Sunday, 22 February 2015

Holi ke rang haiku / muktak

Holi ke रंग


होली के दिन,
 
भू पर छाई 
रंगों की गहराई 
होली  के दिन 

छनेगा पुआ
खाएंगे सब मिल
होली के दिन

बने जोकर
मालिक व नौकर
होली के दिन

बच्चों ने तानी 
बड़ों पे पिचकारी
होली के दिन 

मिले दो गले 
बीती रंजिशें भूले 
होली के दिन 

निकली टोली 
जाएगी टोला टोला 
होली के दिन

खान पठान 
दुबके घर बैठे, 
होली के दिन,

विधवा नारी 
रही कोरी ही साड़ी
होली के दिन 

***************


रहा मलाल
नहीं मला गुलाल
गोरी के गाल 

मला गुलाल
गोरी का मुंह लाल
मेरा कमाल

माँ ने रख दी
पप्पू की पिचकारी
अगली होली

खेलेगी होली 
नई पिचकारी से
जिद्द में डोली 




आने न पाई
प्रह्लाद पर आंच
दग्ध होलिका


चारु चमन
चमकता जुगनू
चिढ़ता चांद


प्रकृति

बौराये आम
बिखरते विलोक
होली के रंग

रंगी धरा की
धानी पीली चुनरी
होली के रंग

उड़े गुलाल
रंगे हवा के अंग
होली के रंग

धरा मुस्काई
भिगो दिया बसंत 
होली के रंग

बच्चों ने मारी
भर के पिचकारी
होली के रंग

छूकर हिया
जगाई सोई याद
बसंती हवा

परंपरा

छनेगी भंग
खेल लेने के बाद 
होली के रंग

जीभ की पुआ
जीवन की मिठास
होली के रंग

कल खेलेंगे
आज जला होलिका
होली के रंग




रिश्ते

देवर भीगा
ननद की है बारी
होली के रंग

भिगो डालूंगी
ननद देवर को
होली के रंग

भरे उमंग
बच्चे बूढ़े जवान
होली के रंग

रंग बिरंगी
सज चली धरती
होली के रंग

रंगी ननद
अब देवर की बारी
होली के रंग

डाल के साली
जीजा को रंग डाली
होली के रंग


भाव / रस

गिरे टब में
खुद जो भर रखे
होली के रंग

छोड़ूँ ना पिया
भिगोऊँगी मैं अंग
होली के रंग

कल जो लड़े
ले बच्चे आज संग
होली के रंग

डालूंगी अंग
आएगा जो समीप
होली के रंग

सूरत हुई
रंग के डरावनी
होली के रंग

क्रोध न करो
ये तो है प्रेम भरा
होली के रंग

छूना न लगा
मोरी कोरी चुनर
होली के रंग

मले गुलाल
गाल हो गए लाल
होली के रंग

घर अकेली
कोई न भाये सखी! 
होली के रंग

होली में फीके  -
पिया है परदेश
होली के रंग

भाये ना मन
पिया है सीमा पर
होली के रंग


उमंग

भांग का गोला
खा के खेलने डोला
होली के रंग

रंगीं पतंग
रंग के उड़े मन
होली के रंग

चुनरी संग
भीगी अंगिया सारी
होली के रंग

गाती बजाती
चली खेलने टोली
होली के रंग

होली पे खेलें
बच्चे बूढ़े जवान
होली के रंग



दैविक

कान्हा के हाथ
कनक पिचसखि कारी
होली के रंग

कान्हा ने डाला
भीगे राधा के अंग
होली के रंग

लिए उमंग
खेल रहीं गोपियाँ
होली के रंग

श्याम ना संग
भाये ना राधिका को
होली के रंग

डालो न श्याम
भीगे अंगिया सारी
होली के रंग

कान्हा ने डाला
भीगे राधा के अंग
होली के रंग

लिए उमंग
खेल रहीं गोपियाँ
होली के रंग

कर न मोसे
बरजोरी कन्हैया
हाथों ले रंग


***

राधा ने डारी
कान्हा पे पिचकारी
रंगों में डूब

खेलूंगी होली
सखि री मैं भी खूब
रंगों में डूब

फागुन मास
