Wednesday, 5 April 2017

Mai aur wo haiku


उसका घर
मेरे से बड़ा पर
रहता यहीं

बंद बेशक
मुझको ही देखतीं
ऑंखें उसकी

वही है बस
हर कदम पर
साथ चलता


पता है उसे
मेरी इच्छाएं क्या हैं
फिर मांगूं क्यों

मुझे क्या चिंता
वो खुद ही करेगा
मेरी भी चिंता

उसका ध्यान
मैं नित करता हूँ
और वो मेरा 


उसके सिवा
रोज ले आये दिवा
कौन है और

बैठा ऊपर
सुन लेता है पर
दिल की बात


हमारा साथ
तेरी मेरी जिंदगी
उसी के हाथ

उसी की इच्छा
नहीं तो हिलता ना
एक भी पत्ता

जग सराय 
बिता के कुछ पल 
वापस जाना 

आये अकेले 
चार जने हैं साथ  
विदा को चले 

वायु गगन 
जल ज्वाला व माटी 
बना ये तन 


मिटटी से पाया  
इतनी बड़ी काया 
वहीँ समानी

आये थे चल 
सिर के बल, जाना 
कंधे पे चढ़ 

उसके सिवा
पार करे जो बेडा    
कौन है मेरा  

उसका नाम 
कितना भी पी जाओ 
होगा न कम  

प्रभु ले हर
क्रोध लोभ गरूर
मन के सब

हम बालक
तुम ही हो पालक
रखना ध्यान

सिवा तुम्हारे
कोई नहीं अपना
पार लगा रे

याचक बन
तेरे द्वार पे हम
देना सत्कर्म

मैं हूँ अज्ञानी
किया जो बचकानी
क्षमा करना

 रखना तुम
वासनाओं से दूर
मन को स्वच्छ

सबसे पूछा
बताये जो ना मिला
उसका पता

उसके बिना
कौन है देने वाला
एक भी सांस

मन से उसे
करते जो स्मरण
लेता शरण

मैंने तो माँगा
चरणों में जगह
दे दी दुनिया

आती उसे तो
काँप जाती धरती
जरा सी छींक

जानता बस
कल क्या होने वाला
ऊपर वाला

होती जिसपे
गणपति की कृपा
काम निर्विघ्न

उसके लिए 
पूरी धरती बस 
छोटी सी गेंद 

उसका नाम 
कितना भी पी जाओ 
होगा न कम  

No comments:

Post a Comment