सूक्ष्म से सूक्ष्म
वृहत से वृहत
प्रभु का रूप
होता है मन
जलाकर रौशन
भाव की ज्योति
उसके लिए
कोई बड़ा न छोटा
सबका पिता
भजन बिन
उम्र न जाये बीत
रखना चित्त
मन लगाया
प्रभु में सब पाया
छोड़ के माया
मन को जीत
लगाकर मानव
प्रभु से प्रीत
सुख का डेरा
जिसके मन होता
प्रभु बसेरा
तेरा न मेरा
सब कुछ उसी का
माया का फेरा
पायेगा प्राणी
कर प्रभु से प्रेम
परमानन्द
नन्हीं सी जान
पृथ्वी को छेद देती
चींटी महान
रात दी काली
दिन दिया उजला
प्रभु की कला
दौलत व्यर्थ
छीन लेता जिसकी
नींद को वह
चाहे ना वह
नींद नहीं मिलेगी
सोने के मोल
प्रभु ने दिया
हंसने की नीमत
गंवाना मत
चोर की होती
धर ना लिया जाय
यही मन्नत
गजब शक्ति
दिया वो मनुष्य को
मन व बुद्धि
जीने के लिए
हरि का नाम मिला
फिर क्या गिला
भज ले भाई
सदा ही सुखदायी
हरि का नाम
जिसके मन
हरि नाम समाया
डसे ना माया
उसका हाथ
ऊपर हो जिसके
नहीं अनाथ
ढूंढा उसको
मोह माया धन में
बैठा मन में
कोई न जाने
खिले कौन सा गुल
अगला पल
जैसी करनी
आज नहीं तो कल
मिलेगा फल
उसे ही पता
वो क्या करने वाला
अगले पल
नहीं चलेगी
चाहे जोर लगा ले
उसके आगे
देगा वो इत्ता
कोई सोच ना पाये
देने पे आये
भक्तों के लिए
प्रभु है उपलब्ध
किसी भी वक्त
लेकर जाता
सीधे प्रभु के द्वार
भक्ति का मार्ग
जो भी पुकारे
तू उसको उबारे
पार लगा दे
कोई भी कष्ट
आता जो तेरे द्वार
होता उद्धार
तू है पालक
हम तेरे बालक
ले ले शरण
जिसका चाहे
तू भाग्य संवार दे
पार लगा दे
मेरी विनती
भर झोली सबकी
तू है सबका
आता जो द्वार
कर देता वो पूरा
मनोकामना
जग, ईश्वर!
तुझसे उजियारा
होता है सारा
सभी संकट
प्रभु पल में हारे
पार लगा रे
एक ही मन्त्र
दूर हों कई कष्ट
राम का नाम
प्रेम से बोले
वो कृपा बरसाता
जय श्रीराम
************
करती सदा
पुरुषार्थ की सिद्धि
प्रभु की भक्ति
करके सदा
तुम पाओ सदबुद्धि
प्रभु की भक्ति
सुख संपन्न
करके होता जन
प्रभु की भक्ति
रक्षा करती
हर पग सबकी
प्रभु की भक्ति
जो भी करता
सारे वैभव पाता
प्रभु की भक्ति
*************
सम्पूर्ण सृष्टि
प्रभु तेरे वश में
लगाना पार
भंवर फंसी
प्रभु नईया मेरी
लगाना पार
पल में हारे
प्रभु हर संकट
लगाना पार
तेरी शरण
है सबका उद्धार
लगाना पार
पालनहार
सम्पूर्ण जग का तू
लगाना पार
*************
तू ही सहारा
कर जग से सारा
पापों का नाश
देता है भगा
जग का तम सारा
दीया उसका
वेद पुराण
जीवन दिक् दर्शक
ज्ञान की खान