उठे मन तरंग
रंगों में डूब

बरसाने में
नर नारी की धूम
रंगों में डूब

खाय रहे हैं
गुजिया आलू चिप्स
रंगों में डूब

बुढऊ बैठे
जोह रहे सबको
रंगों में डूब

खेलूंगी आज
मैं पिया संग होली
रंगो में डूब

***

ढोल मजीरा
ले के बजाती चली
होली की टोली

संग ले आया
देवरा बदमाश
होली की टोली

और तो और
बच्चे भी चले बना
होली की टोली

दुबकी साली
जीजा संग आ रही
होली की टोली

जुमी द्वार पे
खेलन को री होली
होली की टोली

किसके द्वारे
जाके छानेगी भांग
होली की टोली

नहीं अघात
फगुआ गावत से
होली की टोली

फूलों से रंग
पृथ्वी बनी रंगोली
ऋतु बसंत

***

गेंदा गुलाब
टेसू के फूल फूले
होली आई रे

फूल फूल पे
डोले आवारा भौंरे
होली आई रे

अब तो आ जा
फागुन बीता जाय
होली आई रे

खेलूंगी होली
मैं पिया संग आज
होली आई रे

उड़े गुलाल
बादल हुए लाल
होली आई रे

जोगिया गाये
जोगीरा सररर
होली आई रे

खेले ब्रज में
राधा से होली कान्हा
होली आई रे

करे राधा से
बरजोरी कन्हैया
होली आई रे

कली मुस्काय
भ्रमर मडराय
होली आई रे

आम बौराय
खेतवा गदराय
होली आई रे

विधवा नारी
कोरी ही रही साड़ी
होली आई रे

ली अंगड़ाई
सूरज आँखे खोल
होली आई रे

बजे मजीरा
झाल मृदंग ढोल
होली आई रे

भू पर छाई
रंगों की गहराई
होली आई रे

बच्चों ने तानी
बड़ों पे पिचकारी
होली आई रे

जमाये फ़ाग
जुम्मन जग्गू जॉन
होली आई रे

होली के दिन
ली पिचकारी तान
होली आई रे

जम के खेलीं
जूही जमालो जूली
होली आई रे

होली के दिन
बीती रंजिशें भूली
होली आई रे

***

होली के दिन
जान न पहचान
रंग की घान

होली के दिन
छानता मालपुआ
होत बिहान

होली के दिन
पुराने परिधान
धारे प्रधान

होली के दिन
गुजिया आलू चिप्स
सबके धाम

होली के दिन
दुबक घर बैठे
खान पठान

होली के दिन
निकले टोली बना
गिरीश ज्ञान

होली के दिन
सताओ न किसी को
रखना भान

  *****

करती चली
होली की हुड़दंग
मस्तों की टोली

रंग रंजित 
चली रंगीन चाल 
मस्तों की टोली

उड़ाती चली
हवाओं में गुलाल
मस्तों की टोली

बजाती चली
ढोल मजीरा झाल
मस्तों की टोली

रंगों में भीगी
हरे बैगनी लाल
मस्तों की टोली

जो कोई आता  
लेती रंग में ढाल 
मस्तों की टोली
 
खेल के होली
हाल हुआ बेहाल
मस्तों की टोली

मस्ती में डूबी
उमंगें उतराती
मस्तों की टोली

*************

होली पे पत्नी
मन लिए उदासी
पति सीमा पे

छीना उमंग
पति दूर रह के
होली बेरंग

नहीं चढ़ाई
माँ पुआ की कड़ाही
बेटा सीमा पे

अबकी होली
गोरी यादों में खेली
पति सीमा पे

मन को मार
बनाई माँ गुजिया
लाल सीमा पे

होली की भोर
टेलीफोन की घंटी
बेटा सीमा पे

रहा मलाल
नहीं मला गुलाल
पिऊ सीमा पे

क्या बना घर
होली पे ले खबर
फौजी को सब्र

छना न घर
अबकी मालपुआ
सुत सीमा पे


अबकी बार
रंग डालूँ हजार
आया वो छुट्टी

सूनी कलाई
राखी देर से आई
भाई सीमा पे

आने न पाई
प्रह्लाद पर आंच
दग्ध होलिका

कर्ज खाकर
छोटे तो जाते जेल
