ढूंढा जग में
बैठा पाया उसको
मेरे मन में
गर्व ना करो
तुमने है जो पाया
उसी की माया
प्रत्येक दिन
लेकर वह आता
नई किरण
छोटा सा काम
करना है उसका
उसको याद
देगा तुम्हें वो
छोड़ना न संकल्प
अन्य विकल्प
मैंने जो चाहा
लगा वो नहीं दिया
झूठ था वह
करेगी पूरा
तुम्हारी हर इच्छा
उसकी पूजा
पी लो जी भर
मिट जायेंगे गम
प्रभु का नाम
वो जो करेगा
कुछ न कुछ छुपा
अच्छा ही होगा
हरेक दिन
कुछ नया ले आता
मेरा विधाता
जिसने किया
जीवन है सफल
प्रभु से प्यार
उसे क्या कमी
चाहे जिसका धाम
प्रभु का नाम
पता है उसे
कितना और कब
देना है किसे
मुखड़े पर
लगा कर मुखौटा
खुदा को धोखा !
छुपाते फिरे
उसी से ये मुखड़ा
उसी का दिया
तुम्हारी चिंता
करने से ले लेता
उसकी पूजा
होती मिठास
अंगूर के रस में
न कि रंग में
उड़ने को वो
मनुष्य को भी दिया
ज्ञान का पंख
पाया है बुद्धि
ताकि इन्सान करे
जीवों की रक्षा
जोड़ना होता
दोनों हाथ खुद के
पाने के लिए
होता पर्याप्त
कुछ देने के लिए
एक ही हाथ
कैसा भी वक्त
बदलता ना खुदा
खुद का सत
दिया है भर
मानव में ईश्वर
मन व बुद्धि
पाया अँधेरा
जब भी मन मेरा
जगा लिया लौ
कितने बड़े
उसे क्या तुम हो पड़े
की ना उसकी
आये जग में
करके बंद मुट्ठी
खोल के जाना
मिला बहुत
रह पायेगा साथ
उसे जो सौंपा
सुन्दर काया
मनुष्य का बनाया
प्रभु की माया
सिर उठा के
हमें जीने के लिए
ऊपर है वो
जीने का हक
सबको दिया वह
बनो रक्षक
मंदिर जा के
वह नहीं मिलता
मन मिलता
बनाया वह
सबको बराबर
हम अंतर
उसका दिया
मूर्खता भी सौगात
हंसने हेतु
उसी के हाथ
डरो ना बिना बात
जीवन मृत्यु
औरों का भला
करो जितना ज्यादा
खुद का भला
भविष्य में क्या
तुम्हें चाहे ना पता
ज्ञात है उसे
बिगड़े काम
बनाते प्रभु राम
भज लो नाम
पावन मन
कर देता निश्चित
राम भजन
बैठा है वह
जब मेरे ऊपर
मुझे क्या डर
उसका प्यार
मुझको मिल जाए
जग ना तो क्या
एक सा प्यार
बरसाता है वह
पूरे संसार
काँप उठती
एक छींक वो लेता
पूरी धरती
पूजा ना पाठ
रटना ही बहुत
प्रभु का नाम
पाया जिसने
नाम रतन धन
सुखी जीवन
**************
कृष्ण या राम
जग में दो सुन्दर
तेरे ही नाम
चाहता मेरी
कर दूँ ये दुनिया
तेरे ही नाम
करनी मेरी
होवे तो तर जाऊँ
तेरे ही नाम
लेकर जीना
दुनिया से क्या काम
तेरा ही नाम
लौ लगाकर
मैं तो मर जाऊंगा
तेरे ही नाम
************
नींद ना आयी
देर रात सुलाने
तुम्हीं तो आये
किरणें भेज
होते भोर जगाने
तुम्हीं तो आये
भूखे थे हम
छींट अन्न खिलाने
तुम्हीं तो आये
लगी जो प्यास
जल ले के पिलाने
तुम्हीं तो आये
नग्न थे हम
तन वस्त्र ओढ़ाने
तुम्हीं तो आये
प्यासी अंखियां
ले के छवि निराली
तुम्हीं तो आये
सूना था मन
बीच प्यार बसाने
तुम्हीं तो आये
वर्षा बसंत
मौसम ये सुहाने
तुम्हीं तो लाये
जलने लगी
पृथ्वी को नहलाने
तुम्हीं तो आये
