Sunday, 24 December 2017

Dilli ka swad


स्वाद की दीवानी दिल्ली।
खाने में मस्तानी दिल्ली।

नाना पकवानों का रेला है।
दिल्ली में स्वादों का मेला है।
डोसा, समोसा, चाट, कचौड़ी,
नुक्कड़ पे नूडल, पकौड़ी।
खाती पूरी-पानी दिल्ली।
स्वाद की दीवानी दिल्ली।

आलू की टिक्की का राग,
तंदूरी, सरसों का साग।
आलू पराठा करता दंग,
पिज्जा, बर्गर का भी रंग।
दावतों में मर्दानी दिल्ली।
स्वाद की दीवानी दिल्ली।

छोले बठूरे, मक्खनी दाल,
रसगुल्ला, राजस्थानी थाल।  
रस मलाई, फालूदा कुल्फी,
गाजर हलवा, जलेबी, बर्फी।
लड्डू भी बखानी दिल्ली। 
स्वाद की दीवानी दिल्ली। 

Thursday, 14 December 2017

Man ka panchhi


उड़ उड़ जाय मन का पंछी।
रहे अकुलाय मन का पंछी।
देख चमक  मृगतृष्णा सा
इत उत धाय, मन का पंछी।
ढोल दूर का लगे सुहावन
रहता भरमाय मन का पंछी।
लोभ का मारा फिरे बेचारा
संतुष्टि न पाय मन का पंछी।
सोचे बिन करता मनमानी
पीछे पछताय मन का पंछी।
आडम्बर के सामानों से ही
ले हर्ष समाय मन का पंछी।


धन्य, जो लेता बना मन मंदिर।
हरि, उसके होता बसा मन मंदिर।
दूर हो जाता मन का सब अँधेरा 
श्रद्धा का दीप जला मन मंदिर।

सपनों के लेकर पंख बिंदास हो गया।
पाले अनेक इच्छाओं का दास हो गया।
नाजुक पंख पर किया भरोसा इतना
टूटा कोई सपना, मन उदास हो गया।


अच्छे बुरे का संग्राम, मन देख लेता है।
चोरी से भी किया काम, मन देख लेता है।
आँखों से नहीं, सुंदरता को मन से देखना
प्रकृति का भेजा पैगाम /किया प्रणाम, मन देख लेता है।

मन अच्छा सा लगता है
जब सच्चा सा लगता है
विशाल हो जाता माँ सा
हरेक बच्चा सा लगता है

मन में जब विकार होता है
संजोये बुरे विचार होता है
बुरी चीजों से होने पे प्यार
मन अक्सर बीमार होता है

मन में प्रभु का बसेरा होता है
मनभावन उसका सवेरा होता है
परम सुख की अनुभूति सदा
खुशियों का घर में डेरा होता है


नफरतों से, बिखर जाता है मन
सत्कार दे के, निखर जाता है मन
सबसे प्यारे मिलना तुम प्यार से
प्यार भर के, संवर जाता है मन

कभी रंग में डूब जाता है
कभी गंध में डूब जाता है
मन का अजब पागलपन
कभी गंद में डूब जाता है


मन की बातों का प्रतिकार न करना
विकार भर के मन बीमार न करना
मन तो चंचल है बड़ा, कहे से उसके 
वसूलों को अपने न्यौछार न करना

दुनियां की बातों से मन ऊब जाता है
दुनियादारी का आलम चुभ जाता है
चला जाता हूँ दूर पर्वतों के बीच कहीं 
हरी उन वादियों में मन डूब जाता है

क्या पता, मन को कब क्या भा जाये।
मूर्ख न जाने, किस बात पर आ जाय।
रोकता मगर, बदल डगर, इधर उधर,   
लुढ़क किधर, थाली के बैगन सा जाय।


कैसे कहूं ये मन है मेरा।
इसमें करता भ्रम है बसेरा। 

औरों की देख करता आस। 
चाहता है वैभव विलास।
लोभ के मारे पाप ने घेरा।
कैसे कहूं ये मन है मेरा।

करने से कतराए सुकाम।
लगाना चाहूँ जब लगाम।
उलटी दिशा मुंह है फेरा,
कैसे कहूं ये मन है मेरा।

कितना सब गुब्बार भरा है।
पीड़ा से भी नहीं डरा है। 
तेरा मेरा की रट टेरा।
कैसे कहूं ये मन है मेरा।



