Friday, 7 April 2017

Aspatal ki chal

अस्पताल का बिल 

एक बार, 
मग्गू हुआ बड़ा तेज बीमार।
उसका बेटा और एक रिश्तेदार,
देखकर सरकारी अपस्पताल की चाल
और लम्बी कतार,
पहुंचे एक निजी अस्पताल।

जाते ही नर्सों ने घेर लिया,
ग्लूकोस का इंजेक्शन पेश दिया।
फिर डॉक्टर को बुलाया गया,
मरीज को हिलाया डुलाया गया,
मगर वह बहुत कराह रहा था,
दर्द से आराम चाह रहा था।

डॉक्टर ने पूछा, मरीज क्या करता है?
कितना आयकर भरता है ?
डॉक्टर साहब! इन्हें सीने में दर्द है,
आप काम पूछ रहे, न कि क्या मर्ज है!
नर्स ने समझाया,
बेटे के दिमाग में घुसाया,
आय के हिसाब से इलाज करना पड़ता है।
पैसे वालों से डरना पड़ता है।
अगर, उनका नहीं हुआ ज्यादा खर्च,
तो कहते हैं, डॉक्टर नहीं पकड़ पाया मर्ज।

डॉक्टर ने फिर पूछा,
मरीज के पिता को भी यही रोग था?
हाँ, पर उससे क्या वास्ता?
इलाज तो इनका करना है,
और बिल मुझे भरना है।
नर्स, फिर से अपना मुंह खोली।
पास आकर कान में बोली,
सही जगह आ गए, तुम्हारी तकदीर है,
बीमारी गंभीर है।
इस रोग के डॉक्टर साहब विशेषज्ञ हैं
इनसे बड़ा कोई नहीं प्रज्ञ है।
तीन पीढ़ी तक की जान जाते हैं।
पिता के पिता को भी यही रहा होगा,
रोग पहचान जाते हैं।
फिर डॉक्टर ने जाँच लिख दिया,
एक-दो नहीं, पूरे पांच लिख दिया।

अस्पताल में जितनी मशीनें लगी थीं,
उन पर कोई न कोई जाँच लाजमी थी।
जाँच के बाद रिपोर्ट आई,
डॉक्टर ने देखकर अफ़सोस जताई। 
जल्दी से ऑपरेशन करना पड़ेगा,
गार्डियन कौन है फॉर्म भरना पड़ेगा।
हस्ताक्षर करो 'मरेगा तो हमारी जिम्मेदारी होगी,
बिल भरने में नहीं कोताही होगी।'
पर डाक्टर जी, ऑपरेशन तो आप करेंगे,
हस्ताक्षर हम क्यों करेंगे ?

फिर नर्स ने एक ओर बुलाया,
अबकी रिश्तेदार को प्यार  से समझाया।
अस्पताल का यही कायदा होता है।
जो लेकर आता है, उसका जिम्मा होता है।
यह तो एक खाना पूर्ति होती है।
जरूरी थोड़े है, मौत ही होती है।

मरता क्या न करता,
मरीज को वापस ले जाता या फॉर्म भरता।
अस्पताल के दो सहायक आये,
मरीज को स्ट्रेचर पर उठाये,
थिएटर में ले जाकर धर दिया।
मग्गू देख कर डर गया।
पांच छः डॉक्टर घेरे हुए थे,
मग्गू की ओर नजर टेरे हुए थे।
मग्गू बड़ा असमंजस में था। 
ये क्या कर डालेंगे, कुछ नहीं पता। 

नर्स भी औंजार लेकर आ गई,
मग्गू को सारी बात बता गयी।
ऑपरेशन में डॉक्टरों की टीम होती है
ऑपरेशन के साथ नर्सिंग भी होती है।
एक तुम्हें बेहोश करेगा,
एक तुम्हारे शुगर को रोकेगा,
एक साँसों को देखता रहेगा,
एक ओपरेशन करेगा।
एक डॉक्टर साहब का जूनियर है
असिस्ट करेगा और सीखेगा।
एक ट्रांस्क्रिपशन  वाला है,
ऑपरेशन के बारे में प्रलेख लिखेगा।
सबकी अपनी अपनी फीस होती है।
छूटते वक्त, बिल में जोड़ कर दी होती है।
मग्गू तो इतने में बेहोश हो गया था।
आहार विशेषज्ञ अभी रह गया था।
फिर भी बेहोशी की दवा दी गयी।
ऑपरेशन सावधानी पूर्वक की गयी।
पहले गहन चिकित्सा कक्ष में रखा गया।
फिर निजी वार्ड में भेजा गया।
उसके बाद लगा, मिलने वालों का ताँता,
एक बार में एक ही अंदर जाता।
एक जाता, दूसरा पास के लिए खड़ा होता।
गेट पर सिक्योरिटी वाला अड़ा होता।
मग्गू ठीक हुआ, अस्पताल ने बिल दिया।
देखने वालों का दिल हिल गया।
अभी तो बख्शीश वालों के नखरे थे,
एम्बुलेंस के भी कुछ खरचे थे।




शिक्षा है संविधान में, सबका ही अधिकार।
कुछ लोगों के हाथ का, पर शिक्षा व्यापार।
पर शिक्षा व्यापार, निर्धन कैसे पढ़ पाए।
हरेक कहाँ समान, पढ़ने का अवसर पाए।
अधिकार भी देती, सरकार, जैसे कि भिक्षा।
जब कि है ये जिम्मा, देना मुफ्त में शिक्षा।



मरीज से पहले आय, फिर पूछें बीमारी। 
जेब कतरने की शुरू, तुरत ही तैयारी। 
तुरत ही तैयारी, कराओ महँगी जाँच।
पैसे के लिए अस्पताल नचाते नाच।
थोड़ी दवाई में ही, हो जाता है ठीक।
अपनी जेब को खाली, होते देख मरीज।

No comments:

Post a Comment