Wednesday, 26 April 2017

Tanhai me rab dikhata hai

तन्हाई में रब दिखता है

किसी को लगता है तो लगे सजा तन्हाई।
मेरे लिए लेकर आई है, मजा तन्हाई।
लिए हूँ कबसे, किसी की मीठी सी यादें,
दिल से पूछे दर्द लेने की, रजा तन्हाई।

तन्हाई थी कि रोज रोज वो सताती रही।
दिल में बैठी हुई, दिन रात रुलाती रही।
दिल की तलाशी में मिल गया और भी कोई,
जली लौ उसकी, अंधे को डग दिखाती रही।

छोड़ जाये कोई तन्हा, है मगर गम नहीं।
दिल बहलाने को दिया उसका, कोई कम नहीं।
चाँद, तारे, बादलों से कर लेंगे, रोज बातें,
खो देंगे किसी की यादों में, मौसम नहीं।

पूछ लेंगे चिड़ियों से, जाकर उनका हाल।
रख लेंगे ला गुलों से, खुशबुएँ सम्हाल।
मौजों से मिल आएंगे, जा दरिया के पास,
इससे पहले कि  कर दें हमें यादें बेहाल।

यूँ तो यादें भुलाना, होता मुश्किल बड़ा।
तन्हाईयों में जीना, होता मुश्किल बड़ा।
कोई ना हो, तब भी होता रब का है साथ,
कर देता आसान, कोई भी मुश्किल बड़ा।

याद करने को रब, करे मजबूर तन्हाई।
कुदरत से कराती बात, भरपूर तन्हाई।
चाहे जिंदगी के शिकवे, शिकायतें, मगर,  
कर न सकती है, उसको कभी दूर तन्हाई।


सनम बनाया उसे

तन्हाईयों में मैंने, पाया उसे।
अपने जान औ दिल में, बसाया उसे।
सोया दिल में था, वो तो छुप के कहीं
झकझोर बड़ी मुश्किल, जगाया उसे।
दर्द रखे तड़पता था दिल ये निस दिन
हाल दिल का फिर अपने, बताया उसे।
मैं अकेले, तुम्हीं साथ देना मेरा
सनम अपना कह कर, बुलाया उसे।
अकेले कहाँ तू, कहा - अरे बावरे
तवज्जु कहे का नहीं, फ़रमाया उसे।
बादल, ये झरने, दिए पर्वत तुझे
दिखाया तारे, तब जान पाया उसे।
अकेलापन लगता, अब नहीं है मुझे
दिल से अपन जब मैंने, लगाया उसे।

- एस० डी० तिवारी 

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