स्वप्न से तकदीर बने न, पानी पे तस्वीर।
करनी से भरनी मिले, राखि करे जो धीर।
झुक पाता तो है वही, जिसमे होती जान।
लकड़ी, मुर्दे की अकड़, मरने की पहचान।
समय समय की बात है, घटते बढ़ते भाव।
कब गाड़ी हो नाव पर, कब गाड़ी पर नाव।
पौत्र सीखा दादा से, उंगली पकड़ चलना।
सिखाता मोबाइल पे, उंगली वो रखना।
एस ० डी ० तिवारी
रह काँटों के बीच में, गुलाब रखता शान।
जिंदगी उनकी है हंसीं, हंसें जो हर हाल।
कांटों की चिंता नहीं, हँसता फूल गुलाब।
जीते जो अपने लिए, जीवन रखें फिजूल।
जिन्दा अपने हेतु नहीं, नदिया, पेड़ व फूल।
गलत काम का सभी को, पड़े चुकाना मोल।
मारा जाता शेर भी, होता आदमखोर।
छूट जाते हैं एक दिन, हर साँस और साथ।
साँस गए एक बार मरे, छोड़ सौ बार साथ।
औरों का हक़ छीन के, बनते हैं धनवान।
शेर होता पहलवान, ले औरों की जान।
धन के बल जो आदमी, हो जाता है बड़ा।
पाप का बोझ, सर ऊपर, रखे होत है बड़ा।
मोटा होवे आदमी, घटे पेट की भूख।
जैसे जैसे हो धनी, बढ़ती धन की भूख।
भोजन कर ले पेट भर, मिटे पेट की भूख।
जपो जी भर राम नाम, मिटती मन की भूख।
देख समय को, बुढ़ापा, आय सज्जन के मन ।
बूढ़ा हो जाय दुर्जन, बुढ़ापा आय न मन।
उत्पन्न हो जाय पुत्री, होता पिता चिंतित।
कैसा होगा घर व वर? सुख क्या साथ किंचित ?
स्त्री कुल की मर्यादा, सरिता के हैं कूल।
बिगड़ी स्त्री कुल तोड़े, उफनी सरिता कूल।
तेज होकर पवन बहुत, रखता ताकत बड़ा।
गिरा दे खड़े पेड़ को, कर न सके फिर खड़ा।
शत्रु व रोग ज्यों जन्में, दीजो तुरत दबाय।
हो जाते हैं जब बड़े, घातक वे हो जांय।
बूढ़ा हो जाय दुर्जन, बुढ़ापा आय न मन।
उत्पन्न हो जाय पुत्री, होता पिता चिंतित।
कैसा होगा घर व वर? सुख क्या साथ किंचित ?
स्त्री कुल की मर्यादा, सरिता के हैं कूल।
बिगड़ी स्त्री कुल तोड़े, उफनी सरिता कूल।
तेज होकर पवन बहुत, रखता ताकत बड़ा।
गिरा दे खड़े पेड़ को, कर न सके फिर खड़ा।
शत्रु व रोग ज्यों जन्में, दीजो तुरत दबाय।
हो जाते हैं जब बड़े, घातक वे हो जांय।
छोड़ देते मित्र सभी, ना हो जब कुछ हाथ।
गाय से दूध ना मिले, बछड़ा छोड़े साथ।
रईस कृपण से बड़ा, दानी निर्धन होय।
जल का कुआँ पूजें सब, सागर को ना कोय।
तपते लोहे पर भस्म, जल सीप में मोती।
सोना संग लाख की, सोने सी गति होती।
उदित होता या डूबता, सूरज रहता लाल।
ज्ञानी का सुख दुःख में, रहे एक सा हाल।
इंसान कर ले वश में, बाघ भालू व सर्प।
खुद के पाले हों नहीं, वश में क्रोध व दर्प।
सोना का संग पाकर, लाख चमक ना पाय।
मूरख सन्त प्रताप से, वंचित ही रह जाय।
सोना संग लाख की, सोने सी गति होती।
उदित होता या डूबता, सूरज रहता लाल।
ज्ञानी का सुख दुःख में, रहे एक सा हाल।
इंसान कर ले वश में, बाघ भालू व सर्प।
खुद के पाले हों नहीं, वश में क्रोध व दर्प।
सोना का संग पाकर, लाख चमक ना पाय।
मूरख सन्त प्रताप से, वंचित ही रह जाय।
कलियुग में भी धृतराष्ट्र, पुत्रमोह में अँधा।
कैसे बैठे गद्दी पर, लोक की ना चिंता।
देह चलातीं इन्द्रियां, वा इन्द्रियों को मन
माया का अथाह समुद, बुद्धि से नियंत्रण
पूजा, प्रार्थना, श्रद्धा, भक्ति, ध्यान व ज्ञान
सही मार्ग ले जानें की मन की हैं लगाम
सत्व, राजसी, तामसी तीन गुणों में द्वन्द
किसकी गति तीव्र करो चाहो जिसको मंद
काम, क्रोध. लोभ, मोह, मन को करें बीमार
दया, सत, प्रेम से वंचित धारण करे विकार
वैद्य देता है दवा होय जो तन का रोग
साधना ही ठीक करे, मन का हो गर रोग
अहं, स्वार्थ, ईर्ष्या व हठ, बुद्धि पे झंडा गाड़
ह्रदय के करते बंद, ये ही खुले किवाड़
व्यायाम से हो सुदृढ़, हरेक जीव का तन
मानसिक अभ्यास रखे, स्वस्थ मनुष्य का मन
तीर्थ, पूजा के करे, स्वच्छता ना आय
काम वासना मार दे, मन निर्मल हो जाय
देह चलातीं इन्द्रियां, वा इन्द्रियों को मन
माया का अथाह समुद, बुद्धि से नियंत्रण
पूजा, प्रार्थना, श्रद्धा, भक्ति, ध्यान व ज्ञान
सही मार्ग ले जानें की मन की हैं लगाम
सत्व, राजसी, तामसी तीन गुणों में द्वन्द
किसकी गति तीव्र करो चाहो जिसको मंद
काम, क्रोध. लोभ, मोह, मन को करें बीमार
दया, सत, प्रेम से वंचित धारण करे विकार
वैद्य देता है दवा होय जो तन का रोग
साधना ही ठीक करे, मन का हो गर रोग
अहं, स्वार्थ, ईर्ष्या व हठ, बुद्धि पे झंडा गाड़
ह्रदय के करते बंद, ये ही खुले किवाड़
व्यायाम से हो सुदृढ़, हरेक जीव का तन
मानसिक अभ्यास रखे, स्वस्थ मनुष्य का मन
तीर्थ, पूजा के करे, स्वच्छता ना आय
काम वासना मार दे, मन निर्मल हो जाय
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