Wednesday, 4 February 2015

Tere bina tanka

सिंच न पाये
फूलों ने छोड़ दिया
महकना भी
मुरझाये पड़े हैं
निर्जल तेरे बिना

उस उद्यान
जब भी जाता हूँ
देखता खाली
बेंच पे एक पक्षी
अकेला तेरे बिना

सूना रहता
पक्षियों के बिना वो
पार्क का पेड़
लुप्त हुई उनकी
चहक तेरे बिना

ठण्ड की रात
फूल और पत्तों पे
गिरते आंसू
अम्बर रोया होगा
उदास तेरे बिना

पूरी न होती
तेरे बिना कोई भी
कविता मेरी
आँखों में बसे बिना
होंठों को छुए बिना

No comments:

Post a Comment