Sunday, 19 July 2015

Vishwas ki dor

विश्वास की डोर

मुझे नित विश्वास रहता है
सुबह की रश्मि आते ही तम छंट जायेगा
घनेरी घटा छा जाय तो, मै क्या करूँ।
मेरी पतंग उड़े सबसे ऊँची
विश्वास के धागे पर उड़ रही पतंग को
कोई काट ही दे तो, मै क्या करूँ।
कच्ची डोर होती विश्वास की
और वह कठपुतली है दूसरे के हाथ की
उंगली न नचाये तो, मै क्या करूँ।
सब नहीं होता विश्वास परक
बीच में ही छोड़ दे साथ उनको परख
निर्बल कड़ी का हाथ, मैं क्यों धरूँ।
मोह व भ्रम भी आते समक्ष 
कान भर निर्बल करते विश्वास की डोर
चक्षु को खोले बिना, मैं क्यों भरूं। 
यद्यपि टूट जाती डोर, कई बार
आघात भी होता विश्वास पर, कई बार
करता रहे कोई घात, मै क्यों मरूं।
मैं तो बट के रखता हूँ बल
विश्वास की डोर के साथ आत्मविश्वास का
टूटे तो स्वयं पर भी दोष धरूँ।





Sadhana Vaid ki kavita


कल्पना की पतंग को
आसमान की ऊँचाइयों तक
पहुँचा कर मन अत्यंत
हर्षित और उल्लसित था
मेरी मुट्ठी में कस कर
लिपटा विश्वास का वह सूत्र
उँगलियों में ही उलझा
रह गया और
किसी और की पतंग
विश्वास के उस धागे को
आसमान में ही काट
मेरी भावना की पतंग को
अनजान वीरानों में
भटकने के लिये
विवश कर गयी !
कैसा था यह विश्वास
जो मन की सारी आस्था
सारी निष्ठा को
निमिष मात्र में हिला गया !
किस विश्वास पर भरोसा करूँ
काँच से नाज़ुक विश्वास पर या
ओस की बूँद जैसे नश्वर
विश्वास पर ?
सुदूर वीराने से रह रह कर
आती किसीकी भ्रामक
पुकार की आवाज़ से
विश्वास पर या
आसमान में लुका छिपी का
खेल खेलते टिमटिमाते सितारों की
धुँधली सी रोशनी से
विश्वास पर ?
अनंत अथाह सागर के
सीने पर उठती त्वरित तरंगों से
क्षणिक विश्वास पर या
वृक्ष की हर टहनी पर विकसित
अल्पकालिक सुन्दर सुकोमल
सुगन्धित फूलों के
लघु जीवन से
विश्वास पर ?
जो भी हो ‘विश्वास’ शब्द
जितना सम्मोहक है
उतना ही भ्रामक भी !
दृढ़ होने पर यह
जीवन जीने के लिये यह
जिस तरह प्रेरित करता है
टूट जाने पर यह उसी तरह
जीने की सम्पूर्ण इच्छा को
पल भर में ही मिटा जाता है !


Sharab peene ki jagah

एक ही विषय पर 5 महान शायरों का नजरिया -


Mirza Ghalib : मिर्ज़ा ग़ालिब : "शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर ,
या वो जगह बता जहाँ ख़ुदा नहीं"

खुदा कहाँ नहीं! ये तू भी जाने है ग़ालिब
वह तो यहाँ भी है और वहां भी,
खुदा पर उसे ज्यादा ही भरोसा है 
इसलिए मयखाना चला जाता है शराबी।
एक - खुदा मुझे तेरी बड़ी फिक्र है तू भी मेरी फिक्र करना
यह बताने इबादतखाना जाता है
और एक - तू तो रखता ही सबकी फिक्र फिर मुझे क्या फिक्र  
यह सोचता मयखाना जाता है।

Iqbal : इक़बाल : "मस्जिद ख़ुदा का घर है, पीने की जगह नहीं ,
काफिर के दिल में जा, वहाँ ख़ुदा नहीं "

