Monday, 22 June 2015

Hindi haiku - july 2015

नेता के द्वारे
मात्र भिखारी आते
चुनाव हारे

भिन्न कानून
जाति धर्म क्षेत्र के
भारत एक

सोने का खग
पर जकड़े पर
मेरा भारत

थोड़ा घर में
थोड़ा चाहें मन में
भारतवासी


विशिष्ट बने
चुनाव प्रचार में
आम आदमी

भूल जाते हैं
ऋणी नेता चुकाना
मत का ऋण

नेता को धरा -
माइक पे रो रहा
चुनाव ज्वर

निकले नेता
चुनाव की गर्मी में
हवा पानी को

ढूंढने चले
पर्यटक पतंगे
गर्मी में ठण्ड

स्वेद बहा के
चुकाता है श्रमिक
रोटी का मोल

स्वेद बहा के
चुका देता श्रमिक
जीने का ऋण

होता है सना
किसान का पसीना
रोटी रोटी में

स्वेद बहाता
श्रमिक तभी पाता
रोटी में स्वाद

मिलता मोल
सोना व हीरा को भी
श्रम के बल

हीरा भी पाता
श्रमिक के कारण
अपना मोल

करवाता है
श्रमिक का शोषण
लाभ का लोभ

पत्थर दिल
पत्थर तुड़वाते
हैं नन्हों से जो

महल बना
रहता झोपड़ी में
श्रमिक दानी

डुबोता धनी
औरों का हक़ छीन
ऋण में सिर


पाथ रहे हैं
जीवन की अपनी
भट्ठे पे ईंट

गेंद न बल्ला
बचपन में आया
हाथ हथौड़ा

इसी उम्र में
किसने खड़ा किया
उनके बीच

दिया है पाती
श्रमिक के श्रम से
अपनी बाती


बहता  जल
जब ठोकर खाता
गीत सुनाता

तैरती चली
मेघों के जल पर
चाँद की नाव

शोर मचातीं
बूँदें जब गिरतीं
हिम शांति से

रोक न पाती
पत्थर की ठोकर
जल का जोश

नदी का जल
बहता कल कल
मन निश्चल

जितना नीचे
झरने का गिरना
ऊँची चिंघाड़


बहता जल
खा कंकड़ की मार
भरे चिंघाड़


नहीं थकता
एक पांव पे वक
लक्ष्य पे ध्यान

वक रखता
ध्यान व एकाग्रता  
लक्ष्य की प्राप्ति


राह में आईं
चट्टानें बढ़ा देतीं
नदी का जोश

साहस भरी
गिर कर भी चींटी
कभी न हारी

धकेल देती
निकलते ही माँ
बच्चों के पंख

बीस से साठ
पाया उनका साथ
निभाया साथ

पक्का बनाती
विश्वास के रोड़ी ही
प्रेम की राह

खोलते ताला
साहस श्रम आस्था
सफलता का

थोड़ा सा प्यार -
इतना दिया तूने
अर्पित तुझे  


रोज दो बार
बताती सही वक्त
बंद घडी भी

अधिक स्पष्ट
शहर की तस्वीर
रात्रि प्रहर

भोर में रात
अभी और सोयेगी
काले बादल

लम्बी हो जाती
स्वयं की परछाईं
रात्रि से पूर्व

बढ़ती जाती
लेखनी की गति भी
रात के साथ

मिल के लिखे
स्याही दीप व दिल  
प्यार का खत

रही जलती
परीक्षार्थी की बत्ती
सुबह तक    


मूर्ति गढ़ती
सहती जब शिला
प्रसव पीड़ा

शिला ले पाती
चोट खाने के बाद
मूर्ति का रूप

दे देता वृक्ष
औरों को सारा फल
स्वयं न खाता

ज्यादा थकाती
काम को करने से
काम की चिंता


मेढक बैठा
मेढक के ऊपर
झड़ी के बीच

टहनी पर
चिपका माँ के पेट से
बच्चा वानर

पेट की थैली
लिए कंगारू बच्चा
चरता घास

मुर्गे की बांग
पहलवान जी का
ट्रेक्टर स्टार्ट

होते ही भोर
बछड़ा करे शोर
खूंटे से खोल

ले के गिलास
मुन्नी गाय के पास
दूहते बापू

हाथ में लोटा
चले खेत की ओर
गांव की भोर

स्वयं बनाया
मुर्गों का कब्रिस्तान
स्वयं का पेट

तुम्हारी ना ने
सिखा दिया करना
अपने आप


बारिश आई
अपने शहर की
मुफ्त धुलाई

पानी दे पानी
मेघा राजा पानी दे
जिंदगानी दे

ढका सूरज
पवन को पुकारे
मेघ हटा रे

नृत्य करता
भंवर में चलता
नदी का जल

खोकर तट
नदी हो गयी झील
अति वृष्टि में

उम्र गुजारी
सागर की खोज में
जीवन नदी

घटा जो घेरी
हो गयी दोपहरी
घोर अँधेरी

चींटा खे रहा
बारिश के पानी में
मुन्ने की नाव

मिली हैं गिन
धुआं न ले ले छीन
साँसे अपनी

स्वर्ण कलश
लटके पेड़ों पर
मुंह में पानी

आते ही आंधी
 आम हेतु लगा दी
बच्चों ने दौड़


यह जीवन
धनी समझे क्रीड़ा
निर्धन पीड़ा

गर्मी में गांव
दिन निकलते ही
खाट भीतर

बाबा की कुर्सी
दिन भर सेकती
जाड़े में धूप





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