चुके
सांप्रदायिक
याद है अभी
चंदा मामा का कौर
माँ के हाथों से
पा के जो ख़ुशी
साईकिल में मिली
कार में कहाँ
घूम आते थे
पहने नए वस्त्र
पूरे गांव में
निकल जाती
खींचता पूंछ जब
पिल्लै की चीख
दादा बनाते
हम दोनों उड़ाते
कागजी यान
नींद आ जाती
बैठते ही पढने
मम्मी जगाती
हलके थे बस्ते
हुई पूरी पढाई
बिल्कुल सस्ते
जब भी पड़ी
मास्टर जी की छड़ी
अच्छे के लिये
दो दूनी चार
लगता बड़ा भार
याद करना
बच्चों को पीटा
मॉनिटर बनके
बैर ही जीता
द्रोण दधिचि
पुस्तकों से बाहर
क्या की गलती
मुँह बनाके
खाली चरखी ले के
छत से आते
नाली में जाती
निकाल खेल चालू
डंडे से बाल
गिरा धड़ाम
पनही पहन के
चला बाबा की
पंख लगाये
उड़े बचपन के
ढूँढूँ मैं दिन
पता न चला
कब हो गए चाँद
वो चंदा मामा
सिर पे साथ
हैं माँ के दोनों हाथ
जुएं हेरते
नकली मूंछ
कालिख की बना के
बड़े हो जाते
याद करते
खेल में कवितायेँ
अंताकक्षरी
बड़े सबक
कहानियों से सीखा
पंचतंत्र की
छुप के गाते
अगर प्यार किया
तो डरना क्या
पचारा पोत
खड़िया से लिखते
काली तख्ती पे
नभ में थे ही
पत्रिका में भी प्यारे
थे चंदा मामा
सबसे प्यारे
तब थे बाबा दादी
अब हैं पोते
छिपकली भाग ली
छोड़ के पूँछ
गिड़गिड़ाता
मकड़ी के जाल में
फंसा मच्छर
चिड़िया चुगी
मेहनत से दाना
गिरा चोंच से
लगी भर है
खिड़की की चौखट
दीमक चाटी
किया मैंने भी
मच्छरों के नाक में
धुएं से दम
चींटा खे रहा
कागज की बनाई
मुन्ने की नाव
गुर्रा उठता
शिशु खींचता जब
पिल्लै की पूंछ
पत्नी ने छेड़ा
रासायनिक युद्ध
तिलचट्टे से
गीत सुना के
हरते झींगुर जी
रात की नींद
भार हो जाता
लम्बी बीमारी हो तो
स्वयं का भार
चाट रही वो
खाके अपने होंठ
स्वादिष्ट चाट
जाल बिछा के
सो रहा है मकड़ा
फंसा मच्छर
धुलती दाल
पतीले में प्रलय
बेचारे घुन
झूमे मच्छर
शराबी का पीकर
रात में रक्त
भरे कप में
बना मक्खी का काल
चाय का पीना
बिन बुलाये आई
चीटों की मौत
एक मच्छर
घुसा मच्छरदानी
साथ के लिए
बनना होता
सिपाही को भी चोर
बच्चों का खेल
लल्लू के लाल
चले पाठशाला खा
रोटी अचार
पहले चांटा
जिद्द करने पर
पा गया बाटा
हुई पिटाई
बिना गृह कार्य के
स्कूल जो आई
कहाँ खेलेंगे
गुल्ली डंडा का खेल
आज के बच्चे
मेरे लिए थे
हीरे से भी कीमती
जीते वो कंचे
हत्या कर दी
कातिल क्रिकेट ने
गुल्ली डंडा की
टाई न बूट
बड़े विद्वान गढ़े
गांव के स्कूल
ध्रुव प्रह्लाद
आदर्श से हो चुके
सांप्रदायिक
याद है अभी
चंदा मामा का कौर
माँ के हाथों से
पा के जो ख़ुशी
साईकिल में मिली
कार में कहाँ
घूम आते थे
पहने नए वस्त्र
पूरे गांव में
निकल जाती
खींचता पूंछ जब
पिल्लै की चीख
दादा बनाते
हम दोनों उड़ाते
कागजी यान
नींद आ जाती
बैठते ही पढने
मम्मी जगाती
हलके थे बस्ते
हुई पूरी पढाई
बिल्कुल सस्ते
जब भी पड़ी
मास्टर जी की छड़ी
अच्छे के लिये
दो दूनी चार
लगता बड़ा भार
याद करना
मॉनिटर बनके
बैर ही जीता
द्रोण दधिचि
पुस्तकों से बाहर
क्या की गलती
मुँह बनाके
खाली चरखी ले के
छत से आते
नाली में जाती
निकाल खेल चालू
डंडे से बाल
गिरा धड़ाम
पनही पहन के
चला बाबा की
पंख लगाये
उड़े बचपन के
ढूँढूँ मैं दिन
पता न चला
कब हो गए चाँद
वो चंदा मामा
सिर पे साथ
हैं माँ के दोनों हाथ
जुएं हेरते
नकली मूंछ
कालिख की बना के
बड़े हो जाते
याद करते
खेल में कवितायेँ
अंताकक्षरी
बड़े सबक
कहानियों से सीखा
पंचतंत्र की
छुप के गाते
अगर प्यार किया
तो डरना क्या
पचारा पोत
खड़िया से लिखते
काली तख्ती पे
नभ में थे ही
पत्रिका में भी प्यारे
थे चंदा मामा
तब थे बाबा दादी
अब हैं पोते
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