जैसी करनी
आज नहीं तो कल
मिलेगा फल
शत्रु का वध
प्राण पे पड़ आये
शास्त्र सम्मत
देह है माटी
बुद्धि और इन्द्रियां
हरि का अंश
नहीं हिलता
प्रभु के चाहे बिना
एक भी पत्ता
हवा का चाहे
बवंडर बना दे
चाहे वो आंधी
जीत व हार
प्यार या तिरस्कार
उसके हाथ
देख के दंग
हो जाता मैं इतने
फूलों के रंग
प्रभु ने किया
जिसको पैदा किया
मौत भी तय
हुए अमर
मीरा तुलसी सूर
हरि को भज
हरि को भजे
उसका वह होई
और न कोई
सुबह शाम
और चीजें तमाम
वही बनाया
खाने को दिया
उसने भूख दी तो
फल व अन्न
प्यास दिया तो
बुझाने की खातिर
दिया वो नीर
ऋतु बनाया
सबके अनुकूल
प्रभु तू खूब
फूल के साथ
तूने कांटे भी दिए
रक्षा के लिए
प्रभु ने दिया
दुःख भी कि समझो
सुख का अर्थ
होता तुम्हारे
कर्मों पर निर्भर
रोना हंसना
सुखाने आया
तू आंसुओं को मेरे
जब भी रोया
मंदिर में तू
खड़ा था मूर्ति बना
मैं तेरा भक्त
भक्ति का मार्ग
लेकर चला जाता
हरि के द्वार
नहीं भी देता
जितना कुछ दिया
क्या कर लेता
विभिन्न क्रिया
करने को वो दिया
अनेक अंग
होती लटकी
पतले तार पर
कैसे मकड़ी
प्रभु तुम्हें भी
दिया कुछ विशेष
सोचा है कभी
किया कुछ भी
नहीं जाता है व्यर्थ
सोचा है कभी
किसी से मांगो
पर देता है वही
सोचा है कभी
जिससे माँगा
दिया वही उसे भी
सोचा है कभी
समय सदा
होता एक सा नहीं
सोचा है कभी
तू है पालक
हम तेरे बालक
गोद रखना
नहीं रहता
प्रभु से कुछ छुपा
तम हो घोर
उसके सिवा
सृष्टि का ओर छोर
जाना न और
दिया वो ताकि
उलझा रहे व्यक्ति
मन व पेट
कठिन पर
उसे पाने का मार्ग
तप व त्याग
शून्य में टंगी
पड़ी यह धरती
तेरी ही शक्ति
तुझसे ले के
फैलाता दिनकर
सृष्टि में रश्मि
गरज कर
बरसता बादल
तेरी ही बूंदें
तुझसे पा के
अकड़ता मानव
धन व बल
नन्हां सा बीज
होता विशाल वृक्ष
तेरा ही जादू
ऊपर खड़ा
वृक्ष कैसे निकला
भूमि ज्यों की त्यों
बनाया चित्र
तू चलते फिरते
जीव विचित्र
तितली फूल
मनभावन तेरी
नदी का कूल
घुमाता नीर
अम्बुद से धरनी
तेरी करनी
सबसे सुखी
पाया प्रभु की माया
निरोग काया
रखा है प्रभु
पहुंचे मेरी बात
नभ को रिक्त
प्रभु का ध्यान
होवे वश में मन
होता सरल
मन प्रसन्न
होता है जब होती
चाहत थोड़ी
न कि आग्रह
ईश्वर में विस्वास
दिलाता सब
मन की इच्छा
बड़ी हो के कराती
भक्ति को छोटी
प्रभु को हम
पहचान न पाते
दिखता नित
प्रभु तो प्यारे
धन का नहीं होता
भाव का भूखा
प्रभु से सब
अपनी कह लेते
सुनाता कौन !