कांपा ये जग
लिए धूप गर्माने
तुम्हीं तो आये
*************
मुझमें पड़ा
खालीपन भरने
तुम आ जाना
मुझे सुलाने
रात लोरी सुनाने
तुम आ जाना
नशे का घूंट
भर प्यार पिलाने
तुम आ जाना
जोहूंगी तुम्हें
कभी किसी बहाने
तुम आ जाना
रोउंगी जब
मुझे चुप कराने
तुम आ जाना
सजी रहूंगी
नजर को लगाने
तुम आ जाना
बन सहेली
पहेली सुलझाने
तुम आ जाना
करुँगी मैं तो
गलती पे मुस्काने
तुम आ जाना
मुरझा जाए
मन मेरा खिलाने
तुम आ जाना
होऊं उदास
तो हंसने हंसाने
तुम आ जाना
मैं तो हूँ बाती
जीवन दीप की लौ
तुम्हीं हो प्रभु
जीवन नैया
भव पार खेवैया
तुम्हीं हो प्रभु
जन्म देकर
दिखाया जो संसार
तुम्हीं हो प्रभु
हम साधन
करने वाला सब
तुम्हीं हो प्रभु
नाम अनेक
सबका स्वामी एक
तुम्हीं हो प्रभु
रंगीन फूल
सुगंध बिखराते
तुम्हीं तो बैठे
वाद्य यन्त्र से
संगीत निकालते
तुम्हीं तो बैठे
कवि के मन
कविता उपजाते
तुम्हीं तो बैठे
कृति बनाते
कलाकार के अन्तः
तुम्हीं तो बैठे
ज्ञान भरते
विद्वान बनाकर
तुम्हीं तो बैठे
जग के तीर्थ
हरि नाम में स्थित
भज ले प्यारे
हरि का नाम
भव पार की नाव
भज ले प्यारे
तेरा कल्याण
करेगा हरि नाम
भज ले प्यारे
हो जाता प्यारा
जो हरि को पुकारा
भज ले प्यारे
जो भी अधूरी
इच्छा करेगा पूरी
भज ले प्यारे
****************
लेने से होता
सफल हर काम
हरि का नाम
करता बड़ी
भजे शक्ति प्रदान
हरि का नाम
होता निर्मल
भजकर रे मन
हरि का नाम
लेने से मात्र
होता पापों का नाश
जो रट लेता
वो कष्ट हर लेता
हरि का नाम
पाया जो माया
भोग में ही गंवाया
सारा जीवन
समझा ना जो
माया के पीछे भागा
क्या है गंवाया
मुश्किल भरी
कितनी थी जिंदगी
निभा दिया तू
जाना है फिर
पटका पृथ्वी पर
उसी के घर
जीवन दिया
बताएगा भी वही
जीने की राह
बोलोगे तुम
समझ लेगा वह
कोई भी भाषा
बना के वह
फूंका भीतर प्राण
मिटटी की मूर्ति
मिट्टी की काया
मनुष्य की इतना
गर्व समाया
परोपकार
उतारने का पार
उत्तम पुल
मिलेगी जब
परमात्मा से आत्मा
कष्ट का खात्मा
होगा कल्याण
करोगे दूसरों का
तुम कल्याण
कुछ भी करो
पर वो ना करना
घुट के मरो
देना हे प्रभु
शक्ति कि कह सकूँ
सच को सच
दिखता जब
अँधेरा ही अँधेरा
वो होता मेरा
अपने मित्र
मनुष्य चुन लेता
नाते वो देता
चलना होगा
उसी की राह पर
पाने को उसे
चलेगा तेरा
उतना ही खिलौना
भरी है चाभी
धन दौलत
उसी की बदौलत
तुम्हारे पास
पढ़ लेता वो
मन में सब कुछ
उसी ने लिखा
नियत जैसी
हरि से मनुष्य की
चाहत वैसी
तेरे द्वार पे
चिल्लाये थे कितना
तूने न सुनी
जानता तो है
मुंह क्यों खुलवाता
दे दे स्वयं ही
तूने जो ढाहा
सह लिया सितम
तेरे ही दम
देखता वह
अदृश्य रहकर
हमारे कृत्य
उसका प्यार
मुझको मिल जाए
जग ना तो क्या
जिस लायक
मुझे समझा वह
दे दिया सब
सोचा है कभी
उसने दिया जो भी
नहीं देता तो !
