Saturday, 28 October 2017

Haiku Nov 2017

आवाज नहीं
चीटियां छितरायीं
वो तो बूंदें थीं

सरिता गयी
पद चिन्ह हो गए
झाग में लुप्त

घनी बारिश
शरण लिया हुआ
पक्षी का झुण्ड

बंजर भूमि
खड़ा एक ही पेड़
वह भी रेड़

घूमते मेघ
ढूंढ कर ले आये
थोड़ी सी छाया

दफना दिया
बीज को मरा जान
पेड़ हो गया

वट का वृक्ष
देख ना पाए छाँव
सूरज चाँद

बसंत गया
रो के शोक मनाते
बागों के फूल

बड़ी ख़राब
उठते ही आ जाती
ब्रश ले मम्मी

कोयल गाई
डाल पर उगती
कली मुस्काई

ठण्ड के मारे
रोते मेघ गिराते
बर्फ के आंसू

उड़ती पत्ती
ये जो आंधी में आई
उस गांव से

चेहरे पर
झुर्रियों की नदियां
बूढ़े हो चले

तस्वीरों का क्या
तस्वीर में लगता
सांप भी अच्छा

दीया जलाया
अँधियारा भी आ के
खूब नहाया


घना कोहरा
ढक लिया आकर
पक्षी के गीत

वर्षा में भीगी
छप्पर न छतरी
दीन जिंदगी

धुंध का दिन
गहरा गया सुन
उनका फोन

बड़ा ही होगा
आधे डंडे पे झंडा
जो मरा होगा

श्मशान घाट
नेता की मौत पर
कारों की भीड़

भीख ना दिया
मरने पे दे आये
कफ़न दान

अं छूट गया
इत्ती सी बात पर
अंजली जली

जाना है आज
रेस्टॉरेंट में खाने
मेज की चिंता

सींच न पाए
पौधे दिनों बुझाये
ओस से प्यास

अतिथि आया 
मम्मी ने समझाया
तोतले बोल

ठण्ड :: गर्म चाय

जन्म दिन :: बारह मोमबत्तियां 


फंसा बेचारा
सूरज पर डाला
धुंध ने जाल

बहुत लड़ी
पर टूट के गिरी
आँधी में कली

तुम ना साथ
डंसने लग जाती
होते ही रात

तितली उड़ी
बुलाते रहे हम
फिर ना मुड़ी

थी मजबूर 
पत्ती को बवंडर
ले गया दूर

झील में गिरी
डूबी न तट पाई
कटी पतंग 

जी ली तितली
लमहों में जीकर
लम्बी जिंदगी

Thursday, 26 October 2017

Haiku Tere naam 4

सूक्ष्म से सूक्ष्म
वृहत से वृहत
प्रभु का रूप

होता है मन
जलाकर रौशन 
भाव की ज्योति

उसके लिए
कोई बड़ा न छोटा
सबका पिता

भजन बिन
उम्र न जाये बीत
रखना चित्त

मन लगाया
प्रभु में सब पाया
छोड़ के माया

मन को जीत
लगाकर मानव
प्रभु से प्रीत

सुख का डेरा
जिसके मन होता
प्रभु बसेरा

तेरा न मेरा
सब कुछ उसी का
माया का फेरा

पायेगा प्राणी
कर प्रभु से प्रेम
परमानन्द

नन्हीं सी जान
पृथ्वी को छेद देती
चींटी महान

रात दी काली
दिन दिया उजला
प्रभु की कला

दौलत व्यर्थ
छीन लेता जिसकी
नींद को वह

चाहे ना वह
नींद नहीं मिलेगी
सोने के मोल

प्रभु ने दिया
हंसने की नीमत
गंवाना मत

चोर की होती
धर ना लिया जाय 
यही मन्नत   

गजब शक्ति
दिया वो मनुष्य को
मन व बुद्धि

जीने के लिए
हरि का नाम मिला
फिर क्या गिला

भज ले भाई
सदा ही सुखदायी
हरि का नाम 


जिसके मन
हरि नाम समाया
डसे ना माया

उसका हाथ
ऊपर हो जिसके
नहीं अनाथ

ढूंढा उसको
मोह माया धन में
बैठा मन में

कोई न जाने
खिले कौन सा गुल
अगला पल

जैसी करनी
आज नहीं तो कल
मिलेगा फल 

उसे ही पता
वो क्या करने वाला
अगले पल

नहीं चलेगी
चाहे जोर लगा ले
उसके आगे

देगा वो इत्ता
कोई सोच ना पाये 
देने पे आये

भक्तों के लिए
प्रभु है उपलब्ध
किसी भी वक्त

लेकर जाता
सीधे प्रभु के द्वार
भक्ति का मार्ग

जो भी पुकारे
तू उसको उबारे
पार लगा दे

कोई भी कष्ट
आता जो तेरे द्वार
होता उद्धार

तू है पालक
हम तेरे बालक
ले ले शरण

जिसका चाहे
तू भाग्य संवार दे
पार लगा दे

मेरी विनती
भर झोली सबकी
तू है सबका

आता जो द्वार
कर देता वो पूरा
मनोकामना

जग, ईश्वर!
तुझसे उजियारा
होता है सारा

सभी संकट
प्रभु पल में हारे
पार लगा रे 

एक ही मन्त्र
दूर हों कई कष्ट
राम का नाम

प्रेम से बोले
वो कृपा बरसाता
जय श्रीराम

