किसी को खंजर तो किसी को छुरी ने मारा।
हमको तो उनकी मशहूरी ने मारा।
दूरी कस्तूरी मगरूरी जरूरी मजबूरी पूरी शरूरी मजूरी दस्तूरी लंगूरी
मशहूरी ने उनकी, हमको, बेगाना बना दिया।
उनको तो मगर ज़माने का, नजराना बना दिया।
उनको तो मगर ज़माने का, नजराना बना दिया।
हो गए मसगूल वो तो, अपने फन में कुछ ऐसे;
उन्हें, उनकी फनकारी का, दीवाना बना दिया।
गुजरे हुए वक्त ने उनको, मशहूर किया इतना;
गुजरे हुए वक्त ने उनको, मशहूर किया इतना;
मेरी मुद्दत की उल्फत को, बचकाना बना दिया।
जब जब भी वो आये, लगा हवा का झोंका आया,
मौसम हमारे घर का बहुत, मस्ताना बना दिया।
पहले तो धर लेते थे हम, कहीं से डोर उनकी;
उनको कटी पतंग सी अब, ये जमाना बना दिया।
उनको कटी पतंग सी अब, ये जमाना बना दिया।
उन्होंने महफ़िलों का हमें, परवाना बना दिया।
ढूंढते रहते हैं उन्हें अब, बीमार दिल को लिए;
यूँ लगता है उनको मेरा, दवाखाना बना दिया।
अब हमारे ही केवल हैं वो, कैसे कहें हम देव!
गैरों में फन की दाद ने तो, ठिकाना बना दिया।
गए जब कहीं पर, हुनर को अपने दिखाने
तूफानों से घिरा मेरा आशियाना बना दिया।
जो कुछ दूर तक साथ चलें, हमराही हैं, दोस्त कहाँ हैं !
राह चलने और वादा करने से, दोस्त नहीं मिला करते,
हाथ पकड़ के साथ चले, तो ही जानें, दोस्त कहाँ है !
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