होती है बसी
परमात्मा की आत्मा
प्रकृति में ही
संग ना होते
पतझड़ में पत्ते
पेड़ निश्चिंत
बनाया फूल
भरने को सुगंध
हमारे मन
आनंद भरा
अच्छे कर्म करके
अंतिम यात्रा
अंतिम यात्रा
पहले पहुंचेगा
कर्मों का बक्सा
बनना होगा
रह सकने योग्य
उसके घर
उसने बांटे
फूलों के संग कांटे
रक्षा हो सके
ध्यान रखना
छुपाया है उसने
मजा में सजा
समस्या देना
लड़ने की हे प्रभु
शक्ति भी देना
तू यहीं कहीं
हमें नहीं दिखता
छुप के बैठा
प्रकृति भरी
सहस्रों विचित्रता
उसकी कला
सम्पूर्ण छटा
प्रकृति और धरा
उसकी कला
इतनी बड़ी
रंग डाला धरती
उसकी कला
रात अंधेरी
दिन भरा उजाला
उसकी कला
पैदा होकर
हरेक जीव पला
उसकी कला
हम हैरान
सुंदरता की खान
उसकी कला
प्रकृति मूर्ति
धरती हो मंदिर
प्रभु दर्शन
उसने दिया
पृथ्वी पर भी स्वर्ग
प्रकृति मध्य
हम खो जाते
पर वो मिल जाता
प्रकृति मध्य
सबसे बड़ा
प्रकृति में ही बैठा
हमारा गुरु
नहीं बेशक
चींटी को भी दिया वो
जीने का हक
होती नियत
मांगता वो प्रभु से
वैसी मन्नत
इतनी चीजें
नाम तक न पता
धरा पे धरा
करता पूरी
सभी जीवों की वही
आवश्यकता
बीमार मन
प्रकृति का दर्शन
उत्तम दवा
वही है देता
पथ पर तुम्हारे
पेड़ की छाँव
आनंद भरे
नदी झील जंगल
उसी ने गढ़े
हो जाता देख
तेरी बनाई छवि
मन ये कवि
मिटटी का बुत
पा के आत्मा की शक्ति
हो गया व्यक्ति
बनाया जो वो
किसने दिया हक
नष्ट कर दो
कितनी बड़ी
होती बाग की शोभा
नन्हीं तितली
मैंने जो चाहा
वह उसे सराहा
और दे दिया
बीमारी दिया
तो बख्शा है उसी ने
जड़ी बूटियां
सुन पाया जो
प्रकृति की शांति को
पाया उसको
जंगल घूमा
आदमी बनकर
वापस लौटा
हरी रहती
तुम तो नहीं देते
घास को पानी
जैसी करनी
हर हाल में तुम्हें
होगी भरनी
अच्छा या बुरा
वो मौसम में हर
आनंद भरा
होता न कभी
प्रकृति का फैशन
अप्रचलित
प्रकृति संग
नहीं है निरर्थक
बिताया वक्त
मुझे क्या फर्क
पानी पड़े या बर्फ
रक्षा को वह
प्रकृति हमें
अमोल उपहार
प्रभु का प्यार
रमा लो मन
प्रकृति में ही होगा
प्रभु दर्शन
किया है प्यार
प्रकृति से जिसने
प्रभु से प्यार
बखान तक
करना असंभव
प्रभु की कला
उसे ही पता
एक बीज में होंगे
कितने वृक्ष
डाल न पाया
यत्न किया इंसान
जीव में जान
पूरी ही उम्र
उलझाए थे जान
माया व मान
पंख फैलाये
कैसे उड़ता पंछी
कोई बताये
होता जिसका
होता प्रभु का वास
स्वच्छ ह्रदय
जिसके सर
रहे उसका हाथ
जिंदगी माथ
जीना मरना
सुख दुःख सहना
उसके हाथ
जान लो स्पष्ट
उसका नहीं साथ
होना है कष्ट
वह तो रहा
निराकार मन में
मैं ढूंढा रूप
तुम्हारा सब
होवो तुम सबके
मिलेगा रब
प्रभु बसता
पावन ही रखना
सोच को सदा
वश में ना जो
प्रभु पर छोड़ दो
कर देगा वो
लगता है जो
मुझे भी वही अच्छा
प्रभु को अच्छा
जीवन में ना
चरित्र की दीवार
घुसता पाप
सारी जिंदगी
देते रहे परीक्षा
प्रभु की इच्छा
बून्द में वही
सागर में भी वही
ढूंढ लो कहीं
मंदिर गया
मूर्ति में समा गया
वो संग में जा
वापस घर आया
वो भी साथ आ गया
प्रभु ने दिया
जीवन जीने हेतु
हमें दो दो मां
स्त्री जिसने जन्म दी
धरती जो पालती
जिसे हो जाये
ईश्वर के बनाये
चीजों से प्यार
मन में भरा होता
प्रसन्नता अपार
देख ना पाते
खिल के सूख जाते
वन के फूल
वह खिलाता पर
और अति सुन्दर
मिलेगी तुम्हें
जीवन में अपने
उसकी कृपा
बनाये जो उसने
जीवों पे करो दया
करता प्यार
मालिक से पाकर
कुत्ता भी रोटी
दिया जो सब कुछ
करते क्या तुम भी !