मोटे विदेश

बैंक की लूट
बना देती आसान
मिली भगत

चारु चमन
चमकता जुगनू
चिढ़ता चांद

चाव से खाया
गुजिया में भर के
नकली मावा

हुआ झगड़ा
प्रकाश की पिटाई
होली मनाई

उदास बैठा
किस बात की सजा
सोच में पंछी

बुढ़ापे के दिन
बचपन के दिन
सास के दिन
बहु के दिन
jawani के दिन
छात्र के दिन

कुत्ते की roti








प्रकृति


धरती को रंगने लेकर आया बसंत, होली के रंग। 
चहुँ ओर उड़े गुलाल रंगे हवा के अंग, होली के रंग। 
टेसू फूले, अमवा बौराये, महक उठे वन उपवन,
चुराने उमड़े गुन गुन करते मकरंद, होली के रंग। 

धरती की हो गयी लाल पीली धानी चुनरी
देख बौराये आम, पिए बिन भंग, होली के रंग

परंपरा

कल खेलेंगे, जली होलिका आज, होली के रंग
छनेगी भांग, खेल लेने के पश्चात, होली के रंग
गाते बजाते चलेगी टोली, करते मस्ती, हुड़दंग
जीभ की गुजिया, जीवन की मिठास, होली के रंग


रिश्ते

देवर भीगा, अब ननद की है बारी, होली के रंग
डाल के साली, जीजा को रंग डारी, होली के रंग
खेलूंगी होली इस बार पिया से रंगो में मैं भीग  
चुनरी संग भीगी अंगिया सारी, होली के रंग


भाव / रस

गिरे टब में, खुद जो भर रखे, होली के रंग
आज संग बच्चे, ले, कल जो लड़े, होली के रंग
सूरत छैला की रंग के हो गयी डरावनी बड़ी
क्रोध की क्या बात, प्रेम से भरे, होली के रंग


होली पे खेलने जुटीं सहेली, होली के रंग
कोई न भाये, घर पे अकेली, होली के रंग
भाये ना मन कोई भी रंग, पिया परदेश
फीका लागे, इस बार पहेली, होली के रंग


उमंग

भांग का गोला, खा के खेलने डोला, होली के रंग
गाती बजाती टोली चली उस टोला, होली के रंग
उमंग भरे बच्चे, बूढ़े, जवान निकले सीना तान
सतरंगी रंगा, आज सबका चोला, होली के रंग


करती चली, होली की हुड़दंग, मस्तों की टोली
सिर से पैर, रंजित चली रंग, मस्तों की टोली
रंगती सबको, उड़ाती चली हवाओं में गुलाल,
बजाती, झाल, मजीरा मृदंग, मस्तों की टोली


दैविक

कान्हा के हाथ कनक पिचकारी, होली के रंग
लगाकर निशाना राधा पे मारी, होली के रंग
भाये न रंग, कान्हा से होकर तंग, राधा पुकारी
डालो न श्याम, भीगे अंगिया सारी, होली के रंग

राधा ने मारी, कान्हा पे पिचकारी, रंगों में डूब
खेलूंगी होली, तोसे मैं भी सखा री, रंगों में डूब
फागुन मास, मन हो गया मतवाला सभी का
खेलत होली, बरसाने में नर नारी, रंगों में डूब


***


जान न पहचान, रंगों की घान, होली के दिन,
छानता मालपुआ, होत बिहान, होली के दिन,
भोला डोला, दिन भर ढूंढता, भांग का गोला,
पहन के निकला पुराने परिधान, होली के दिन,


दुबकी साली, जीजा संग आ रही, होली की टोली
जुमी द्वार चिप्स गुजिया खा रही, होली की टोली
पता नहीं रंगो में डूबा, चेहरे के पीछे कौन छुपा
नहीं अघात फगुआ, चैता गा रही, होली की टोली

***

गेंदा गुलाब टेसू के फूल फूले होली आई रे
फूल फूल पे डोले आवारा भौंरे होली आई रे
अब तो आ जा फागुन बीता जाय होली आई रे