सच्चा मन
मन मैला


मन की बात

मन हो शांत
तभी उग पाएंगे
प्रेम के फूल

मन से किया
देता सुपरिणाम
कोई भी काम 

उड़ता मन
लेकर हरदम
सपने पंख


गाने लगता
खुश होता है जब
पक्षी सा दिल

मिलता मन
वैवाहिक जीवन
होता सफल

देखता खिला
खिल उठता मन
बाग़ में फूल

उदास मन
कर देता है धुआं
यह जीवन

बतातीं साफ़
चेहरे के रेखाएं
मन की बात

मन की अग्नि
डाल के होती शांत
प्यार का पानी

ज्ञान लगाम
नियंत्रित रखती
मन का घोड़ा


सदा प्रसन्न
जिसका लग जाये
हरि में मन

ज्ञान साबुन
धोकर निकालता
मन का मैल

देख हो जाता
सागर गिरि वन
मन प्रसन्न

होता है साथ
खेलने लग जाता
बच्चों के मन

चाहता मन
दुनिया की दौलत
मेरी कदम

मन का पाप
देख के ललचाया
धन पराया


जिसका होता
वह ज्यादा सुन्दर
मन सुन्दर

तन से ज्यादा
मन की मजबूती
होती जरूरी

शीघ्र खो जाता
आडम्बर पाकर
मन चंचल

थोड़ा सा प्यार
पाकर के बुझती
मन की प्यास

कर डालता
चरित्र को चौपट
बेकाबू मन

तन से ज्यादा
होना मन सशक्त
है आवश्यक

देखते हम 
मन के अनुसार
यह संसार

करूँ तो जग
ना करूँ मन दुखी
मन कि कही

अनेकों प्रश्न
ढूंढता है उत्तर
शांति में मन

ख़ुशी व गम
होते खुद के हाथ
चाभी है मन

होने से मन
दिखता है सम्पूर्ण
जग सुन्दर


मेरी हो राह
दुनिया की दौलत
मन की चाह

शक्ति की थाह
अजमाती रहती
मन की चाह

रखना बाबू
बहक नहीं जाय
मन पे काबू

प्रेरणा स्रोत
जजबा जगाने का
मन की चाह




आत्मा पे भारी
क्या क्या खेल दिखाता
मन मदारी

रूप के आगे 
बन जाता भिखारी 
मन मदारी

चाहता सारी
दुनिया की वैभव
मन मदारी

नचा कर के
बनाता व्यभिचारी
मन मदारी

नहीं सोचता
किसी की क्या लाचारी
मन मदारी

भरे उड़ारी
सातवें आसमान
मन मदारी

जीत की राह 
लेकर जाने वाली 
मन की चाह

जितनी बड़ी
होती मन की चाह
कठिन राह

काठ सा तन
अकड़ ना रे मन
आत्मा की सुन 


प्रेरणा स्रोत
बुराई का हो जाता
मन का लोभ

मन में होता
न कि जरूरत में
लोभ का घर

बढ़ा देता है
मन का अंधकार
मन की व्यथा

मन को भाया

पर्व का वास्तविक आनंद तभी मिलता


Thursday, 30 November 2017

Haiku Tere naam 5


मेरे तो तुम्हीं
गलतियां भी करूँ
रूठना नहीं

बड़ी इतनी
कोई लिख न पाया
प्रभु की माया

जग बनाया
बढ़ जाने पे पाप
वो ही मिटाया

करता प्रभु
जगत का उद्भव
सब संभव

हरि के लिए
हर बात संभव
पल की देरी

मशीन बना
इतराता मानव
साँस न प्राण

बढ़ता पाप 
करने का वो नाश
होता प्रकट

बड़ा सुन्दर
यदि प्रभु से प्यार
यह संसार

ईश्वर अल्ला
दोनों ही तेरे नाम
भाषा का फेर

बसता हरि 
बना के जो रखता
मन मंदिर


कर देता वो
हवा की गति बढ़ा
तूफान खड़ा

सुख संपत्ति
मिल पाना सन्मति
प्रभु के हाथ

सुबह शाम
लेकर हम जीते
तेरा ही नाम

दीया न बाती
रात जगमगाती
खुदा के घर

कुछ ना भी हो
मिल जाता जो चाहो 
खुदा के घर

कितना बड़ा
सब ही अंट जाते
खुदा के घर

जाना संभव
करके पुण्य कर्म
खुदा के घर

कोई न भूखा
मन मार के सोता
खुदा के घर

सबकी इच्छा
वह पूरी करता
खुदा के घर

***********

दिया तू गाय
हम दूध पे पांय
शुक्रिया खुदा

मधु न पाते
होती न मधुमक्खी
शुक्रिया खुदा

उड़ा ले जाती
दुर्गन्ध तेरी हवा
शिक्रिया खुदा

तूने लौ दिया
हुई रौशन दीया
खुदा शुक्रिया

पक्षी न होते
कौन साफ़ करता
कीड़े मकोड़े

पक्षी के बिना
होता कितना सूना
नील गगन

खिला के फूल
महकाया चमन
शुक्रिया खुदा 


सैलाब दिया
नाव की लकड़ी भी
शुक्रिया खुदा

पृथ्वी पे दिया
हर व्याधि की दवा
शुक्रिया खुदा

तू है विधाता
तू ही सबका दाता
रखना खैर

तुझे पुकारा
मंदिर गुरुद्वारा
सुन तो लेता

तेरी जो इच्छा
छोड़ दिया तुझपे
मेरी भी इच्छा

करेगा वही
होगी जो तेरी मर्जी
रोता क्यों फिरूं


नाचता बन
तेरे हाथ का लटटू
काल का चक्र

जग में आया
लाखों से मिल पाया
शुक्रिया खुदा

खुद से युदा
करना नहीं खुदा
तेरा बालक

जितना दिया
कौन कर सकता
खुदा! शुक्रिया

मूंदे रहता
कैसे दुःख में देख
खुदा तू ऑंखें

खुशी अपार
बरसाता सदैव
हरि से प्यार


गूंगा बहरा
बोल व सुन लेता
हो के भी हरि

जिसकी कहीं
ईश्वर ऐसा वृत्त
परिधि नहीं

छोड़ देता मैं
जो मेरे वश नहीं
उसे करने

अनेकों काम
जो मैं नहीं करता
पर हो जाता

जब भी होना
ईश्वर के सम्मुख
श्रद्धा के साथ

चाहता रब
जिसने दिया सब
थोड़ी सी श्रद्धा

देती जग में
कुछ पाने की शक्ति
हरि की भक्ति 



सो के बिताया
बीतने पर उम्र
वो याद आया

करेगा पूरी
उम्मीद न छोड़ना
उससे कभी

नहीं करता
सभी द्वार बंद
वो एक संग 



लगी जो प्रीति
मिली जग की निधि
तुझसे प्रभु

तुझमें हूँ मैं
प्रभु मुझमें है तू
फिर क्यों दूर

कैसे दिखता
आँखों की डगर तू
मन में बैठा

तू ही लिखता
मैं जो कुछ करता
ऊपर बैठा

ढूंढ न पाता
तुझको भगवन
चंचल मन

सुना है होता
इंसान खुदगर्ज
तू तो खुदा है

इतना दिया
मैं दबा रह गया 
जिंदगी में तू

भीतर रहा
बीज सा तेरा अंश
उगाया नहीं 

मुझसे कभी -
तू ही था सच्चा प्रेमी
युदा न हुआ

जहाँ तू कहा
इस जग में वहीं
रहा मैं पड़ा


फेंका उसने
कठपुतली बना
खींच भी लेगा

मन की दवा
जब भी हो बीमार
होता है प्यार

करे जो नित
देता नहीं विषाद
उसको याद


पैदा करता
वो पेट भी भरता
खरबों जीव

तोड़ता दम्भ
बहार इतराती
चला के आंधी

किसने दिया
तितलियों को रंग
फूलों को गंध

मैं तुझमें हूँ
और तू मुझमें है
फिर भी ढूंढूं

जोड़े रखती
रचनाएँ उसकी
प्रेम का धागा

प्रभु को कभी
नहीं देख सकता
दम्भ में अँधा


आत्मा में हर
तेरे सिंधु का बून्द
होता है पड़ा 



खोलते शिव
जब तीसरी आँख
सर्वत्र नाश

बना के सिक्का
इतराता मानव
उसी पे बिका

बनाया जग
ईश्वर ने सुन्दर
रातों को जग

मोम का गुड्डा
बना लिया इंसान
सांस न प्राण


एक फूंक से
उठा देता तूफान
हे भगवान

भरा सागर
जल बरसाकर
मेरा ईश्वर

ज्ञान विचित्र
निकालने को बाँटा
कांटे से काँटा

होता न कष्ट
जान न पाता जन
उसका सत्व

रंगा ये जग
कहाँ रखता होगा
प्रभु वो ब्रश 

Mere dil se khele ghazal


आ के मुहब्बत की, बूंदों के रेले, मेरे दिल से खेले।
आये बड़े ही, जिंदगी में झमेले, मेरे दिल से खेले ।

मिलते कभी वो जब, खिलकर के ये दिल, हो जाता गदगद,
मिल के झुरमुटों में, कहीं पर अकेले, मेरे दिल से खेले।

हरदम सुनाते, फटेहाली  का अपनी, वो रोना व धोना,
रखे पास अपने, दाम नहीं धेले, मेरे दिल से खेले ।

पड़ता था करना, सबर लेकर ही बस, इन आँखों से स्वाद,
दुकानों पे धरे, पकवानों के मेले, मेरे दिल से  खेले।

'है तुमसे मुहब्बत, बेसुमार मुझको' कई मर्तबा बोले,
कभी न कहा, कोई सौगात ले ले, मेरे दिल से खेले ।

उल्फत जताये मगर, चालाकियों को, कभी वो न छोड़े
अपनी मुसीबत, मेरी ओर ठेले, मेरे दिल से खेले ।

करते थे शरारत, वे बनकर कभी, एक नन्हें से नटखट
कारगुजारी सभी, हमने ही झेले, मेरे दिल से खेले ।


एस. डी. तिवारी 

Sunday, 12 November 2017

Muktak 2017


जब कभी परेशां सा दिल होता है ।
बिन किसी आशियाँ सा दिल होता है।
हो जाती तेज, उनकी यादों की हवा,
लिये, कोई तूफां सा दिल होता है ।

उनसे भली, ये चंचल लहरें ही रहीं ।
दर्द सहीं, रहीं मरती मिटती यहीं ।
वो तो आये जैसे कोई तूफान बड़ा
गए उजाड़ सब, उड़ के दूर कहीं ।

उदास कभी जब होता हूँ, लहरों के पास चला जाता हूँ ।
सुनातीं हैं वो दास्ताँ अपनी, मैं अपनी कुछ सुनाता हूँ ।
चंचल अठखेलियां उनकी, कर देतीं हैं गम कोसों दूर,
मिलाकर के दिल साथ उनके, मैं खेलने लग जाता हूँ ।


अम्बर में पसरा, धुएं का अम्बार आ गया है ।
सड़क पर उड़ती, धूल का गुबार छा गया है ।
आस पास की, निर्माणों ने लील ली हरियाली,
एक और, कल तक गांव था, शहर खा गया है।

खाते संग दोनों, आइसक्रीम, पानी-पूरी ।
झुरमुट में बैठ करते, बातें, पर अधूरी ।
आती थी विदा होने का सन्देश लेकर,
लगती थी बुरी कितनी, वो शाम सिंदूरी ।

- एस० डी० तिवारी

पति हुए बड़े हैरान,
क्या इतना था आसान ?
बाली ने खींच डाली,
पत्नी का एक कान।

हे पति देव !
तुम हो नेक।
लाओ न एक,
गले का सेट।

जमीन में गड़े। 
सड़ जायेंगे पड़े। 
रखे जो होंगे  
काले नोट बड़े।

************
चली निकल,
नदी मचल,
नीर विमल,
बड़ी चपल।

रही मगर,
बहुत विकल,
देख सकल,
जटिल डगर।

लड़ी सतत,
व्यथा निगल,
बना विरल,
राह सकल।

बढ़ी निडर,
गांव शहर,
रही सजल,
थमी न पर।
*********


करें हम कैसे जतन।
मुश्किल से मिला ये धन।
पल पल पूजा करके,
पाये हैं प्रेम रतन।


लेकर के झूठ का बल,
करके जनता से छल;
बड़ी सरलता से नेता,
बन जाते हैं, आजकल। 

- एस० डी० तिवारी 

कितना मुझे, दुलारी है तू। 
मल के वस्त्र, कचारी है तू। 
कभी तनिक भी घृणा न की, 
ममता भरी, महतारी है तू। 

देखो तो बड़ी झुझारू है ये। 
बसा हुआ, घर उजाड़ू है ये। 
घसीट कचहरी तक ले जाती  
कलियुग की मेहरारू है ये। 


चला रहे दुकान धर्म के नाम पर।  
दलाली का काम धर्म के नाम पर। 
कैसे सिखाएं, बातें नीति की, खेलते   
राजनीति के दांव, धर्म के नाम पर। 


अब होने लगे हिन्दू, सिक्ख, मुसलमान के नेता ।
जाट, गुजर, दलित, पटेल, पठान के नेता ।
बिखेरे हुए, उन सभी टुकड़ों को जोड़ने वाले,
अब, फिर कब पैदा होंगे, हिंदुस्तान के नेता ।

एस० डी० तिवारी

कई बार पड़ा, दामन पर छींटा है ।
कांटे उलझे तो आँखों को मींचा है ।
मेरे लिए ये महक रहे, तो मैंने भी,
बाग के फूलों को पानी से सींचा है ।


हुई आजकल, बड़ी घमंडी;
भाव दिखाती, सब्जी मंडी ।
धरा देती आम आदमी को
वापस ही घर की पगडण्डी ।

नेता जी चले ।
साथ हुए चेले ।
नारे लगा रहे
किराये के रेले ।

बड़ी दूर तक फैली ।
नेता जी की रैली ।
उगलेगी मंच पर,
बातें कई विषैली ।

लेते तो हो तुम मजा ।
दिवाली पर पटाखे बजा ।
करते हवा को दूषित
पाता कोई और सजा ।

कर दिया बेकाबू, रंगरेजन ने। 
डाल दिया है जादू, रंगरेजन ने। 
होता कभी, रंगीन बड़ा दिल,
 मार दिया है झाड़ू, रंगरेजन ने।

बाहर ज्योति मन भावना काली, यही दिवाली ?
दिखावे में ही फजीहत करा ली, यही दिवाली ?
अंधाधुंध फूंकते हैं कुछ लोग, कमाई काली,   
धरती सारी, बीच धुंआ नहा ली, यही दिवाली ? 

भरी भीड़ में भी, अकेले का सा सबब होता है ।
किसी के लिए भला, किसी का रुकना कब होता है ।
बड़े शहरों में, अपने लिए ही दौड़ते होते हैं सब,
गजब के काम लिए, करने का ढंग अजब होता है।


मनाते हैं हम बाल दिवस, हर वर्ष लगातार ।
कम नहीं होता है पर, बच्चों पर अत्याचार ।
आज भी बच्चे सह रहे, भेद भाव का दंश  
निर्धन वंचित शिक्षा से, कुपोषण के शिकार। 

कब पाएंगे देश के बच्चे, प्यार भरा संसार ?
कब पाएंगे श्रम से मुक्ति व पौष्टिक आहार ?
शिक्षा में भेद भाव, धनी-निर्धन, गांव-शहर
कब पाएंगे बाल वृन्द, समता का अधिकार ?


पिघलती बर्फ तो, बह चलता पानी ।
मौसम सर्द तो, नभ से झरता पानी ।
नम आँखों से, किसी के दिल में
गलता दर्द तो, निकल पड़ता पानी ।

- एस० डी० तिवारी

समुन्दर की लहरों ने, आकर, कानों में कहा ।
खेलो कुछ घड़ी संग, मेरे अरमानों में, कहा ।
लिए नीर खारा तो क्या! सुनाती गीत मधुर हूँ
तुम भी तो प्यारे एक हो, मेरे दीवानों में, कहा ।


समुद्र तट पर जाता हूँ, बढ़ जाती है धड़कन ।
उनकी यादों की हिलोरें, बढ़ा देती हैं तड़पन ।
खोना चाहता हूँ कुछ पल, लहरों के आगोश में
चिपक जाती हैं, आ यादें, जैसे रोटी पे परथन । 


तुम खारा हो, मगर, मैंने जी भर तुम्हें पिया है ।
बुझाकर प्यास तुमसे ही, जिंदगी को जिया है ।
रे! समुन्दर की लहरों! सुनो, तुम मधुर बड़ी
जिह्वा से नहीं, मैंने तो नैनों से स्वाद लिया है ।


तन्हाइयों में रह के, जब कभी ऊब जाऊं ।
जी चाहता, समुन्दर पे, मेरे मेहबूब, जाऊं ।
जब तक जी चाहे, जी भर के निहारूं उनको,
तेरी यादों से भला कि लहरों में डूब जाऊं ।


चांदनी रात में कभी जाता हूँ ।
झील के तट पर, बैठ जाता हूँ ।
आता चाँद, छवि निहारने अपनी,
मैं उसकी झलक पा जाता हूँ ।

ऐसा भी कभी होता है ।
बिन बात के दिल रोता है ।
तट पर मेरे सिवा सिर्फ,
हवा का झोंका होता है ।

गहरे दर्द के भंवर बनते रहे ।
ज्वार भाटा दिल में उठते रहे ।
तूफानों का अंजाम, क्या कहें,
उठा पटकते रहे, हम लड़ते रहे ।

मुंह में ये क्या दबाये हो ?
कदमों को लड़खड़ाए हो ।
लाल होठों से बॉस आ रही
लगता है पीकर आये हो !