कोई पीने की जगह ढूंढने, काफिर के दिल में भी कैसे जाये!
जो दिल में जगह दे, उसके लिए खुदा से कम  क्या होगा!
माना मस्जिद है खुदा का घर, वहां बैठ के पी नहीं सकता,
मगर, पीकर मस्जिद में बैठने से खुदा ने कब रोका।

पीने के लिए, जाने से मयखाना, कौन रोकता है
पीकर के जाने से इबादतखाना, कौन रोकता है
दिल में जगह दे दे कोई तो काफिर कहाँ रह जाता
ढूंढो दिलों में खुदा का ठिकाना तो कौन रोकता है

चाहो किसी को दिल में बिठाना तो कौन रोकता है

Ahmad Faraz : अहमद फ़राज़ : "काफिर के दिल से आया हूँ
मैं ये देख कर, खुदा मौजूद है वहाँ, पर उसे पता नहीं "

काफिर के दिल में भी खुदा है उसे पता भी है
मस्जिद जाये न बेशक करता सजदा भी है
तू काफिर के दिल तक गया, खुदा को देखा भी
अरे नादान, फिर चला क्यों आया ? मिलता भी

Wasi : वासी : "खुदा तो मौजूद दुनिया में हर जगह है,
तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं "


जन्नत का तो शहंशाह ही है खुदा
बहा सकता है शराब का शैलाब।
जन्नत में जाकर तो डूब ही जायेगा
मिल जाएगी ख्वाईशें भर के शराब।

Saqi :सनम हाश्मी  "पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए,
जन्नत में कौनसा ग़म है इसलिए वहाँ पीने में मजा नहीं"

जन्नत में मजा लेना है पीने का
तो दुनिया से थोड़ा गम साथ ले जाना।
थोड़ा पीने का मजा आ जायेगा
थोड़ा दुनिया में गम कम हो जायेगा।

अय्याज
पीने के लिए मुक्कदस जगह न ढूंढ अय्याज
अगर रहना ही है बेखबर दुनिया से तो पीने की जरूरत क्या
सजदे झुका रह खुदा के रात दिन
इसका नशा जिंदगी भर उतरता नहीं


जो झुक कर खुदा का सजदा करता है
जिंदगी का वक्त खूबसूरत गुजरता है।
पीने को जगह ढूंढने की उसे क्या जरूरत?
नशे में होके भी खुद की खबर रखता है।

जिसने भी खुदा के नाम का जाम पिया
माना  कि हासिल अपना मुकाम करता है।  
जिस पर खुदा की ज्यादा मेहर बरसती,   
वही तो महँगी शराब से जाम भरता है?

Friday, 17 July 2015

Nuskhe


कोलेस्ट्रॉल/ हार्ट ब्लॉकेज/ रक्त चाप
अदरक लहसुन नीबू एप्पल साइडर सिरका सबका रास एक एक कप मिलकर पका लें जब तीन कप रह जाय, तीन कप शहद मिलकर रोज खली पेट ३ चम्मच सेवन करें

Ayurvedic duha..

आयुर्वेदिक दोहे
१Ⓜ
दही मथें माखन मिले,
केसर संग मिलाय,
होठों पर लेपित करें,
रंग गुलाबी आय..
२Ⓜ
बहती यदि जो नाक हो,
बहुत बुरा हो हाल,
यूकेलिप्टिस तेल लें,
सूंघें डाल रुमाल..

३Ⓜ
अजवाइन को पीसिये ,
गाढ़ा लेप लगाय,
चर्म रोग सब दूर हो,
तन कंचन बन जाय..

४Ⓜ
अजवाइन को पीस लें ,
नीबू संग मिलाय,
फोड़ा-फुंसी दूर हों,
सभी बला टल जाय..

५Ⓜ
अजवाइन-गुड़ खाइए,
तभी बने कुछ काम,
पित्त रोग में लाभ हो,
पायेंगे आराम..

६Ⓜ
ठण्ड लगे जब आपको,
सर्दी से बेहाल,
नीबू मधु के साथ में,
अदरक पियें उबाल..