लगते कभी
रंगने में महीना
एक ही पन्ना
तूने ना जाने कैसे
धरती रंग डाली
ले चले कंधे
सजाये थे जो डोली
अर्थी सजा के
काटूंगी बाकी पल
तेर ही घर आ के
भेजा उसने
धरती को रखने
रहने योग्य
भविष्य में उसकी
रह सकें संतानें
नहीं अघाया
देखता रहा मन
पूरा जीवन
तेरी सुन्दरतम
कृति मनभावन
पृथ्वी पे हमें
दुनिया को चलाने
भेजा उसने
हम लगे अपने
उल्लू सिद्ध करने
दीप जलाया
मंदिर में रोजाना
मन में तम
ऐसे प्रभु से कैसे
मिल पाओगे तुम
बैठा पाया उसको
मेरे मन में
गर्व ना करो
तुमने है जो पाया
उसी की माया
प्रत्येक दिन
लेकर वह आता
नई किरण
छोटा सा काम
करना है उसका
उसको याद
देगा तुम्हें वो
छोड़ना न संकल्प
अन्य विकल्प
मैंने जो चाहा
लगा वो नहीं दिया
झूठ था वह
करेगी पूरा
तुम्हारी हर इच्छा
उसकी पूजा
पी लो जी भर
मिट जायेंगे गम
प्रभु का नाम
वो जो करेगा
कुछ न कुछ छुपा
अच्छा ही होगा
हरेक दिन
कुछ नया ले आता
मेरा विधाता
जिसने किया
जीवन है सफल
प्रभु से प्यार
उसे क्या कमी
चाहे जिसका धाम
प्रभु का नाम
पता है उसे
कितना और कब
देना है किसे
मुखड़े पर
लगा कर मुखौटा
खुदा को धोखा !
छुपाते फिरे
उसी से ये मुखड़ा
उसी का दिया
तुम्हारी चिंता
करने से ले लेता
उसकी पूजा
होती मिठास
अंगूर के रस में
न कि रंग में
उड़ने को वो
मनुष्य को भी दिया
ज्ञान का पंख
पाया है बुद्धि
ताकि इन्सान करे
जीवों की रक्षा
जोड़ना होता
दोनों हाथ खुद के
पाने के लिए
होता पर्याप्त
कुछ देने के लिए
एक ही हाथ
कैसा भी वक्त
बदलता ना खुदा
खुद का सत
दिया है भर
मानव में ईश्वर
मन व बुद्धि
पाया अँधेरा
जब भी मन मेरा
जगा लिया लौ
कितने बड़े
उसे क्या तुम हो पड़े
की ना उसकी
आये जग में
करके बंद मुट्ठी
खोल के जाना
मिला बहुत
रह पायेगा साथ
उसे जो सौंपा
सुन्दर काया
मनुष्य का बनाया
प्रभु की माया
सिर उठा के
हमें जीने के लिए
ऊपर है वो
जीने का हक
सबको दिया वह
बनो रक्षक
मंदिर जा के
वह नहीं मिलता
मन मिलता
बनाया वह
सबको बराबर
हम अंतर
उसका दिया
मूर्खता भी सौगात
हंसने हेतु
उसी के हाथ
डरो ना बिना बात
जीवन मृत्यु
औरों का भला
करो जितना ज्यादा
खुद का भला
भविष्य में क्या
तुम्हें चाहे ना पता
ज्ञात है उसे
बिगड़े काम
बनाते प्रभु राम
भज लो नाम
पावन मन
कर देता निश्चित
राम भजन
बैठा है वह
जब मेरे ऊपर
मुझे क्या डर
उसका प्यार
मुझको मिल जाए
जग ना तो क्या
एक सा प्यार
बरसाता है वह
पूरे संसार
काँप उठती
एक छींक वो लेता
पूरी धरती
पूजा ना पाठ
रटना ही बहुत
प्रभु का नाम
पाया जिसने
नाम रतन धन
सुखी जीवन
**************
कृष्ण या राम
जग में दो सुन्दर
तेरे ही नाम
चाहता मेरी