************

करती सदा
पुरुषार्थ की सिद्धि
प्रभु की भक्ति

करके सदा
तुम पाओ सदबुद्धि
प्रभु की भक्ति

सुख संपन्न
करके होता जन
प्रभु की भक्ति

रक्षा करती
हर पग सबकी
प्रभु की भक्ति

जो भी करता
सारे वैभव पाता
प्रभु की भक्ति

*************

सम्पूर्ण सृष्टि
प्रभु तेरे वश में
लगाना पार

भंवर फंसी
प्रभु नईया मेरी
लगाना पार

पल में हारे
प्रभु हर संकट
लगाना पार

तेरी शरण
है सबका उद्धार
लगाना पार

पालनहार
सम्पूर्ण जग का तू
लगाना पार

*************

तू ही सहारा
कर जग से सारा
पापों का नाश

देता है भगा
जग का तम सारा
दीया उसका

वेद पुराण
जीवन दिक् दर्शक
ज्ञान की खान

जैसी करनी
आज नहीं तो कल
मिलेगा फल

शत्रु का वध
प्राण पे पड़ आये
शास्त्र सम्मत

द्वार आये को
कोई गले लगाए
प्रभु को भाये

होती न व्यर्थ
किसीकी की मदद
देता वो फल

कल आएगा
तुम्हारा आज किया
तुम्हारे काम

मिलो सबसे
प्रभु क्या रूप धरे
बड़े प्रेम से

दिया है प्रभु
सोचना कितनों से
तुम्हें अधिक

छोटे को देखो
अपने ही लगेगा
तुम बड़े हो

जैसी नियत
वैसी ही तबियत
करता प्रभु

भुला देता है
गर्व मद व क्रोध
प्रभु का बोध 

देह है माटी
बुद्धि और इन्द्रियां 
हरि का अंश

नहीं हिलता
प्रभु के चाहे बिना
एक भी पत्ता

हवा का चाहे
बवंडर बना दे
चाहे वो आंधी

जीत व हार
प्यार या तिरस्कार
उसके हाथ


देख के दंग
हो जाता मैं इतने
फूलों के रंग

प्रभु ने किया 
जिसको पैदा किया
मौत भी तय

हुए अमर
मीरा तुलसी सूर
हरि को भज

हरि को भजे
उसका वह होई
और न कोई 

सुबह शाम
और चीजें तमाम
वही बनाया

खाने को दिया
उसने भूख दी तो
फल व अन्न

प्यास दिया तो
बुझाने की खातिर
दिया वो नीर

ऋतु बनाया
सबके अनुकूल
प्रभु तू खूब

फूल के साथ
तूने कांटे भी दिए
रक्षा के लिए

प्रभु ने दिया
दुःख भी कि समझो
सुख का अर्थ

होता तुम्हारे
कर्मों पर निर्भर
रोना हंसना

सुखाने आया
तू आंसुओं को मेरे
जब भी रोया

मंदिर में तू
खड़ा था मूर्ति बना
मैं तेरा भक्त

भक्ति का मार्ग
लेकर चला जाता
हरि के द्वार

नहीं भी देता
जितना कुछ दिया
क्या कर लेता

विभिन्न क्रिया
करने को वो दिया
अनेक अंग

होती लटकी
पतले तार पर
कैसे मकड़ी


प्रभु तुम्हें भी
दिया कुछ विशेष
सोचा है कभी

किया कुछ भी
नहीं जाता है व्यर्थ
सोचा है कभी

किसी से मांगो
पर देता है वही
सोचा है कभी

जिससे माँगा
दिया वही उसे भी
सोचा है कभी

समय सदा
होता एक सा नहीं
सोचा है कभी 


तू है पालक
हम तेरे बालक
गोद रखना

नहीं रहता
प्रभु से कुछ छुपा
तम हो घोर

उसके सिवा
सृष्टि का ओर छोर
जाना न और

दिया वो ताकि
उलझा रहे व्यक्ति
मन व पेट

कठिन पर
उसे पाने का मार्ग
तप व त्याग

शून्य में टंगी
पड़ी यह धरती
तेरी ही शक्ति

तुझसे ले के
फैलाता दिनकर
सृष्टि में रश्मि

गरज कर
बरसता बादल
तेरी ही बूंदें

तुझसे पा के
अकड़ता मानव
धन व बल

नन्हां सा बीज
होता विशाल वृक्ष
तेरा ही जादू

ऊपर खड़ा
वृक्ष कैसे निकला
भूमि ज्यों की त्यों

बनाया चित्र
तू चलते फिरते
जीव विचित्र

तितली फूल
मनभावन तेरी
नदी का कूल

घुमाता नीर
अम्बुद से धरनी
तेरी करनी 

सबसे सुखी
पाया प्रभु की माया
निरोग काया

रखा है प्रभु
पहुंचे मेरी बात
नभ को रिक्त

प्रभु का ध्यान
होवे वश में मन
होता सरल

मन प्रसन्न
होता है जब होती
चाहत थोड़ी

न कि आग्रह
ईश्वर में विस्वास
दिलाता सब 

मन की इच्छा
बड़ी हो के कराती
भक्ति को छोटी

प्रभु को हम
पहचान न पाते
दिखता नित

प्रभु तो प्यारे
धन का नहीं होता
भाव का भूखा

प्रभु से सब
अपनी कह लेते
सुनाता कौन !

