Sunday, 12 July 2015

Neta ka safarnama

एक नेता का सफरनामा

लगता नहीं है जी मेरा, पढ़ने के जार में।
फेल हो हो कर हो गया, हूँ दागदार मैं।

चाहत थी घरवालों की, लपेट लें, मगर;
लगा न सका किसी तौर मैं, मन कारोबार में।

घूम कर छानता रहता, मस्तियाँ हरदम,
फिर ज़माने लगा महफ़िलें, जा दोस्त यार में।

सिर पर आ के बैठ गया, नेतागिरी का शौक;
देने लगा  हाजिरी नेता के, जा दरबार में।

नेता के कारनामों के, बदले चला गया;
बिना झिझक हवालात भी, खुद कई बार मैं।

जेल आने जाने में मिला, तजुर्बे का ढेर;
धीरे धीरे कानून का, हुआ जानकार मैं।

नेता जी से ढांढ़स मिला, टिकट दिलायेंगे,
अपनी ही पार्टी का वो, अगले चुनाव में।

टिकट के  मिल जाने पर, जान लगा दिया;
जीत गया चुनाव मैं भी, दल के बयार में।

जो लोग रखते थे कभी, नजर मुझ पे देव;
उस जमात को करता हूँ, अब ख़बरदार मैं।

एस ० डी ० तिवारी

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