७Ⓜ
अदरक का रस लीजिए.
मधु लेवें समभाग,
नियमित सेवन जब करें,
सर्दी जाए भाग..

८Ⓜ
रोटी मक्के की भली,
खा लें यदि भरपूर,
बेहतर लीवर आपका,
टी० बी० भी हो दूर..

९Ⓜ
गाजर रस संग आँवला,
बीस औ चालिस ग्राम,
रक्तचाप हिरदय सही,
पायें सब आराम..

१०Ⓜ
शहद आंवला जूस हो,
मिश्री सब दस ग्राम,
बीस ग्राम घी साथ में,
यौवन स्थिर काम..

११Ⓜ
चिंतित होता क्यों भला,
देख बुढ़ापा रोय,
चौलाई पालक भली,
यौवन स्थिर होय..

१२Ⓜ
लाल टमाटर लीजिए,
खीरा सहित सनेह,
जूस करेला साथ हो,
दूर रहे मधुमेह..

१३Ⓜ
प्रातः संध्या पीजिए,
खाली पेट सनेह,
जामुन-गुठली पीसिये,
नहीं रहे मधुमेह..

१४Ⓜ
सात पत्र लें नीम के,
खाली पेट चबाय,
दूर करे मधुमेह को,
सब कुछ मन को भाय..

१५Ⓜ
सात फूल ले लीजिए,
सुन्दर सदाबहार,
दूर करे मधुमेह को,
जीवन में हो प्यार..

१६Ⓜ
तुलसीदल दस लीजिए,
उठकर प्रातःकाल,
सेहत सुधरे आपकी,
तन-मन मालामाल..

१७Ⓜ
थोड़ा सा गुड़ लीजिए,
दूर रहें सब रोग,
अधिक कभी मत खाइए,
चाहे मोहनभोग.

१८Ⓜ
अजवाइन और हींग लें,
लहसुन तेल पकाय,
मालिश जोड़ों की करें,
दर्द दूर हो जाय..

१९Ⓜ
ऐलोवेरा-आँवला,
करे खून में वृद्धि,
उदर व्याधियाँ दूर हों,
जीवन में हो सिद्धि..

२०Ⓜ
दस्त अगर आने लगें,
चिंतित दीखे माथ,
दालचीनि का पाउडर,
लें पानी के साथ..

२१Ⓜ
मुँह में बदबू हो अगर,
दालचीनि मुख डाल,
बने सुगन्धित मुख, महक,
दूर होय तत्काल..

२२Ⓜ
कंचन काया को कभी,
पित्त अगर दे कष्ट,
घृतकुमारि संग आँवला,
करे उसे भी नष्ट..

२३Ⓜ
बीस मिली रस आँवला,
पांच ग्राम मधु संग,
सुबह शाम में चाटिये,
बढ़े ज्योति सब दंग..

२४Ⓜ
बीस मिली रस आँवला,
हल्दी हो एक ग्राम,
सर्दी कफ तकलीफ में,
फ़ौरन हो आराम..

२५Ⓜ
नीबू बेसन जल शहद ,
मिश्रित लेप लगाय,
चेहरा सुन्दर तब बने,
बेहतर यही उपाय..

२६.Ⓜ
मधु का सेवन जो करे,
सुख पावेगा सोय,
कंठ सुरीला साथ में ,
वाणी मधुरिम होय.

२७.Ⓜ
पीता थोड़ी छाछ जो,
भोजन करके रोज,
नहीं जरूरत वैद्य की,
चेहरे पर हो ओज..

२८Ⓜ
ठण्ड अगर लग जाय जो
नहीं बने कुछ काम,
नियमित पी लें गुनगुना,
पानी दे आराम..

२९Ⓜ
कफ से पीड़ित हो अगर,
खाँसी बहुत सताय,
अजवाइन की भाप लें,
कफ तब बाहर आय..

३०Ⓜ
अजवाइन लें छाछ संग,
मात्रा पाँच गिराम,
कीट पेट के नष्ट हों,
जल्दी हो आराम..