कर दूँ ये दुनिया
तेरे ही नाम
करनी मेरी
होवे तो तर जाऊँ
तेरे ही नाम
लेकर जीना
दुनिया से क्या काम
तेरा ही नाम
लौ लगाकर
मैं तो मर जाऊंगा
तेरे ही नाम
************
नींद ना आयी
देर रात सुलाने
तुम्हीं तो आये
किरणें भेज
होते भोर जगाने
तुम्हीं तो आये
भूखे थे हम
छींट अन्न खिलाने
तुम्हीं तो आये
लगी जो प्यास
जल ले के पिलाने
तुम्हीं तो आये
नग्न थे हम
तन वस्त्र ओढ़ाने
तुम्हीं तो आये
प्यासी अंखियां
ले के छवि निराली
तुम्हीं तो आये
सूना था मन
बीच प्यार बसाने
तुम्हीं तो आये
वर्षा बसंत
मौसम ये सुहाने
तुम्हीं तो लाये
जलने लगी
पृथ्वी को नहलाने
तुम्हीं तो आये
कांपा ये जग
लिए धूप गर्माने
तुम्हीं तो आये
मुझमें पड़ा
खालीपन भरने
तुम आ जाना
मुझे सुलाने
रात लोरी सुनाने
तुम आ जाना
नशे का घूंट
भर प्यार पिलाने
तुम आ जाना
जोहूंगी तुम्हें
कभी किसी बहाने
तुम आ जाना
रोउंगी जब
मुझे चुप कराने
तुम आ जाना
सजी रहूंगी
नजर को लगाने
तुम आ जाना
पहेली सुलझाने
तुम आ जाना
करुँगी मैं तो
गलती पे मुस्काने
तुम आ जाना
मुरझा जाए
मन मेरा खिलाने
तुम आ जाना
होऊं उदास
तो हंसने हंसाने
तुम आ जाना
************
मैं तो हूँ बाती
जीवन दीप की लौ
तुम्हीं हो प्रभु
जीवन नैया
भव पार खेवैया
तुम्हीं हो प्रभु
जन्म देकर
दिखाया जो संसार
तुम्हीं हो प्रभु
हम साधन
करने वाला सब
तुम्हीं हो प्रभु
नाम अनेक
सबका स्वामी एक
तुम्हीं हो प्रभु
*************
रंगीन फूल
सुगंध बिखराते
तुम्हीं तो बैठे
वाद्य यन्त्र से
संगीत निकालते
तुम्हीं तो बैठे
कवि के मन
कविता उपजाते
तुम्हीं तो बैठे
कृति बनाते
कलाकार के अन्तः
तुम्हीं तो बैठे
ज्ञान भरते
विद्वान बनाकर
तुम्हीं तो बैठे
**************
हरि शरण
कष्टों का निवारण
कर लो भक्ति
बढ़ाता वह
धन धान्य संतति
कर लो भक्ति
देती है शक्ति
होने का भय मुक्त
कर लो भक्ति
मन की इच्छा
करता है वो पूर्ति
कर लो भक्ति
परमानन्द
सांसारिक सुख भी
कर लो भक्ति
हरि शरण
कष्टों का निवारण
कर लो भक्ति
बढ़ाता वह
धन धान्य संतति
कर लो भक्ति
देती है शक्ति
होने का भय मुक्त
कर लो भक्ति
मन की इच्छा
करता है वो पूर्ति
कर लो भक्ति
परमानन्द
सांसारिक सुख भी
कर लो भक्ति
*****************
जग के तीर्थ
हरि नाम में स्थित
भज ले प्यारे
हरि का नाम
भव पार की नाव
भज ले प्यारे
तेरा कल्याण
करेगा हरि नाम
भज ले प्यारे
हो जाता प्यारा
जो हरि को पुकारा
भज ले प्यारे
जो भी अधूरी
इच्छा करेगा पूरी
भज ले प्यारे
****************
लेने से होता
सफल हर काम
हरि का नाम
करता बड़ी
भजे शक्ति प्रदान
हरि का नाम
होता निर्मल
भजकर रे मन
हरि का नाम