वो सुन लेता
करें हम प्रार्थना
मौन ही चाहे

बनाया वह
एक फुट का वृत्त
अरबों चित्र

घुल जाने दो
उसकी इच्छा में ही
अपनी इच्छा

कृपा करना
पहुंचाऊं ना प्रभु
किसी को कष्ट

करना कष्ट
तेरी शरण रहूं
अहं हो नष्ट

डर ना होता
डरता फिर कौन
पाप कर्म से

अन्तः में होता
यदि रखो विस्वास
प्रभु का वास

हरि का नाम
करने को पर्याप्त
पापों को नष्ट

सिर पे हाथ
पशु भी झुका लेता
अपना शीश

चित्र की सभी
चरित्र की ना कोई
करता पूजा

जिन्होंने भी की
जीवन में मदद
हरि का रूप


प्रमुख स्थान
ढूंढना जो प्रभु को
मन की आस्था

किये जा कर्म
हरि को रख मन
होगा सफल

अनेकों कष्ट
कर देती है भस्म
उसकी स्तुति

देता है वह
कभी बुरा समय
अच्छे के लिए

नई सुबह
तभी देख सकोगे 
चाहेगा वह

देने पे आये
प्रभु इतना दे दे
सोच से परे

देने वाला वो
करते पर लोग
स्वयं पे गर्व

सुबह शाम
रटता जो कल्याण
हरि का नाम

लगाता गले
वो, शरण जो आता
पापी ही भले

स्मरण मात्र
प्रभु का है प्रताप
धो देता पाप

लगी लगन
छोड़ के माया आया
तेरी शरण

अति कठिन
चलना सम्हल के
उसके रस्ते

थकता नहीं
दुनिया को चलाता
बैठा वो वहीं

बाग में फूल
देख के खिल जाता
हिय में हरि

पड़े अनेक
उसे चाहने वाले
हमें वो एक

सबकी टकेँ
लगीं उसकी ओर
मांगने और

मैं क्या मांगता
आने से पूर्व सब
दे दिया वह

माँगा था बस
मैं प्रभु की शरण
दे दिया सब

चाहता वह
इत्ता सब देकर
थोड़ी प्रसंशा

होगा ये जग
रहें प्यार से सब
कितना प्यारा


निहाल हुआ
बरसी जिस पर
प्रभु की कृपा

फिर मिलाया
माटी में ही उसने
मिट्टी की काया

देखतीं आँखें
तुझसे ज्योति पा के
तेरा संसार

जागा या सोया
रहा नशे में खोया
नाम के तेरे

पीया दो घूंट
होश ठिकाने आया
नाम के तेरे

पहना माला
गुंथा मोतियों का वो
नाम के तेरे

बड़ा है धन
मणि से भी वो दाना
नाम के तेरे


बना चकोर
ताकूँ नभ की ओर
तू ना दिखता

घट में छुपा
कब तक रहेगा
बाहर भी आ

तूने आकर
मुझ प्यासे को जल
दिया था कल

तूने पठाई
बीमारी में दवाई
मैं ठीक रहूं

तेरा ही दिया
पास है सब कुछ
मैंने क्या किया


वह बनाया
विष भी काम आया
दवा के लिए

बता दे कोई
एक वास्तु का नाम
ना हो धारा पे

हमें पालती
दिया वह धरती
माँ के रूप में

चाहता रब
देने वाला वो सब
हमसे भक्ति

लगन लगी
चाहत भगी सब
प्रभु में जब

आवारा फिरूं
हो गया इश्क मुझे
बता क्या करूँ

झोली फैलाये
खड़ा तेरे दर पे
अल्ला भर दे

जान गया मैं 
पत्ते खड़खड़ाये
तेरे ही आये

सहारा देने
पांव लड़खड़ाया
तू ही तो आया

और है कौन
सबकी सुन लेता
रह के मौन

लगन लगा
भगवान तो प्यारे
भाव का भूखा

मैं हूँ उसका
मुझे काहे की चिंता
साथ वो मेरे

देता है खोल
जो उसको न्यौछार
मोक्ष का द्वार

उसकी कही
राह पे जो चलता
सुख मिलता

करे जो याद
करता वो कल्याण
पाप को त्याग

दिया है बुद्धि
रख सके मनुष्य
मन को शुद्ध

कैसे धरती
अंबर में लटकी
प्रभु की माया

विशाल वृक्ष
भूमि जस कि तस
प्रभु की माया

मिट्टी की काया
जीवन का इंजन
जादू सा मन

मिले ज्यों बून्द
सबको मिल जाना
हरि सिंधु में

सिंधु में रह
जीने को पीती मत्स्य
कुछ ही बूंदें

क्यों है लड़ता
प्रभु सब में बैठा
जग में जीव

हर बून्द में
जैसे जल का अंश
हरि हम में

मन का तम
करो तो मिट जाता
हरि भजन

मूर्ख को दिया
जैसे अंधे को शीशा
ज्ञान की बात

रचयिता तू
सृष्टि का संचालक 
संहारक तू

होती है आत्मा
परमात्मा का अंश
मलिन ना हो

नाम अनेक
रखे धर्मानुसार 
प्रभु है एक

प्रभु से आयी
उसमें ही समायी 
आत्मा फिर से

पाप का घड़ा
लिए प्रभु को पाना 
कठिन  बड़ा 

हरि का नाम
मन के हर लेता 
तम तमाम

जो ना पिरोया 
हरि नाम का धागा
रहा अभागा

मन हो शुद्ध
संग में भाग्य जगे
हरि को भजे


बीज में जीव
हो के भी न उगता
जल के बिना
मनुष्य की ना गति
प्रभु की पूजा बिना


मनुष्य के ही
उदर से निकल
बना मनुष्य
विचित्र यह माया
कौन समझ पाया

जन्म वो देता
प्यार करने वाला
मनुष्य होता
सभी प्यार से रहें
होगा खुदा का जन्म

सूर्य चमका
बालू का वह कण
साथ चमका
मुझ तक जो आई
किरण में तू दिखा

धन पा जाता
निर्धन को इंसान
तुच्छ जानता
घमंड में उलझा
प्रभु को भूल जाता

करते तुम
आपस में झगड़ा
होता वो दुखी
मंदिर ना मस्जिद
देखता वह भक्ति

यह मनुष्य
घर में बंद कर
शव रखता
यदि ऐसा हो जाता
देह नहीं सड़ता

वही रहेगी
जीवन की कहानी
लिखा उसने
उन लकीरों पर
हमें तो चलना है 


सभी जगह
होता प्रभु का वास
ध्यान की बात 
बस ध्यान के लिए 
ढूंढते हैं एकांत 

करते कर्म
सोचकर के सब
इच्छा की पूर्ति
हरि को धर ध्यान
किये कर्म महान

सृष्टि भी छोटी
प्रभु इतना बड़ा
छोटा इतना
छोटे से शब्द मात्र
ॐ में समा जाय 

Tuesday, 24 October 2017

Bade baap ka beta

बड़े बाप का बेटा

बड़े बाप का बेटा था,
पैसे के बल पर ऐंठा था।
घर में नई कार आ गयी,
उसकी तो बहार आ गयी।
चमकता शानदार रंग था
लाल कार देख, पास पड़ोस दंग था। 
उसके मन कार बहुत भाई,
सुन्दर इतनी कि पड़ोसन लजाई।
उसमें एसी, हीटर, लाइटर था,
आगे और पीछे वाइपर था।
आटोमेटिक गियर था,
रेडियो, म्यूजिक प्लेयर था।
आटोमेटिक ही साइड मिरर था
रिवर्स के लिए अलार्म सेंसर था।
राह बताने के लिए जीपीएस था,
खुलकर बैठने का लेग स्पेस था।
कार की पिकअप बड़ी फ़ास्ट थी,
सेकंडों में साठ के पार थी। 
संगीतमय हॉर्न, जोरदार लाइट थी,
बाप बेटा में चलाने की फाइट थी।
बोतल, गिलास रखने की जगह थी,
कार को चलाने की वाकई वजह थी। 
बाप से आंख बचा, बेटा कार ले जाता, 
कभी कभी दोस्तों को भी घुमाता। 
लेकर, उसे बार बार निकल जाता,
कभी कभी तो दूर तक हो आता।
आगे जाती गाड़ी देख, जोश बढ़ जाता, 
दाएं, कभी बाएं से आगे निकल जाता। 
कोई उसे ओवरटेक करता, 
मन ही मन बड़ा क्रोध भरता। 
चलती गाड़ियों से रेस लगाता, 
अपनी कार की स्पीड दिखाता। 
पटरी पर लड़की की झलक पाता,  
अनायास ही हॉर्न का बटन दब जाता।  

