पंचपांती
सिर करके नीचे, चमगादड़ पेड़ से लटका
तबियत हुई ख़राब, लगा जोर का झटका
बार बार आ जाती दस्त
निर्बल, हो गया वो पस्त
उसका किया विष्टा, उसी के तन अटका
एकांत देख बिल्ली, चल पड़ी दूध पीने
हंड़िया में फंसी गर्दन, छूट गए पसीने
भीगी! भाग चली घबराकर
सोची, कर लें हज, नहाकर
दिखा राह में चूहा, दौड़ी उसे पकड़ने
चूहे को मिल गया, अन्न का एक दाना
कर में दबा के, आरम्भ किया चबाना
घुमाई जब उसने नजर
देख आती बिल्ली उधर
भगा बिल में, छोड़ कर अपना खाना
एक ने अपना माथा दूसरी से टकराई
दो भैसों के बीच, हो गयी तेज लड़ाई
एक, दूजे को पटकी
सिंग में सिंग अटकी
बिना बात के ही, अपनी सिंग तुड़वाई
दिन ढल गया, हुई अँधेरी रात
चाँद निकला, ले तारों की बारात
टिम टिम करते तारे
प्यारे लगते सारे
जी चाहे मैं भी घूमूं उनके साथ
गरजते बरसते आ गए बादल
खेत खलिहान में भर गया जल
खुश हो के मछली
तालाबों में उछलीं;
गीत सुनाते मेढक टर्र टर्र टर्र
आई बरसात, घुसा बिल में पानी
भुर भुर कर निकली, चींटी रानी
मिला कहीं न ठौर,
चलीं घरों की ओर;
उन्हें खिलाई चीनी बुढ़िया नानी
श्यामू ले आया एक काला घोडा
पीठ पर बैठा, पर वो ना दौड़ा
श्यामू ने सोचा
कुछ करना होगा
भागा वह तेज, लगाया जब कोड़ा
आ गए सियार, होते ही अँधेरा
हुआँ हुआँ कर, शोर बिखेरा
कुत्ते जागे
पीछे भागे
पीछा करके, उन्हें दूर खदेड़ा
मजे से बैठे धूप में, मामा मगरमच्छ
सुबह से शाम हुई, मिला न कोई भक्ष
बैठे रहे भाग्य भरोसे
फिर वे किस्मत को कोसे
चले नदी में वापस, पीने जल स्वच्छजाल बना कर, बैठी मकड़ी
एक टांग की, थी वो लंगड़ी
फंसा जाल में मच्छर
पड़ी जब नजर उस पर
पांच टांग से, झट से दौड़ी
गांव का धोबी ले आया गदहा
खूंटे से बाँधा कसकर पगहा
था वो ताकतवाला
खूंटे को उखाड़ डाला
सरपट दौड़ा जैसे कि खरहा
ले के चले ऊंट जी, पीठ पर पहाड़ी
ढो लेते हैं उस पर, कोई बोझा भारी
जाऊंगा शहर अजमेर
कसे काठी और नकेल
मैं भी करूंगा थोड़ी, ऊंट की सवारी
बिल्ली मौसी दिल्ली पहुंची, गयी इंडिया गेट
थोड़ी सी खूंखार थी वो, भारी था उसका वेट
चूहों में मच गयी खलबली
कहाँ से आई ऐसी बिल्ली
पार्लियामेंट में प्रश्न उठाने, लेने गये डेट
बालक खा रहा रोटी, उडता आया कागा
देख न पाया उसको, रोटी छीन के भागा
बालक चिलाया जोर से
माँ तब आई दौड़ के
दूसरी रोटी देने को, उठा गोद में टांगा
हाथी और चींटी में, होने लगी लड़ाई
हाथी था घमंड में, दिखाने लगा ढिठाई
अपने पांव के तले
कई चींटी को कुचले
चींटी घुसी सूंड में, हाथी की शामत आई
नयी नवेली दुल्हन कल्लू के घर आई
बड़े प्रेम से, कद्दू की सब्जी पकाई
पद गयी कुछ ज्यादा मिर्ची
निकल गयी सबकी सी सी
पानी में जीभ डूबोकर, बैठे कल्लू भाई
बनाने को हलवा, माँ ने कड़ाही चढ़ाया
गैस हो गयी ख़त्म, हलवा बन न पाया
जिद्द में हलवा खाने
पप्पू लगा चिल्लाने
तब देकर के मिठाई, माँ ने चुप कराया
छत पर जाके मोर, नाचा पंख फैलाकर
देख कर सुन्दर नाच
गड गयी सबकी आँख
आई जोर की बूँदें, भागा तब घबरा कर
हाथी के पास खड़ा होकर, सोच रहा था अँधा
दांत मानो भाला हो कोई और कान हो पंखा
पूँछ छूकर, समझ वो लाठी
पैर छुआ तो, खम्बा है हाथी?
