Monday, 13 July 2015

Dada ki chhadi / bhookh / sawan / badh - haiku


याद दिलाती
घर का ही हिस्सा थे
दादा की छड़ी

चला था साथ
पकड़ कर मैं भी
दादा की छड़ी

याद है अभी
जब जोर की पड़ी
दादा की छड़ी

खूँटी पे टंगा
घर का इतिहास
दादा की छड़ी

खूँटी पे टंगी
रखती निगरानी
दादा की छड़ी

टंगी है पर
सबकी मनमानी
दादा की छड़ी

बची है अब
बस यही निशानी
दादा की छड़ी

कोने में खड़ी
ऊपर धूल पड़ी
दादा की छड़ी    

थी यह टंगी
कभी तीसरी टांग
दादा की छड़ी


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जन की रोटी
सोहरत व सत्ता
नेता की भूख

मिटाने हेतु
लोग दौड़ लगाते
पेट की भूख

मिटाने हेतु
आत्मा दौड़ लगाती
मन की भूख

मिटाने हेतु
लुटाना होता प्यार
प्यार की भूख

मिटाने हेतु
पाप तक कमाते
धन की भूख

मिटाने हेतु
कुछ  भी कर लेते
सत्ता की भूख


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धनी नोट का
नेता भूखा वोट का
भूखा रोट का

टेलीविज़न
व काप्टर का शोर
बाढ़ का दौर

बहा ले गयी
पूरन की खटिया
गुस्सैल नदी

नदी का कोप
मेरे गांव खे रही
सेना की नाव

आसमान से
रोटी की बरसात
पानी में गांव

हेलीकाप्टर
उम्मीद की किरण
बाढ़ में फंसे

बाढ़ ले आई
द्वार पे बंधी गाय
जाने किसकी!

रंगे भक्तों को
रिमझिम सावन
शिव के रंग

कैसा विकास
प्रेमचंद की बातें
आज भी सच्ची


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दादुर मोर                                          
मन मचावें शोर              
आया सावन                  
                                   
वर्षा बहार
मन गावे मल्हार
आया सावन

सूरज घटा
लुका छिपी की छटा
आया सावन

गाते कजरी
मिल बात बदरी
आया सावन

नदी बौराई
बहती अकुलाई
आया सावन

मिटी उदासी
मही अब न प्यासी
आया सावन

आ जा ले छुट्टी
भरी या खाली मुट्ठी
आया सावन


नई दुल्हन
झूले की ऊँची पेंग
आया सावन

लगा दी झड़ी
छतरी टूटी पड़ी
आया सावन

***************



टेलीविज़न
व काप्टर का शोर
पानी में गांव

नदी ले गयी
पूरन की खटिया
पानी में गांव

सेना की नाव
खे रही मेरे गांव
पानी में गांव

हेलीकाप्टर
उम्मीद की किरण
पानी में गांव

आसमान से
रोटी की बरसात
पानी में गांव

छत पे चढ़े
अधिकतर सामान
पानी में गांव

गांव के वासी
सूखे घट तरसे
पानी में गांव


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