Sunday, 28 June 2015

Ankhon me ansoo naari

तेरी आँखों में नारी

तेरी आँखों में किसी ने झील, किसी ने समुन्दर देखा;
मैंने तो उनसे बस आंसू बहते देखा, हे नारी!
कभी आत्मज का मोह,  कभी लिए प्रियतम विछोह;
सिसकियों में ही तुझको डूबे देखा, हे नारी!
कभी ममता, कभी कुटुंब का बोझ होता भारी तुझपे;
थके बिन, चारी सी सेवा करते देखा, हे नारी !
शक्ति लिए सृजन की तू, तू ही देती जन्म पुरुष को;
पर मैंने उनका खिलौना बनते देखा, हे नारी!
डाली से टूट तू मंदिर जाएगी या जाएगी मरघट किसी;
तू भी न जानी भाग्य का लेखा, हे नारी!
जब आता है संकट भारी, हो जाती खड्ग सी कठोर;
पर प्रेम के वश तुझको सदा हारते देखा, हे नारी!
दुःख  के घूंट अकेले पी जाती, खुशियों की बाँट लगाती;
अपनों के लिए सर्वस्व लुटाते, हे नारी!
पुष्प और नारी दोनों होते, प्रभु की अति अनुपम रचना
घर की बगिया को तुझे सुगंध से भरते देखा, हे नारी!
भरी होतीं हैं जग की सब राहें सारी, दुखदायी काँटों से
आंचल बचाकर तुझको उन पर चलते देखा,  हे नारी!
पति चाहे पतित, व्यसनी हो, सहती उसको भी चुपके
पति के लिए भी तुझे ही सती होते देखा, हे नारी!
अभागे हैं, देख पाते बस यौवन की  जो सुंदरता तेरी,
मैंने उम्र ढले माँ की ममता ढोते देखा , हे नारी!
कितने निष्ठुर होते, दुखा देते जो, तेरे कोमल मन को
कई पापियों को आँखों में पानी भरते देखा, हे नारी!

       - एस० डी०  तिवारी 





तेरी आँखों में किसी ने झील, किसी ने समुन्दर देखा;
मैंने तो देखा बस बहते हुए पानी, हे नारी!
कभी आत्मज का मोह, लिए कभी प्रियतम विछोह;
देखा सिसकियों में ही तू रह जाती, हे नारी!
कभी ममता, कभी कुटुंब का बोझ होता भारी तुझपे;
थके बिन करती सेवा ज्यूँ चारी, हे नारी !
शक्ति लिए सृजन की तू, तू ही देती जन्म पुरुष को;
उसके हाथ का खिलौना, हो जाती, हे नारी!
डाली से टूट मंदिर जाएगी या जाएगी मरघट किसी;
भाग्य का लेखा, तू भी ना जानी,  हे नारी!
जब आता है संकट भारी, हो जाती खड्ग सी कठोर;
पर प्रेम के वश तू सदा ही हारी, हे नारी!
दुःख  के घूंट स्वयं पी जाती, खुशियों की बाँट लगाती;
अपनों के लिए सर्वस्व लुटाती, हे नारी!
पुष्प और नारी दोनों ही, प्रभु की अति अनुपम रचना;
घर की बगिया में सुगंध भर जाती, हे नारी!
चलना होता तुझे, दुखदायी काँटों से आंचल को बचा,
भरी होतीं हैं जग की राहें सारी, हे नारी!
पति चाहे पतित, व्यसनी हो, सहती उसको भी चुपके;
पति के लिए भी सती हो जाती, हे नारी!
अभागे हैं, देख पाते बस यौवन की जो सुंदरता तेरी;
उम्र ढले माँ सी सुन्दर हो जाती, हे नारी!
कितने निष्ठुर होते, दुखाते जो, तेरे कोमल मन को;


और भर देते हैं आँखों में पानी, हे नारी!

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