सूंड छूकर भागा दूर, हुई अजगर की आशंका
अंगना में मेरे रोज, गौरैया रानी आ जाती
इधर उधर बिखरा दाना, चुग कर खा जाती
उसके लिए थी, एक कटोरी
भर कर पानी, रख देता पूरी
खा पी खुश हो जाती, ची ची गीत सुना जाती
तितली रानी कहाँ से पाई, इतने सुन्दर पंख
लहराती हो तुम हवा में, फूलों से सुन्दर रंग
हमारे मन को खूब लुभाती
कभी पास कभी दूर हो जाती
आओ हमारे पास खेलो, तुम भी हमारे संग
बोझ ढो ढो कर, थक गया बेचारा
ऊपर से धोबी ने, डंडा एक मारा
गदहा बैठा था उदास
धोबी लेकर आया पास
घास खिला के, फिर उसे पुचकारा
चिड़िया देखी पेड़ पर, बन्दर रहा था भीग
बोली, मामा तुम भी, क्यों न बनाते नीड
बन्दर ने क्रोध में नोचा
पक्षी का सुन्दर खोता
चिड़िया को मंहगी पड़ी, बन्दर को सीख
भेड़ जा रही है बाल कटाने
बाल जायेगा ऊन कारखाने
ऊन का बनेगा स्वेटर
और बनेगा कम्बल चद्दर
काम आएंगे सब ठण्ड भगाने
हरे रंग का तोता होता, पत्तों में छुप जाता है
अपनी लाल चोंच मारकर, मीठे फल खाता है
उड़कर आता जब मेरे घर
मुझको लगता है अति सुन्दर
मिठ्ठू मिठ्ठू कहता हूँ, मुझसे वो बतियाता है
लम्बे पांव और लम्बी गर्दन, लिए हुये जिर्राफ
पेड़ के ऊँचे पत्तों को भी, कर देता है साफ़
अफ्रीका का निवासी है
रेगिस्तान का वासी है
चीता जैसा कोट पहने, बड़े और भूरे छाप
घुस आई घर में बिल्ली, पी गयी सारा दूध
रोने लगा बिट्टू, जोर की लग गयी भूख
माँ मांग के पड़ोस से लाई
दूही गाय तो फिर लौटाई
कैसे लाती बाजार से, घर से था वह दूर
फूलों से रस लाकर, शहद बनाती मधुमक्खी
कभी कभी दे देती माँ, शहद चुपड़ के रोटी
स्वाद भरा और मीठा मीठा
सेहत के लिए भी है ये अच्छा
छत्ते से मधु निकालना, काम न सबके बस की
पापा के संग पप्पू गया, देखने चिड़ियाघर
देख के बड़े लुभाये, तरह तरह के जानवर
हरिण, बाघ, हाथी, चीता
गैंडा, भालू, बारह सिंगा
शेर दहाड़ा, दुबका पापा के पास, डरकर
ज़ेबरा भाई! लगते तो तुम गधे से हो
धरे काली धारी, दिखते अलग से हो
चंचल होने के नाते
खूंटे से नहीं बंध पाते
तभी तो जंगल में, घूमते मजे से हो
स्कूल में बना था, लड़का एक मुर्गा
गुजर रहा मुर्गा, देख हुआ शर्मिंदा
ये तो मुर्गों की बेइज्जती
है मास्टरजी की गलती
बांग लगाया, दोहराना मत आईंदादेखा जब छाई घटा घनघोर
खुश होकर नाचने लगा मोर
देखने आये लोग
शाम और सुबोध
देखकर हुए सब भाव विभोर
मुर्गे ने बांग लगाई और जोर से बोला
होने वाला है विहान, जागने की बेला
डब्लू, बबलू, पप्पू जागो
बबली, पिंकी, चिंकी जागो