वो सुन लेता
करें हम प्रार्थना
मौन ही चाहे
बनाया वह
एक फुट का वृत्त
अरबों चित्र
घुल जाने दो
उसकी इच्छा में ही
अपनी इच्छा
कृपा करना
पहुंचाऊं ना प्रभु
किसी को कष्ट
करना कष्ट
तेरी शरण रहूं
अहं हो नष्ट
डर ना होता
डरता फिर कौन
पाप कर्म से
अन्तः में होता
यदि रखो विस्वास
प्रभु का वास
हरि का नाम
करने को पर्याप्त
पापों को नष्ट
सिर पे हाथ
पशु भी झुका लेता
अपना शीश
चित्र की सभी
चरित्र की ना कोई
करता पूजा
जिन्होंने भी की
जीवन में मदद
हरि का रूप
प्रमुख स्थान
ढूंढना जो प्रभु को
मन की आस्था
किये जा कर्म
हरि को रख मन
होगा सफल
अनेकों कष्ट
कर देती है भस्म
उसकी स्तुति
देता है वह
कभी बुरा समय
अच्छे के लिए
नई सुबह
तभी देख सकोगे
चाहेगा वह
देने पे आये
प्रभु इतना दे दे
सोच से परे
देने वाला वो
करते पर लोग
स्वयं पे गर्व
सुबह शाम
रटता जो कल्याण
हरि का नाम
लगाता गले
वो, शरण जो आता
पापी ही भले
स्मरण मात्र
प्रभु का है प्रताप
धो देता पाप
लगी लगन
छोड़ के माया आया
तेरी शरण
अति कठिन
चलना सम्हल के
उसके रस्ते
थकता नहीं
दुनिया को चलाता
बैठा वो वहीं
बाग में फूल
देख के खिल जाता
हिय में हरि
पड़े अनेक
उसे चाहने वाले
हमें वो एक
सबकी टकेँ
लगीं उसकी ओर
मांगने और
मैं क्या मांगता
आने से पूर्व सब
दे दिया वह
माँगा था बस
मैं प्रभु की शरण
दे दिया सब
चाहता वह
इत्ता सब देकर
थोड़ी प्रसंशा
होगा ये जग
रहें प्यार से सब
कितना प्यारा
निहाल हुआ
बरसी जिस पर
प्रभु की कृपा
फिर मिलाया
माटी में ही उसने
मिट्टी की काया
देखतीं आँखें
तुझसे ज्योति पा के
तेरा संसार
जागा या सोया
रहा नशे में खोया
नाम के तेरे
पीया दो घूंट
होश ठिकाने आया
नाम के तेरे
पहना माला
गुंथा मोतियों का वो
नाम के तेरे
बड़ा है धन
मणि से भी वो दाना
नाम के तेरे
बना चकोर
ताकूँ नभ की ओर
तू ना दिखता
घट में छुपा
कब तक रहेगा
बाहर भी आ
तूने आकर
मुझ प्यासे को जल
दिया था कल
तूने पठाई
बीमारी में दवाई
मैं ठीक रहूं
तेरा ही दिया
पास है सब कुछ
मैंने क्या किया
वह बनाया
विष भी काम आया
दवा के लिए
बता दे कोई
एक वास्तु का नाम
ना हो धारा पे
हमें पालती
दिया वह धरती
माँ के रूप में
चाहता रब
देने वाला वो सब
हमसे भक्ति
लगन लगी
चाहत भगी सब
प्रभु में जब
आवारा फिरूं
हो गया इश्क मुझे
बता क्या करूँ
झोली फैलाये
खड़ा तेरे दर पे
अल्ला भर दे
जान गया मैं
पत्ते खड़खड़ाये
तेरे ही आये
सहारा देने
पांव लड़खड़ाया
तू ही तो आया
और है कौन
सबकी सुन लेता
रह के मौन
लगन लगा
भगवान तो प्यारे
भाव का भूखा
मैं हूँ उसका
मुझे काहे की चिंता
साथ वो मेरे
देता है खोल
जो उसको न्यौछार
मोक्ष का द्वार
उसकी कही
राह पे जो चलता
सुख मिलता
करे जो याद
करता वो कल्याण
पाप को त्याग
दिया है बुद्धि
रख सके मनुष्य
मन को शुद्ध
कैसे धरती
अंबर में लटकी
प्रभु की माया
विशाल वृक्ष
भूमि जस कि तस
प्रभु की माया
मिट्टी की काया
जीवन का इंजन
जादू सा मन
मिले ज्यों बून्द
सबको मिल जाना