इतना सा काम, मेरा कर दे ।
जाकर उससे तू बस कह दे ।
अभी दीवाना तेरा जिन्दा है
मारना ही है, उसे जहर दे ।

बना चकोर, ताकता रहा तेरी ओर ।
एक ही नाम लेता, शाम हो या भोर ।
गायब होती रही, चाँद सा धीरे धीरे
तू पतंग सी कटी, मैं थामे रहा डोर ।

बड़ी बड़ी बातें तो करते थे वो।
आजन्म रहेंगे साथ, कहते थे वो।
खूबसूरती की दरिया देखते ही,
अनायास प्रवाह में बहते थे वो। 


उसके पास जो था, वो यार बनाती ।
मैं चाहता कि उसे वह, प्यार बनाती ।
मगर वह तो इतनी जालिम निकली
उसको ही हरदम, हथियार बनाती ।

हिरनियों से माँगा प्यार, गरमा गयीं ।
कलियों से माँगा प्यार, शरमा गयीं ।
प्यार के लिए रंग भी कुछ कम न थे,
तितलियों से माँगा प्यार, भरमा गयीं ।

मकराना के नगीनों से बना है, ताजमहल ।
जज्बा और यकीनों से बना है, ताजमहल ।
उँगलियों के छाप, होंगे पत्थरों पर अभी,
जिनके खून पसीनों से बना है, ताजमहल।

ज्यादा तेल तो पके तिल में होता है ।
मजा, मन माफिक महफ़िल में होता है ।
ऊँची मंजिल से नजारा दूर तक दिखता,
प्यार उम्र में नहीं, दिल में होता है ।

इन झुर्रियों को देखने से क्या हासिल ।
चढ़ी जवानी पर ऐंठने से क्या हासिल ।
बूढ़े बरगद के नीचे भी छाँव पाओगे
नए तरकुल तले बैठने से क्या हासिल ।


हुस्न ना होता तो फूलों की कद्र क्या होती !
उल्फत न होती, खुशबुएँ समग्र क्या होतीं !
उड़ कर चला गया भौंरा, चमन में किसी और
पड़ी, पांखों के बिना, कली उग्र क्या होती !

उसका दिल आईना जान, देखा, दिल अपना ।
भरा है प्यार कितना, नापा, बना के नपना ।
ठूंसना चाहा और, दबा दबा कर जबरदस्ती
वह भी कहाँ की कम थी, लगा लिया ढकना । 

कभी नकाब में छुपी मिली ।
कभी समाज से झुकी मिली ।
दीदार को पहुंचा पास राँझा 
हीर कफ़न में ढकी मिली ।

खिली बागों में कली ।
मंडराने आ गए अलि ।
मालिन ने आकर झट,
डाल ओढ़नी, ढक ली ।

हमने मुहब्बत किया ।
अदा, तेरा शुक्रिया ।
मरेंगे बिना दर्द के,
तूने जो बेहोश किया ।

बदले करवट, करके याद, तुझे ही बस ।
सपनों में देखा, कल की रात, तुझे ही बस ।
सोचे हैं, इस जनम की मुहब्बत सारी,
सजाकर, दे देंगे सौगात, तुझे ही बस ।


एक ही बिस्तर।
प्यार भी, मगर;
सो रहे हैं जानू
किये मुंह उधर।

उनके आने से मौसम, खुशगवार हो जाता है।
उनका वापस जाना फिर, जवाल हो जाता है।
उनके झाड़ फूंक के बिना, गोत के रख देता
सिर पर मुहब्बत का भूत, सवार हो जाता है।

उनके जाने का गम कहाँ है !
देखो तो ऑंखें नम कहाँ हैं !
कर चुके पहले, प्यार बहुत   
अब खुद में भी दम कहाँ है !

राह को अपनी मोड़ दिया, तुम न दिखे।
दर्पण को मैंने तोड़ दिया, तुम न दिखे।
मुद्दत हो गयी, गए मधुशाला की डगर
पीना अब तो छोड़ दिया, तुम न दिखे।


मेरे दिल की लगी ।
समझी वो दिल्लगी ।
समझाने से पहले 
मुझे छोड़ के भगी ।

ना कि वो अल्ला है ।
ना ही राम लल्ला है ।
नफ़रत जो फैलाता
अखिल, अब्दुल्ला है ।

छत पे बोला कागा।
भोर में जब जागा।
खबर मिली उसको
कोई और ले भागा।

अब तो महको ना !
थोड़ा चहको ना !
प्यार की बगिया है,
फूल सा लहको ना !

ना तो गयी मधुशाला ।
ना नशे का रोग पाला ।
खो बैठी हूँ होश मैं तो,
पी के प्यार का प्याला ।


कारे बादल,
आ रे बादल।
इश्क में तरसा,
ना रे बादल ।

हम तेरे द्वार आये ।
एक ना, सौ बार आये ।
कभी न तू दी तवज्जु ,
यूँ ही क्या, बेकार आये ?

इस जाड़े में आई,
घर में नई रजाई।
मची छीना झपटी,
हो गयी हरजाई।

मुझे आने से रोका था।
वो हवा का झोंका था।
समझ न लेना कहीं तुम,
यह प्यार में धोखा था।

किया है बहुत मैंने, तेरी देखभाल;
बचपन से जवानी तक, मेरे लाल !
लगा जबसे, जोरू की खिदमत में तू!
खड़े होने लगे, ममता पर सवाल !

देखी न कभी वो खुद की सुगमता थी।     
किया उसने, वो उसी की छमता थी।
भूखी रही, दिल खोली, नीदों को छोड़ी,
खुद से पहले लाल, मां की ममता थी।


हर चाँद का एक सूरज होता है।
हर नए काम का मुहूरत होता है।
हर प्यार करने वाले के दिल में
चेहरा कोई खूबसूरत होता है।

नन्हे से पंछी, सोच में कभी न डूबे देखा।
रहते व्यस्त, काम से कभी न ऊबे देखा।
ना कोई ठिकाना एक, ना आशियाना एक,
हरदम बुलंद फिर भी, उनके मंसूबे देखा।

नन्हां सा पंछी आकर, खूब लुभाता है।
कभी क्षण में. नभ में दूर उड़ जाता है।
बैठता नहीं साथ कि बतिया लूँ उससे
मगर कुछ बातें, जरूर कह जाता है।

तुम्हें क्या पता, तुमको मैं कैसे पाया था !
मंदिरों में जाकर, अगरबत्ती जलाया था।
खोलने जा रहा हूँ आज, उस पीपल से
तीन वर्ष पहले, धागा बांध के आया था।

अभी तक जातियों के कई; मंत्री, अधिकारी पिछड़े हैं !
ले रहे जो मोटा वेतन, सरकारी कर्मचारी पिछड़े हैं !
करोड़पति पिछड़े देखे, भूखा ना पिछड़ों की श्रेणी में!
कोई न कहता, तंगी में जीते लिए लाचारी; पिछड़े हैं ।


झूठ का बल
लूट का धन
किये वो छल
हुए संपन्न

लोभ की तृप्ति में मानव, मुझे क्या मिटाएगा ?
मैं जंगल हूँ, मेरे बिन, तू भी कैसे रह पायेगा ?
तेरा हवा-पानी मैं, कितने जीवों का आश्रय हूँ,
ले मुर्गी की जान कहाँ से, सोने के अंडे खायेगा ?

मचलती, मंद बयार से प्यार है मुझे।
बहती नदी की धार से प्यार है मुझे।
बोलते झरने, डोलते मेघों का झुण्ड,
गिरती रिमझिम फुहार से प्यार है मुझे।

खिले फूलों की महक से प्यार है मुझे।
विहंगों की चहक से प्यार है मुझे।
बजाते ताली, बिखेरते हरियाली; पत्तों,
मस्त हवाओं की बहक से प्यार है मुझे।

पूर्णिमा की बिखरी चांदनी से प्यार है मुझे।
सुरीले कंठ की रागनी से प्यार है मुझे।
जिंदगी का आनंद सब, बसा प्यार में प्यारे 
किसी सुभाषिनी, नाजनी से प्यार है मुझे।

एस० डी० तिवारी


बितायीं हैं रातें जाग, बलम परदेशी । 
डंसते रहे काले नाग, बलम परदेशी ।
बने हैं गवाह, पड़े चेहरे पे अब तक
अश्कों के भरे ये दाग, बलम परदेशी ।

छेड़ो ना बसंती राग, पी नहीं संग में।
खेलो ना हमसे फाग, पी नहीं संग में।
जल्दी आने की आज जगी है आस,
बोला मुंडेर पे काग, पी नहीं संग में।


उठते ही प्रातः मुंह लग जाती, चाय की प्याली ।
अच्छे दिन का बिगुल बजाती, चाय की प्याली ।
मैंने पकड़ा हाथ, ये छोड़ी ना अब तक साथ,
प्याली भर जीवन रोज दे जाती, चाय की प्याली ।

 मुक्तक शिरोमणि प्रतियोगिता 22 हेतु प्रविष्टि 

किया इंतजार, तुम मेरे घर आना ।
अगले इतवार, तुम मेरे घर आना ।
खुश होगी बड़ी, मिलने की घड़ी, 
आयेगी बहार, तुम मेरे घर आना ।

करना ना इंकार, तुम मेरे घर आना ।
होंगी बातें हजार, तुम मेरे घर आना ।
दिल में छुपाये, रखे जो अब तक, 
करेंगे इजहार, तुम मेरे घर आना।

हूँ बड़ा बेकरार, तुम मेरे घर आना।
ख्वाबों पे सवार, तुम मेरे घर आना।
देख तुम्हें झूमेगी, चढ़ माथे खुशी,
बरसेगा प्यार, तुम मेरे घर आना ।


एस० डी० तिवारी

जब धरती का कटोरा उफन जायेगा।
पूरी ही धरती पर जल भर जायेगा।
मनु स्मृति ही बस, बचे रहेंगे जग में
जीवधारी शेष सभी तो मर जायेगा।


करो ना करम,
करो जो शरम ।
स्वार्थ में लिप्त,
धरो नाधरम ।

इंसानों में घुस आया शैतान।
भीतर तक जड़ जमाया शैतान।
मतलबी जेहन ही घर उसका,
घर घर में है समाया शैतान।

छोड़ गए होते पांवों के निशान।
वहां जाना होता कितना आसान।
पता भी ना भेजे, मिलेंगे वे कहाँ,
हमसे पहले गए जो उस जहान।

कितना पानी रखे धरती।
नीर हेतु नभ को तकती।
चाहती तो करवट बदल,
सर्वांग प्यास बुझा सकती।

धरा का कटोरा उफन भर जायेगा।
सारी ही धरती पर जल भर जायेगा।
मनु ही, बचे रहेंगे इस जगत में बस
जीवधारी शेष सभी तो मर जायेगा।

सोचो, पृथ्वी भी तुम सा जब मचलेगी।
मस्ती में कभी जब, करवट बदलेगी।
सागर का जल, बह चलेगा तट छोड़,
कैसे ये दुनिया तुम्हारी, तब सम्हलेगी ?