एक दिन, उसे अवसर मिला, 
पिता जी बाहर गए थे, गाड़ी ले चला। 
सोचा, आज गर्ल फ्रेंड को घुमा दें, 
अपनी और गाड़ी की धाक जमा दें। 
चला गया वो लॉन्ग ड्राइव पर, 
स्पीड थी हंड्रेड फाइव पर। 
गर्ल फ्रेंड ने तारीफ़ कर दी  
कार आसमान पर चल दी। 
उत्साह, बढ़ चढ़ कर था,
चला रहा, थोड़ी पीकर था। 
सामने एक बिल्ली आयी 
काली थी नजर नहीं आयी। 
बिल्ली कूद कर जान बचाई 
कार जाकर, पटरी से टकराई। 
कार महँगी थी, मजबूत थी 
बंपर व शीशों में ही टूट फूट थी।  
पर पटरी पर जा रहा बेचारा 
गया बेमौत ही मारा।
थोड़ी ही देर में पुलिस आयी 
उसने पैसे की धौंस दिखाई। 
मगर सब बेकार हो गया, 
उस पर तीन सौ चार लग गया।
महंगे से महंगा वकील किया
झूठ सच का दलील दिया।
पैसे तो बहुत खर्च हुए
पर बिना किसी निष्कर्ष लिए।
पूरा परिवार परेशान हुआ
काम का भी नुकसान हुआ।
मुक़दमा चला, बहस चली
जेल गया, जमानत न मिली।
पैसा था, बाप का रुतबा बड़ा
सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा।
फिर भी कई साल रहा पड़ा
मुकदमे के पचड़े में जेल में सड़ा।
समझ आया, थोड़ी सी लापरवाही
कर सकती है बड़ी तबाही।
करने में अपनी मस्ती
सोचो ना दूसरे की जिंदगी सस्ती।




Tuesday, 17 October 2017

Tere naam 3 Geeta


गीता

उसके पास
जिस रूप में जाता
अपना लेता

प्रभु के पास
जाने के लिए राह
प्रेम व भक्ति

होती जब भी
प्रकट होता प्रभु
धर्म की हानि

धर्म रक्षार्थ
हर युग में होता
प्रभु प्रकट

हर जीव में
होता जो सर्वोपरि
प्रभु हैं मेरे

जीव का होता
प्रभु से ही संभव
जन्म मरण

पूरा ब्रह्माण्ड
प्रभु का एक अंश
और ये सृष्टि

प्रभु के तो हैं
पहचानूँ मैं कैसे
करोड़ों रूप

करने वाला
निर्माण व विनाश
सृष्टि का प्रभु

सृष्टि में पड़ीं 
विचित्रताएं जो भी 
उसी की कृति  

समय वो ही  
समय निरंतर 
चलाता वही  

वो विद्यमान 
हर पल व स्थान 
करो तो ध्यान 

नहीं भूलता 
जो सुख के समय 
प्रभु को प्यारा 

विलासोन्मुख 
जो है धन लोलुप 
प्रभु विमुख 

लेकर जाते 
लोभ क्रोध हवस 
नर्क के द्वार 

जो भी  देखता  
हर जीव में वही 
प्रभु ने देखा 
होता उसे दर्शन 
उसका हर क्षण  

विषय भोग
आरम्भ में अमृत
बाद में विष

प्रभु का तप
लगता कष्टमय
पार लगाता

सांसों में वही
देह की शक्ति वही
जीवन वही

वो फूंक भी दे
उड़ जाएगी पृथ्वी
नभ में कहीं

डालता  वह
जाता मन उलझ
माया का चक्र

मन में बैठा
उसे देख न पाता
भटका मन

प्रभु दर्शन
कर पाता है मन
एकाग्र चित्त

करते हम
हमारे सभी कर्म
उसी को प्राप्त

हैं कैसे जीते 
जो कुछ खाते पीते
उसी को प्राप्त 
कष्ट जो सहे
किस तरह रहे
उसी को प्राप्त

किसी को कभी
हमारी की मदद
उसी को प्राप्त

देवों की पूजा
किसी की किसी रूप
उसी को प्राप्त

हमारे दिए
मिल जाता है उसे
हरेक भेंट 

देखते जो भी
वही है और वो भी
देख न पाते

करेगा जो भी
स्मरण लगा के जी
पायेगा उसे

मृत्यु समय
याद करके जीव
उसका निज

ध्यान में मग्न
प्रभु के होता मन
रक्षित पूर्ण

अहं व स्वार्थ
रखता है जो दूर
प्रभु का नूर

स्वयं को देखे
जो सबके भीतर
उन्हें अपने
पाता प्रभु का सत्व
मिलता अमरत्व

कर्म के पीछे
प्रभु के लिए भाव
महत्वपूर्ण

सर्व विदित
प्रभु विलास नहीं
भाव का भूखा

हाथ तुम्हारे -
कदापि नहीं फल
कर्म  तुम्हारे

कर्म किये जा
छोड़ के प्रभु पर
फल की चिंता

करना कर्म
बस हाथ तुम्हारे
उसके फल

मन की शुद्धि
रखे धार्मिक बुद्धि
निःस्वार्थ कर्म

रखना ध्यान
फलद किया काम
औरों के हित

नहीं है कुछ
उसके पास नहीं
वही है सब

रखे विचार
कुछ करते ज्ञानी
जग कल्याण

यही कहूंगा
है सबसे उत्तम
अपना धर्म

पिछले जन्म
हम तो भूल चुके
उसको याद

तन से इंद्री
इंद्री से ऊँची बुद्धि
सर्वोच्च आत्मा
आत्मा से मार डालो
स्वार्थ गर्व व ईर्ष्या

