Tuesday, 25 April 2017

Haiku May 17 umra / dard / peya


नहीं दिखता   
गर्म पानी में बिम्ब  
क्रोध में सच 

मैंने जो खाया   
कोई और लगाया 


वृक्ष का फल 

चढ़ता रवि 
एक एक कर के 
नभ की सीढ़ी  

उतरा रवि 
अँधेरे से पहले 
व्योम छत से 


पेंदी में गुड़  
टटोलता बुढ़ापा 
उम्र की हांड़ी 

सबसे प्यारे
तब थे बाबा दादी
अब हैं पोते 

हुस्न जवानी 
कितना भी गरूर 
ढल ही जानी

हो गयी पानी 
गल गल कर के 
उम्र की बर्फ 

रोज खा जाती 
खुद का एक दिन 
पापिन उम्र 

उम्र को काश 
कुछ बढ़ा सकते  
फ्रिज में रख 

संवर कर 
उम्र नहीं छुपती
झुर्री बेशक 

छुक छुकाती
आई आखिरी अड्डा  
उम्र की गाड़ी 

उम्र की शक्ल 
वैसी ही बन जाती 
जैसा हो काम

पचास हुए 
बुढ़ापे का शैशव  
प्रारम्भ हुआ  

दर्पण बन 
बुढ़ापा दिखलाता   
उम्र का चित्र 

******
मिल ही जाते 
दुश्मन और दर्द 
बिना ही मांगे 

वक्त के साथ 
भर जाता है दर्द 
सीख देकर  

कुछ न कुछ  
गुर सिखा जाता है 
आकर दर्द 

धुल जाता है 
किसी को हँसाकर  
खुद का दर्द 

लिख सकता 
दर्द को कौन भला  
कागज पर 

मिलता मुफ्त 
भगाने में लगता   
दर्द को दाम  

दवा लगता 
किसी से पूछ लेना 
उसका दर्द  

व्यर्थ में नहीं 
धोने हेतु बहता   
दर्द को आंसू 

अपना दर्द 
अपनों से कह के 
बढ़ाया और 

रात ज्यों सोती  / जागी क्या रात 
जाग खड़ा हो जाता / गया  
दर्द बेदर्द 

अकेलापन 
देता दर्द में जोड़  
दर्द का बोझ 

दिन से ज्यादा 
मुआ रात सताता 
कोई भी दर्द 

वक्त के साथ 
भरता चला जाता 
कैसा भी घाव 

दर्द के बिना 
कठिन समझना 
ख़ुशी के पल 

वैद बुलाऊँ
या उनको मनाऊं  
दिल का दर्द

हमने खाया   
कोई और लगाया 
वृक्ष का फल 

फलों की मंडी  
आते ही सज गयी   
फलों का राजा  

खिल उठता 
दिल जब देखता 
हँसते फूल 

नशा से जल्दी 
बेहोश कर देता  
धन का मद 

उसका नाम 
कितना भी पी जाओ 
होगा न कम  

नहीं दिखता   
गर्म पानी में बिम्ब  
क्रोध में सच 


****************

कितना भोला 
बचपन में होता 
चाँद को रोता

मिलती कभी  
जवानी में तन्हाई 
चाँद को रोता 

झड़ते बाल 
बुढ़ापे में सिर से 
चाँद को रोता 

*****

सागर प्यासा 
सरिता के जल का 
नदी वर्षा  की   

चल दी नदी  
पी सिंधु से मिलने 
सावन मास 

लेकर चली 
सागर को पिलाने 
सरि सलिल 

हो के विकल 
पर्वतों से निकल 
चल दी नदी

प्यास बुझाने 
नदी निहारे मेघ 
मैं पी की राह 

हर्षित सिंधु 
सरि से होगी भेंट  
आ गए मेघ  

सागर प्यासा 
सरिता के जल का 
नदी वर्षा की  

चल दी नदी  
पी सिंधु से मिलने 
सावन मास 

लेकर चली 
सागर को पिलाने 
सरि सलिल 




जमाता रंग 
होकर जल जीरा    
पुदीना संग 


पौष्टिक पूर
नारियल पानी से 
मोटापा दूर 

मन हो तर 
गर्मियों में पीकर 
गर्मी के पेय 

दिवस गर्म 
मांगे दिल बेशर्म 
पीने को ठंडा  

गन्ने का रस 
गिलास भर बस !  
हुई न तृप्ति 

घड़ा बुलाता 
घुंघरू बजाकर 
बेल का रस 

जगी तमन्ना 
गर्मियों में पीने की 
आम का पन्ना   

गर्मी का दौर 
दिल मांगता और 
शीतल पेय 

जमाता रंग 
होकर जल जीरा    
पुदीना संग 

नाश्ता में साथ 
एक गिलास छाछ 
हो तो क्या बात 

मजेदार जी  
गर्मी से दे राहत  
नीबू शिकंजी 

है सर्वोत्तम 
गर्मी में ज्यादा पानी 
भोजन कम 

खिल उठता 
दिल जब देखता 
हँसते फूल 


पूछता - तू है 
किसका भगवान
बंटा  इंसान 

ईमान बेच 
कितना आसान था 
पैसे कमाना

नहीं चाहिए 
खुद को दिखाने को 
किसी का मंच 

मुफ्त में मिला  
बेशक अनमोल 
पाता ना मोल 

उतार देता 
सत्गुरु का संगत 
माया का नशा 

कोई न जाने 
कब किसका भाग्य 
सोये से जागे





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