आ के मुहब्बत की, बूंदों के रेले, मेरे दिल से खेले।
आये बड़े ही, जिंदगी में झमेले, मेरे दिल से खेले ।
मिलते कभी वो जब, खिलकर के ये दिल, हो जाता गदगद,
मिल के झुरमुटों में, कहीं पर अकेले, मेरे दिल से खेले।
हरदम सुनाते, फटेहाली का अपनी, वो रोना व धोना,
रखे पास अपने, दाम नहीं धेले, मेरे दिल से खेले ।
पड़ता था करना, सबर लेकर ही बस, इन आँखों से स्वाद,
दुकानों पे धरे, पकवानों के मेले, मेरे दिल से खेले।
'है तुमसे मुहब्बत, बेसुमार मुझको' कई मर्तबा बोले,
कभी न कहा, कोई सौगात ले ले, मेरे दिल से खेले ।
उल्फत जताये मगर, चालाकियों को, कभी वो न छोड़े
अपनी मुसीबत, मेरी ओर ठेले, मेरे दिल से खेले ।
करते थे शरारत, वे बनकर कभी, एक नन्हें से नटखट
कारगुजारी सभी, हमने ही झेले, मेरे दिल से खेले ।
एस. डी. तिवारी
उल्फत जताये मगर, चालाकियों को, कभी वो न छोड़े
अपनी मुसीबत, मेरी ओर ठेले, मेरे दिल से खेले ।
करते थे शरारत, वे बनकर कभी, एक नन्हें से नटखट
कारगुजारी सभी, हमने ही झेले, मेरे दिल से खेले ।
एस. डी. तिवारी
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