जन्म से परे
परिवर्तनहीन
प्रभु अस्तित्व

हर जीव में
अगणित रूप में
प्रभु का वास

एक सा होता
योगी को सुख दुःख
जीत या हार

उससे जुड़े
होते देह रूप में
उसी का अंश


भाव


जो रम जाते
छोड़ लोभ व भय
उसे पा जाते

प्रभु में रमे
उसी में समाहित
अंतकाल में

वो नहीं होता
किसी फल से बंधा
क्रिया से परे

रखते ज्ञान
रिक्त क्षण उसका
करते ध्यान

वस्तु की नहीं
उसको अच्छी लगाती
कर्म की भेंट

ले जाती पार
उसकी हर हाल
श्रद्धा व भक्ति

दिला देती है
हर पाप से मुक्ति
उसकी भक्ति

काठ की भांति
जला देती दुष्कर्म
ज्ञान की आग

कर्मों  को उसे
सौंपने से निःस्वार्थ
पापों से मुक्ति

देती उसकी
साधना और भक्ति
मोक्ष की प्राप्ति

कर्म प्रथम
प्रभु की साधना का
आत्म संयम

वेदों का प्रज्ञ
देखता जगत में
सबको सम

स्वार्थ से परे
किये कर्म तुम्हारे
उसे मिलते

अपने कर्म
करने से अर्पण
प्रभु की प्राप्ति

ज्ञान परम
अपने में छुपाये
अक्षर ब्रह्म

अदृश्य रह
प्रकट होता वह
किसी भी रूप

आरम्भ होती
इन्द्रियों की तृप्ति से
प्रभु विरक्ति

समझते जो
पाते आत्मिक शांति
प्रभु को सखा

परमानन्द
पाते  जो भोग त्याग
प्रभु में लीन

जो स्वार्थहीन
होते उसमें लीन
उसे पा जाते

जानते हैं जो
वही सृष्टि का स्वामी
करते ध्यान

कर्म पे भारी
चाहत ही हो जाती
शत्रु तुम्हारी

जोड़ते हैं जो
स्वकर्म को फल से
प्रभु से परे

हो जाता है जो
चाहत में आशक्त
प्रभु विरक्त

पा लेता है जो
इच्छा पर विजय
प्रभु निकट

इच्छा पे जीत
ना हो वो दुःखी कभी
या भयभीत

अर्पित कर
ब्रह्म को सारे कर्म
शांति में मन

उसका ध्यान
मन पे नियंत्रण
लक्ष्य को जान

अति या न्यून
निद्रा और भोजन
ध्यान में विघ्न

शांत मष्तिष्क
और ध्यान में डूबा
स्वयं को ढूँढा

हो ना सकता
किया हो कर्म अच्छा
बुरा उसका

अपना माना
औरों का सुख दुःख
प्रभु सम्मुख

करता बोध
उसे हर जीव में
प्रभु उसमें

कइयों बार
कई जन्म पश्चात्
उसकी प्राप्ति

होते उत्तम
वैराग्य और ध्यान
ज्ञान के पथ

भक्ति से किया
उसकी उपासना
योग साधना

योगी कर्मठ
जुड़ जाता उससे
ध्यान के पथ

भटका मन
करता नियंत्रण
प्रभु भजन

सृष्टि उत्पत्ति
और होता है अंत
उसी के अंक

कुछ भी नहीं
जो उससे पृथक
वो ही  है सब

यह संसार
लटका ज्यूँ उसके
गले का हार

वही ब्रह्म है
वायु जल किरण
वही सब है

अग्नि की आंच
वही पुष्प की गंध
पंछी की पांख

उसका अंश
रहता विद्यमान
प्रत्येक स्वांस

बली का बल
बुद्धिमान की बुद्धि
कुलीन वही

वो सर्वशक्ति
राग द्वेष रहित
लगन वही

शांति व सुख
स्वयं में जो ढूंढते
पूर्ण रहते




पूर्ण करती
भक्ति से उपासना
मनोकामना

**********

जीवन मृत्यु
सब उसी के हाथ
रखना याद

आत्मा अमर
सताता है फिर क्यों
मृत्यु का डर

सत्व उसी में 
तमस रजस भी 
वो ना किसी में  

माया का डर
शरण में उसकी
जाता निकल


आत्मा अमर
अजन्मा अविनाशी
व अनश्वर

मृत्यु पश्चात्
आत्मा धरती देह
वस्त्र सा नया 

ना ही जलती
भीगती न गलती
आत्मा अमिट

छीनती शक्ति
विषयों की आसक्ति
मन भ्रमित

होते प्रकट
जन्म मृत्यु के बीच
सारे ही जीव

जीते हैं कई
आध्यात्मिक जीवन
जानने हेतु
जीवन का उद्देश्य
वास्तविक जीवन

नहीं जानते
मोह माया में फंसे
वही सब है
परिवर्तनहीन
और वो अजन्मा है


प्राण रहते
इच्छाएं मर जाएँ
मुक्ति हो जाती
इच्छाओं के रहते
प्राण निकले मृत्यु

पाते शरण
होते बड़े बिड़ले
उसके अंक

जानता है वो
भूत भविष्य आज
कोई ना और

सुगम पूर्ण
कर उसे स्मरण
छूटता प्राण

मृत्यु समय
कर उसको याद
मोक्ष को प्राप्त

योगी की भांति
करते जो सतत
उसको याद
लोभ वासना छोड़
होता वो उपलब्ध


उसकी ज्योति
मन भीतर तक
सूर्य से तेज

हो जाता वह
वृहत से वृहत
सूक्ष्म से सूक्ष्म

नृपों का नृप 