देखो सूरज आ रहा, बना आग का गोला
चंदा मामा कभी कभी, तुम कहाँ छुप जाते
हम सब बच्चे आसमान में, ढूंढते रह जाते
तुम्हे ढूंढते ये भी मिल सारे
मंगल, बुध, शुक्र, शनि तारे
धीरे धीरे चलकर के, कहाँ से फिर आ जाते
मक्खी रानी लगती तो हो बड़ी सयानी
तुम करती रहती हो, फिर क्यों नादानी
आकर खाने पे बैठ जाती
इस तरह से रोग फैलाती
ढक कर रखेंगे खाने को, हमने भी ठानी
एक हंस का जोड़ा, पकड़े रस्सी का छोर
लटका चला कछुआ, दूसरे तालाब की ओर
जा रहे, जहाँ ज्यादा था पानी
कहने लगा कछुआ एक कहानी
मुँह खोला, गिरा धड़ाम, टूटे हड्डी के पोर
एक राजा ने रख लिया, बन्दर को नौकर
देखा वो मक्खी बैठी, राजा के नाक पर
लगा मक्खी को उड़ाने बानर
बैठ जाती फिर से वो आकर
सोचा दूँ मार, काटा नाक तलवार चलाकर
एक डाल पर, घोसला बनायी चिड़िया
चढ़कर शरारती बालक ने दिया हिला
घोसला गिर गया नीचे
उसके दोनों अंडे फूटे
ची चिं करके रोने लग गयी चिड़िया
अनेकों चिड़ियों को उसमें साथ फंसाया
सब चिड़िया साथ मिलीं
जाल लेकर के उड़ चलीं
दूर गयीं तब चूहा आया, काट छुड़ाया
चूहा भाई! लगते तो तुम भले चंगे हो
कपड़ों से मगर क्यों लेते रहते पंगे हो
बिना बात कुतर देते
बिना काम के कर देते
कपड़ों में पाते क्या, रहते तो नंगे हो
गिलहरी रानी, पूंछ रखे हो कितना भारी
पेट लिये सफेद, तुम्हारी पीठ पर धारी
बीज, फल जो भी पाती
कुतर कुतर कर खाती
बड़ी बड़ी सी आँखे, लगती हैं बड़ी प्यारी
कौवा बोले कांव कांव, कोयल करे कू
कुत्ता भौंके भौं भौं, बिल्ली करे म्याऊं
शेर करे दहाड़
हाथी की चिंघाड़
बकरी बोले में में, मुर्गा कुकड़ू कूँ
किसान बोता खेत में सब्जी गेहूं दाल
धान भी उगाता है वह हर साल
काट कर लाता फसल
डंठल से करता अलग
हम मजे से खाते हैं रोटी सब्जी दाल
चिड़िया रानी! तुम कैसे उड़ जाती हो
हम भी उड़ना चाहें, पर नहीं बताती हो
चाहें हम बैठें तुम्हारे साथ
पर तुम आती नहीं हो हाथ
पास आयें तो चीं चीं करती उड़ जाती हो
जाओ जाओ बरखा रानी, जाओ अपने घर
खेल रहा है अभी हमारा देखो राजकुंवर
किसी और दिन फिर आना
नन्हीं प्यारी बूँदें लाना
छतरी लेकर देखेंगे हम, बरसना जी भर
नानी का घर था, नदी के पार।
रमेश ताकता, होकर लाचार।
जाकर अपने गांव,
लेकर आया नाव;
नाव में चढ़ कर पहुंचा पार।
लाल बत्ती पर रूक जाती गाड़ी।
फिर चल जाती, होती जब हरी।
पीली करे सावधान,
रुकने का रखो ध्यान;
रुकने की रेखा से पीछे हो खड़ी।
नदी का जल है बड़ा स्वच्छ।
पर रहते उसमें मगरमच्छ।
जाल उनके फैले,
जाना नहीं अकेले;
