ज्यों दीया बाती
सुख दुःख के साथी
पति व पत्नी
जन जीवन
बना देता सुविध
ज्ञान विज्ञान
धुप हो चाहे छाँव
महान वही
निकले सारे
रजनी को सजाने
चाँद सितारे
शाम सवेरे
धनवानों का पैसा
एक ही रट
बीते सुन्दर
नाती पोतों के संग
बूढ़ों के क्षण
सर्दी जुकाम
जकड लेता नाकसाँस में झाम
कभी ताकत
कभी बन जाती है
पत्नी आफत
पत्नी का सच
जीवन की गाड़ी का
गियर क्लच
धागे में बंधा
बहन से मिलता
अटूट प्यार
नारी का बल
पाकर ही बनता
नर सबल
पत्नी की बात
रावण ठुकराया
काल बुलाया
पति की बात
सीता ने नहीं मानी
हर ली गयीं
हाथ नकेल
थामे राह दिखाती
पति को पत्नी
खाने को देती
अक्सर जली रोटी
बातूनी पत्नी
दूध पिलाती
कई बार चूल्हे को
बातों में पत्नी
मुहल्लानामा
बाँचती कामवाली
आकर नित
कैसे पचाए
पेट में होते बात
पेट का खाना
रोपती कान
कामवाली हमेशा
लगाये ध्यान
पड़ोस की कहानी
करते काम
बिना सोच के
बन जाते विवाद
बोले संवाद
न्यायालय है
संवादों का अखाडा
पिटता न्याय
.
कभी ठिठोली
कभी घातक गोली
हो जाती बोली
निशुल्क शब्द
संवाद में ढलके
चुकाते मोल
शब्दों को तोल
लिए तराजू हिय
तो फिर बोल
कड़वे तीर
बोलो मीठे बोल तो
हरते पीर
मरना भी है
जन्म लेने वाले को
कड़वा सत्य
सूर्य व सत्य
कितना भी छुपाओ
छुपते नहीं
अंततोगत्वा
सत्यमेव जयते
चाहे कुछ हो
चल जाता है
राजनीति का खेल
झूठ के बल
पांव न आँख
नहीं जा पाता झूठ
दूर तलक
झूठे साक्ष्य से
न्याय हार सकता
कभी न सत्य
सच से यदि
किसी का कटे गला
मौन ही भला
लोभ का जाल
खींच कर ले जाता
गहरे ताल
जब भी दिखे
बनारसी जलेबी
मुह में पानी
करता पार
विवेक पतवार
लोभ सिंधु से
मन की चाह
दुनिया की दौलत
हो मेरी राह
धकेल देता
मन का असंतोष
गर्त में नीचे
प्रेरणा स्रोत
सब बुराईयों का
मन का लोभ
लोभ का मारा
रस में फंस जाता
भौरा बेचारा
खींच कर ले जाता
गहरे ताल
जब भी दिखे
बनारसी जलेबी
मुह में पानी
करता पार
विवेक पतवार
लोभ सिंधु से
मन की चाह
दुनिया की दौलत
हो मेरी राह
धकेल देता
मन का असंतोष
गर्त में नीचे
प्रेरणा स्रोत
सब बुराईयों का
मन का लोभ
लोभ का मारा
रस में फंस जाता
भौरा बेचारा
लेकर जाता
रूढ़िवादी संस्कार
अँधेरी राह
अच्छे संस्कार
जीवन राह पर
शीतल छाँव
अच्छे संस्कार
जीवन बना देते
सुगम राह
रखो तो पाओ
समाज में सत्कार
अच्छे संस्कार
भटक जाता
संस्कार के बिना
इंसान राह
पास नहीं तो
मिलेगा तिरस्कार
सभ्य संस्कार
अटूट जोड़
वैवाहिक संस्कार
दो दिलों का
मनु की गति
अंतिम संस्कार के
बिना न होती
मृत्यु को भी
संस्कार बना देता
खास प्रसंग
करके बने
ये संस्कार अपने
वर्षों साधना
एक दूजे का
विज्ञानं व संस्कार
साथ जरूरी
वो रोता रहा
व मुंडन संस्कार