सृष्टि का अधिपति
सार्वभौम वो

ब्रह्म का ज्ञान
सुगम कर देता
जीवन लक्ष्य

हो जाते जीव
जन्म मृत्यु से मुक्त
हरि से जुड़े

जड़ चेतन
जो भी जग में आया
वही बनाया

कष्ट वही है
निवारण का वही
मंत्र औषधि

पालनकर्ता
सृष्टि का माता पिता  
सब है वही

हव्य भी वही
ग्रहण जो करता
हवन वही

ज्ञान का सार
सुचि अक्षर वही
वही है वेद

वही शरण
हर आत्मा का घर
परमात्मा वो  


सम्पूर्ण सृष्टि 
वही चलाता, वो है 
आदि व अंत 

करने वाला
उसे सतत ध्यान
सुख से पूर्ण  

प्रभु की पूजा 
उस तक ले जाती 
मृत्यु पश्चात् 

भोगता वह  
जो समर्पित उसे  
स्वर्ग का भोग 

मन में भर 
हरि से जुड़ जाओ 
तुम्हारा वह  

कर्म से ज्ञान
ज्ञान से बड़ा ध्यान
सबसे भक्ति

निःस्वार्थ सेवा
ध्यान ज्ञान अध्यात्म
उसकी राह

शांति नम्रता 
श्रद्धा और शुद्धता 
मन पे काबू  


अपनाते जो 
वास्तविक विद्वान 
गीता का ज्ञान 

स्वार्थ से परे 
सन्यास और त्याग 
उसके मार्ग 

सभी प्रलेख 
लेखक और ज्ञान 
प्रभु ही मान 

***************

एक  ही धर्म
उसको पा लेने का
निःस्वार्थ कर्म

वायु गगन
क्षिति जल पावक
देह अधम

साथ क्या लाये
जो कुछ पाए यहीं
छोड़ोगे यहीं

आये जग में
खाली हाथ ही सब
खाली ही जाना

जो कुछ हुआ
अच्छे के लिए हुआ 
अच्छा ही होगा

मेरा अपना
बस मेरा जीवन
उसे अर्पण

पाता जो होता
जीवन का आनंद
प्रभु में मग्न

आज तुम्हारा 
कल किसी और का 
होगा वो सब 

अधर्म होता 
धरा पर तो प्रभु 
प्रकट होता 

रखता है जो  
जैसी मनोकामना 
देता वो फल 

होता है जिसे 
इन्द्रियों पर वश 
पापों से मुक्त 

जग उत्पत्ति 
पालन सञ्चालन 
वही करता 

करते हैं जो 
प्रेम से उपासना 
छोड़ वासना 
प्रभु उनके पास 
पूरी करता आस 


मुख में देख 
अर्जुन चमत्कृत 
सारा ब्रह्माण्ड 

करेगा वो भी 
जितना ज्यादा प्यार 
करोगे तुम 

बनाने वाले
सूरज चाँद तारे
प्रभु हमारे 


जग में होता 
जो कुछ सर्वश्रेष्ठ 
उसका वास  

कर्म से धर्म 
होता है सुनिश्चित  
धर्म से कर्म 

किया सत्कर्म 
देता अच्छा ही फल 
जाता न व्यर्थ 

Tuesday, 10 October 2017

Mara nahin karata, ghazal

कोई मरा नहीं करता

किसी बेवफा की याद में, कोई शख्श मरा नहीं करता।
महज इश्क की फरियाद में, खा के शिकस्त मरा नहीं करता।

पतझड़ आ जाता है जब, चली जाती हैं छोड़ के साथ,
पत्तियों से बिलगाव में, कोई दरख़्त मरा नहीं करता।

फलक में कभी चंदा भी, छुप जाता है देखकर के कहीं
गमों की काली रात में, कोई सूरज मरा नहीं करता।

छीन के ले जाता पवन, महकाने की खातिर चमन को,
डूबे महक के  ख्याल में, फूल हो पस्त मरा नहीं करता।

चल देती चूम कर नदी, बहुत दूर उस समुन्दर की ओर,
भर लेने को बाहों में, किनारा मस्त मरा नहीं करता।

चमकाने चल देती है, किसी और के घर को साथ छोड़
चांदनी के बर्ताव से, चाँद खा गश्त मरा नहीं करता।

चल देती है बर्फ कहीं, गर्मियों के आते ही पिघल कर,
मौसमों के बदलाव से, पर्वत सख्त मरा नहीं करता।

एस० डी० तिवारी 

Saturday, 7 October 2017

Haiku Tere naam 2

ढूंढा जग में
बैठा पाया उसको
मेरे मन में

गर्व ना करो
तुमने है जो पाया
उसी की माया

प्रत्येक दिन
लेकर वह आता
नई  किरण

छोटा सा काम
करना है उसका
उसको याद

देगा तुम्हें वो
छोड़ना न संकल्प
अन्य विकल्प

मैंने जो चाहा
लगा वो नहीं दिया
झूठ था वह

करेगी पूरा
तुम्हारी हर इच्छा
उसकी पूजा

पी लो जी भर
मिट जायेंगे गम
प्रभु का नाम

वो जो करेगा
कुछ न कुछ छुपा
अच्छा ही होगा

हरेक दिन
कुछ नया ले आता
मेरा विधाता

जिसने किया
जीवन है सफल
प्रभु से प्यार

उसे क्या कमी
चाहे जिसका धाम
प्रभु का नाम

पता है उसे
कितना और कब
देना है किसे


मुखड़े पर
लगा कर मुखौटा
खुदा को धोखा !