खेलूंगी होली
मैं पिया संग आज
होली आई रे

उड़े गुलाल 
बादल हुए लाल 
होली आई रे

जोगिया गाये
जोगीरा सररर
होली आई रे

खेले ब्रज में
राधा से होली कान्हा
होली आई रे

करे राधा से
बरजोरी कन्हैया
होली आई रे

कली मुस्काय 
भ्रमर मडराय 
होली आई रे

आम बौराय 
खेतवा गदराय 
होली आई रे

ली अंगड़ाई
सूरज आँखे खोल
होली आई रे

बजे मजीरा
झाल मृदंग ढोल
होली आई रे

जमाये फ़ाग
जुम्मन जग्गू जॉन
होली आई रे

होली के दिन
ली पिचकारी तान
होली आई रे

जम के खेलीं
जूही जमालो जूली
होली आई रे


***

Friday, 20 February 2015

Varsha ritu haiku

मित्रों, सदस्यों, माननीय कवियों

हाइकू लिखने का अगला विषय है ' वर्षा ऋतु'. 21.२.२०१५ से २५.२.२०१५ तक वर्षा ऋतु से सम्बंधित भाव, विचार, बिम्ब,दृश्य जिसमे  बादल, मेघ, घटा, सावन, वर्षा , बरसात आदि  सभी सम्मिलित हैं, पर हाइकू लिखना है. मेरे लिखे दो हाइकू उदहारण   स्वरुप निम्न हैं