हरि सिंधु में
सिंधु में रह
जीने को पीती मत्स्य
कुछ ही बूंदें
क्यों है लड़ता
प्रभु सब में बैठा
जग में जीव
हर बून्द में
जैसे जल का अंश
हरि हम में
मन का तम
करो तो मिट जाता
हरि भजन
मूर्ख को दिया
जैसे अंधे को शीशा
ज्ञान की बात
रचयिता तू
सृष्टि का संचालक
संहारक तू
होती है आत्मा
परमात्मा का अंश
मलिन ना हो
नाम अनेक
रखे धर्मानुसार
प्रभु है एक
प्रभु से आयी
उसमें ही समायी
आत्मा फिर से
पाप का घड़ा
लिए प्रभु को पाना
कठिन बड़ा
हरि का नाम
मन के हर लेता
तम तमाम
जो ना पिरोया
हरि नाम का धागा
रहा अभागा
मन हो शुद्ध
संग में भाग्य जगे
हरि को भजे
बीज में जीव
हो के भी न उगता
जल के बिना
मनुष्य की ना गति
प्रभु की पूजा बिना
मनुष्य के ही
उदर से निकल
बना मनुष्य
विचित्र यह माया
कौन समझ पाया
जन्म वो देता
प्यार करने वाला
मनुष्य होता
सभी प्यार से रहें
होगा खुदा का जन्म
सूर्य चमका
बालू का वह कण
साथ चमका
मुझ तक जो आई
किरण में तू दिखा
धन पा जाता
निर्धन को इंसान
तुच्छ जानता
घमंड में उलझा
प्रभु को भूल जाता
करते तुम
आपस में झगड़ा
होता वो दुखी
मंदिर ना मस्जिद
देखता वह भक्ति
यह मनुष्य
घर में बंद कर
शव रखता
यदि ऐसा हो जाता
देह नहीं सड़ता
वही रहेगी
जीवन की कहानी
लिखा उसने
उन लकीरों पर
हमें तो चलना है
सभी जगह
होता प्रभु का वास
ध्यान की बात
बस ध्यान के लिए
ढूंढते हैं एकांत
वृहत से वृहत
प्रभु का रूप
होता है मन
जलाकर रौशन
भाव की ज्योति
उसके लिए
कोई बड़ा न छोटा
सबका पिता
भजन बिन
उम्र न जाये बीत
रखना चित्त
मन लगाया
प्रभु में सब पाया
छोड़ के माया
मन को जीत
लगाकर मानव
प्रभु से प्रीत
सुख का डेरा
जिसके मन होता
प्रभु बसेरा
तेरा न मेरा
सब कुछ उसी का
माया का फेरा
पायेगा प्राणी
कर प्रभु से प्रेम
परमानन्द
नन्हीं सी जान
पृथ्वी को छेद देती
चींटी महान
रात दी काली
दिन दिया उजला
प्रभु की कला
दौलत व्यर्थ
छीन लेता जिसकी
नींद को वह
चाहे ना वह
नींद नहीं मिलेगी
सोने के मोल
प्रभु ने दिया
हंसने की नीमत
गंवाना मत
चोर की होती
धर ना लिया जाय
यही मन्नत
गजब शक्ति
दिया वो मनुष्य को
मन व बुद्धि
जीने के लिए
हरि का नाम मिला
फिर क्या गिला
भज ले भाई
सदा ही सुखदायी
हरि का नाम
जिसके मन
हरि नाम समाया
डसे ना माया
उसका हाथ
ऊपर हो जिसके
नहीं अनाथ
ढूंढा उसको
मोह माया धन में
बैठा मन में
कोई न जाने
खिले कौन सा गुल
अगला पल
जैसी करनी
आज नहीं तो कल
मिलेगा फल
उसे ही पता
वो क्या करने वाला
अगले पल
नहीं चलेगी
चाहे जोर लगा ले
उसके आगे
देगा वो इत्ता
कोई सोच ना पाये
देने पे आये
भक्तों के लिए
प्रभु है उपलब्ध
किसी भी वक्त
लेकर जाता
सीधे प्रभु के द्वार
भक्ति का मार्ग
जो भी पुकारे
तू उसको उबारे
पार लगा दे
कोई भी कष्ट
आता जो तेरे द्वार
होता उद्धार
तू है पालक
हम तेरे बालक
ले ले शरण
जिसका चाहे
तू भाग्य संवार दे
पार लगा दे
मेरी विनती
भर झोली सबकी
तू है सबका
आता जो द्वार
कर देता वो पूरा
मनोकामना
जग, ईश्वर!