जैसे जैसे उम्र की चोटी चढ़ती गयी ।
ह्रदय रेखा प्रगाढ़तम कढ़ती गयी ।
पा गयी जब माँ का कलेजा तन में
प्यार की तिजोरी और बढ़ती गयी ।

उसका तन नोचते, फिर भी धरती।
तुम्हारे लिए कितना दर्द है सहती। 
छाती पर खेलते बच्चों की खातिर,
चाह के भी, करवट नहीं बदलती।

ज्ञान की बातें सब व्हाट्सअप्प पर आ गयीं ।
भारी भरकम सूक्तियां सभी, आकर छा गयीं ।
देखा नहीं अब तक मगर, बनता ज्ञानी कोई,
नैतिकता तो स्वार्थ की चुहिया कुतर खा गयी ।


 मुक्तक शिरोमणि प्रतियोगिता 22 हेतु प्रविष्टि 


देख कर पर्वतों से गिरता झरना, दिल हुआ मगन।
सुन, सरिता का कोलाहल करना, दिल हुआ मगन।
विलोक यौवन भरे, सुगंध बिखेरते, हरे उद्यान में,
कलियों के फूलों का रूप धरना, दिल हुआ मगन।

गली के नुक्कड़ पे हंसना हँसाना, यारों के साथ।
कैंटीन में चाय की चुस्की लगाना, यारों के साथ।
लगता है कि वो गुजरा पल, हो अभी बीता कल,
बिना काम मीलों बाइक दौड़ाना, यारों के साथ।

बहुत से लोग तो ताम झाम में आनंद ढूंढते हैं।
होते हैं कुछ ऐसे भी, जाम में आनंद ढूंढते हैं।
हमें तो अपनों का साथ ही बस प्यारा लगता,
तभी तो उनसे दुआ सलाम में आनंद ढूंढते हैं।



बादलों को हवाओं में झूल कर मजा आता है ।
कलियों को डालों पर फूल कर मजा आता है ।
हम भी तो दिल पर खामखाह बोझ नहीं रखते
अपने को उनकी यादें भूल कर मजा आता है ।


बरसती, नन्हीं बूंदों के रेले, मेरे दिल से खेले।
बाजार में आहार के मेले, मेरे दिल से  खेले।
मिलते कभी वे जब, दिल हो जाता था गदगद, 
मिले जब झुरमुटों में अकेले, मेरे दिल से खेले।


बिन बात के अनबन, याद हैं बचपन की बातें ।
बात बात पर अनसन, याद हैं बचपन की बातें ।
इतराना नए वस्त्र पहन, पाकर नए खिलौने,
पार हो गए पचपन, याद हैं बचपन की बातें ।

कंपकंपाती ठण्ड में तो, हरेक को घाम में आनंद आता है ।
किसी को अपने काम, किसी को जाम में आनंद आता है ।
इस अजीब दुनिया में, होते हैं लोग भी कुछ गजब के बड़े,
जिन्हें गंवाने वक्त, करके बेतुके काम में आनंद आता है।

कहाँ हुआ आरम्भ कहाँ होगा समाप्त, समय ।
बिना किसी ओर छोर युगों से व्याप्त, समय  ।
न तो कभी मंद होती न ही गति तेज इसकी
नापने हेतु एक नन्हीं सी घड़ी पर्याप्त, समय  ।

एस० डी० तिवारी


बड़े संयोग से मिले थे।
अभी याद वो सिलसिले थे।
जाने क्या पका रहे मन में, 
पड़े होठ उनके सिले थे।

हम मुंबई में रहे, वो कांडला।
फेस बुक पर चलता रहा मामला।
संयोग से हो गया उनका भी,
हमारे ही शहर में तबादला ।


हे, देश के वीर जवान ! तुम्हें नमन है ।
होते वतन पे कुर्बान, तुम्हें नमन है ।
रक्षा हेतु हमारी, खेलते हर खतरे से,
तुमसे निर्भय हिंदुस्तान, तुम्हें नमन है । 


उनके लिए, जो राष्ट्र के लिए जिए,  
लुटाये सब, हँसते प्राण तक दे दिए;
प्रण लें, सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर, 
तन मन धन से जुटेंगे, कल्याण के लिए । 


ये मुहब्बत के बीज कहीं और बो चुके थे
इंतजार में इनके दीवाने बहुत रो चुके थे
संयोग कहें या हमारे तक़दीर की लकीर
किसी के फटकने से पहले हमारे हो चुके थे


नदी के किनारे, साँझ के अँधेरे,
धधकती किसी की चिता जल रही थी।
आगोश में अपने, लाश को लपेटे,
लपटों की ऊँची शिखा निकल रही थी।
लेकर उजाला, चल दी थी ज्वाला;
धुंए में ले यादें, हवा चल रही थी।
धरा रो रही थी, गगन रो रहा था,
आंसुओं में भीगी, निशा ढल रही थी।
गांव से उठी ऊँची, गूंजती रुलाई
पसरे हुए, सन्नाटे को खल रही थी।

छल झेल



फूंकने के लिए जो भीड़ आयी थी।
आग लगने में देरी से अकुलाई थी।
घी उड़ेल कर, धधकाई चिता की
पानी डाल कर के आंच बुझाई थी।

रो रो कर लगाया, चिता की आग।
घी से धधकाया, चिता की आग।
बहता हुआ आंसुओं का सैलाब
फिर बुझा न पाया, चिता की आग।


जीते जी, उसके घर होता है,
मर जाने पर, कब्र पर होता है।
धनवान के पास निर्धन से तो
हमेशा अधिक पत्थर होता है।

सरिता जब समुन्दर के घर जाती है।
गन्दगी सब मुहाने पर ठहर जाती है।
आत्मा जाती, जब परमात्मा के पास
पाप की गठरी साथ, मगर जाती है।

स्वच्छ जल समुन्दर में सीधे मिल जाता है।
गंदा जल हो तो नदी का बदन छिल जाता है।
जाती जब परमात्मा में विलय होने के लिए,
मलिन आत्मा का दिल कष्ट से हिल जाता है। 


फूंकने के लिए जो भीड़ आयी थी।
आग लगने में देरी से अकुलाई थी।
घी उड़ेल कर धधकाई चिता को, 
पानी डाल कर के आंच बुझाई थी। 


औरों को आईना दिखाते रहे। 
खुद देख कर मुंह छुपाते रहे। 
तीन खुद की ओर सोचे बिना, 
दूसरों को उंगली दिखाते रहे। 

वक्त जब करवट बदलता है। 
किसी का कुछ नहीं चलता है। 
कोई दब जाता भार में इसके, 
किसी का मुकद्दर फलता है। 


मजदूर है कि काम करते गर्द सहता। 
थोड़े लिवास लिए मौसम सर्द सहता।
धनी, थोड़े घाटे का गम लिए रोता है, 
उससे तो पूछो, भूख का दर्द सहता।


देख कर घायल, अच्छे भले हो गए।
कर लें बातें हम भी, हौसले हो गए।
शोखियों से अपने वे मन को छले,
कारगुजारी से हम मनचले हो गए।

एस० डी० तिवारी

गलतफहमियों में शिकवा गिले हो गए।
प्यार में रार के सिलसिले हो गए।
हुईं आपस की बातें कड़वाहट भरी,
काटों के, दिलों में काफिले हो गए। 


वादा तो कर लेते सभी, निभाना बड़ी बात है।
चुराना आसान, पर दिल लुटाना बड़ी बात है।
शुरू तो कर देते सभी, मुहब्बत की गाड़ी को,
आखिरी अंजाम तक, पहुँचाना बड़ी बात है।


बेवफाई का गम लिए जिंदगी बिताती रही।
बात अपनों से, अपने मन की बताती रही।
उस जहाँ में भी जाकर वो मिलेगा या नहीं,
चिन्ता उसे, उसकी चिता तक सताती रही। 


अपने बराबर किसी को न तोलता था। 
धन का घमंड सिर चढ़ के बोलता था। 
मची हुई तिजोरी पर महाभारत आज, 
अकेले में चुपचाप जो वह खोलता था।    

कंगाली को लिए रोता रहा।  
तकलीफों का बोझ ढोता रहा।  
आज काठ की सेज सज रही,  
हमेशा जमीन पर सोता रहा। 

- एस० डी० तिवारी

दूर हुआ, गरीबी का संताप जो बरसता था।
पाकर सर्दी में फटा कम्बल भी विहँसता था। 
आज नई चादर, तन पर, उड़ेला जा रहा डब्बा,
खाने में चम्मच भर घी के लिए तरसता था।   


सपनों के लेकर पंख बिंदास हो गया।
पाले कई चाहतों का दास हो गया।
नाजुक पंख पर किया भरोसा इतना
टूटा कोई सपना, मन उदास हो गया।

परीक्षा सिर पे आयी, अकल ठंडी हो गयी।
देख कर न लिख पाए, नक़ल ठंडी हो गयी।
दिल की बात को बताने का जरिया ढूंढा
उन्हें पढ़ाने से पहले, गजल ठंडी हो गयी।


पकड़ रखती, जब कील का सिर ठुक जाता है।
चमकने के लिए सोना, आग में फुक जाता है।
लिखने के लिए जब मैं अपना सिर झुकाता हूँ
मेरे साथ ही मेरी लेखनी का सिर झुक जाता है।

चमड़ी का रंग कुछ भी, लहू न सफ़ेद देखा।
भेड़ियों को भी न करते, आपस में भेद देखा।
देखे इंसान, गला इंसान का काटने पर उतारू
जंगली जानवर सा, मगर करते न खेद देखा। 

गांठों में बंधे रहे, जंजीर बदलते रहे।
मंदिरों में जाकर, तक़दीर बदलते रहे।
दर्पण बदल लिया, चेहरा न बदल पाए
लिवास बदल कर, तस्वीर बदलते रहे।


शूल के लखे, मन की बात।
मन में रखे, मन की बात।
होंगे दुखी इसलिए न कहे
तुमसे सखे! मन की बात। 


मेरी लेखनी बड़ी सयानी।
बना रही मुझको भी ज्ञानी। 
चली है भर जोश, ज़माने में;
आग उगलने, पीकर पानी।
- एस० डी० तिवारी


पर्व का वास्तविक आनंद तभी आता है।
जब पर्व मन से महसूस किया जाता है।
जुड़ जाती आत्मा जब, पर्व की आत्मा से
पर्व में एक अद्भुत उल्लास भर जाता है।


शेर कहलाने को आदमी बन जाता है जानवर।
बुरा मान जाता जब सीधे कहलाता है जानवर।
जब कभी साधना होता इसे मतलब की बात, 
सोया हुआ खुद के भीतर, जगाता है जानवर।