झूम उठते
देखकर बादल
मोर किसान

घेर ली घटा
ज्यों घर से निकले
सावन माह

बूंदों की झड़ी
पपीहा ताके प्यासा
स्वाति की बूँद

बादल देख
कुम्भकार चिंतित
किसान मग्न

चले जा रहे
ऊपर से बादल
मैं जोहूं वाट

घुमड़ी घटा
उमड़ी बच्चा टोली
भीगने का जी

लगाया पौधा
वर्षों पश्चात मिला
आम का फल

खे रहे नाव
कागज की बना के
गड्ढे में बच्चे

धरा की आस
बुझाने हेतु प्यास
ताके मेघ को

तेज बारिश
स्कूल की हुई छुट्टी
बच्चों की मौज

दौड़ा बालक
बिछली से होकर
गिरा धड़ाम

पानी बटोर
बरसात का नदी
सिंधु की ओर

वर्षा बेहाल
हो गया उतावला
गांव का ताल

बूंदे टपका
बादलों ने बजाया
जल तरंग

मनवा झूले
सावन की फुहार
पेड़ों पे झूले

मंद हो जाता
जब घेरती घटा
सूर्य का तेज

दहाड़ कर
झगड़ते बादल
नभ में शोर

बरसा पानी
भर गयी गड़ही
चुई मड़ई

दिखाई देतीं
खेतों में बस मेड़ें
सावन भादों

तेज बारिश
सम्पूर्ण शहर की
मुफ्त धुलाई

बूंदों की चोट
गिर पड़ी फसल
हो के बेहोश

वर्षा के बाद
पेड़ों से बरसात
हवा का झोंका

चींटा खे रहा
बरसात के बाद
मुन्ने की नाव

दादुर मोर
बरसात की ख़ुशी
मचाते शोर

बोरे का गेहूं
रखे ही जाम गया
टपकी छत

छप्पर तले
खिसकती खटिया
छत में छेद


भिगो तो दूंगा
देना होगा मुझे ही
सूखे वस्त्र भी

आता सावन
विरहन के मन
लगाता आग

बुढऊ बाबा
चले खेत की ओर 
तान के छाता 



Monday, 16 February 2015

Hindi haiku - samay

ये जिंदगानी
समय सरिता में
बहता पानी

छूट जाती जो
वक्त से न पहुंचे
उनकी गाड़ी

शीघ्र जो सोते  
समय से उठते
स्वस्थ रहते

पंख पा जाते
मित्रों का साथ पा के
अपने पल

थोड़ा बिलम्ब
दुर्घटना से रक्षा
अधिक अच्छा

नहीं करता
इंतजार किसी का
समय कभी

जगो ना जगो
सूरज जग जाता
समय से ही

निकाल लेते
व्यस्तता में भी वक्त
औरों को भले

व्यतीत किया
आनंद में समय
नहीं है व्यर्थ

दृढ  संकल्प
कर देती सरल
कठिन घडी

व्यर्थ ना बहे
समय सरिता में
जीवन रत्न

चाह कर भी
पकड़ नहीं पाते
ख़ुशी के पल

देख लेता है
कितना भी छुपाएँ
हमें समय

समय होता
सबसे बड़ा गुरु
सदा सिखाता

बड़ा हो जाता
संकट का समय
पड़े अकेले

ऊसकी बारी
आरक्षण पंक्ति में
बहुत पीछे

परीक्षा ख़त्म
परिणाम के लिये
अभी प्रतीक्षा

रिपोर्ट लेने
कल सुबह आना
खून की जांच

फल आएगा
आम के वृक्ष पर
छ वर्ष बाद

सड जायेगा
ना खाया यह केला
परसों तक

खत्म ना होते
टी वी धारावाहिक
अनेकों वर्ष

Thursday, 12 February 2015

Hindi haiku - aya basant



हटा पहरा
छंट गया कोहरा
आया बसंत


कोहरा छंटा 
खिली धरा की छटा
आया बसंत

धानी चुनर
पृथ्वी ओढ़ी सुघर
आया बसंत

सज के बैठी
धरती फूलों लदी
आया बसंत

जुटी बहारे
स्वागत करने को
आया बसंत

फूलों की गंध 
किये मन मलंग 
आया बसंत

ऋतु महंत 
ठिठुरन का अंत
आया बसंत

आम बौराये 
भ्रमर मंडराये 
आया बसंत 

मन बहका 
पंछी दल चहका 
आया बसंत

प्रफुल्ल मन
पुष्पित उपवन 
आया बसंत

फागुन मास
खिले वन पलाश 
आया बसंत 

वृक्षों पे नव 
अंकुरित पल्लव
आया बसंत

धरा उड़ाती
पीली धानी चुनरी
आया बसंत

कोयल गाती
तितली बलखाती
आया बसंत

हुई बसंती
धरा पीताम्बर में
आया बसंत

सरसों फूले
फूलों पे भौरे झूमे
आया बसंत

पृथ्वी के अंग
रंगे फूलों के रंग
आया बसंत

प्रेमी युगल
देखे छटा निकल
आया बसंत

अलि कोकिला 
कुहुकें सुर मिला 
आया बसंत

अलि के भाग 
पाया ढेर पराग 
आया बसंत 

ऋतु के रंग
रंगा बसंती मन 
आया बसंत

बागों में प्रेमी
फूल भौरों के संग
आया बसंत

बागों में बौर
बने भौरों के ठौर