तुझसे उजियारा
होता है सारा
सभी संकट
प्रभु पल में हारे
पार लगा रे
एक ही मन्त्र
दूर हों कई कष्ट
राम का नाम
प्रेम से बोले
वो कृपा बरसाता
जय श्रीराम
************
करती सदा
पुरुषार्थ की सिद्धि
प्रभु की भक्ति
करके सदा
तुम पाओ सदबुद्धि
प्रभु की भक्ति
सुख संपन्न
करके होता जन
प्रभु की भक्ति
रक्षा करती
हर पग सबकी
प्रभु की भक्ति
जो भी करता
सारे वैभव पाता
प्रभु की भक्ति
*************
सम्पूर्ण सृष्टि
प्रभु तेरे वश में
लगाना पार
भंवर फंसी
प्रभु नईया मेरी
लगाना पार
पल में हारे
प्रभु हर संकट
लगाना पार
तेरी शरण
है सबका उद्धार
लगाना पार
पालनहार
सम्पूर्ण जग का तू
लगाना पार
*************
तू ही सहारा
कर जग से सारा
पापों का नाश
देता है भगा
जग का तम सारा
दीया उसका
वेद पुराण
जीवन दिक् दर्शक
ज्ञान की खान
जैसी करनी
आज नहीं तो कल
मिलेगा फल
शत्रु का वध
प्राण पे पड़ आये
शास्त्र सम्मत
द्वार आये को
कोई गले लगाए
प्रभु को भाये
होती न व्यर्थ
किसीकी की मदद
देता वो फल
कल आएगा
तुम्हारा आज किया
तुम्हारे काम
मिलो सबसे
प्रभु क्या रूप धरे
बड़े प्रेम से
दिया है प्रभु
सोचना कितनों से
तुम्हें अधिक
छोटे को देखो
अपने ही लगेगा
तुम बड़े हो
जैसी नियत
वैसी ही तबियत
करता प्रभु
भुला देता है
गर्व मद व क्रोध
प्रभु का बोध
कोई गले लगाए
प्रभु को भाये
होती न व्यर्थ
किसीकी की मदद
देता वो फल
कल आएगा
तुम्हारा आज किया
तुम्हारे काम
मिलो सबसे
प्रभु क्या रूप धरे
बड़े प्रेम से
दिया है प्रभु
सोचना कितनों से
तुम्हें अधिक
छोटे को देखो
अपने ही लगेगा
तुम बड़े हो
जैसी नियत
वैसी ही तबियत
करता प्रभु
भुला देता है
गर्व मद व क्रोध
प्रभु का बोध
देह है माटी
बुद्धि और इन्द्रियां
हरि का अंश
नहीं हिलता
प्रभु के चाहे बिना
एक भी पत्ता
हवा का चाहे
बवंडर बना दे
चाहे वो आंधी
जीत व हार
प्यार या तिरस्कार
उसके हाथ
देख के दंग
हो जाता मैं इतने
फूलों के रंग
प्रभु ने किया
जिसको पैदा किया
मौत भी तय
हुए अमर
मीरा तुलसी सूर
हरि को भज
हरि को भजे
उसका वह होई
और न कोई
सुबह शाम
और चीजें तमाम
वही बनाया
खाने को दिया
उसने भूख दी तो
फल व अन्न
प्यास दिया तो
बुझाने की खातिर
दिया वो नीर
ऋतु बनाया
सबके अनुकूल
प्रभु तू खूब
फूल के साथ
तूने कांटे भी दिए
रक्षा के लिए
प्रभु ने दिया
दुःख भी कि समझो
सुख का अर्थ
होता तुम्हारे
कर्मों पर निर्भर
रोना हंसना
सुखाने आया
तू आंसुओं को मेरे
जब भी रोया
मंदिर में तू
खड़ा था मूर्ति बना
मैं तेरा भक्त
भक्ति का मार्ग
लेकर चला जाता
हरि के द्वार
नहीं भी देता
जितना कुछ दिया
क्या कर लेता
विभिन्न क्रिया
करने को वो दिया
अनेक अंग
होती लटकी
पतले तार पर
कैसे मकड़ी
प्रभु तुम्हें भी
दिया कुछ विशेष
सोचा है कभी
किया कुछ भी
नहीं जाता है व्यर्थ
सोचा है कभी
किसी से मांगो
पर देता है वही
सोचा है कभी
जिससे माँगा
दिया वही उसे भी
सोचा है कभी
समय सदा