छुपाते फिरे
उसी से  ये मुखड़ा
उसी का दिया

तुम्हारी चिंता
करने से ले लेता
उसकी पूजा

होती मिठास
अंगूर के रस में
न कि रंग में

उड़ने को वो
मनुष्य को भी दिया
ज्ञान का पंख

पाया है बुद्धि
ताकि इन्सान करे
जीवों की रक्षा

जोड़ना होता
दोनों हाथ खुद के
पाने के लिए

होता पर्याप्त
कुछ देने के लिए
एक ही हाथ

कैसा भी वक्त
बदलता ना खुदा
खुद का सत

दिया है भर
मानव में ईश्वर
मन व बुद्धि

पाया अँधेरा
जब भी मन मेरा
जगा लिया लौ

कितने बड़े
उसे क्या तुम हो पड़े
की ना उसकी

आये जग में
करके बंद मुट्ठी
खोल के जाना

मिला बहुत
रह पायेगा साथ
उसे जो सौंपा

सुन्दर काया
मनुष्य का बनाया
प्रभु की माया

सिर उठा के
हमें जीने के लिए
ऊपर है वो

जीने का हक
सबको दिया वह
बनो रक्षक

मंदिर जा के
वह नहीं मिलता
मन मिलता

बनाया वह
सबको बराबर
हम अंतर

उसका दिया
मूर्खता भी सौगात
हंसने हेतु

उसी के हाथ
डरो ना बिना बात
जीवन मृत्यु

औरों का भला
करो जितना ज्यादा
खुद का भला

भविष्य में क्या
तुम्हें चाहे ना पता
ज्ञात है उसे

बिगड़े काम
बनाते प्रभु राम
भज लो नाम

पावन मन
कर देता निश्चित
राम भजन


बैठा है वह
जब मेरे ऊपर
मुझे क्या डर

उसका प्यार
मुझको मिल जाए
जग ना तो क्या

एक सा प्यार
बरसाता है वह
पूरे संसार

काँप उठती
एक छींक वो लेता
पूरी धरती

पूजा ना पाठ
रटना ही बहुत
प्रभु का नाम

पाया जिसने
नाम रतन धन
सुखी जीवन

**************

कृष्ण या राम
जग में दो सुन्दर
तेरे ही नाम

चाहता मेरी
कर दूँ ये दुनिया
तेरे ही नाम

करनी मेरी
होवे तो तर जाऊँ 
तेरे ही नाम

लेकर जीना
दुनिया से क्या काम
तेरा ही नाम

लौ लगाकर
मैं तो मर जाऊंगा
तेरे ही नाम

************



नींद ना आयी
देर रात सुलाने
तुम्हीं तो आये

किरणें भेज
होते भोर जगाने
तुम्हीं तो आये

भूखे थे हम
छींट अन्न खिलाने
तुम्हीं तो आये

लगी जो प्यास
जल ले के पिलाने
तुम्हीं तो आये

नग्न थे हम
तन वस्त्र ओढ़ाने
तुम्हीं तो आये

प्यासी अंखियां
ले के छवि निराली
तुम्हीं तो आये

सूना था मन
बीच प्यार बसाने
तुम्हीं तो आये

वर्षा बसंत
मौसम ये सुहाने
तुम्हीं तो लाये

जलने लगी
पृथ्वी को नहलाने
तुम्हीं तो आये

कांपा ये जग
लिए धूप गर्माने
तुम्हीं तो आये

*************

मुझमें पड़ा
खालीपन भरने
तुम आ जाना

मुझे सुलाने
रात लोरी सुनाने
तुम आ जाना

नशे का घूंट
भर प्यार पिलाने
तुम आ जाना

जोहूंगी तुम्हें
कभी किसी बहाने
तुम आ जाना

रोउंगी जब
मुझे चुप कराने
तुम आ जाना

सजी रहूंगी
नजर को लगाने
तुम आ जाना

बन सहेली
पहेली सुलझाने
तुम आ जाना

करुँगी मैं तो
गलती पे मुस्काने
तुम आ जाना

मुरझा जाए
मन मेरा खिलाने
तुम आ जाना

होऊं उदास
तो हंसने हंसाने
तुम आ जाना


************

मैं तो हूँ बाती
जीवन दीप की लौ
तुम्हीं हो प्रभु

जीवन नैया
भव पार खेवैया
तुम्हीं हो प्रभु

जन्म देकर
दिखाया जो संसार
तुम्हीं हो प्रभु

हम साधन
करने वाला सब
तुम्हीं हो प्रभु

नाम अनेक
सबका स्वामी एक
तुम्हीं हो प्रभु

*************

रंगीन फूल
सुगंध बिखराते
तुम्हीं तो बैठे

वाद्य यन्त्र से
संगीत निकालते 
तुम्हीं तो बैठे

कवि के मन
कविता उपजाते
तुम्हीं तो बैठे

कृति बनाते
कलाकार के अन्तः
तुम्हीं तो बैठे

ज्ञान भरते
विद्वान बनाकर
तुम्हीं तो बैठे  

**************


हरि शरण
कष्टों का निवारण
कर लो भक्ति

बढ़ाता वह
धन धान्य संतति
कर लो भक्ति

देती है शक्ति
होने का भय मुक्त
कर लो भक्ति

मन की इच्छा
करता है वो पूर्ति
कर लो भक्ति

परमानन्द
सांसारिक सुख भी
कर लो भक्ति 

*****************


जग के तीर्थ
हरि नाम में स्थित
भज ले प्यारे

हरि का नाम
भव पार की नाव
भज ले प्यारे

तेरा कल्याण
करेगा हरि नाम
भज ले प्यारे

हो जाता प्यारा
जो हरि को पुकारा
भज ले प्यारे

जो भी अधूरी
इच्छा करेगा पूरी
भज ले प्यारे

****************



लेने से होता
सफल हर काम
हरि का नाम

करता बड़ी
भजे शक्ति प्रदान
हरि का नाम

होता निर्मल
भजकर रे मन
हरि का नाम

लेने से मात्र
होता पापों का नाश
हरि का नाम

जो रट लेता
वो कष्ट हर लेता
हरि का नाम


*************


पाया जो माया
भोग में ही गंवाया
सारा जीवन

समझा ना जो
माया के पीछे भागा
क्या है गंवाया

मुश्किल भरी
कितनी थी जिंदगी
निभा दिया तू

जाना है फिर
पटका पृथ्वी पर
उसी के घर

जीवन दिया
बताएगा भी वही
जीने की राह

बोलोगे तुम
समझ लेगा वह
कोई भी भाषा

बना के वह
फूंका भीतर प्राण
मिटटी की मूर्ति

मिट्टी की काया
मनुष्य की इतना
गर्व समाया

परोपकार
उतारने का पार
उत्तम पुल

मिलेगी जब
परमात्मा से आत्मा
कष्ट का खात्मा

होगा कल्याण
करोगे दूसरों का
तुम कल्याण

कुछ भी करो
पर वो ना करना
घुट के मरो

देना हे प्रभु
शक्ति कि कह सकूँ
सच को सच

दिखता जब
अँधेरा ही अँधेरा
वो होता मेरा

अपने मित्र
मनुष्य चुन लेता
नाते वो देता

चलना होगा
उसी की राह पर
पाने को उसे

चलेगा तेरा
उतना ही खिलौना
भरी है चाभी

धन दौलत
उसी की बदौलत
तुम्हारे पास

पढ़ लेता वो
मन में सब कुछ
उसी ने लिखा


नियत जैसी
हरि से मनुष्य की
चाहत वैसी

तेरे द्वार पे
चिल्लाये थे कितना
तूने न सुनी

जानता तो है
मुंह क्यों खुलवाता
दे दे स्वयं ही

तूने जो ढाहा
सह लिया सितम
तेरे ही दम

देखता वह
अदृश्य रहकर
हमारे कृत्य

उसका प्यार
मुझको मिल जाए
जग ना तो क्या

जिस लायक
मुझे समझा वह
दे दिया सब

सोचा है कभी
उसने दिया जो भी
नहीं देता तो !

