Saturday, 28 October 2017

Haiku Nov 2017

आवाज नहीं
चीटियां छितरायीं
वो तो बूंदें थीं

सरिता गयी
पद चिन्ह हो गए
झाग में लुप्त

घनी बारिश
शरण लिया हुआ
पक्षी का झुण्ड

बंजर भूमि
खड़ा एक ही पेड़
वह भी रेड़

घूमते मेघ
ढूंढ कर ले आये
थोड़ी सी छाया

दफना दिया
बीज को मरा जान
पेड़ हो गया

वट का वृक्ष
देख ना पाए छाँव
सूरज चाँद

बसंत गया
रो के शोक मनाते
बागों के फूल

बड़ी ख़राब
उठते ही आ जाती
ब्रश ले मम्मी

कोयल गाई
डाल पर उगती
कली मुस्काई

ठण्ड के मारे
रोते मेघ गिराते
बर्फ के आंसू

उड़ती पत्ती
ये जो आंधी में आई
उस गांव से

चेहरे पर
झुर्रियों की नदियां
बूढ़े हो चले

तस्वीरों का क्या
तस्वीर में लगता
सांप भी अच्छा

दीया जलाया
अँधियारा भी आ के
खूब नहाया


घना कोहरा
ढक लिया आकर
पक्षी के गीत

वर्षा में भीगी
छप्पर न छतरी
दीन जिंदगी

धुंध का दिन
गहरा गया सुन
उनका फोन

बड़ा ही होगा
आधे डंडे पे झंडा
जो मरा होगा

श्मशान घाट
नेता की मौत पर
कारों की भीड़

भीख ना दिया
मरने पे दे आये
कफ़न दान

अं छूट गया
इत्ती सी बात पर
अंजली जली

जाना है आज
रेस्टॉरेंट में खाने
मेज की चिंता

सींच न पाए
पौधे दिनों बुझाये
ओस से प्यास

अतिथि आया 
मम्मी ने समझाया
तोतले बोल

ठण्ड :: गर्म चाय

जन्म दिन :: बारह मोमबत्तियां 


फंसा बेचारा
सूरज पर डाला
धुंध ने जाल

बहुत लड़ी
पर टूट के गिरी
आँधी में कली

तुम ना साथ
डंसने लग जाती
होते ही रात

तितली उड़ी
बुलाते रहे हम
फिर ना मुड़ी

थी मजबूर 
पत्ती को बवंडर
ले गया दूर

झील में गिरी
डूबी न तट पाई
कटी पतंग 

जी ली तितली
लमहों में जीकर
लम्बी जिंदगी

No comments:

Post a Comment