किसी के खौफ से किसी का दिल हंसने लगा।
किसी की सौत से किसी का प्यार पनपने लगा।
किसी का नुकसान किसी और का लाभ हो जाता,
किसी की मौत से किसी का घर चमकने लगा।

मतलब के लिए रोता है आदमी।
मतलब को लिए ढोता है आदमी।
जब तक अपना मतलब दिखता
साथ साथ लगा होता है आदमी।


जिंदगी भर उसने आग ही लगाया।
बिना बात के ही बहुतों को रुलाया।
झोंक दिया वक्त ने आखिरकार उसे
बुझाने को आग, कोई नहीं आया।


वो भी समय था, पड़ोस परिवार सा लगता था।
सारा का सारा गांव ही, घर बार सा लगता था।
अब आँखों में डाह भर, सह लेता दर्द कितना,
कहाँ? जब आपसी बात में, प्यार सा लगता था।

कितनी बात थी दिल में, अनकही रह गयी।
न चाहा दिल ने कभी जो, वही रह गयी।
रखे थे करके जमा, तेरी मुहब्बत के रतन 
चोर समय चट कर गया, बस बही रह गयी।

एस० डी० तिवारी

जाने क्यों इतनी दुनिया गिरी जाती है।
ज्ञान पाकर के भी मति फिरी जाती है।
जितना मिलता, बढ़ जाती हवस और
लोभ के वश दुष्कर्मों में घिरी जाती है।

बुद्धि पर कब्ज़ा किया, नियत, खोटी ने। 
पथ से भ्रष्ट किया बैठने में, गोटी ने।
भुला दिए हैं, इंसानियत के कायदे सब;
कायदे से मिलती, दो वक्त की रोटी ने।  

खामियों को लिए कूढ़ने में, बूढ़े हो चले।
संजो कर इश्क को रुढ़ने में, बूढ़े हो चले।
हर गुण परिपूर्ण मिलना बड़ा मुश्किल
मन पसंद महबूब ढूंढने में, बूढ़े हो चले।

उनकी याद इस कदर जिंदगी से जुडी।
रातों के सपने और नींद भी ले उड़ी।
देख लेते हैं कभी कभी, अब तक पड़ी;
उनकी दी, किताब में फूल की पंखुडी।

बिना मांगे ही बीबी सभी सलाह देती है
जरूरत न भी, फजूल कभी सलाह देती है
जिस विषय से उसका दूर तक नाता नहीं
पूरे विश्वास से, उस पर भी सलाह देती है


चल पड़ा है गजब का दौर
आधुनिकता की अंधी दौड़ 
मशीनों के आगे रिश्तों का  
अब कोई करता नहीं गौर


अनजानी दौड़ में लगी है दुनिया।
अजीब जोड़ तोड़ में लगी है दुनिया।
जैसे भी हो सके, दूसरों का माल
हड़पने की होड़ में लगी है दुनिया।
.
किसी को खौफ से किसी का दिल हंसने लग पड़ा।
किसी की सौत से किसी का प्यार पनपने लग पड़ा।
किसी का नुकसान किसी और का मुनाफा हो गया,
किसी की मौत से किसी का घर चमकने लग पड़ा।


चढ़ प्रगति के रथ पर, आये! नया साल। 
खुशियां ले सबके घर, आये! नया साल।   
पूरा करनेवाला सभी की मनोकामना,
हर पल सुखद लेकर, आये! नया साल। 

भौंरा चक्कर लगाता ही रहता। 
व्यथा को भुनभुनाता ही रहता।   
रस के लिए चुभोता है नश्तर 
फूल मगर मुस्कराता ही रहता। 

निकाल लेती है मक्खी शहद। 
फूल नहीं मगर छोड़ता लहक।   
हँसते हँसते देता लहू अपना 
रखे रखता है फिर भी महक। 

प्यार का खुमार, अब उतर गया।  
फरेबी उन ख्वाबों से, दिल भर गया।  
चले गए हो, मुंह मोड़ कर के तुम  
सम्हाल रखे खत, चूहा कुतर गया।  

धर्म के नाम पर, इंसान दंगा करता है।  
छोटी छोटी बात पर पंगा करता है। 
खुद का मतलब होता, नैतिकता का
फेंक आवरण, जमीर नंगा करता है। 

जर, जोरू, जमीन। 
गाड़ देते नीचे तीन।  
हो जाता है आदमी 
इनके लिए कमीन।  

हाल को अपने, उन्हें सुनाया मैं।
मगर बाद में बहुत पछताया मैं।
ढूंढे उसमें भी वे मतलब की बात
वक्त गुजरा तो समझ पाया मैं। 

अब ऐसे को वैसा कह दे,
और वैसे को ऐसा कह दे।
हिम्मत नहीं आदमी में
जो जैसा है तैसा कह दे।

दीवानों की जमात चली, शबाब इतराने लगा।
प्रेमियों की तादाद बढ़ी, गुलाब इतराने लगा।
किस्मत से थाम लिया मेरा भी गुलाब किसी ने,
फिर कहाँ से कम, मैं भी जनाब इतराने लगा।

देश के लिए हुए जो शहीद, उन्हें सलाम ।
राष्ट्र सारा उनका मुरीद, उन्हें सलाम ।
मनाये देश भक्ति का जश्न, वे इस तरह,
मना न सकेंगे अगली ईद, उन्हें सलाम ।

सभी का फूले फले, यह वर्ष नवल ।
प्रगति पथ पर चले, यह वर्ष नवल ।
सिद्धि, समृद्धि, नव भाव, उत्साह भरे;
रखे सुख-अम्बर तले, यह वर्ष नवल।

- एस० डी० तिवारी

नई नई चुगली लेकर, आएंगे चुगलखोर।
कहीं तो अपना हुनर, दिखाएंगे चुगलखोर। 
नए साल में कुछ नया करने का जोश लिए,
जहाँ नहीं लगी, आग लगाएंगे चुगलखोर।

बड़े लोग ढूंढ लेंगे नयी चाल, नए साल में।
शिकारी डालेंगे नए जाल, नए साल में।
राजनीतिज्ञ बिछाएंगे नई बिसात अपनी,
जनता रह जाएगी उसी हाल, नए साल में। 

नये पैकेट में होगा पुराना माल, नए साल में।
दिखाएंगे नए करतब, नई चाल, नए साल में।
जुटे दिखेंगे सभी अपनी अपनी युगत में नई,
मगर देश का रहेगा वहीँ सवाल, नए साल में।


हमसे ज्यादा तो हमारा फोन मनाता है।
आते ही त्यौहार, संदेशों से भर जाता है।
मिलने जुलने का कहाँ से समय निकालें 
जबाब देने में ही, घंटों निकल जाता है।

दुश्मन से हो जाय दोस्तानी भी,
रखना चाहिये सावधानी ही।
जलती आग को बुझा देता है ,
हो कितना ही, गरम पानी भी।


आज नहीं तो कल, हिसाब देना होगा।
पाने, किये का फल, हिसाब देना होगा।
यह नहीं सोचना कि  नज़रों से उसकी,
बच जाओगे निकल, हिसाब देना होगा। 

खो जाते, मिले प्रेम में जीत, मीत मेरे।
हार से ही पैदा होते हैं गीत, मीत मेरे।
हारा तो हारा ही होता, जीता भी हारा
प्रीत की कुछ ऐसी ही रीत, मीत मेरे। 


पहले मिले थे बैसला और अखिलेश । 
अब दो और मिल गए हार्दिक, जिग्नेश।  
कब तक ये सोच मिलेगी ? कैसे होगा - 
समृद्ध, खुशहाल, उन्नत और अखंड देश।
अलग रंगो में मुल्क को, बांटने वालो ! 
तीन टुकड़ों में तिरंगे को टांगने वालो !
खेत न केसरिया, चेहरा न हरा होगा; 
सुनो! रंगों से मजहब को आंकने वालो!


है अल्ला की गजल
आज नहीं तो कल
मेरी हो के रहेगी
चाहता तुझे मैं पल पल
जाएगी मेरे अरमानों में ढल
तेरे लिए बनाया हूँ
मुहब्बत का महल 

Wednesday, 8 November 2017

Khoye pal geet


ढूंढ कर के लाऊँ, कहाँ से, खोये पल।
लगता कोई सपना, देखा हो बीते कल। 

'अपनी ऑंखें बंद कर लो' ये बोलना,
'हाँ, अब खोलो' कहके, मुट्ठी खोलना। 
गर्मियों की बर्फ सी, गए वो पिघल।
ढूंढ कर के लाऊँ, कहाँ से, खोये पल। 

बाँहों में बाहें डाल, चलते थे हम साथ,
हँसते कह किसी की, कोई भी ले के बात। 
करते संग मस्तियाँ, जाते थे दिन ढल।
ढूंढ कर के लाऊँ, कहाँ से, खोये पल।

पीछे से आकर मेरी, ऑंखें मूंद देना,
'बोलो, मैं हूँ कौन' तुम्हारा पूछ लेना। 
नाम ले तुम्हारा, हाथ लेते, हम पकड़। 
ढूंढ कर के लाऊँ, कहाँ से, खोये पल।

खाते संग दोनों, आइसक्रीम, पानी-पूरी,
झुरमुट में बैठ करते, बातें, पर अधूरी।
लगता कि पल में, घंटों, जाते थे निकल। 
ढूंढ कर के लाऊँ, कहाँ से, खोये पल।

Wednesday, 1 November 2017

Bharat ke sainik



दुश्मन ने दिखाई आँख तो, काढ़ कर रख देंगे।
टाँगें देंगे मरोड़, सीना फाड़ कर रख देंगे।
एक भी गोली आएगी, सीमा पार से गर कोई,
हम तोपों के दहकते गोले, बाढ़ कर रख देंगे।
सीमा पार बैठ कर, मचाएगा वह शोर कभी,
चिल्लाने का जबाब उसके, दहाड़ कर हम देंगे।
रखते तो हम कम नहीं, हथियार उससे कोई,
परमाणु का घमंड उसका, झाड़ कर रख देंगे।
हमारे घर में घुसने की, जुर्रत अगर दिखाई,
देखते ही घर उसका, उजाड़ कर रख देंगे।
बुरी नजर से झांकेगा, उठकर के इधर जो,
काट डालेंगे सिर, जमीं में गाड़ कर रख देंगे।
किसी भी मामले में उतरे, शत्रु हमारे सामने,
हर मुकाबले में उसको, पछाड़ कर रख देंगे।
हम भारत के सैनिक हैं, दम खम से भरपूर,
जंग के मैदान में सबको, लताड़ कर रख देंगे।