होता एक सा नहीं
सोचा है कभी
तू है पालक
हम तेरे बालक
गोद रखना
नहीं रहता
प्रभु से कुछ छुपा
तम हो घोर
उसके सिवा
सृष्टि का ओर छोर
जाना न और
दिया वो ताकि
उलझा रहे व्यक्ति
मन व पेट
कठिन पर
उसे पाने का मार्ग
तप व त्याग
शून्य में टंगी
पड़ी यह धरती
तेरी ही शक्ति
तुझसे ले के
फैलाता दिनकर
सृष्टि में रश्मि
गरज कर
बरसता बादल
तेरी ही बूंदें
तुझसे पा के
अकड़ता मानव
धन व बल
नन्हां सा बीज
होता विशाल वृक्ष
तेरा ही जादू
ऊपर खड़ा
वृक्ष कैसे निकला
भूमि ज्यों की त्यों
बनाया चित्र
तू चलते फिरते
जीव विचित्र
तितली फूल
मनभावन तेरी
नदी का कूल
घुमाता नीर
अम्बुद से धरनी
तेरी करनी
सबसे सुखी
पाया प्रभु की माया
निरोग काया
रखा है प्रभु
पहुंचे मेरी बात
नभ को रिक्त
प्रभु का ध्यान
होवे वश में मन
होता सरल
मन प्रसन्न
होता है जब होती
चाहत थोड़ी
न कि आग्रह
ईश्वर में विस्वास
दिलाता सब
मन की इच्छा
बड़ी हो के कराती
भक्ति को छोटी
प्रभु को हम
पहचान न पाते
दिखता नित
प्रभु तो प्यारे
धन का नहीं होता
भाव का भूखा
प्रभु से सब
अपनी कह लेते
सुनाता कौन !
वो सुन लेता
करें हम प्रार्थना
मौन ही चाहे
बनाया वह
एक फुट का वृत्त
अरबों चित्र
घुल जाने दो
उसकी इच्छा में ही
अपनी इच्छा
कृपा करना
पहुंचाऊं ना प्रभु
किसी को कष्ट
करना कष्ट
तेरी शरण रहूं
अहं हो नष्ट
डर ना होता
डरता फिर कौन
पाप कर्म से
अन्तः में होता
यदि रखो विस्वास
प्रभु का वास
हरि का नाम
करने को पर्याप्त
पापों को नष्ट
सिर पे हाथ
पशु भी झुका लेता
अपना शीश
चित्र की सभी
चरित्र की ना कोई
करता पूजा
जिन्होंने भी की
जीवन में मदद
हरि का रूप
प्रमुख स्थान
ढूंढना जो प्रभु को
मन की आस्था
किये जा कर्म
हरि को रख मन
होगा सफल
अनेकों कष्ट
कर देती है भस्म
उसकी स्तुति
देता है वह
कभी बुरा समय
अच्छे के लिए
नई सुबह
तभी देख सकोगे
चाहेगा वह
देने पे आये
प्रभु इतना दे दे
सोच से परे
देने वाला वो
करते पर लोग
स्वयं पे गर्व
सुबह शाम
रटता जो कल्याण
हरि का नाम
लगाता गले
वो, शरण जो आता
पापी ही भले
स्मरण मात्र
प्रभु का है प्रताप
धो देता पाप
लगी लगन
छोड़ के माया आया
तेरी शरण
अति कठिन
चलना सम्हल के
उसके रस्ते
थकता नहीं
दुनिया को चलाता
बैठा वो वहीं
बाग में फूल
देख के खिल जाता
हिय में हरि
उसे चाहने वाले
हमें वो एक
सबकी टकेँ
लगीं उसकी ओर
मांगने और
मैं क्या मांगता
आने से पूर्व सब
दे दिया वह
माँगा था बस
मैं प्रभु की शरण
दे दिया सब
चाहता वह
इत्ता सब देकर
थोड़ी प्रसंशा
होगा ये जग
रहें प्यार से सब
कितना प्यारा
निहाल हुआ
बरसी जिस पर
प्रभु की कृपा
फिर मिलाया
माटी में ही उसने
मिट्टी की काया
देखतीं आँखें
तुझसे ज्योति पा के
तेरा संसार
जागा या सोया
रहा नशे में खोया
नाम के तेरे
पीया दो घूंट
होश ठिकाने आया
नाम के तेरे
पहना माला
गुंथा मोतियों का वो
नाम के तेरे
बड़ा है धन
मणि से भी वो दाना
नाम के तेरे
बना चकोर