होती है बसी
परमात्मा की आत्मा
प्रकृति में ही

संग ना होते
पतझड़ में पत्ते 
पेड़ निश्चिंत

बनाया फूल
भरने को सुगंध 
हमारे मन


आनंद भरा
अच्छे कर्म करके
अंतिम यात्रा

अंतिम यात्रा
पहले पहुंचेगा
कर्मों का बक्सा

बनना होगा
रह सकने योग्य
उसके घर

उसने बांटे
फूलों के संग कांटे
रक्षा हो सके

ध्यान रखना
छुपाया है उसने
मजा में सजा

समस्या देना
लड़ने की हे प्रभु
शक्ति भी देना

तू यहीं कहीं
हमें नहीं दिखता
छुप के बैठा 


प्रकृति भरी
सहस्रों विचित्रता
उसकी कला

सम्पूर्ण छटा
प्रकृति और धरा 
उसकी कला

इतनी बड़ी
रंग डाला धरती
उसकी कला

रात अंधेरी
दिन भरा उजाला
उसकी कला

पैदा होकर
हरेक जीव पला
उसकी कला

हम हैरान
सुंदरता की खान
उसकी कला

प्रकृति मूर्ति
धरती हो मंदिर
प्रभु दर्शन

उसने दिया
पृथ्वी पर भी स्वर्ग
प्रकृति मध्य

हम खो जाते
पर वो मिल जाता
प्रकृति मध्य

सबसे बड़ा
प्रकृति में ही बैठा
हमारा गुरु

नहीं बेशक
चींटी को भी दिया वो
जीने का हक

होती नियत
मांगता वो  प्रभु से
वैसी मन्नत

इतनी चीजें
नाम तक न पता
धरा पे धरा

करता पूरी
सभी जीवों की वही
आवश्यकता

बीमार मन
प्रकृति का दर्शन
उत्तम दवा

वही है देता
पथ पर तुम्हारे
पेड़ की छाँव

आनंद भरे
नदी झील जंगल
उसी ने गढ़े

हो जाता देख
तेरी बनाई छवि
मन ये कवि

मिटटी का बुत
पा के आत्मा की शक्ति
हो गया व्यक्ति

बनाया जो वो
किसने दिया हक
नष्ट कर दो

कितनी बड़ी
होती बाग की शोभा
नन्हीं तितली

मैंने जो चाहा
वह उसे सराहा
और दे दिया

बीमारी दिया
तो बख्शा है उसी ने
जड़ी बूटियां

सुन पाया जो
प्रकृति की शांति को
पाया उसको

जंगल घूमा
आदमी बनकर
वापस लौटा

हरी रहती
तुम तो नहीं देते
घास को पानी

जैसी करनी
हर हाल में तुम्हें
होगी भरनी

अच्छा या बुरा
वो मौसम में हर
आनंद भरा

होता न कभी
प्रकृति का फैशन
अप्रचलित

प्रकृति संग
नहीं है निरर्थक
बिताया वक्त

मुझे क्या फर्क
पानी पड़े या बर्फ
रक्षा को वह

प्रकृति हमें
अमोल उपहार
प्रभु का प्यार

रमा लो मन
प्रकृति  में ही होगा
प्रभु दर्शन

किया है प्यार
प्रकृति से जिसने
प्रभु से प्यार

बखान तक
करना असंभव
प्रभु की कला

उसे ही पता
एक बीज में होंगे
कितने वृक्ष

डाल न पाया
यत्न किया इंसान
जीव में जान

पूरी ही उम्र
उलझाए थे जान 
माया व मान

पंख फैलाये
कैसे उड़ता पंछी
कोई बताये

होता जिसका
होता प्रभु का वास
स्वच्छ ह्रदय

जिसके सर
रहे उसका हाथ
जिंदगी माथ

जीना मरना
सुख दुःख सहना
उसके हाथ

जान लो स्पष्ट 
उसका नहीं साथ
होना है कष्ट

वह तो रहा
निराकार मन में
मैं ढूंढा रूप

तुम्हारा सब
होवो तुम सबके
मिलेगा रब

प्रभु बसता
पावन ही रखना
सोच को सदा

वश में ना जो
प्रभु पर छोड़ दो
कर देगा वो

लगता है जो
मुझे भी वही अच्छा
प्रभु को अच्छा

जीवन में ना
चरित्र की दीवार
घुसता पाप

सारी जिंदगी
देते रहे परीक्षा
प्रभु की इच्छा

बून्द में वही
सागर में भी वही
ढूंढ लो कहीं



मंदिर गया
मूर्ति में समा गया
वो संग में जा
वापस घर आया
वो भी साथ आ गया

प्रभु ने दिया
जीवन जीने हेतु 
हमें दो दो मां
स्त्री जिसने जन्म दी
धरती जो पालती

जिसे हो जाये
ईश्वर के बनाये
चीजों से प्यार
मन में भरा होता
प्रसन्नता अपार

देख ना पाते
खिल के सूख जाते
वन के फूल
वह खिलाता पर
और अति सुन्दर 

मिलेगी तुम्हें
जीवन में अपने
उसकी कृपा
बनाये जो उसने
जीवों पे करो दया

करता प्यार
मालिक से पाकर
कुत्ता भी रोटी
दिया जो सब कुछ
करते क्या तुम भी !

लगते कभी
रंगने में  महीना
एक ही पन्ना
तूने ना जाने कैसे
धरती रंग डाली

ले चले कंधे
सजाये थे जो डोली
अर्थी सजा के
काटूंगी बाकी पल
तेर ही घर आ के

भेजा उसने
धरती को रखने
रहने योग्य
भविष्य में उसकी
रह सकें संतानें  


नहीं अघाया
देखता रहा मन
पूरा जीवन
तेरी सुन्दरतम
कृति मनभावन

पृथ्वी पे हमें
दुनिया को चलाने
भेजा उसने
हम लगे अपने
उल्लू सिद्ध करने


दीप जलाया
मंदिर में रोजाना
मन में तम
ऐसे प्रभु से कैसे
मिल पाओगे तुम 

Sunday, 1 October 2017

Dil ne chaha Ghazal

दिल ने चाहा



खुशियां ज़माने में कई हजार मिलीं ।
दिल ने जो चाहा, बस एक बार मिली ।
खूबसूरत मुखड़ा इक सामने आया,
किस्मत से दोनों की आंखें चार मिली ।
झलक भर ने कर दिया बेचैन उसकी,
अगले ही लमहा दिल में सुमार मिली ।
कोशिश में, पहलू में उसके आने की,
दिल की हर धड़कन बड़ी बेक़रार मिली ।
उसको पाने के लिए भटके भी बहुत,
बदकिस्मत इस दिल को मगर हार मिली ।
उलझा रहा नादाँ अजीब फ़साने में,
इसे वो तो नहीं, इश्क की मार मिली।

- एस० डी० तिवारी