Thursday, 30 November 2017

Haiku Tere naam 5


मेरे तो तुम्हीं
गलतियां भी करूँ
रूठना नहीं

बड़ी इतनी
कोई लिख न पाया
प्रभु की माया

जग बनाया
बढ़ जाने पे पाप
वो ही मिटाया

करता प्रभु
जगत का उद्भव
सब संभव

हरि के लिए
हर बात संभव
पल की देरी

मशीन बना
इतराता मानव
साँस न प्राण

बढ़ता पाप 
करने का वो नाश
होता प्रकट

बड़ा सुन्दर
यदि प्रभु से प्यार
यह संसार

ईश्वर अल्ला
दोनों ही तेरे नाम
भाषा का फेर

बसता हरि 
बना के जो रखता
मन मंदिर


कर देता वो
हवा की गति बढ़ा
तूफान खड़ा

सुख संपत्ति
मिल पाना सन्मति
प्रभु के हाथ

सुबह शाम
लेकर हम जीते
तेरा ही नाम

दीया न बाती
रात जगमगाती
खुदा के घर

कुछ ना भी हो
मिल जाता जो चाहो 
खुदा के घर

कितना बड़ा
सब ही अंट जाते
खुदा के घर

जाना संभव
करके पुण्य कर्म
खुदा के घर

कोई न भूखा
मन मार के सोता
खुदा के घर

सबकी इच्छा
वह पूरी करता
खुदा के घर

***********

दिया तू गाय
हम दूध पे पांय
शुक्रिया खुदा

मधु न पाते
होती न मधुमक्खी
शुक्रिया खुदा

उड़ा ले जाती
दुर्गन्ध तेरी हवा
शिक्रिया खुदा

तूने लौ दिया
हुई रौशन दीया
खुदा शुक्रिया

पक्षी न होते
कौन साफ़ करता
कीड़े मकोड़े

पक्षी के बिना
होता कितना सूना
नील गगन

खिला के फूल
महकाया चमन
शुक्रिया खुदा 


सैलाब दिया
नाव की लकड़ी भी
शुक्रिया खुदा

पृथ्वी पे दिया
हर व्याधि की दवा
शुक्रिया खुदा

तू है विधाता
तू ही सबका दाता
रखना खैर

तुझे पुकारा
मंदिर गुरुद्वारा
सुन तो लेता

तेरी जो इच्छा
छोड़ दिया तुझपे
मेरी भी इच्छा

करेगा वही
होगी जो तेरी मर्जी
रोता क्यों फिरूं


नाचता बन
तेरे हाथ का लटटू
काल का चक्र

जग में आया
लाखों से मिल पाया
शुक्रिया खुदा

खुद से युदा
करना नहीं खुदा
तेरा बालक

जितना दिया
कौन कर सकता
खुदा! शुक्रिया

मूंदे रहता
कैसे दुःख में देख
खुदा तू ऑंखें

खुशी अपार
बरसाता सदैव
हरि से प्यार


गूंगा बहरा
बोल व सुन लेता
हो के भी हरि

जिसकी कहीं
ईश्वर ऐसा वृत्त
परिधि नहीं

छोड़ देता मैं
जो मेरे वश नहीं
उसे करने

अनेकों काम
जो मैं नहीं करता
पर हो जाता

जब भी होना
ईश्वर के सम्मुख
श्रद्धा के साथ

चाहता रब
जिसने दिया सब
थोड़ी सी श्रद्धा

देती जग में
कुछ पाने की शक्ति
हरि की भक्ति 



सो के बिताया
बीतने पर उम्र
वो याद आया

करेगा पूरी
उम्मीद न छोड़ना
उससे कभी

नहीं करता
सभी द्वार बंद
वो एक संग 



लगी जो प्रीति
मिली जग की निधि
तुझसे प्रभु

तुझमें हूँ मैं
प्रभु मुझमें है तू
फिर क्यों दूर

कैसे दिखता
आँखों की डगर तू
मन में बैठा

तू ही लिखता
मैं जो कुछ करता
ऊपर बैठा

ढूंढ न पाता
तुझको भगवन
चंचल मन

सुना है होता
इंसान खुदगर्ज
तू तो खुदा है

इतना दिया
मैं दबा रह गया 
जिंदगी में तू

भीतर रहा
बीज सा तेरा अंश
उगाया नहीं 

मुझसे कभी -
तू ही था सच्चा प्रेमी
युदा न हुआ

जहाँ तू कहा
इस जग में वहीं
रहा मैं पड़ा


फेंका उसने
कठपुतली बना
खींच भी लेगा

मन की दवा
जब भी हो बीमार
होता है प्यार

करे जो नित
देता नहीं विषाद
उसको याद


पैदा करता
वो पेट भी भरता
खरबों जीव

तोड़ता दम्भ
बहार इतराती
चला के आंधी

किसने दिया
तितलियों को रंग
फूलों को गंध

मैं तुझमें हूँ
और तू मुझमें है
फिर भी ढूंढूं

जोड़े रखती
रचनाएँ उसकी
प्रेम का धागा

प्रभु को कभी
नहीं देख सकता
दम्भ में अँधा


आत्मा में हर
तेरे सिंधु का बून्द
होता है पड़ा 



खोलते शिव
जब तीसरी आँख
सर्वत्र नाश

बना के सिक्का
इतराता मानव
उसी पे बिका

बनाया जग
ईश्वर ने सुन्दर
रातों को जग

मोम का गुड्डा
बना लिया इंसान
सांस न प्राण


एक फूंक से
उठा देता तूफान
हे भगवान

भरा सागर
जल बरसाकर
मेरा ईश्वर

ज्ञान विचित्र
निकालने को बाँटा
कांटे से काँटा

होता न कष्ट
जान न पाता जन
उसका सत्व

रंगा ये जग
कहाँ रखता होगा
प्रभु वो ब्रश 

No comments:

Post a Comment