३१Ⓜ
छाछ हींग सेंधा नमक, x
दूर करे सब रोग, जीरा
उसमें डालकर,
पियें सदा यह भोग..।

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Monday, 13 July 2015

Dada ki chhadi / bhookh / sawan / badh - haiku


याद दिलाती
घर का ही हिस्सा थे
दादा की छड़ी

चला था साथ
पकड़ कर मैं भी
दादा की छड़ी

याद है अभी
जब जोर की पड़ी
दादा की छड़ी

खूँटी पे टंगा
घर का इतिहास
दादा की छड़ी

खूँटी पे टंगी
रखती निगरानी
दादा की छड़ी

टंगी है पर
सबकी मनमानी
दादा की छड़ी

बची है अब
बस यही निशानी
दादा की छड़ी

कोने में खड़ी
ऊपर धूल पड़ी
दादा की छड़ी    

थी यह टंगी
कभी तीसरी टांग
दादा की छड़ी


****************



जन की रोटी
सोहरत व सत्ता
नेता की भूख

मिटाने हेतु
लोग दौड़ लगाते
पेट की भूख

मिटाने हेतु
आत्मा दौड़ लगाती
मन की भूख

मिटाने हेतु
लुटाना होता प्यार
प्यार की भूख

मिटाने हेतु
पाप तक कमाते
धन की भूख

मिटाने हेतु
कुछ  भी कर लेते
सत्ता की भूख


**************





धनी नोट का
नेता भूखा वोट का
भूखा रोट का

टेलीविज़न
व काप्टर का शोर
बाढ़ का दौर

बहा ले गयी
पूरन की खटिया
गुस्सैल नदी

नदी का कोप
मेरे गांव खे रही
सेना की नाव

आसमान से
रोटी की बरसात
पानी में गांव

हेलीकाप्टर
उम्मीद की किरण
बाढ़ में फंसे

बाढ़ ले आई
द्वार पे बंधी गाय
जाने किसकी!

रंगे भक्तों को
रिमझिम सावन
शिव के रंग

कैसा विकास
प्रेमचंद की बातें
आज भी सच्ची


*******************


दादुर मोर                                          
मन मचावें शोर              
आया सावन                  
                                   
