नहीं दिखता
गर्म पानी में बिम्ब
क्रोध में सच
मैंने जो खाया
कोई और लगाया
गर्म पानी में बिम्ब
क्रोध में सच
मैंने जो खाया
कोई और लगाया
वृक्ष का फल
चढ़ता रवि
एक एक कर के
नभ की सीढ़ी
उतरा रवि
अँधेरे से पहले
व्योम छत से
पेंदी में गुड़
टटोलता बुढ़ापा
उम्र की हांड़ी
टटोलता बुढ़ापा
उम्र की हांड़ी
सबसे प्यारे
तब थे बाबा दादी
अब हैं पोते
हुस्न जवानी
कितना भी गरूर
ढल ही जानी
हो गयी पानी
गल गल कर के
उम्र की बर्फ
रोज खा जाती
खुद का एक दिन
पापिन उम्र
उम्र को काश
कुछ बढ़ा सकते
फ्रिज में रख
संवर कर
उम्र नहीं छुपती
झुर्री बेशक
छुक छुकाती
आई आखिरी अड्डा
उम्र की गाड़ी
उम्र की शक्ल
वैसी ही बन जाती
जैसा हो काम
पचास हुए
बुढ़ापे का शैशव
प्रारम्भ हुआ
दर्पण बन
बुढ़ापा दिखलाता
उम्र का चित्र
******
मिल ही जाते
दुश्मन और दर्द
बिना ही मांगे
वक्त के साथ
भर जाता है दर्द
सीख देकर
कुछ न कुछ
गुर सिखा जाता है
आकर दर्द
धुल जाता है
किसी को हँसाकर
खुद का दर्द
लिख सकता
दर्द को कौन भला
कागज पर
मिलता मुफ्त
भगाने में लगता
दर्द को दाम
दुश्मन और दर्द
बिना ही मांगे
वक्त के साथ
भर जाता है दर्द
सीख देकर
कुछ न कुछ
गुर सिखा जाता है
आकर दर्द
धुल जाता है
किसी को हँसाकर
खुद का दर्द
लिख सकता
दर्द को कौन भला
कागज पर
मिलता मुफ्त
भगाने में लगता
दर्द को दाम
दवा लगता
किसी से पूछ लेना
उसका दर्द
व्यर्थ में नहीं
धोने हेतु बहता
दर्द को आंसू
अपना दर्द
अपनों से कह के
बढ़ाया और
रात ज्यों सोती / जागी क्या रात
जाग खड़ा हो जाता / गया
दर्द बेदर्द
अकेलापन
देता दर्द में जोड़
दर्द का बोझ
देता दर्द में जोड़
दर्द का बोझ
दिन से ज्यादा
मुआ रात सताता
कोई भी दर्द
वक्त के साथ
भरता चला जाता
कैसा भी घाव
दर्द के बिना
कठिन समझना
ख़ुशी के पल
वैद बुलाऊँ
या उनको मनाऊं
दिल का दर्द
कोई और लगाया
वृक्ष का फल
फलों की मंडी
आते ही सज गयी
फलों का राजा
खिल उठता
दिल जब देखता
हँसते फूल
नशा से जल्दी
बेहोश कर देता
धन का मद
उसका नाम
कितना भी पी जाओ
होगा न कम
नहीं दिखता
गर्म पानी में बिम्ब
क्रोध में सच
****************
कितना भोला
बचपन में होता
चाँद को रोता
मिलती कभी
जवानी में तन्हाई
चाँद को रोता
झड़ते बाल
बुढ़ापे में सिर से
चाँद को रोता
*****
सागर प्यासा
सरिता के जल का
नदी वर्षा की
चल दी नदी
पी सिंधु से मिलने
सावन मास
लेकर चली
सागर को पिलाने
सरि सलिल
हो के विकल
पर्वतों से निकल
चल दी नदी
प्यास बुझाने
नदी निहारे मेघ
मैं पी की राह
हर्षित सिंधु
सरि से होगी भेंट
आ गए मेघ
सरिता के जल का
नदी वर्षा की
चल दी नदी
पी सिंधु से मिलने
सावन मास
लेकर चली
सागर को पिलाने
सरि सलिल
जमाता रंग
होकर जल जीरा
पुदीना संग
पौष्टिक पूर
नारियल पानी से
मोटापा दूर
मन हो तर
गर्मियों में पीकर
गर्मी के पेय
दिवस गर्म
मांगे दिल बेशर्म
पीने को ठंडा
गन्ने का रस
गिलास भर बस !
हुई न तृप्ति
घड़ा बुलाता
घुंघरू बजाकर
बेल का रस
जगी तमन्ना
गर्मियों में पीने की
आम का पन्ना
गर्मी का दौर
दिल मांगता और
शीतल पेय
जमाता रंग
होकर जल जीरा
पुदीना संग
नाश्ता में साथ
एक गिलास छाछ
हो तो क्या बात
मजेदार जी
गर्मी से दे राहत
नीबू शिकंजी
है सर्वोत्तम
गर्मी में ज्यादा पानी
भोजन कम
पूछता - तू है
किसका भगवान
बंटा इंसान
ईमान बेच
कितना आसान था
पैसे कमाना
नहीं चाहिए
खुद को दिखाने को
किसी का मंच
मुफ्त में मिला
बेशक अनमोल
पाता ना मोल
उतार देता
सत्गुरु का संगत
माया का नशा
कोई न जाने
कब किसका भाग्य
सोये से जागे
होकर जल जीरा
पुदीना संग
नाश्ता में साथ
एक गिलास छाछ
हो तो क्या बात
मजेदार जी
गर्मी से दे राहत
नीबू शिकंजी
है सर्वोत्तम
गर्मी में ज्यादा पानी
भोजन कम
खिल उठता
दिल जब देखता
हँसते फूल
पूछता - तू है
किसका भगवान
बंटा इंसान
ईमान बेच
कितना आसान था
पैसे कमाना
नहीं चाहिए
खुद को दिखाने को
किसी का मंच
मुफ्त में मिला
बेशक अनमोल
पाता ना मोल
उतार देता
सत्गुरु का संगत
माया का नशा
कोई न जाने
कब किसका भाग्य
सोये से जागे
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