आया बसंत

कृषक मन 
खिला सरसों संग
आया बसंत



दो दो गायक 
कोयल और तोता 
मात्र मैं श्रोता 

शीत भी नीक 
इसी बहाने आया 
निकट मीत 

 ****

बसंती हवा (हाइकु) - १ 

पुष्पों को चूम 
चली नाचती झूम   
बसंती हवा 

आली रे आली 
लेकर हरियाली 
बसंती हवा 

कली मुस्काई 
ज्यों आ के सहलाई 
बसंती हवा 

छूकर फूल 
सुरभित समूल 
बसंती हवा

पंख पसार 
तितलियाँ तैयार 
बसंती हवा 

गाते भ्रमर
उड़ो ठहरकर 
बसंती हवा

बजाते ताली
पात पेड़ों की डाली
बसंती हवा

फूल खिलाती 
फूलों को छेड़ जाती 
बसंती हवा 

पुष्प महके 
सूंघ पक्षी चहके 
बसंती हवा 

रही निहार  
घूम भू का श्रृंगार 
बसंती हवा 


(C) एस. डी. तिवारी  


बसंती हवा (हाइकु) -२ 


कल से आती
विकल कर जाती
बसंती हवा

प्रेम की पाती  
प्रियतम की लाती   
बसंती हवा

मन छू जाती
अनुराग जगाती  
बसंती हवा

जी मकरंद 
ज्यूँ बिखेरी सुगंध 
बसंती हवा 

नींद न आती 
पा अकेले चुराती 
बसंती हवा 

पिया विदेश 
विरहन को ठेस 
बसंती हवा 

साजन आये 
संग लेकर आये 
बसंती हवा

ले गयी उड़ा 
मन की सब व्यथा 
बसंती हवा


(C) एस. डी. तिवारी 

Tuesday, 10 February 2015

Hindi haiku 11.2.2015

छोटी के हाथ
घुनघुना के स्थान
थमाया जूना

कोई न होता
झूठे मन से बड़ा
टूटे से खड़ा

पुराने पड़े
कभी चाँद छुपता
बुर्के के पीछे

पेवन लगे
इस बुर्के में वृद्धा
कभी चाँद थी

चीलों का झुण्ड
कर देता सफाई
जीवों के शव

अकेले में भी
तन्हाई की रातों में
यादों का शोर

कुत्तों का भोज
कौवों के आ जाने से
खीशिया जाते
 
पत्नी के हित
किया समुद्र पार
राम का प्यार

विवाह किया
गौरा से हर बार
शिव का प्यार

वैलेंटाइन डे
बैठा दिया जोड़ों को
खुले मैदान

अन्यत्र जीत
फूल की दुकान पे
ढूंढते हार

प्रभु भुलाता
हमारी गलतियां
हम उसे ही


भोर सुहानी
है रोज की कहानी
लाता सूरज


पत्थर दिल
मंदिर जाकर भी
वही इंसान
पत्थर वहां जा के
हो जाता भगवान

माँ त्याग देती
अपनी सुंदरता को
पुत्र के लिए
पुत्र माँ को ही त्यागता
सुन्दर पत्नी हेतु 


Hindi Haiku Suraj

सूर्य का रथ
जुते सात तुरंग
खदेड़ा तम

मुख करे तो
परछाई भी पीछे
सूर्य की ओर

छांट देते हैं
घने बादलों को भी
रवि व सत्य

देता प्रेरणा
अँधेरा ही हमको
 खोजें दीप को

बदल देता
सूरज वहीँ बैठे
हवा का रूख

मुस्कराता ही
बादलों से झांकता
सूर्य सदैव

धरा का मुख
घूंघट में रहता
रवि न होता

वायु नाचता
सूर्य की धुन पर
पूर्वा पछुआं

सूरजमुखी
सूरज को देखते
अघाता नहीं

प्रकट होती
निशाचरी शक्तियां
सूर्यास्त हुए

निशा लजाई
सूरज देखते ही
मुख छुपाई

सुबह शाम
क्षितिज रंग जाता
अद्भुत रंग

चाँद की छुट्टी
सूरज लौट आया
कर विश्राम

नभ में खेलें
लुका छुपी का खेल
सूरज चाँद

रात सो जाती
भुवन जग जाता
सूर्य के आते

सूर्य के आते
छुप जाते हैं तारे
डर के मारे

नभ का नृप
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को
जगमगाता

नाच नचाता
अपने नौ रत्नो को
बैठे ही सूर्य

सुबह होते
सूरज धरती का
घूँघट खोले 

उषा के आते
निशा ने फेक दिया
अपना बुर्का

उल्लू की गति
जा छुपे कोतड़ में
सूरज जगा

हुआ सूर्यास्त
कैद कमल दल
अलि अभागा

सुबह हुई
खिलते ही कमल
भागा भ्रमर


लाता सूरज
है रोज की कहानी
भोर सुहानी

गाने लगती
होते चिड़िया रानी
भोर सुहानी

सूर्य को जल
होते ही देती नानी
भोर सुहानी




Sanatan dharm

नानक से पहले सिख कहाँ थे,
मुहम्मद से पहले मुस्लिम भाई?
ऋषभदेव से पहले जैन कहाँ थे,
और जीसस से पहले ईसाई?