वर्षा बहार
मन गावे मल्हार
आया सावन

सूरज घटा
लुका छिपी की छटा
आया सावन

गाते कजरी
मिल बात बदरी
आया सावन

नदी बौराई
बहती अकुलाई
आया सावन

मिटी उदासी
मही अब न प्यासी
आया सावन

आ जा ले छुट्टी
भरी या खाली मुट्ठी
आया सावन


नई दुल्हन
झूले की ऊँची पेंग
आया सावन

लगा दी झड़ी
छतरी टूटी पड़ी
आया सावन

***************



टेलीविज़न
व काप्टर का शोर
पानी में गांव

नदी ले गयी
पूरन की खटिया
पानी में गांव

सेना की नाव
खे रही मेरे गांव
पानी में गांव

हेलीकाप्टर
उम्मीद की किरण
पानी में गांव

आसमान से
रोटी की बरसात
पानी में गांव

छत पे चढ़े
अधिकतर सामान
पानी में गांव

गांव के वासी
सूखे घट तरसे
पानी में गांव


**********

Sunday, 12 July 2015

Neta ka safarnama

एक नेता का सफरनामा

लगता नहीं है जी मेरा, पढ़ने के जार में।
फेल हो हो कर हो गया, हूँ दागदार मैं।

चाहत थी घरवालों की, लपेट लें, मगर;
लगा न सका किसी तौर मैं, मन कारोबार में।

घूम कर छानता रहता, मस्तियाँ हरदम,
फिर ज़माने लगा महफ़िलें, जा दोस्त यार में।

सिर पर आ के बैठ गया, नेतागिरी का शौक;
देने लगा  हाजिरी नेता के, जा दरबार में।

नेता के कारनामों के, बदले चला गया;
बिना झिझक हवालात भी, खुद कई बार मैं।

जेल आने जाने में मिला, तजुर्बे का ढेर;
धीरे धीरे कानून का, हुआ जानकार मैं।

नेता जी से ढांढ़स मिला, टिकट दिलायेंगे,
अपनी ही पार्टी का वो, अगले चुनाव में।

टिकट के  मिल जाने पर, जान लगा दिया;
जीत गया चुनाव मैं भी, दल के बयार में।

जो लोग रखते थे कभी, नजर मुझ पे देव;
उस जमात को करता हूँ, अब ख़बरदार मैं।

एस ० डी ० तिवारी

Friday, 10 July 2015

Dohe



स्वप्न से तकदीर बने न, पानी पे तस्वीर।
करनी से भरनी मिले, राखि करे जो धीर।

झुक पाता तो है वही, जिसमे होती जान।
लकड़ी, मुर्दे की अकड़, मरने की पहचान।

समय समय की बात है, घटते बढ़ते भाव।
कब गाड़ी हो नाव पर, कब गाड़ी पर नाव।

पौत्र सीखा दादा से, उंगली पकड़ चलना।
सिखाता मोबाइल पे, उंगली वो रखना।

एस ० डी ० तिवारी

बिना किसी संघर्ष के, हो न कोई महान।
रह काँटों के बीच में, गुलाब रखता शान।

जिंदगी उनकी है हंसीं, हंसें जो हर हाल।
कांटों की चिंता नहीं, हँसता फूल गुलाब।

जीते जो अपने लिए, जीवन रखें फिजूल।
जिन्दा अपने हेतु नहीं, नदिया, पेड़ व फूल।

गलत काम का सभी को, पड़े चुकाना मोल।
मारा जाता शेर भी, होता आदमखोर।

छूट जाते हैं एक दिन, हर साँस और साथ।
साँस गए एक बार मरे, छोड़ सौ बार साथ।

औरों का हक़ छीन के, बनते हैं धनवान।
शेर होता पहलवान, ले औरों की जान।

धन के बल जो आदमी, हो जाता है बड़ा।
पाप का बोझ, सर ऊपर, रखे होत है बड़ा।

मोटा होवे आदमी, घटे पेट की भूख।
जैसे जैसे हो धनी, बढ़ती धन की भूख।

भोजन कर ले पेट भर,  मिटे पेट की भूख।
जपो जी भर राम नाम, मिटती मन की भूख।

कानून का लगा पेड़, दिखाए गजब रूप।   
सींचे, उसे छांव मिले, बाकी पायें धूप। 

देख समय को, बुढ़ापा, आय सज्जन के मन ।
बूढ़ा हो जाय दुर्जन, बुढ़ापा आय न मन।

उत्पन्न हो जाय पुत्री, होता पिता चिंतित।
कैसा होगा घर व वर?  सुख क्या साथ किंचित ?

स्त्री कुल की मर्यादा, सरिता के हैं कूल।
बिगड़ी स्त्री कुल तोड़े, उफनी सरिता कूल।

तेज होकर पवन बहुत, रखता ताकत बड़ा।
गिरा दे खड़े पेड़ को, कर न सके फिर खड़ा।

शत्रु व रोग ज्यों जन्में, दीजो तुरत दबाय।
हो जाते हैं जब बड़े, घातक वे हो जांय।   

छोड़ देते मित्र सभी, ना हो जब कुछ हाथ।
गाय से दूध ना मिले, बछड़ा छोड़े साथ।

रईस कृपण से बड़ा, दानी निर्धन होय।
जल का कुआँ पूजें सब, सागर को ना कोय।   


तपते लोहे पर भस्म, जल सीप में मोती।
सोना संग लाख की, सोने सी गति होती।

उदित होता या डूबता, सूरज रहता लाल।
ज्ञानी का सुख दुःख में, रहे एक सा हाल।

इंसान कर ले वश में, बाघ भालू व सर्प।
खुद के पाले हों नहीं, वश में क्रोध व दर्प।

सोना का संग पाकर, लाख चमक ना पाय।
मूरख सन्त प्रताप से, वंचित ही रह जाय। 


कलियुग में भी धृतराष्ट्र, पुत्रमोह में अँधा।   
कैसे बैठे गद्दी पर, लोक की ना चिंता।