ताकूँ नभ की ओर
तू ना दिखता
घट में छुपा
कब तक रहेगा
बाहर भी आ
तूने आकर
मुझ प्यासे को जल
दिया था कल
तूने पठाई
बीमारी में दवाई
मैं ठीक रहूं
तेरा ही दिया
पास है सब कुछ
मैंने क्या किया
वह बनाया
विष भी काम आया
दवा के लिए
बता दे कोई
एक वास्तु का नाम
ना हो धारा पे
हमें पालती
दिया वह धरती
माँ के रूप में
चाहता रब
देने वाला वो सब
हमसे भक्ति
लगन लगी
चाहत भगी सब
प्रभु में जब
आवारा फिरूं
हो गया इश्क मुझे
बता क्या करूँ
झोली फैलाये
खड़ा तेरे दर पे
अल्ला भर दे
जान गया मैं
पत्ते खड़खड़ाये
तेरे ही आये
सहारा देने
पांव लड़खड़ाया
तू ही तो आया
और है कौन
सबकी सुन लेता
रह के मौन
लगन लगा
भगवान तो प्यारे
भाव का भूखा
मैं हूँ उसका
मुझे काहे की चिंता
साथ वो मेरे
देता है खोल
जो उसको न्यौछार
मोक्ष का द्वार
उसकी कही
राह पे जो चलता
सुख मिलता
करे जो याद
करता वो कल्याण
पाप को त्याग
दिया है बुद्धि
रख सके मनुष्य
मन को शुद्ध
कैसे धरती
अंबर में लटकी
प्रभु की माया
विशाल वृक्ष
भूमि जस कि तस
प्रभु की माया
मिट्टी की काया
जीवन का इंजन
जादू सा मन
मिले ज्यों बून्द
सबको मिल जाना
हरि सिंधु में
सिंधु में रह
जीने को पीती मत्स्य
कुछ ही बूंदें
क्यों है लड़ता
प्रभु सब में बैठा
जग में जीव
हर बून्द में
जैसे जल का अंश
हरि हम में
मन का तम
करो तो मिट जाता
हरि भजन
मूर्ख को दिया
जैसे अंधे को शीशा
ज्ञान की बात
रचयिता तू
सृष्टि का संचालक
संहारक तू
होती है आत्मा
परमात्मा का अंश
मलिन ना हो
नाम अनेक
रखे धर्मानुसार
प्रभु है एक
प्रभु से आयी
उसमें ही समायी
आत्मा फिर से
पाप का घड़ा
लिए प्रभु को पाना
कठिन बड़ा
हरि का नाम
मन के हर लेता
तम तमाम
जो ना पिरोया
हरि नाम का धागा
रहा अभागा
मन हो शुद्ध
संग में भाग्य जगे
हरि को भजे
बीज में जीव
हो के भी न उगता
जल के बिना
मनुष्य की ना गति
प्रभु की पूजा बिना
मनुष्य के ही
उदर से निकल
बना मनुष्य
विचित्र यह माया
कौन समझ पाया
प्यार करने वाला
मनुष्य होता
सभी प्यार से रहें
होगा खुदा का जन्म
सूर्य चमका
बालू का वह कण
साथ चमका
मुझ तक जो आई
किरण में तू दिखा
धन पा जाता
निर्धन को इंसान
तुच्छ जानता
घमंड में उलझा
प्रभु को भूल जाता
आपस में झगड़ा
होता वो दुखी
मंदिर ना मस्जिद
देखता वह भक्ति
यह मनुष्य
घर में बंद कर
शव रखता
यदि ऐसा हो जाता
देह नहीं सड़ता
वही रहेगी
जीवन की कहानी
लिखा उसने
उन लकीरों पर
हमें तो चलना है
सभी जगह
होता प्रभु का वास
ध्यान की बात
बस ध्यान के लिए
ढूंढते हैं एकांत
करते कर्म
सोचकर के सब
इच्छा की पूर्ति
हरि को धर ध्यान
किये कर्म महान
सृष्टि भी छोटी
प्रभु इतना बड़ा
छोटा इतना
छोटे से शब्द मात्र
ॐ में समा जाय
सोचकर के सब
इच्छा की पूर्ति
हरि को धर ध्यान
किये कर्म महान
सृष्टि भी छोटी
प्रभु इतना बड़ा
छोटा इतना
छोटे से शब्द मात्र
ॐ में समा जाय
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