राही थक जाया करते
राह न थकती है कभी।
झरने झर जाया करते
नदी न झरती है कभी।
शाम डर जाती तम से
सुबह न डरती है कभी।
रेत बिखर जाया करती
शिला न बिखरती है कभी।
तूफान ठहर जाया करते
हवा न ठहरती है कभी।
पत्ते बिछुड़ जाया करते
शाखा न बिछुडती है कभी।
फूल मुरझाया करते
तितली न मुरझाती कभी।
घुँघरू बज जाया करते
पांव न बजते हैं कभी।
झंडे तो फहराया करते
गड़े डंडे न फहराते हैं कभी।
कांटे चुभ जाया करते
फूल न चुभते हैं कभी।
तालाब सूख जाया करते
समुद्र न सूखते हैं कभी।
देह मर जाया करती
आत्मा न मरती है कभी।
चाँद, सूरज छुप जाया करते
सच्चाई न छुपती है कभी।
No comments:
Post a Comment