एस० डी० तिवारी

Saturday, 28 October 2017

Haiku Nov 2017

आवाज नहीं
चीटियां छितरायीं
वो तो बूंदें थीं

सरिता गयी
पद चिन्ह हो गए
झाग में लुप्त

घनी बारिश
शरण लिया हुआ
पक्षी का झुण्ड

बंजर भूमि
खड़ा एक ही पेड़
वह भी रेड़

घूमते मेघ
ढूंढ कर ले आये
थोड़ी सी छाया

दफना दिया
बीज को मरा जान
पेड़ हो गया

वट का वृक्ष
देख ना पाए छाँव
सूरज चाँद

बसंत गया
रो के शोक मनाते
बागों के फूल

बड़ी ख़राब
उठते ही आ जाती
ब्रश ले मम्मी

कोयल गाई
डाल पर उगती
कली मुस्काई

ठण्ड के मारे
रोते मेघ गिराते
बर्फ के आंसू

उड़ती पत्ती
ये जो आंधी में आई
उस गांव से

चेहरे पर
झुर्रियों की नदियां
बूढ़े हो चले

तस्वीरों का क्या
तस्वीर में लगता
सांप भी अच्छा

दीया जलाया
अँधियारा भी आ के
खूब नहाया


घना कोहरा
ढक लिया आकर
पक्षी के गीत

वर्षा में भीगी
छप्पर न छतरी
दीन जिंदगी

धुंध का दिन
गहरा गया सुन
उनका फोन

बड़ा ही होगा
आधे डंडे पे झंडा
जो मरा होगा

श्मशान घाट
नेता की मौत पर
कारों की भीड़

भीख ना दिया
मरने पे दे आये
कफ़न दान

अं छूट गया
इत्ती सी बात पर
अंजली जली

जाना है आज
रेस्टॉरेंट में खाने
मेज की चिंता

सींच न पाए
पौधे दिनों बुझाये
ओस से प्यास

अतिथि आया 
मम्मी ने समझाया
तोतले बोल

ठण्ड :: गर्म चाय

जन्म दिन :: बारह मोमबत्तियां 


फंसा बेचारा
सूरज पर डाला
धुंध ने जाल

बहुत लड़ी
पर टूट के गिरी
आँधी में कली

तुम ना साथ
डंसने लग जाती
होते ही रात

तितली उड़ी
बुलाते रहे हम
फिर ना मुड़ी

थी मजबूर 
पत्ती को बवंडर
ले गया दूर

झील में गिरी
डूबी न तट पाई
कटी पतंग 

जी ली तितली
लमहों में जीकर
लम्बी जिंदगी

Thursday, 26 October 2017

Haiku Tere naam 4

सूक्ष्म से सूक्ष्म
वृहत से वृहत
प्रभु का रूप

होता है मन
जलाकर रौशन 
भाव की ज्योति

उसके लिए
कोई बड़ा न छोटा
सबका पिता

भजन बिन
उम्र न जाये बीत
रखना चित्त

मन लगाया
प्रभु में सब पाया
छोड़ के माया

मन को जीत
लगाकर मानव
प्रभु से प्रीत

सुख का डेरा
जिसके मन होता
प्रभु बसेरा

तेरा न मेरा
सब कुछ उसी का
माया का फेरा

पायेगा प्राणी
कर प्रभु से प्रेम
परमानन्द

नन्हीं सी जान
पृथ्वी को छेद देती
चींटी महान

रात दी काली
दिन दिया उजला
प्रभु की कला

दौलत व्यर्थ
छीन लेता जिसकी
नींद को वह

चाहे ना वह
नींद नहीं मिलेगी
सोने के मोल

प्रभु ने दिया
हंसने की नीमत
गंवाना मत

चोर की होती
धर ना लिया जाय 
यही मन्नत   

गजब शक्ति
दिया वो मनुष्य को
मन व बुद्धि

जीने के लिए
हरि का नाम मिला
फिर क्या गिला

भज ले भाई
सदा ही सुखदायी
हरि का नाम 


जिसके मन
हरि नाम समाया
डसे ना माया

उसका हाथ
ऊपर हो जिसके
नहीं अनाथ

ढूंढा उसको
मोह माया धन में
बैठा मन में

कोई न जाने
खिले कौन सा गुल
अगला पल

जैसी करनी
आज नहीं तो कल
मिलेगा फल 

उसे ही पता
वो क्या करने वाला
अगले पल

नहीं चलेगी
चाहे जोर लगा ले
उसके आगे

देगा वो इत्ता
कोई सोच ना पाये 
देने पे आये

भक्तों के लिए
प्रभु है उपलब्ध
किसी भी वक्त

लेकर जाता
सीधे प्रभु के द्वार
भक्ति का मार्ग

जो भी पुकारे
तू उसको उबारे
पार लगा दे

कोई भी कष्ट
आता जो तेरे द्वार
होता उद्धार

तू है पालक
हम तेरे बालक
ले ले शरण

जिसका चाहे
तू भाग्य संवार दे
पार लगा दे

मेरी विनती
भर झोली सबकी
तू है सबका

आता जो द्वार
कर देता वो पूरा
मनोकामना

जग, ईश्वर!
तुझसे उजियारा
होता है सारा

सभी संकट
प्रभु पल में हारे
पार लगा रे 

एक ही मन्त्र
दूर हों कई कष्ट
राम का नाम

प्रेम से बोले
वो कृपा बरसाता
जय श्रीराम

************

करती सदा
पुरुषार्थ की सिद्धि
प्रभु की भक्ति

करके सदा
तुम पाओ सदबुद्धि
प्रभु की भक्ति

सुख संपन्न
करके होता जन
प्रभु की भक्ति

रक्षा करती
हर पग सबकी
प्रभु की भक्ति

जो भी करता
सारे वैभव पाता
प्रभु की भक्ति

*************

सम्पूर्ण सृष्टि
प्रभु तेरे वश में
लगाना पार

भंवर फंसी
प्रभु नईया मेरी
लगाना पार

पल में हारे
प्रभु हर संकट
लगाना पार

तेरी शरण
है सबका उद्धार
लगाना पार

पालनहार
सम्पूर्ण जग का तू
लगाना पार

*************

तू ही सहारा
कर जग से सारा
पापों का नाश

देता है भगा
जग का तम सारा
दीया उसका

वेद पुराण
जीवन दिक् दर्शक
ज्ञान की खान

जैसी करनी
आज नहीं तो कल
मिलेगा फल

शत्रु का वध
प्राण पे पड़ आये
शास्त्र सम्मत

द्वार आये को
कोई गले लगाए
प्रभु को भाये

होती न व्यर्थ
किसीकी की मदद
देता वो फल

कल आएगा
तुम्हारा आज किया
तुम्हारे काम

मिलो सबसे
प्रभु क्या रूप धरे
बड़े प्रेम से

दिया है प्रभु
सोचना कितनों से
तुम्हें अधिक

छोटे को देखो
अपने ही लगेगा
तुम बड़े हो

जैसी नियत
वैसी ही तबियत
करता प्रभु

भुला देता है
गर्व मद व क्रोध
प्रभु का बोध 

देह है माटी
बुद्धि और इन्द्रियां 
हरि का अंश

नहीं हिलता
प्रभु के चाहे बिना
एक भी पत्ता

हवा का चाहे
बवंडर बना दे
चाहे वो आंधी

जीत व हार
प्यार या तिरस्कार
उसके हाथ


देख के दंग
हो जाता मैं इतने
फूलों के रंग

प्रभु ने किया 
जिसको पैदा किया
मौत भी तय

हुए अमर
मीरा तुलसी सूर
हरि को भज

हरि को भजे
उसका वह होई
और न कोई 

सुबह शाम
और चीजें तमाम
वही बनाया

खाने को दिया
उसने भूख दी तो
फल व अन्न

प्यास दिया तो
बुझाने की खातिर
दिया वो नीर

ऋतु बनाया
सबके अनुकूल
प्रभु तू खूब

फूल के साथ
तूने कांटे भी दिए
रक्षा के लिए

प्रभु ने दिया
दुःख भी कि समझो
सुख का अर्थ

होता तुम्हारे
कर्मों पर निर्भर
रोना हंसना

सुखाने आया
तू आंसुओं को मेरे
जब भी रोया

मंदिर में तू
खड़ा था मूर्ति बना
मैं तेरा भक्त

भक्ति का मार्ग
लेकर चला जाता
हरि के द्वार

नहीं भी देता
जितना कुछ दिया
क्या कर लेता

विभिन्न क्रिया
करने को वो दिया
अनेक अंग

होती लटकी
पतले तार पर
कैसे मकड़ी


प्रभु तुम्हें भी
दिया कुछ विशेष
सोचा है कभी

किया कुछ भी
नहीं जाता है व्यर्थ
सोचा है कभी

किसी से मांगो
पर देता है वही
सोचा है कभी

जिससे माँगा
दिया वही उसे भी
सोचा है कभी

समय सदा
होता एक सा नहीं
सोचा है कभी 


तू है पालक
हम तेरे बालक
गोद रखना

नहीं रहता
प्रभु से कुछ छुपा
तम हो घोर

उसके सिवा
सृष्टि का ओर छोर
जाना न और

दिया वो ताकि
उलझा रहे व्यक्ति
मन व पेट

कठिन पर
उसे पाने का मार्ग
तप व त्याग

शून्य में टंगी
पड़ी यह धरती
तेरी ही शक्ति

तुझसे ले के
फैलाता दिनकर
सृष्टि में रश्मि

गरज कर
बरसता बादल
तेरी ही बूंदें

तुझसे पा के
अकड़ता मानव
धन व बल

नन्हां सा बीज
होता विशाल वृक्ष
तेरा ही जादू

ऊपर खड़ा
वृक्ष कैसे निकला
भूमि ज्यों की त्यों

बनाया चित्र
तू चलते फिरते
जीव विचित्र

तितली फूल
मनभावन तेरी
नदी का कूल

घुमाता नीर
अम्बुद से धरनी
तेरी करनी 

सबसे सुखी
पाया प्रभु की माया
निरोग काया

रखा है प्रभु
पहुंचे मेरी बात
नभ को रिक्त

प्रभु का ध्यान
होवे वश में मन
होता सरल

मन प्रसन्न
होता है जब होती
चाहत थोड़ी

न कि आग्रह
ईश्वर में विस्वास
दिलाता सब 

मन की इच्छा
बड़ी हो के कराती
भक्ति को छोटी

प्रभु को हम
पहचान न पाते
दिखता नित

प्रभु तो प्यारे
धन का नहीं होता
भाव का भूखा

प्रभु से सब
अपनी कह लेते
सुनाता कौन !