वरना, बन जाओगे भच्छ।
कुत्ता भौंके भौं भौं, बिल्ली करे म्याऊं
शेर करे दहाड़
हाथी की चिंघाड़
बकरी बोले में में, मुर्गा कुकड़ू कूँ
किसान बोता खेत में सब्जी गेहूं दाल
धान भी उगाता है वह हर साल
काट कर लाता फसल
डंठल से करता अलग
हम मजे से खाते हैं रोटी सब्जी दाल
चिड़िया रानी! तुम कैसे उड़ जाती हो
हम भी उड़ना चाहें, पर नहीं बताती हो
चाहें हम बैठें तुम्हारे साथ
पर तुम आती नहीं हो हाथ
पास आयें तो चीं चीं करती उड़ जाती हो
जाओ जाओ बरखा रानी, जाओ अपने घर
खेल रहा है अभी हमारा देखो राजकुंवर
किसी और दिन फिर आना
नन्हीं प्यारी बूँदें लाना
छतरी लेकर देखेंगे हम, बरसना जी भर
नानी का घर था, नदी के पार।
रमेश ताकता, होकर लाचार।
जाकर अपने गांव,
लेकर आया नाव;
नाव में चढ़ कर पहुंचा पार।
लाल बत्ती पर रूक जाती गाड़ी।
फिर चल जाती, होती जब हरी।
पीली करे सावधान,
रुकने का रखो ध्यान;
रुकने की रेखा से पीछे हो खड़ी।
नदी का जल है बड़ा स्वच्छ।
पर रहते उसमें मगरमच्छ।
जाल उनके फैले,
जाना नहीं अकेले;
वरना, बन जाओगे भच्छ।
कान्हा खा गए सारा मक्खन।
थोड़ा था मुंह लगा,
जान गयी माँ यशोदा;
खुला रह गया, मटकी का ढक्कन।
सूरज जाता चंदा आता, दोनों का ना मेल।
खेलते हैं ऐसे दोनों, लुक छिपी का खेल।
चंदा के संग आते सारे,
बाहर निकल कर तारे;
चमकता रहता है सूरज, पूरे दिन अकेल।
निकला शेर, करने को शिकार।
हाथी मिल गया, हुई तकरार।
हाथी था बलवान,
शेर भी महान;
लड़े दोनों, किसी की जीत न हार।
पूरब में प्रातः सूरज उगता।
धीरे धीरे वह ऊपर उठता।
दिन भर वह चमक,
करता जग जगमग;
शाम को पश्चिम में डूबता।
धरती है अपनी, संतरे सी गोल।
नार्थ और साउथ, इसके दो पोल।
समुद्र ने छिना भाग तीन।
एक बचा हिस्सा जमीन।
पाल हमें, देती जीवन अनमोल।
किया बड़ा ही गड़बड़झाला।
दीवारों को गन्दा कर डाला।
शामत आयी,
जब हुई सफाई;
उजड़ गया मकड़ी का जाला।
उछल उछल कर गेंद चली।
इधर से उधर सोनू की गली।
सोनू ने चौका जमाया,
मोनू पकड़ नहीं पाया;
मुश्किल से उसकी हार टली।
एक बार हुई सब्जियों में तकरार
बच्चों को किससे ज्यादा है प्यार
मटर पनीर बोले हम
आलू गोभी बोले हम
करेले ने मान लिया दूर से ही हार
डाली ने अपना जन्मदिन मनाई
पार्टी देने, सहेलियों को घर बुलाई
शाम को केक कटा
डाली को गिफ्ट मिला
बोले सब 'जन्मदिन की बहुत बधाई'
एक वर्ष के बाद दिवाली आयी
खाने को मिलेगी खूब मिठाई
पप्पू ने पटाखे फोड़ा
शामू फूलझड़ी छोड़ा
शाम होते ही सबने दीप जलाई
No comments:
Post a Comment