लेने से मात्र
होता पापों का नाश
हरि का नाम
वो कष्ट हर लेता
हरि का नाम
*************
भोग में ही गंवाया
सारा जीवन
समझा ना जो
माया के पीछे भागा
क्या है गंवाया
मुश्किल भरी
कितनी थी जिंदगी
निभा दिया तू
जाना है फिर
पटका पृथ्वी पर
उसी के घर
जीवन दिया
बताएगा भी वही
जीने की राह
बोलोगे तुम
समझ लेगा वह
कोई भी भाषा
बना के वह
फूंका भीतर प्राण
मिटटी की मूर्ति
मिट्टी की काया
मनुष्य की इतना
गर्व समाया
परोपकार
उतारने का पार
उत्तम पुल
मिलेगी जब
परमात्मा से आत्मा
कष्ट का खात्मा
होगा कल्याण
करोगे दूसरों का
तुम कल्याण
कुछ भी करो
पर वो ना करना
घुट के मरो
देना हे प्रभु
शक्ति कि कह सकूँ
सच को सच
दिखता जब
अँधेरा ही अँधेरा
वो होता मेरा
अपने मित्र
मनुष्य चुन लेता
नाते वो देता
चलना होगा
उसी की राह पर
पाने को उसे
चलेगा तेरा
उतना ही खिलौना
भरी है चाभी
धन दौलत
उसी की बदौलत
तुम्हारे पास
पढ़ लेता वो
मन में सब कुछ
उसी ने लिखा
नियत जैसी
हरि से मनुष्य की
चाहत वैसी
तेरे द्वार पे
चिल्लाये थे कितना
तूने न सुनी
जानता तो है
मुंह क्यों खुलवाता
दे दे स्वयं ही
तूने जो ढाहा
सह लिया सितम
तेरे ही दम
देखता वह
अदृश्य रहकर
हमारे कृत्य
उसका प्यार
मुझको मिल जाए
जग ना तो क्या
जिस लायक
मुझे समझा वह
दे दिया सब
सोचा है कभी
उसने दिया जो भी
नहीं देता तो !
होती है बसी
परमात्मा की आत्मा
प्रकृति में ही
संग ना होते
पतझड़ में पत्ते
पेड़ निश्चिंत
बनाया फूल
भरने को सुगंध
हमारे मन
आनंद भरा
अच्छे कर्म करके
अंतिम यात्रा
अंतिम यात्रा
पहले पहुंचेगा
कर्मों का बक्सा
बनना होगा
रह सकने योग्य
उसके घर
उसने बांटे
फूलों के संग कांटे
रक्षा हो सके
ध्यान रखना
छुपाया है उसने
मजा में सजा
समस्या देना
लड़ने की हे प्रभु
शक्ति भी देना
तू यहीं कहीं
हमें नहीं दिखता
छुप के बैठा
प्रकृति भरी
सहस्रों विचित्रता
उसकी कला
सम्पूर्ण छटा
प्रकृति और धरा
उसकी कला
इतनी बड़ी
रंग डाला धरती
उसकी कला
रात अंधेरी
दिन भरा उजाला
उसकी कला
पैदा होकर
हरेक जीव पला
उसकी कला
हम हैरान
सुंदरता की खान
उसकी कला
प्रकृति मूर्ति
धरती हो मंदिर
प्रभु दर्शन
उसने दिया
पृथ्वी पर भी स्वर्ग
प्रकृति मध्य
हम खो जाते
पर वो मिल जाता
प्रकृति मध्य
सबसे बड़ा
प्रकृति में ही बैठा
हमारा गुरु
नहीं बेशक
चींटी को भी दिया वो
जीने का हक
होती नियत
मांगता वो प्रभु से
वैसी मन्नत
इतनी चीजें
नाम तक न पता
धरा पे धरा
करता पूरी
सभी जीवों की वही
आवश्यकता
बीमार मन
प्रकृति का दर्शन
उत्तम दवा
वही है देता
पथ पर तुम्हारे
पेड़ की छाँव
आनंद भरे
नदी झील जंगल
उसी ने गढ़े
हो जाता देख