वो सुन लेता
करें हम प्रार्थना
मौन ही चाहे

बनाया वह
एक फुट का वृत्त
अरबों चित्र

घुल जाने दो
उसकी इच्छा में ही
अपनी इच्छा

कृपा करना
पहुंचाऊं ना प्रभु
किसी को कष्ट

करना कष्ट
तेरी शरण रहूं
अहं हो नष्ट

डर ना होता
डरता फिर कौन
पाप कर्म से

अन्तः में होता
यदि रखो विस्वास
प्रभु का वास

हरि का नाम
करने को पर्याप्त
पापों को नष्ट

सिर पे हाथ
पशु भी झुका लेता
अपना शीश

चित्र की सभी
चरित्र की ना कोई
करता पूजा

जिन्होंने भी की
जीवन में मदद
हरि का रूप


प्रमुख स्थान
ढूंढना जो प्रभु को
मन की आस्था

किये जा कर्म
हरि को रख मन
होगा सफल

अनेकों कष्ट
कर देती है भस्म
उसकी स्तुति

देता है वह
कभी बुरा समय
अच्छे के लिए

नई सुबह
तभी देख सकोगे 
चाहेगा वह

देने पे आये
प्रभु इतना दे दे
सोच से परे

देने वाला वो
करते पर लोग
स्वयं पे गर्व

सुबह शाम
रटता जो कल्याण
हरि का नाम

लगाता गले
वो, शरण जो आता
पापी ही भले

स्मरण मात्र
प्रभु का है प्रताप
धो देता पाप

लगी लगन
छोड़ के माया आया
तेरी शरण

अति कठिन
चलना सम्हल के
उसके रस्ते

थकता नहीं
दुनिया को चलाता
बैठा वो वहीं

बाग में फूल
देख के खिल जाता
हिय में हरि

पड़े अनेक
उसे चाहने वाले
हमें वो एक

सबकी टकेँ
लगीं उसकी ओर
मांगने और

मैं क्या मांगता
आने से पूर्व सब
दे दिया वह

माँगा था बस
मैं प्रभु की शरण
दे दिया सब

चाहता वह
इत्ता सब देकर
थोड़ी प्रसंशा

होगा ये जग
रहें प्यार से सब
कितना प्यारा


निहाल हुआ
बरसी जिस पर
प्रभु की कृपा

फिर मिलाया
माटी में ही उसने
मिट्टी की काया

देखतीं आँखें
तुझसे ज्योति पा के
तेरा संसार

जागा या सोया
रहा नशे में खोया
नाम के तेरे

पीया दो घूंट
होश ठिकाने आया
नाम के तेरे

पहना माला
गुंथा मोतियों का वो
नाम के तेरे

बड़ा है धन
मणि से भी वो दाना
नाम के तेरे


बना चकोर
ताकूँ नभ की ओर
तू ना दिखता

घट में छुपा
कब तक रहेगा
बाहर भी आ

तूने आकर
मुझ प्यासे को जल
दिया था कल

तूने पठाई
बीमारी में दवाई
मैं ठीक रहूं

तेरा ही दिया
पास है सब कुछ
मैंने क्या किया


वह बनाया
विष भी काम आया
दवा के लिए

बता दे कोई
एक वास्तु का नाम
ना हो धारा पे

हमें पालती
दिया वह धरती
माँ के रूप में

चाहता रब
देने वाला वो सब
हमसे भक्ति

लगन लगी
चाहत भगी सब
प्रभु में जब

आवारा फिरूं
हो गया इश्क मुझे
बता क्या करूँ

झोली फैलाये
खड़ा तेरे दर पे
अल्ला भर दे

जान गया मैं 
पत्ते खड़खड़ाये
तेरे ही आये

सहारा देने
पांव लड़खड़ाया
तू ही तो आया

और है कौन
सबकी सुन लेता
रह के मौन

लगन लगा
भगवान तो प्यारे
भाव का भूखा

मैं हूँ उसका
मुझे काहे की चिंता
साथ वो मेरे

देता है खोल
जो उसको न्यौछार
मोक्ष का द्वार

उसकी कही
राह पे जो चलता
सुख मिलता

करे जो याद
करता वो कल्याण
पाप को त्याग

दिया है बुद्धि
रख सके मनुष्य
मन को शुद्ध

कैसे धरती
अंबर में लटकी
प्रभु की माया

विशाल वृक्ष
भूमि जस कि तस
प्रभु की माया

मिट्टी की काया
जीवन का इंजन
जादू सा मन

मिले ज्यों बून्द
सबको मिल जाना
हरि सिंधु में

सिंधु में रह
जीने को पीती मत्स्य
कुछ ही बूंदें

क्यों है लड़ता
प्रभु सब में बैठा
जग में जीव

हर बून्द में
जैसे जल का अंश
हरि हम में

मन का तम
करो तो मिट जाता
हरि भजन

मूर्ख को दिया
जैसे अंधे को शीशा
ज्ञान की बात

रचयिता तू
सृष्टि का संचालक 
संहारक तू

होती है आत्मा
परमात्मा का अंश
मलिन ना हो

नाम अनेक
रखे धर्मानुसार 
प्रभु है एक

प्रभु से आयी
उसमें ही समायी 
आत्मा फिर से

पाप का घड़ा
लिए प्रभु को पाना 
कठिन  बड़ा 

हरि का नाम
मन के हर लेता 
तम तमाम

जो ना पिरोया 
हरि नाम का धागा
रहा अभागा

मन हो शुद्ध
संग में भाग्य जगे
हरि को भजे


बीज में जीव
हो के भी न उगता
जल के बिना
मनुष्य की ना गति
प्रभु की पूजा बिना


मनुष्य के ही
उदर से निकल
बना मनुष्य
विचित्र यह माया
कौन समझ पाया

जन्म वो देता
प्यार करने वाला
मनुष्य होता
सभी प्यार से रहें
होगा खुदा का जन्म

सूर्य चमका
बालू का वह कण
साथ चमका
मुझ तक जो आई
किरण में तू दिखा

धन पा जाता
निर्धन को इंसान
तुच्छ जानता
घमंड में उलझा
प्रभु को भूल जाता

करते तुम
आपस में झगड़ा
होता वो दुखी
मंदिर ना मस्जिद
देखता वह भक्ति

यह मनुष्य
घर में बंद कर
शव रखता
यदि ऐसा हो जाता
देह नहीं सड़ता

वही रहेगी
जीवन की कहानी
लिखा उसने
उन लकीरों पर
हमें तो चलना है 


सभी जगह
होता प्रभु का वास
ध्यान की बात 
बस ध्यान के लिए 
ढूंढते हैं एकांत 

करते कर्म
सोचकर के सब
इच्छा की पूर्ति
हरि को धर ध्यान
किये कर्म महान

सृष्टि भी छोटी
प्रभु इतना बड़ा
छोटा इतना
छोटे से शब्द मात्र
ॐ में समा जाय 

Tuesday, 24 October 2017

Bade baap ka beta

बड़े बाप का बेटा

बड़े बाप का बेटा था,
पैसे के बल पर ऐंठा था।
घर में नई कार आ गयी,
उसकी तो बहार आ गयी।
चमकता शानदार रंग था
लाल कार देख, पास पड़ोस दंग था। 
उसके मन कार बहुत भाई,
सुन्दर इतनी कि पड़ोसन लजाई।
उसमें एसी, हीटर, लाइटर था,
आगे और पीछे वाइपर था।
आटोमेटिक गियर था,
रेडियो, म्यूजिक प्लेयर था।
आटोमेटिक ही साइड मिरर था
रिवर्स के लिए अलार्म सेंसर था।
राह बताने के लिए जीपीएस था,
खुलकर बैठने का लेग स्पेस था।
कार की पिकअप बड़ी फ़ास्ट थी,
सेकंडों में साठ के पार थी। 
संगीतमय हॉर्न, जोरदार लाइट थी,
बाप बेटा में चलाने की फाइट थी।
बोतल, गिलास रखने की जगह थी,
कार को चलाने की वाकई वजह थी। 
बाप से आंख बचा, बेटा कार ले जाता, 
कभी कभी दोस्तों को भी घुमाता। 
लेकर, उसे बार बार निकल जाता,
कभी कभी तो दूर तक हो आता।
आगे जाती गाड़ी देख, जोश बढ़ जाता, 
दाएं, कभी बाएं से आगे निकल जाता। 
कोई उसे ओवरटेक करता, 
मन ही मन बड़ा क्रोध भरता। 
चलती गाड़ियों से रेस लगाता, 
अपनी कार की स्पीड दिखाता। 
पटरी पर लड़की की झलक पाता,  
अनायास ही हॉर्न का बटन दब जाता।  

एक दिन, उसे अवसर मिला, 
पिता जी बाहर गए थे, गाड़ी ले चला। 
सोचा, आज गर्ल फ्रेंड को घुमा दें, 
अपनी और गाड़ी की धाक जमा दें। 
चला गया वो लॉन्ग ड्राइव पर, 
स्पीड थी हंड्रेड फाइव पर। 
गर्ल फ्रेंड ने तारीफ़ कर दी  
कार आसमान पर चल दी। 
उत्साह, बढ़ चढ़ कर था,
चला रहा, थोड़ी पीकर था। 
सामने एक बिल्ली आयी 
काली थी नजर नहीं आयी। 
बिल्ली कूद कर जान बचाई 
कार जाकर, पटरी से टकराई। 
कार महँगी थी, मजबूत थी 
बंपर व शीशों में ही टूट फूट थी।  
पर पटरी पर जा रहा बेचारा 
गया बेमौत ही मारा।
थोड़ी ही देर में पुलिस आयी 
उसने पैसे की धौंस दिखाई। 
मगर सब बेकार हो गया, 
उस पर तीन सौ चार लग गया।
महंगे से महंगा वकील किया
झूठ सच का दलील दिया।
पैसे तो बहुत खर्च हुए
पर बिना किसी निष्कर्ष लिए।
पूरा परिवार परेशान हुआ
काम का भी नुकसान हुआ।
मुक़दमा चला, बहस चली
जेल गया, जमानत न मिली।
पैसा था, बाप का रुतबा बड़ा
सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा।
फिर भी कई साल रहा पड़ा
मुकदमे के पचड़े में जेल में सड़ा।
समझ आया, थोड़ी सी लापरवाही
कर सकती है बड़ी तबाही।
करने में अपनी मस्ती
सोचो ना दूसरे की जिंदगी सस्ती।




Tuesday, 17 October 2017

Tere naam 3 Geeta


गीता

उसके पास
जिस रूप में जाता
अपना लेता

प्रभु के पास
जाने के लिए राह
प्रेम व भक्ति

होती जब भी
प्रकट होता प्रभु
धर्म की हानि

धर्म रक्षार्थ
हर युग में होता
प्रभु प्रकट

हर जीव में
होता जो सर्वोपरि
प्रभु हैं मेरे

जीव का होता
प्रभु से ही संभव
जन्म मरण

पूरा ब्रह्माण्ड
प्रभु का एक अंश
और ये सृष्टि

प्रभु के तो हैं
पहचानूँ मैं कैसे
करोड़ों रूप

करने वाला
निर्माण व विनाश
सृष्टि का प्रभु

सृष्टि में पड़ीं 
विचित्रताएं जो भी 
उसी की कृति  

समय वो ही  
समय निरंतर 
चलाता वही  

वो विद्यमान 
हर पल व स्थान 
करो तो ध्यान 

नहीं भूलता 
जो सुख के समय 
प्रभु को प्यारा 

विलासोन्मुख 
जो है धन लोलुप 
प्रभु विमुख 

लेकर जाते 
लोभ क्रोध हवस 
नर्क के द्वार 

जो भी  देखता  
हर जीव में वही 
प्रभु ने देखा 
होता उसे दर्शन 
उसका हर क्षण  

विषय भोग
आरम्भ में अमृत
बाद में विष

प्रभु का तप
लगता कष्टमय
पार लगाता

सांसों में वही
देह की शक्ति वही
जीवन वही

वो फूंक भी दे
उड़ जाएगी पृथ्वी
नभ में कहीं

डालता  वह
जाता मन उलझ
माया का चक्र

मन में बैठा
उसे देख न पाता
भटका मन

प्रभु दर्शन
कर पाता है मन
एकाग्र चित्त

करते हम
हमारे सभी कर्म
उसी को प्राप्त

हैं कैसे जीते 
जो कुछ खाते पीते
उसी को प्राप्त 
कष्ट जो सहे
किस तरह रहे
उसी को प्राप्त