देह चलातीं इन्द्रियां, वा इन्द्रियों को मन
माया का अथाह समुद, बुद्धि से नियंत्रण

पूजा, प्रार्थना, श्रद्धा, भक्ति, ध्यान व ज्ञान
सही मार्ग ले जानें की मन की हैं लगाम

सत्व, राजसी, तामसी तीन गुणों में द्वन्द
किसकी गति तीव्र करो चाहो जिसको मंद

काम, क्रोध. लोभ, मोह, मन को करें बीमार
दया, सत, प्रेम से वंचित धारण करे विकार

वैद्य देता है दवा होय जो तन का रोग
साधना ही ठीक करे, मन का हो गर रोग


अहं, स्वार्थ, ईर्ष्या व हठ, बुद्धि पे झंडा गाड़
ह्रदय के करते बंद, ये ही खुले किवाड़

व्यायाम से हो सुदृढ़, हरेक जीव का तन
मानसिक अभ्यास रखे, स्वस्थ मनुष्य का मन

तीर्थ, पूजा के करे, स्वच्छता ना आय
काम वासना मार दे, मन निर्मल हो जाय

Thursday, 9 July 2015

Muhabbat marichika

मुहब्बत मरीचिका (ग़ज़ल)

मुहब्बत एक ऐसी बहती दरिया है
न जाने मिलती किस समुन्दर में
बहता जाता है, हो के मुसाफिर
बदहवास उस दरिया के मंजर में
मरीचिका सी उसकी मंजिल
कभी उड़ जाती किसी बवंडर में
मगर ढूंढता रहता है वह
किनारे तो कभी भंवर के अंदर में 
कभी डूबता है उतराता कभी
खो जाता कभी तूफां के अंधड़ में
थोड़ी हरियाली ले ही आती है दिले बंजर में


प्यार बहती नदी है, मिलती न जाने किस समुन्दर में?
बहता जाता है, हो के पथिक, बदहवास नदी के मंजर में। 

तिनके की तरह हो जाता है, पाकर तेज लहरों का बहाव, 
कभी उतराता है, कभी वो गोता लगाता, भंवर के अंदर में। 

कभी तो किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता, एकदम स्थिर सा,
और कभी बहने लगता है  हवा के संग, डाले लंगर में। 

लहरों के बीच में जाकर, कभी ढूंढता रहता है किनारा,
और कभी जी होता, डूब जाए उसकी गहराई भयंकर में। 

भटक जाता है दिशा से, पता नहीं चलता है मंजिल का,  
मरीचिका सी मंजिल, उड़ती नजर आती है बवंडर में। 

न तो मैं जानूं न ही तुम जानो, कब किनारे ये कब भीतर, 
और जाने कब खो जाता है उठे हुए तूफान के अंधड़ में। 





थोड़ी हरियाली ले ही आती है दिले बंजर में

Sunday, 5 July 2015

Media ban Narad

चटनी बनाती मीडिया, खबर एक मिल जाय। 
उसे परोसती तब तलक, कान नहीं पक जाय।

दो में लगा के मिडिया, गजब दिखाती खेल। 
बुलवाती और के मुंह, अपने शब्द धकेल।   

मीडिया कह स्वतंत्रता, कर देती अपमान। 
दौड़ लेती पीछे सुन, काग ले गया कान। 



बनाकर  

नारद बन कर मीडिया, करे इधर की उधर।
तनिक किये बिन चिंता, बात जा रही किधर।
बात जा रही किधर, बजे किसी का नगाड़ा।
अपनी रोटी सिके, और हो जाय कबाड़ा।
तिल का कर दे ताड, इसमें उसकी महारत ।
परोसती चटपटा न्यूज़, मीडिया बन नारद।