बुद्ध से पहले बौद्ध भी नहीं थे
सनातन धर्म तब भी विद्यमान।
राम, कृष्ण से भी पहले थे,
ब्रह्मा, विष्णु और शिव भगवान।  

Thursday, 5 February 2015

Tu katil hai meri

तू कातिल है मेरी
सांस तो मैं ले रहा हूँ
पर जान नहीं है बाकी
तूने मेरा क़त्ल किया है
ले जाएगी वर्दी खाकी
तू कातिल है मेरी
तेरे लिए मैं तड़प रहा था
तूने ना की मेरी परवा
सोच रखा था मैंने मन में
कभी रखेगी व्रत करवा
बारात की जगह निकाली तूने
मेरे दिल की  झांकी
तू कातिल है .
पहले तो तूने प्यार लुटाया
अब झाड़ लिया है पल्ला
जो तेरे दिल का हीरो था
तुझको दिखता है झल्ला
गली मोहल्ले में फिरती तू
बनी अलबेली बाँकी
तू कातिल ...
मैं भी कोई कम नहीं हूँ
सपनों में तेरे आऊंगा
तूने जैसे मुझे सताया
मैं भी तुझे सताऊंगा
जी जाऊंगा फिर से मैं
जो अब भी तूने हाँ की
तू कातिल ..

Wednesday, 4 February 2015

Tere bina tanka

सिंच न पाये
फूलों ने छोड़ दिया
महकना भी
मुरझाये पड़े हैं
निर्जल तेरे बिना

उस उद्यान
जब भी जाता हूँ
देखता खाली
बेंच पे एक पक्षी
अकेला तेरे बिना

सूना रहता
पक्षियों के बिना वो
पार्क का पेड़
लुप्त हुई उनकी
चहक तेरे बिना

ठण्ड की रात
फूल और पत्तों पे
गिरते आंसू
अम्बर रोया होगा
उदास तेरे बिना

पूरी न होती
तेरे बिना कोई भी
कविता मेरी
आँखों में बसे बिना
होंठों को छुए बिना

Sunday, 1 February 2015

Bhav, Ras


Ras
क्रमांक रस का प्रकार स्थायी भाव
1. शृंगार रस  - रति
2. हास्य रस   -हास
3. करुण रस  - शोक
4. रौद्र रस  -क्रोध
5. वीर रस  -उत्साह
6. भयानक रस - भय
7. वीभत्स रस    - घृणा, जुगुप्सा
8. अद्भुत रस  -आश्चर्य
9. शांत रस  -निर्वेद
१० वात्सल्य रस  - वत्सल
११ भक्ति   -भक्ति


१) संचारी भाव/व्यभिचारी भाव - संचारी का अर्थ है- साथ साथ संचरण करने वाला अर्थात् साथ-साथ चलने वाला। संचारी भाव किसी न किसी स्थायी भाव के साथ प्रकट होते हैं। ये क्षणिक,अस्थायी और पराश्रित होते हैं, इनकी अपनी अलग पहचान नहीं होती ।ये किसी एक स्थायी भाव के साथ न रहकर सभी के साथ संचरण करते हैं , इसलिए इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है।



* संचारी भाव या व्यभिचारी भाव 33 होते हैं :--
१- अपस्मार(मूर्छा)      १२- चपलता      २३- लज्जा
२- अमर्ष(असहन)      १३- चिन्ता       २४- विबोध
३- अलसता           १४- जड़ता       २५- वितर्क
४- अवहित्था(गुप्तभाव)  १५- दैन्य        २६- व्याधि
५- आवेग            १६- धृति        २७- विषाद
६- असूया            १७- निद्रा        २८- शंका
७- उग्रता             १८- निर्वेद(शम)   २९- श्रम
८- उन्माद            १९- मति        ३०- संत्रास
९- औत्सुक्य          २०- मद         ३१- स्मृति
१०- गर्व             २१- मरण        ३२- स्वप्न
११- ग्लानि           २२- मोह         ३३- हर्ष

