Sunday, 22 March 2015

Dil ka dhuan दिल से धुआं

यादें धुआँ बनकेउठती रहीं
जा के बादलों में मिलती रहीं
उठकर यादें आसमां तक ऊँची,
जमकर के बर्फ वो बनती रहीं
और जमकर वो पत्थर सी हुई, 
फिर थोड़ा थोड़ा पिघलती रहीं।
इन आँखों से हम देखते रहे,
बर्फ के फाहों में गिरती रहीं
कुछ दिल की ऊँची चोटियों से, 
नीर बन नयनों से ढलती रहीं
रोपने को आई ना नदी कोई,
बूदें टपकती व सूखती रहीं

उठता रहा धुआं फिर फिर यूँ ही,
और दिल में आग सुलगती रही।  

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