कोई मरा नहीं करता
किसी बेवफा की याद में, कोई शख्श मरा नहीं करता।
महज इश्क की फरियाद में, खा के शिकस्त मरा नहीं करता।
पतझड़ आ जाता है जब, चली जाती हैं छोड़ के साथ,
पत्तियों से बिलगाव में, कोई दरख़्त मरा नहीं करता।
फलक में कभी चंदा भी, छुप जाता है देखकर के कहीं
गमों की काली रात में, कोई सूरज मरा नहीं करता।
छीन के ले जाता पवन, महकाने की खातिर चमन को,
डूबे महक के ख्याल में, फूल हो पस्त मरा नहीं करता।
चल देती चूम कर नदी, बहुत दूर उस समुन्दर की ओर,
भर लेने को बाहों में, किनारा मस्त मरा नहीं करता।
चमकाने चल देती है, किसी और के घर को साथ छोड़
चांदनी के बर्ताव से, चाँद खा गश्त मरा नहीं करता।
चल देती है बर्फ कहीं, गर्मियों के आते ही पिघल कर,
मौसमों के बदलाव से, पर्वत सख्त मरा नहीं करता।
एस० डी० तिवारी
किसी बेवफा की याद में, कोई शख्श मरा नहीं करता।
महज इश्क की फरियाद में, खा के शिकस्त मरा नहीं करता।
पतझड़ आ जाता है जब, चली जाती हैं छोड़ के साथ,
पत्तियों से बिलगाव में, कोई दरख़्त मरा नहीं करता।
फलक में कभी चंदा भी, छुप जाता है देखकर के कहीं
गमों की काली रात में, कोई सूरज मरा नहीं करता।
डूबे महक के ख्याल में, फूल हो पस्त मरा नहीं करता।
चल देती चूम कर नदी, बहुत दूर उस समुन्दर की ओर,
भर लेने को बाहों में, किनारा मस्त मरा नहीं करता।
चमकाने चल देती है, किसी और के घर को साथ छोड़
चांदनी के बर्ताव से, चाँद खा गश्त मरा नहीं करता।
चल देती है बर्फ कहीं, गर्मियों के आते ही पिघल कर,
मौसमों के बदलाव से, पर्वत सख्त मरा नहीं करता।
एस० डी० तिवारी
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