Emotion and communication  

Vyabhichari: Vyabhichari is when the various emotions are expressed in words and gestures. There are 33 such emotions also known as Sanchari Bhavas. They are Niveda (self-disparagement), Vishada (despondency), Dainya (abject humility), Glani (sorrow), Srama (exhaustion), Mada (arrogance), Garva (pride), Sanka (doubt), Trasa (fear),' Avega (impulse), Unmada (raving), Apasmara (forgetfulness), Vyadhi (illness), Moha (loss of sensibility or consciousness), Mrityu (death), Alasya (idleness), Jadya (stupor), Vreeda (shyness), Akaragopani (cloaking one's own' real bearings), Smriti (remembrance), Vitarka (wrong argument), Chinta (reflection), Mata (determination), Dhriti (calmness), Harsha (delight), Autsukya (solicitude), Ugrata (ferocity), Amarsha (impatience), Asuya (jealousy), Chapalata (fickle- ness), Nidra (sleep), Supti (sleepiness) and Bodha (waking or knowing).
Sattvika: It is one of the essential ingredients of bhakti Rasas. It refers to the moods when the heart of the bhakta is overwhelmed to Lord. Sattvika bhava is characterised by pure chitta, as the mind of the devotee is filled with pure chitta, due to the constant devotion to the Lord.
There are eight Sattvika Bhavas; Stambha (paralysis), Sveda (perspiration), Romancha (horripilation), Svarabhanga (hoarseness of voice), Vepathu (trembling), Vaivarnya (change of colour), Asru (tears) and Pralaya (loss of consciousness).
Anubhava: Anubhava refers to the actions that display or reveal the spiritual emotions of the heart.  Anubhava is an expression of emotions by way of dance, song, laughter etc. There are thirteen Anubhavas:
 1) nritya (dancing), 2) vilunthita (rolling on the ground), 3) gita (singing), 4) krosana (loud crying), 5) tanu-motana (writhing of the body), 6) hunkara (roaring), 7) jrimbhana (yawning), 8) svasa-bhua (breathing heavily), 9) loka-anapeksita (giving up concern for public image), 10) lalasrava (salivating), 11) atta-hasa (loud laughter), 12) ghurna (staggering about), and 13) hikka (a fit of hiccups)


11 RAS
i) Shringaar Ras - sexual love,
(ii) Veer Ras - heroic
(iii) Veebhats Ras - disgust
(iv) Raudra Ras - anger
(v) Haasya Ras - comic and humor
(vi) Bhayaanak Ras - fright
(vii) Karun Ras - pity
(viii) Adbhut Ras - wonder
(ix) Shaant Ras - peace
(x) Vaatsalya Ras - parental love
(xi) Bhakti Ras - devotional


11 jl

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Negative emotions

fear
anger
guilt
depression
pride
jealousy
self – pity
anxiety
resentment
envy
frustration
shame
denial
offended
negative
regret
resentful
sad
worried
 grief


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positive emotions

love
appreciation
happiness
hope
enthusiasm
vitality
confidence
gratitude
patient
trust
vulnerable
optimistic
appreciative
ashamed
astonished


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IMAGERY
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बिम्ब का अर्थ है अंकित भाषा के द्वारा वस्तु, विचार, क्रिया  को इस प्रकार दर्शाना जिससे उसका मूर्त रूप का अनुभव हो.
बिम्ब विचारों का हमारे मस्तिष्क में दृष्टात्मक प्रदर्शन करता है 
imagery means to use figurative language to represent objects, actions and ideas in such a way that it appeals to our physical senses.

Usually it is thought that imagery makes use of particular words that create visual representation of ideas in our minds. The word imagery is associated with mental pictures. However, this idea is but partially correct. Imagery, to be realistic, turns out to be more complex than just a picture. Read the following examples of imagery carefully:

It was dark and dim in the forest. – The words “dark” and “dim” are visual images.
The children were screaming and shouting in the fields. - “Screaming” and “shouting” appeal to our sense of hearing or auditory sense.
He whiffed the aroma of brewed coffee. – “whiff” and “aroma” evoke our sense of smell or olfactory sense.
The girl ran her hands on a soft satin fabric. – The idea of “soft” in this example appeals to our sense of touch or tactile sense.
The fresh and juicy orange are very cold and sweet. – “ juicy” and “sweet” when associated with oranges have an effect on our sense of taste or gustatory sense.
Imagery needs the aid of figures of speech like simile, metaphor, personification, onomatopoeia etc. in order to appeal to the bodily senses. Let us analyze how famous poets and writers use imagery in literature.
  

Function of Imagery


The function of imagery in literature is to generate a vibrant and graphic presentation of a scene that appeals to as many of the reader’s senses as possible. It aids the reader’s imagination to envision the characters and scenes in the literary piece clearly. Apart from the above mentioned function, images , which are drawn by using figures of speech like metaphor, simile, personification, onomatopeia etc. serve the function of beautifying a piece of literature.