तेरी बनाई छवि
मन ये कवि
मिटटी का बुत
पा के आत्मा की शक्ति
हो गया व्यक्ति
बनाया जो वो
किसने दिया हक
नष्ट कर दो
कितनी बड़ी
होती बाग की शोभा
नन्हीं तितली
वह उसे सराहा
और दे दिया
बीमारी दिया
तो बख्शा है उसी ने
जड़ी बूटियां
सुन पाया जो
प्रकृति की शांति को
पाया उसको
जंगल घूमा
आदमी बनकर
वापस लौटा
हरी रहती
तुम तो नहीं देते
घास को पानी
जैसी करनी
हर हाल में तुम्हें
होगी भरनी
अच्छा या बुरा
वो मौसम में हर
आनंद भरा
होता न कभी
प्रकृति का फैशन
अप्रचलित
प्रकृति संग
नहीं है निरर्थक
बिताया वक्त
मुझे क्या फर्क
पानी पड़े या बर्फ
रक्षा को वह
प्रकृति हमें
अमोल उपहार
प्रभु का प्यार
रमा लो मन
प्रकृति में ही होगा
प्रभु दर्शन
किया है प्यार
प्रकृति से जिसने
प्रभु से प्यार
बखान तक
करना असंभव
प्रभु की कला
उसे ही पता
एक बीज में होंगे
कितने वृक्ष
डाल न पाया
यत्न किया इंसान
जीव में जान
पूरी ही उम्र
उलझाए थे जान
माया व मान
पंख फैलाये
कैसे उड़ता पंछी
कोई बताये
होता जिसका
होता प्रभु का वास
स्वच्छ ह्रदय
जिसके सर
रहे उसका हाथ
जिंदगी माथ
जीना मरना
सुख दुःख सहना
उसके हाथ
जान लो स्पष्ट
उसका नहीं साथ
होना है कष्ट
वह तो रहा
निराकार मन में
मैं ढूंढा रूप
तुम्हारा सब
होवो तुम सबके
मिलेगा रब
प्रभु बसता
पावन ही रखना
सोच को सदा
वश में ना जो
प्रभु पर छोड़ दो
कर देगा वो
लगता है जो
मुझे भी वही अच्छा
प्रभु को अच्छा
जीवन में ना
चरित्र की दीवार
घुसता पाप
सारी जिंदगी
देते रहे परीक्षा
प्रभु की इच्छा
बून्द में वही
सागर में भी वही
ढूंढ लो कहीं
मंदिर गया
मूर्ति में समा गया
वो संग में जा
वापस घर आया
वो भी साथ आ गया
जीवन जीने हेतु
हमें दो दो मां
स्त्री जिसने जन्म दी
धरती जो पालती
जिसे हो जाये
ईश्वर के बनाये
चीजों से प्यार
मन में भरा होता
प्रसन्नता अपार
खिल के सूख जाते
वन के फूल
वह खिलाता पर
और अति सुन्दर
जीवन में अपने
उसकी कृपा
बनाये जो उसने
जीवों पे करो दया
करता प्यार
मालिक से पाकर
कुत्ता भी रोटी
दिया जो सब कुछ
करते क्या तुम भी !
लगते कभी
रंगने में महीना
एक ही पन्ना
तूने ना जाने कैसे
धरती रंग डाली
ले चले कंधे
सजाये थे जो डोली
अर्थी सजा के
काटूंगी बाकी पल
तेर ही घर आ के
भेजा उसने
धरती को रखने
रहने योग्य
भविष्य में उसकी
रह सकें संतानें
नहीं अघाया
देखता रहा मन
पूरा जीवन
तेरी सुन्दरतम
कृति मनभावन
पृथ्वी पे हमें
दुनिया को चलाने
भेजा उसने
हम लगे अपने
उल्लू सिद्ध करने
दीप जलाया
मंदिर में रोजाना
मन में तम
ऐसे प्रभु से कैसे
मिल पाओगे तुम
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