यूँ होता रहा
पाले हुए है
अनेक संस्कारों को
अंध विश्वास
दफ़न आज
शहीदों की मजारें
पैसे के नीचे
करती अब
दबंगई सवारी
सहादत पे
एक दायें व
एक भीगता बायें
एक ही छाता
आषाढ़ माह
फटे पुराने छाते
ठीक करा लो
स्कूल को चले
बरसाती ओढ़ के
नन्हे विद्यार्थी
मुझे भी ले लो
अपनी छतरी में
वहां तलक
भीगे सनम
वर्षा में भूले हम
छतरी लाना
मेढक कूदा
तालाब के अंदर
आई बारिश
छतरी ना दे
बड़े दिनों में आई
भीग लेने दे
कहाँ जाये वो
बस नीली छतरी
वो भी टपकी
पड़ी फुहार
चमन गुलजार
झूमता माली
भगवान का
चल पड़ा फव्वारा
कूदते बच्चे
सिंधु की बेटी
चल दी मचलती
साजन घर
उन्मत्त गिरे
सर पर झरना
रोती चट्टानें
बहे झरना
आँख कान होकर
मन भीतर
कानों में गूंजे
झरने का संगीत
मुग्ध नयन
सिंधु की बेटी
चल दी मचलती
साजन घर
उन्मत्त गिरे
सर पर झरना
रोती चट्टानें
बहे झरना
आँख कान होकर
मन भीतर
कानों में गूंजे
झरने का संगीत
मुग्ध नयन
निहारने को
मेघ हुए बेताब
चाय बागान
दयालु मेघ
छाँव पाकर खुश
चाय की पौध
चाय का पौधा
तुम्हारे होठ तो क्या
छू ले बादल
मेघों का प्यार
पर्वत शिखर को
चूम के मस्ती
हरी वादियां
झिलमिल चादर
बिछी मेघों की
करो विश्राम
पर्वतों की गोद में
बादलों आज
देख बादल
लुभाये भौरे बने
चाय बागान
प्यार किया तो
पर्वत से बादलों
झुकना होगा
कहाँ रोकता
कौवे को उड़ने से
काला हो जाना
मधुर वाणी
काली हो के भी प्यारी
कोयल रानी
विश्राम में भी
रखता काग दृष्टि
चैतन्य कागा
निगाहें कहीं
निशाना और कहीं
काग भिशुण्डी
हरी वादियां :: मेघों की बिछी झिलमिल चादर
चाय बागान देख :: भौरे बन लुभाये मेघ
चल दी मचलती
साजन घर
उन्मत्त गिरे
सर पर झरना
रोती चट्टानें
बहे झरना
आँख कान होकर
मन भीतर
कानों में गूंजे
झरने का संगीत
मुग्ध नयन
निहारने को
मेघ हुए बेताब
चाय बागान
दयालु मेघ
छाँव पाकर खुश
चाय की पौध
चाय का पौधा
तुम्हारे होठ तो क्या
छू ले बादल
मेघों का प्यार
पर्वत शिखर को
चूम के मस्ती
हरी वादियां
झिलमिल चादर
बिछी मेघों की
करो विश्राम
पर्वतों की गोद में
बादलों आज
देख बादल
लुभाये भौरे बने
चाय बागान
प्यार किया तो
पर्वत से बादलों
झुकना होगा
कहाँ रोकता
कौवे को उड़ने से
काला हो जाना
मधुर वाणी
काली हो के भी प्यारी
कोयल रानी
विश्राम में भी
रखता काग दृष्टि
चैतन्य कागा
निगाहें कहीं
निशाना और कहीं
काग भिशुण्डी
हरी वादियां :: मेघों की बिछी झिलमिल चादर
चाय बागान देख :: भौरे बन लुभाये मेघ
उर्मिला सी वक़्त पे
त्याग की मूर्ति
रूठे करे तबाह
कैकेयी सी महल
पुत्र मोह में
अंधी भई कैकेयी
वन में राम
विछोह में कौशिल्या
लिए मन में राम
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