किसी को कभी
हमारी की मदद
उसी को प्राप्त

देवों की पूजा
किसी की किसी रूप
उसी को प्राप्त

हमारे दिए
मिल जाता है उसे
हरेक भेंट 

देखते जो भी
वही है और वो भी
देख न पाते

करेगा जो भी
स्मरण लगा के जी
पायेगा उसे

मृत्यु समय
याद करके जीव
उसका निज

ध्यान में मग्न
प्रभु के होता मन
रक्षित पूर्ण

अहं व स्वार्थ
रखता है जो दूर
प्रभु का नूर

स्वयं को देखे
जो सबके भीतर
उन्हें अपने
पाता प्रभु का सत्व
मिलता अमरत्व

कर्म के पीछे
प्रभु के लिए भाव
महत्वपूर्ण

सर्व विदित
प्रभु विलास नहीं
भाव का भूखा

हाथ तुम्हारे -
कदापि नहीं फल
कर्म  तुम्हारे

कर्म किये जा
छोड़ के प्रभु पर
फल की चिंता

करना कर्म
बस हाथ तुम्हारे
उसके फल

मन की शुद्धि
रखे धार्मिक बुद्धि
निःस्वार्थ कर्म

रखना ध्यान
फलद किया काम
औरों के हित

नहीं है कुछ
उसके पास नहीं
वही है सब

रखे विचार
कुछ करते ज्ञानी
जग कल्याण

यही कहूंगा
है सबसे उत्तम
अपना धर्म

पिछले जन्म
हम तो भूल चुके
उसको याद

तन से इंद्री
इंद्री से ऊँची बुद्धि
सर्वोच्च आत्मा
आत्मा से मार डालो
स्वार्थ गर्व व ईर्ष्या

जन्म से परे
परिवर्तनहीन
प्रभु अस्तित्व

हर जीव में
अगणित रूप में
प्रभु का वास

एक सा होता
योगी को सुख दुःख
जीत या हार

उससे जुड़े
होते देह रूप में
उसी का अंश


भाव


जो रम जाते
छोड़ लोभ व भय
उसे पा जाते

प्रभु में रमे
उसी में समाहित
अंतकाल में

वो नहीं होता
किसी फल से बंधा
क्रिया से परे

रखते ज्ञान
रिक्त क्षण उसका
करते ध्यान

वस्तु की नहीं
उसको अच्छी लगाती
कर्म की भेंट

ले जाती पार
उसकी हर हाल
श्रद्धा व भक्ति

दिला देती है
हर पाप से मुक्ति
उसकी भक्ति

काठ की भांति
जला देती दुष्कर्म
ज्ञान की आग

कर्मों  को उसे
सौंपने से निःस्वार्थ
पापों से मुक्ति

देती उसकी
साधना और भक्ति
मोक्ष की प्राप्ति

कर्म प्रथम
प्रभु की साधना का
आत्म संयम

वेदों का प्रज्ञ
देखता जगत में
सबको सम

स्वार्थ से परे
किये कर्म तुम्हारे
उसे मिलते

अपने कर्म
करने से अर्पण
प्रभु की प्राप्ति

ज्ञान परम
अपने में छुपाये
अक्षर ब्रह्म

अदृश्य रह
प्रकट होता वह
किसी भी रूप

आरम्भ होती
इन्द्रियों की तृप्ति से
प्रभु विरक्ति

समझते जो
पाते आत्मिक शांति
प्रभु को सखा

परमानन्द
पाते  जो भोग त्याग
प्रभु में लीन

जो स्वार्थहीन
होते उसमें लीन
उसे पा जाते

जानते हैं जो
वही सृष्टि का स्वामी
करते ध्यान

कर्म पे भारी
चाहत ही हो जाती
शत्रु तुम्हारी

जोड़ते हैं जो
स्वकर्म को फल से
प्रभु से परे

हो जाता है जो
चाहत में आशक्त
प्रभु विरक्त

पा लेता है जो
इच्छा पर विजय
प्रभु निकट

इच्छा पे जीत
ना हो वो दुःखी कभी
या भयभीत

अर्पित कर
ब्रह्म को सारे कर्म
शांति में मन

उसका ध्यान
मन पे नियंत्रण
लक्ष्य को जान

अति या न्यून
निद्रा और भोजन
ध्यान में विघ्न

शांत मष्तिष्क
और ध्यान में डूबा
स्वयं को ढूँढा

हो ना सकता
किया हो कर्म अच्छा
बुरा उसका

अपना माना
औरों का सुख दुःख
प्रभु सम्मुख

करता बोध
उसे हर जीव में
प्रभु उसमें

कइयों बार
कई जन्म पश्चात्
उसकी प्राप्ति

होते उत्तम
वैराग्य और ध्यान
ज्ञान के पथ

भक्ति से किया
उसकी उपासना
योग साधना

योगी कर्मठ
जुड़ जाता उससे
ध्यान के पथ

भटका मन
करता नियंत्रण
प्रभु भजन

सृष्टि उत्पत्ति
और होता है अंत
उसी के अंक

कुछ भी नहीं
जो उससे पृथक
वो ही  है सब

यह संसार
लटका ज्यूँ उसके
गले का हार

वही ब्रह्म है
वायु जल किरण
वही सब है

अग्नि की आंच
वही पुष्प की गंध
पंछी की पांख

उसका अंश
रहता विद्यमान
प्रत्येक स्वांस

बली का बल
बुद्धिमान की बुद्धि
कुलीन वही

वो सर्वशक्ति
राग द्वेष रहित
लगन वही

शांति व सुख
स्वयं में जो ढूंढते
पूर्ण रहते




पूर्ण करती
भक्ति से उपासना
मनोकामना

**********

जीवन मृत्यु
सब उसी के हाथ
रखना याद

आत्मा अमर
सताता है फिर क्यों
मृत्यु का डर

सत्व उसी में 
तमस रजस भी 
वो ना किसी में  

माया का डर
शरण में उसकी
जाता निकल


आत्मा अमर
अजन्मा अविनाशी
व अनश्वर

मृत्यु पश्चात्
आत्मा धरती देह
वस्त्र सा नया 

ना ही जलती
भीगती न गलती
आत्मा अमिट

छीनती शक्ति
विषयों की आसक्ति
मन भ्रमित

होते प्रकट
जन्म मृत्यु के बीच
सारे ही जीव

जीते हैं कई
आध्यात्मिक जीवन
जानने हेतु
जीवन का उद्देश्य
वास्तविक जीवन

नहीं जानते
मोह माया में फंसे
वही सब है
परिवर्तनहीन
और वो अजन्मा है


प्राण रहते
इच्छाएं मर जाएँ
मुक्ति हो जाती
इच्छाओं के रहते
प्राण निकले मृत्यु

पाते शरण
होते बड़े बिड़ले
उसके अंक

जानता है वो
भूत भविष्य आज
कोई ना और

सुगम पूर्ण
कर उसे स्मरण
छूटता प्राण

मृत्यु समय
कर उसको याद
मोक्ष को प्राप्त

योगी की भांति
करते जो सतत
उसको याद
लोभ वासना छोड़
होता वो उपलब्ध


उसकी ज्योति
मन भीतर तक
सूर्य से तेज

हो जाता वह
वृहत से वृहत
सूक्ष्म से सूक्ष्म

नृपों का नृप 
सृष्टि का अधिपति
सार्वभौम वो

ब्रह्म का ज्ञान
सुगम कर देता
जीवन लक्ष्य

हो जाते जीव
जन्म मृत्यु से मुक्त
हरि से जुड़े

जड़ चेतन
जो भी जग में आया
वही बनाया

कष्ट वही है
निवारण का वही
मंत्र औषधि

पालनकर्ता
सृष्टि का माता पिता  
सब है वही

हव्य भी वही
ग्रहण जो करता
हवन वही

ज्ञान का सार
सुचि अक्षर वही
वही है वेद

वही शरण
हर आत्मा का घर
परमात्मा वो  


सम्पूर्ण सृष्टि 
वही चलाता, वो है 
आदि व अंत 

करने वाला
उसे सतत ध्यान
सुख से पूर्ण  

प्रभु की पूजा 
उस तक ले जाती 
मृत्यु पश्चात् 

भोगता वह  
जो समर्पित उसे  
स्वर्ग का भोग 

मन में भर 
हरि से जुड़ जाओ 
तुम्हारा वह  

कर्म से ज्ञान
ज्ञान से बड़ा ध्यान
सबसे भक्ति

निःस्वार्थ सेवा
ध्यान ज्ञान अध्यात्म
उसकी राह

शांति नम्रता 
श्रद्धा और शुद्धता 
मन पे काबू  


अपनाते जो 
वास्तविक विद्वान 
गीता का ज्ञान 

स्वार्थ से परे 
सन्यास और त्याग 
उसके मार्ग 

सभी प्रलेख 
लेखक और ज्ञान 
प्रभु ही मान 

***************

एक  ही धर्म
उसको पा लेने का
निःस्वार्थ कर्म

वायु गगन
क्षिति जल पावक
देह अधम

साथ क्या लाये
जो कुछ पाए यहीं
छोड़ोगे यहीं

आये जग में
खाली हाथ ही सब
खाली ही जाना

जो कुछ हुआ
अच्छे के लिए हुआ 
अच्छा ही होगा

मेरा अपना
बस मेरा जीवन
उसे अर्पण

पाता जो होता
जीवन का आनंद
प्रभु में मग्न

आज तुम्हारा 
कल किसी और का 
होगा वो सब 

अधर्म होता 
धरा पर तो प्रभु 
प्रकट होता 

रखता है जो  
जैसी मनोकामना 
देता वो फल 

होता है जिसे 
इन्द्रियों पर वश 
पापों से मुक्त 

जग उत्पत्ति 
पालन सञ्चालन 
वही करता 

करते हैं जो 
प्रेम से उपासना 
छोड़ वासना 
प्रभु उनके पास 
पूरी करता आस 


मुख में देख 
अर्जुन चमत्कृत 
सारा ब्रह्माण्ड 

करेगा वो भी 
जितना ज्यादा प्यार 
करोगे तुम 

बनाने वाले
सूरज चाँद तारे
प्रभु हमारे 


जग में होता 
जो कुछ सर्वश्रेष्ठ 
उसका वास  

कर्म से धर्म 
होता है सुनिश्चित  
धर्म से कर्म 

किया सत्कर्म 
देता अच्छा ही फल 
जाता न व्यर्थ